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Monday, May 14, 2012

उत्‍पीड़न से परेशान वनवासियों ने तीन थानों को घेरा

http://news.bhadas4media.com/index.php/yeduniya/1382-2012-05-14-11-26-02

[LARGE][LINK=/index.php/yeduniya/1382-2012-05-14-11-26-02]उत्‍पीड़न से परेशान वनवासियों ने तीन थानों को घेरा   [/LINK] [/LARGE]
Written by विजय विनीत   Category: [LINK=/index.php/yeduniya]सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार[/LINK] Published on 14 May 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=970ab412ff7878df286031a85ee10559d6470a0d][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/yeduniya/1382-2012-05-14-11-26-02?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
सोनभद्र। जिले में वन विभाग के उत्पीड़न से आजिज आकर सोमवार को कई थानों पर अचानक वनवासियों का हुजूम जा पहुंचा। इससे पुलिस महकमा अचानक सन्न रह गया। वन निवासियों का कहना था कि वन विभाग व पुलिस के गठजोड़ ने हम लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। चोपन, कोन, राबर्ट्सगंज थानों पर पहुंचे वन निवासियों का कहना था कि हम लोगों के ऊपर वन विभाग द्वारा थोपे गए मुकदमें वापस लिए जाय अन्यथा हम लोगों को सामूहिक रूप से जेल भेज दिया जाय ताकि पुलिस को वेवजह परेशान न होना पड़े। वनाधिकार अधिनियम के तहत हम लोगों को हक़ न देकर जेल भेजा जा रहा है। राबर्ट्सगंज कोतवाली में वसौली, बहुआर, अमौली, बघुआरी आदि गावों के सैकड़ों वनवासियों ने कोतवाल प्रदीप सिंह चंदेल को अपनी आप बीती सुनाई।

शंकर की अगुआई में कोतवाली पहुंची महिलाओं बुधनी, शांति, जिरवंती, शीला देवी, सुकुवारी, शिव कुमारी, लाखराजी, सुरसती, फूलमती, पुनवासी देवी, मुन्नी, कमली देवी, शिव कुमारी, सुकुवारी, मुन्नर सिंह, सुरजमन, बिफान, हरिदास, गुलाब, रमाशंकर, दयाराम, रामदास, रामजग, रामबली, रामखेलावन, परभू, शंकर, छोटेलाल, लालता, छोटाई, राजेंदर, लालजी का कहना था कि हम लोगों के बाप दादा की जमीन को गलत तरीके से वन विभाग के लोगों ने हड़प लिया इस मामले में हम लोगों के साथ न्याय नहीं हुआ। हम लोगों ने जब जमीन नहीं छोड़ी तो हम लोगों को फर्जी मुकदमों में फंसा दिया गया। एक एक आदमी पर कई-कई मुकदमे किये गए हैं। वन विभाग कई बार सामानों को कई बार उठा ले गए घरों को धराशायी कर दिया। लोगों को बुरी तरह मारा-पीटा लेकिन पुलिस ने हम लोगों के इस उत्पीड़न पर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन वन विभाग की झूठी शिकायत व मुकदमों पर लगातार जेल भेजा जा रहा है। वहीं जो दबंग व सामंती किस्म के लग हैं उनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। वन विभाग अवैध खनन करा रहा है लेकिन किसी भी अधिकारी में इतना साहस नहीं है कि उनके ऊपर किसी तरह की कारवाई करें।

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कोन थाने पर श्यामलाल व लालती तथा चोपन थाने पर शोभा की अगुवाई में वनवासी पंहुचे थे। उनका कहना था कि हम वनाश्रित समुदाय को भारत की संसद ने वनाधिकार कानून को पारित कर हमें वनों में रहने का अधिकार दिया है। संसद ने कानून बनाते समय हमारे साथ ऐतिहासिक अन्याय होने की बात स्वीकार की है लेकिन यह विशिष्ट कानून केवल सरकार की फाइलों व अदालतों में अमल में न आने के कारण दम तोड़ रहा है। वन विभाग अभी भी उप निवेशिक रवैया अपनाते हुए बदस्तूर हमारे ऊपर उत्पीड़न की कार्रवाई कर रहा है। हमारे घर गिराए जा रहे हैं फसलों को आग लगाई जा रही है। जायका जैसी कंपनी की योजनाओं को हमारे ऊपर जबरिया थोपा जा रहा है। हमारे खेतों में गड्ढे खोदे जा रहे हैं। ५/२६ और भारतीय वन अधिनियम १९२७ के तहत हम वनवासियों के ऊपर झूठे मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं। इसे लेकर कई बार ऊपर से लेकर नीचे तक अधिकारियों को अवगत कराया गया, फिर भी उत्पीड़न जारी है। हम लोगों को वनाधिकार अधिनियम के तहत जमीन न देकर हमारे खिलाफ वारंट जारी किये जा रहे हैं। पुलिस भी मामले की सही जाँच न करके हम लोगों को परेशान कर रही है।

वन वासियों का एक स्वर से कहना था कि इतने मुकदमों की जमानत कराना हम गरीबों के बस की बात नहीं। इसलिए बेहतर होगा कि हमें सामूहिक रूप से जेलों में डाल दिया जाय। अब हम जिल्लत भरी जिंदगी और नहीं जीना चाहते। वन वासियों ने एलान किया कि अब हम किसी मुकदमे में जमानत नहीं करायेंगे। हमें सम्मान पूर्वक जीने दिया जाय, हमारे अधिकारों को मान्यता दी जाय, वन विभाग व पुलिस का हस्तक्षेप हमारे जीवन में कम किया जाय। फर्जी मामले वापस लिए जायं। अब हम लोग किसी भी फर्जी मामलों में जमानत नहीं करायेंगे। वनवासियों का कहना था कि अब भी अगर हम लोगों का शोषण होता रहा तो हम लोग इसे बर्दास्त नहीं करेंगे। इस आशय का एक ज्ञापन भी वनवासियों ने पुलिस अधीक्षक, जनपद न्यायाधीश, मुख्य न्यायाधीश, मुख्यमंत्री के नाम सौपा गया।

[B]सोनभद्र से पत्रकार विजय विनीत की रिपोर्ट. [/B]

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