वीरेन डंगवाल को पहली बार दरभंगा में देखा था और दूसरी बार पटना में। फिर तो उन्हें देखने, सुनने के कई सिलसिले आये। दरभंगा का वाकया है कि आकाशवाणी ने अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया था। शायद सन तिरानबे की बात है। बरेली से #VirenDangwal आये थे, खंडवा से Pratap Rao Kadam और पटना से#AlokDhanwa आये थे। और भी कवि थे, नाम याद नहीं। कवि सम्मेल आधी रात को खत्म हुआ। घर लौटते हुए साथ में मेरी एक दोस्त प्रतिमा राज थी। हम एक ही साइकिल पर थे। पीछे से आती हुई एक मारुति वैन पास आकर रुक गयी। आलोक जी और वीरेन दा उतरे। वे हैरान थे एक छोटे शहर में हमारी ऐसी मटरगश्ती पर। हमसे उन्होंने थोड़ी बात की और सही-सही घर पहुंचने की हिदायत दे कर चले गये। उस घटना का जिक्र जब-तब आलोकधन्वा करते रहे हैं।
वीरेन दा को भी वह सब याद था। इसलिए सन छियानबे में जब वे पटना आये, तो उन्होंने पहचान लिया। जनसंस्कृति मंच ने उनका एकल काव्यपाठ रखा था। मैंने उस काव्यपाठ की रिपोर्टिंग दैनिक हिंदुस्तान के लिए की थी। तब नागेंद्र जी फीचर एडिटर हुआ करते थे। रिपोर्ट का शीर्षक मुझे याद है, जो वीरेन दा की काव्यपंक्तियों से ली गयी थी: "आएंगे उजले दिन जरूर आएंगे"।
आज वीरेन दा का जन्मदिन है। वे छासठ बरस के हो गये। आपने पढ़ी होगी, फिर भी आज उनकी दो कविताएं आपलोगों को पढ़ाने का जी चाहता है...
हम औरतें ----------
रक्त से भरा तसला हैं रिसता हुआ घर के कोने-अंतरों में
हम हैं सूजे हुए पपोटे प्यार किये जाने की अभिलाषा सब्जी काटते हुए भी पार्क में अपने बच्चों पर निगाह रखती हुई प्रेतात्माएं
हम नींद में भी दरवाज़े पर लगा हुआ कान हैं दरवाज़ा खोलते ही अपने उड़े-उड़े बालों और फीकी शक्ल पर पैदा होने वाला बेधक अपमान हैं
हम हैं इच्छा-मृग
वंचित स्वप्नों की चरागाह में तो चौकड़ियां मार लेने दो हमें कमबख्तो!
पीटी उषा ---------
काली तरुण हिरनी अपनी लंबी चपल टांगों पर उड़ती है मेरे ग़रीब देश की बेटी
आंखों की चमक में जीवित है अभी भूख को पहचानने वाली विनम्रता इसीलिए चेहरे पर नहीं है सुनील गावस्कर की सी छटा
मत बैठना पीटी उषा इनाम में मिली उस मारुति कार पर मन में भी इतराते हुए बल्कि हवाई जहाज में जाओ तो पैर भी रख लेना गद्दी पर
खाते हुए मुंह से चपचप की आवाज़ होती है ? कोई ग़म नहीं वे जो मानते हैं बेआवाज़ जबड़े को सभ्यता दुनिया के सबसे खतरनाक और खाऊ लोग हैं...
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