Sunday, August 4, 2013
हिंदी के लेखकीय जगत में कोकतंत्र का काला सूरज सिर पर बमक रहा है। साथ में चौतरफा मवाद बरस रहा है। संपादक, लेखक, अनुवादक, अपराधी, छुटभैये बौद्धिक, एक अभूतपूर्व-अनपेक्षित आखेटक गिरोह बना चुके हैं जो कभी भी किसी का भी वध कर पाने में सक्षम हैं। अगले कुछ दिनों में हम पाएंगे कि यह गिरोह सेकुलर-सेकुलर चिल्लाते हुए यादव पप्पू से गांधी पप्पू का चारण बन चुका है। यही इसकी नियति है। इसलिए समय रहते चेतावनी जारी कर रहा हूं। जो सुने, उसका भला। जो नहीं, उसका भाला...
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