Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Tuesday, January 28, 2014

असामयिक मौतों का कारण बन रही हैं उत्तराखंड की जर्जर स्वास्थ्य सेवायें

असामयिक मौतों का कारण बन रही हैं उत्तराखंड की जर्जर स्वास्थ्य सेवायें

शब्बन खान गुल

health-services(उत्तराखंड के वरिष्ठ आन्दोलनकारी और 'उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी' के अध्यक्ष पी.सी.तिवारी की पत्नी मंजु तिवारी, जो स्वयं भी प्रदेश की राजकीय सेवा में थीं, का 4 जनवरी को देहान्त हो गया। सीने और बायीं बाँह में दर्द की शिकायत होने पर रात को उन्हें अल्मोड़ा के जिला अस्पताल ले जाया गया। ताज्जुब है कि कभी चन्द राजाओं की राजधानी रहे और अब उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी के नाम से विभूषित जिला मुख्यालय के अस्पताल में इमर्जेंसी मेडिकल ऑफीसर के रूप में एक फिजीशियन तक नहीं था। संविदा पर काम कर रहे एक होम्योपैथ, जिसे न प्राइवेट वार्ड खोलने का अधिकार था और न ही मरीज को रिफर करने का, ने मंजु तिवारी का इलाज किया। रोगिणी और उनके किशोर पुत्र द्वारा बार-बार यह कहने के बावजूद कि कहीं यह दिल का दौरा तो नहीं है, उन्हें इलाज के लिये अन्यत्र तो नहीं जाना चाहिये, उक्त होम्योपैथ ने पेट में गैस का ही इलाज किया और कुछ ही घंटों में मंजु ने प्राण त्याग दिये। उक्त दुर्भाग्यपूर्ण घटना के आलोक में उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं का जायजा ले रहे हैं शब्बन खान 'गुल')

जब सूबे का स्वास्थ्य महकमा ही वेंटिलेटर पर अंतिम साँसें गिन रहा हो तो आम आदमी की सेहत का क्या हाल होगा, इसकी सहज कल्पना ही की जा सकती है। स्वास्थ्य मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी के नाकारापन के चलते स्वास्थ्य सेवाएँ हर लिहाज से विफल हो चुकी हैं। अस्पतालों में डाक्टरों सहित अन्य स्टाफ की बेहद कमी है। ऊपर से लगातार जारी हड़तालों ने स्वास्थ्य महकमे का बँटाधार कर रखा है। भ्रष्टाचार भी चरम पर है। मंत्री जी का सारा ध्यान ट्रांस्फर, पोस्टिंग और खरीददारी में मालकटाई तक ही केन्द्रित है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा की जाने वाली खरीददारियों में एक से बढ़ कर एक घपले-घोटाले सामने आते रहते हैं। बबाल मचने पर हर बार स्वास्थ्य मंत्री रटी-रटाई भाषा में जवाब देते हैं, ''जैसे ही मामला मेरे संज्ञान में आएगा, कड़ी कार्रवाही की जाएगी।'' हैरत की बात है कि कहाँ तो उनकी इच्छा के बिना विभाग में एक पत्ता तक नहीं हिल सकता, लेकिन कहाँ कराड़ों रुपये के घपले-घोटालों की जानकारी उन्हें नहीं रहती। कुछ मामलों में मंत्री जी कहते हैं, ''जाँच बैठा दी गई है। रिपोर्ट मिलने के बाद कार्रवाही की जाएगी।'' इसके बाद क्या होता है, वह खुद ही जाँच का विषय हो जाता है। जबकि स्वास्थ्य विभाग को राज्य से जारी बजट के अलावा केन्द्र से भी तगड़ा बजट मिलता है। यदि कुल हासिल बजट का आधा हिस्सा भी ईमानदारी से खर्च कर दिया जाए तो सूबे में स्वास्थ्य की व्यवस्थाएँ चाक-चैबंद हो सकती हैं।

संभवतः देश के अन्य किसी राज्य में इतनी हालत खराब नहीं है, जितनी कि उत्तराखंड में है। पहाड़ के दुर्गम और अति दुर्गम स्थानों पर सरकारी स्वास्थ्य सेवायें ध्वस्त हैं। डाक्टर व अन्य स्टाफ पहाड़ी क्षेत्र में जाने को तैयार नहीं है। उल्टे सभी लंबे समय से हड़ताल दर हड़ताल कर रहे हैं। कई सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र वार्ड ब्वॉय और स्वीपरों के बल पर चल रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री के गृह जनपद पौड़ी तथा निर्वाचन क्षेत्र कोटद्वार तक में अधिकांश आबादी निजी चिकित्सकों और झोलाछाप डाक्टरों पर निर्भर है। मंत्री जी के तुगलकी फरमानों का एक नमूना यह है कि 22 मई 2013 को पहाड़ के दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्रों में दंत चिकित्सकों की तैनाती की विज्ञप्ति जारी कर दी गई, जबकि इन पदों पर फिजीशियनों को तैनात होना था। पीआईएल के जरिए प्रकरण हाईकोर्ट में गया तो माननीय अदालत ने हैरत जताते हुए स्पष्टीकरण माँगा कि ये कैसे संभव हो सकता है ? सरकार तो आपदापीडि़त करीब 300 गाँवों का अब तक विस्थापन नहीं कर सकी है, स्वास्थ्य मंत्री तो इन लोगों को बुनियादी इलाज तक मुहैया नहीं करा सके हैं।

नसबंदी के नाम पर महिलाओं की जान से खेलने का खेल जारी है। मसूरी स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र लंढौर में गत 17 दिसंबर को महिला नसबंदी शिविर लगाया गया, जिसमें करीब 15 महिलाएँ आई थीं। सभी महिलाओं को बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया गया। पहले आपरेशन में ही एक महिला के चीरा लगाने के बाद डाक्टर लैप्रोस्कोपिक मशीन खराब होने की बात कहकर भाग खड़ा हुआ। इस घटना से अफरातफरी मच गई। हालात बेकाबू होने पर वहाँ मौजूद अन्य महिलाओं को कम्यूनिटी अस्पताल भेजा गया। मसूरी में सर्जन न होने के कारण ही इस भगोड़े डाक्टर महेश भट्ट को देहरादून से भेजा गया था। सीएमओ डॉ. गुरुपाल सिंह यह कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि ''स्वास्थ्य मंत्री को अवगत करा दिया गया है। उन्होंने सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं।'' अब स्वास्थ्य मंत्री के 'आदेश' और 'कार्रवाही' से सभी परिचित हैं।

इसी तरह के एक और मामले में टिहरी जिले के भिलंगना ब्लाक के पुर्वाल नसबंदी शिविर में गाँव की ही रजनी देवी की मौत आपरेशन के समय हो गई। आपरेशन के समय रजनी देवी की हालत गंभीर हुई तो डाक्टर ने जिला अस्पताल बौराड़ी, नई टिहरी रेफर कर दिया, जहाँ दो घंटे बाद महिला की मौत हो गई। पहले तो मामला दबाने के प्रयास किए गए। जब बात खुली तो जाँच के आदेश हुए तथा महिला के परिजनों को दो लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की गई। डाक्टरों का कहना है कि हार्ट अटैक के कारण मौत हुई। मगर ऐसी जाँच ऑपरेशन से पहले क्यों नहीं की गईं? उन्नत तकनीकी के इस युग में भी सरकार के पास पहाड़ी क्षेत्रों में नसबंदी जैसा आसान आपरेशन करने वाले डॉक्टर तक नहीं हैं। मसूरी व पुर्वाल का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि पौड़ी में आयोजित शिविर में लीलादेवी नामक महिला को एनेस्थीसिया देते समय नीडल टूट कर उसके पेट में फँस गई। डाक्टर ने हाथ खड़े कर दिए। लीलादेवी को पौने दो सौ किमी की यात्रा कराकर दून अस्पताल लाया गया, जहाँ आपरेशन कर महिला की जान बचाई जा सकी।

98 प्रतिशत नसबंदी के प्रकरण बताते हैं कि डाक्टर लापरवाही बरतते हुए जल्दबाजी में चीरफाड़ कर देते हैं, क्योंकि एक दिन में सौ से दो सौ आपरेशन करने होते हैं। केस खराब होने पर इथर-उधर रेफर कर दिया जाता है। जब तैयारी नहीं हैं तो क्यों महिलाओं के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ? क्यों परिवार नियोजन के राष्ट्रीय कार्यक्रम की साख को बट्टा लगाया जा रहा है ?

स्वास्थ्य मंत्री के गृह जनपद पौड़ी के 30 प्रसव केन्द्रों में से एक में भी महिला डाक्टर नहीं हैं। सरकारी अनुमान बताते हैं कि प्रदेश में लगभग 14 हजार महिलाएँ माँ बनने वाली हैं। अकेले टिहरी जिले में 6,500 स्त्रियाँ गर्भवती हैं। ऐसी स्थिति में कैसे सुरक्षित प्रसव होगा ? जनपद नैनीताल के जाख (रातीघाट) निवासी चंपा को एसटीएच हल्द्वानी में भर्ती कराया गया। यहाँ के डाक्टरों ने प्रसव कराने से इंकार कर दिया। परिजन मजबूरी में प्रसूता को दिल्ली स्थित एम्स ले गए। उत्तरकाशी जनपद में महिला चिकित्साधिकारी के 46 पदों में से मात्र एक में नियमित डाक्टर है। तीन संविदा पर हैं। बाकी पद खाली हैं और प्रसव कराने की जिम्मेदारी एएनएम पर ही है।

केन्द्र द्वारा संचालित एनआरएएचएम की योजनाएँ अप्रैल में स्वीकृत हो चुकी हैं, लेकिन सूबे में इन्हें दिसंबर तक भी जमीन पर नहीं उतारा जा सका है। स्वास्थ्य मंत्री देश में सबसे पहले मल्टी स्पेशलिटी योजना शुरू करने का हल्ला मचा चुके हैं। चार कंपनियों को 40 सर्जिकल कैंप लगाने का टेंडर जारी किया गया है। ये कैंप तीन माह में पूरे होने हैं तथा प्रति कैंप आठ लाख रुपए खर्च किए जाएँगे। इन कैंपों के नाम पर फर्जीवाड़ा करने की तैयारी चल रही है। पिछले वर्ष भी गढ़वाल में पीपीपी मोड में लगने वाले कैंपों मं तगड़ा खेल होने की चर्चाएँ हुई थीं।

प्रदेश में जो थोड़ा-बहुत स्टाफ है भी, वह दुर्गम क्षेत्र में जाना नहीं चाहता और स्वास्थ्य मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं कि उन्हें पहाड़ों पर भेज सकें। वे उनके नाज-नखरे बर्दाश्त कर रहे हैं। उन डाक्टरों से कार्य नहीं कराया जा पा रहा है, जिन्हें इस शर्त पर सस्ती पढ़ाई मुहैया कराई गई थी कि कम से कम पाँच वर्ष उन्हें उत्तराखंड में काम करना होगा। ये डाक्टर खुलेआम शर्त को ठेंगा दिखा रहे हैं। मेडिकल कालेज हल्द्वानी के प्राचार्य डॉ. रमेश चन्द्र पुरोहित के अनुसार 168 छात्रों ने अनुबंध का उल्लंघन किया है। इनमें 42 के प्रकरणों को सुलझा लिया गया है। 126 छात्रों के खिलाफ केस करने की अनुमति शासन से माँगी है, लेकिन लगभग दो माह गुजर जाने के बाद भी शासन से कोई उत्तर नहीं मिल पाया है।

No comments: