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Wednesday, June 30, 2010

Fwd: सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के विरुद्ध है विदेशी शिक्षण संस्थान अधिनियम



---------- Forwarded message ----------
From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2010/6/30
Subject: सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के विरुद्ध है विदेशी शिक्षण संस्थान अधिनियम
To: Irshadul Haque <irshad.haque@gmail.com>, aslam hasan <aslamcustom@yahoo.com>


सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के विरुद्ध है विदेशी शिक्षण संस्थान अधिनियम

एक सपना बेचा जा रहा है- देश में रह कर विदेशी विश्वविद्यालयों से पढ़ाई और डिग्रियों का सपना. इससे उच्च मध्यवर्ग का एक हिस्सा खुश है और उसके साथ ही दूसरे तबके भी यह उम्मीद पाले हुए हैं कि उनके दिन सुधरेंगे. जो काम यह सरकार नहीं कर पाई, उसे विदेशी विश्वविद्यालय पूरा करेंगे. वे उच्च शिक्षा से वंचित रह गए बाकी के 89 प्रतिशत छात्रों को पढ़ाएंगे. लेकिन जमीनी सच्चाइयां बताती हैं कि यह झूठ है और विदेशी विश्वविद्यालयों को कमाई करने और भारतीय छात्रों को लूटने की इजाजत देने के लिए इस सपने की ओट ली जा रही है. निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोलते समय एसे ही दावे हर बार किए गए- भूख से बाजार बचाएगा, किसानों को बाजार अमीर बनाएगा, बीमारों की सेहत बाजार सुधारेगा, बच्चों को बाजार पढ़ाएगा. इस कह कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली खत्म कर दी गई, किसानों को दी जा रही रियायतें बंद कर दी गईं, स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च में भारी कटौती हुई और सरकारी शिक्षा व्यवस्था को आपराधिक प्रयोगों की प्रयोगशाला बना दिया गया. और नतीजा? भूख से पीड़ित और मर रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है. खेती बरबाद हो रही है और किसान आत्महत्या कर रहे हैं. साधारण इलाज से ठीक हो सकनेवाली बीमारियों से भी लाखों लोग (बच्चों समेत) हर साल मर रहे हैं. 6-15 साल के 20 प्रतिशत बच्चे अब भी स्कूल से बाहर हैं औऱ जो स्कूल जाते हैं, उन्हें निम्नस्तरीय शिक्षा हासिल हो रही है. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे दावे का भी यही हश्र होगा, यह तह है. इसके जो लक्ष्य बताए जा रहे हैं, वे कभी पूरे नहीं हो सकेंगे. लेकिन इसके साथ ही, हम सामाजिक रूप इसकी जो कीमत चुकाने जा रहे हैं और दशकों के संघर्षों के बाद हासिल किए गए अधिकारों को भी (जो वैसे अब भी पूरी तरह लागू नहीं किए जा रहे हैं) खोने जा रहे हैं. दिलीप मंडल की यह आंख खोलती रिपोर्ट, आज के जनसत्ता से साभार.

रिपोर्ट पढ़िएः 

सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के विरुद्ध है विदेशी शिक्षण संस्थान अधिनियम



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Nothing is stable, except instability
Nothing is immovable, except movement. [ Engels, 1853 ]



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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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