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Thursday, February 23, 2012

भोपाल गैस त्रासदी जांच आयोग का कार्यकाल फिर एक साल बढ़ा

भोपाल गैस त्रासदी जांच आयोग का कार्यकाल फिर एक साल बढ़ा


Thursday, 23 February 2012 09:38

आत्मदीप भोपाल, 23 फरवरी। मध्यप्रदेश की मंत्रिपरिषद ने भोपाल गैस त्रासदी जांच आयोग का कार्यकाल फिर एक साल के लिए बढ़ा दिया है। 27 बरस पहले हुए गैस कांड की जांच के लिए 25 अगस्त 2010 को गठित इस आयोग को छह महीने में राज्य सरकार को अपनी रपट पेश करनी थी। पर आयोग के गठन के डेढ़ साल बाद भी कोई बताने की स्थिति में नहीं है कि आयोग की रपट कब आएगी।
करीब 23 साल तक मुकदमा चलने के बाद यहां के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी न्यायालय ने यूनियन कारबाइड के सात पदाधिकारियों को दोषी करार देते हुए मात्र दो साल की कैद और एक लाख 1750 रुपए के मामूली जुर्माने की सजा सुनाई थी। 7 जून 2010 को आए इस फैसले के खिलाफ देश-विदेश में काफी बवाल मचा था। इस सिलसिले में 26 जुलाई 2010 को मध्यप्रदेश विधानसभा में विस्तृत चर्चा हुई थी। तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गैस कांड की नए सिरे से जांच कराने के लिए जांच आयोग कानून के तहत आयोग बनाने का एलान किया था। उन्होंने सदन को भरोसा दिया था कि आयोग की जांच रपट के आधार पर सभी दोषियों के खिलाफ समुचित कार्यवाही की जाएगी।
इसके बाद न्यायमूर्ति एसएल कोचर की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग बना कर उसे छह माह में रपट पेश करने का जिम्मा सौंपा गया। राज्य सरकार की ओर से तय बिंदुओं के मुताबिक आयोग को इसकी पड़ताल करनी है कि क्या यूनियन कारबाइड कारखाने की स्थापना के समय लागू नियमों व निर्देशों का पालन किया गया था। क्या यूनियन कारबाइड ने 2-3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात गैस रिसाब हादसा होने से पहले मजदूरों के इस तरह की दुर्घटना से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए थे। क्या कारबाइड ने गैस कांड के बाद रासायनिक कचरे का निपटारा करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए। वारेन एंडरसन की गिरफ्तारी, रिहाई और उसे भारत से अमेरिका जाने का सुरक्षित रास्ता देने में तत्कालीन राज्य सरकार और अन्य संबंधित लोगों की भूमिका क्या थी जिसके चलते एंडरसन फरार हो गया।
हादसे से जुड़े अन्य पहलुओं की जांच के अलावा आयोग को यह भी सुझाना है कि गैस पीड़ितों की खास जरूरतें पूरी करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए। जांच आयोग व्यक्तियों और संगठनों से गैस कांड के बारे में बयान, तथ्य दस्तावेज, शपथ पत्र व सबूत आमंत्रित कर चुका है। इसकी अवधि बढ़ाए जाने के बावजूद नागरिकों, गैस पीड़िÞतों के संगठनों और अन्य संस्थाओं ने आयोग को वांछित जानकारी देने में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। विशेषज्ञों की मदद से यूनियन कारबाइड कारखाने का निरीक्षण कराने के अलावा आयोग कारखाने के आसपास के जल स्रोतों की जांच कराएगा ताकि पता लग सके कि उनका पानी पीने लायक है या नहीं।

गैस त्रासदी की जांच के लिए शिवराज सिंह चौहान सरकार से पहले अर्जुन सरकार ने न्यायमूर्ति एनके सिंह की अध्यक्षता में आयोग बनाया था। गैस कांड इसी सरकार के कार्यकाल में हुआ था। तब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। उस सरकार के इशारे पर कांग्रेस की राज्य सरकार ने अपने ही बनाए एनके सिंह आयोग को जांच पूरी नहीं करने दी और अधबीच में ही खत्म कर दिया। तब की नोटशीट इसकी गवाह है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि विपक्ष के घोर विरोध के बावजूद राजीव गांधी सरकार के निर्देश पर मोतीलाल वोरा सरकार ने जांच आयोग को खत्म करने का अनुचित कदम उठाया। ऐसा कर एक ओर गैस त्रासदी से जुड़े बहुत सारे ऐसे तथ्यों को व्यवस्थित रूप से सामने आने से रोक दिया गया जो आगे की कार्यवाही का पुख्ता आधार बन सकते थे। दूसरी तरफ भोपाल की गैस पीड़ित जनता को अपनी बात कहने से वंचित रख दिया गया। चौहान ने खुलासा किया कि जांच आयोग खत्म करने के बारे में तब के मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने विधानसभा में जो बयान दिया, उसे पहले केंद्रीय केबिनेट सचिव से अनुमोदित कराया गया। इस मामले में केंद्रीय मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समति, केंद्रीय कानून मंत्री और केंद्रीय केबिनेट सचिव ने मप्र सरकार को निर्देशित किया।
गैस कांड के दबे सच को उजागर करने और तमाम कसूरवारों के खिलाफ कार्यवाही का आधार तैयार करने के लिए चौहान ने नया आयोग तो बना दिया। पर इस आयोग के काम की धीमी रफ्तार डेढ़ बरस बाद भी गैस पीड़ितों में भरोसा नहीं जगा सकी है।


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