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Friday, March 30, 2012

बलि का बकरा बनने को तैयार नहीं कोल इंडिया, पर सरकार बलि चढाकर मानेगी!

बलि का बकरा बनने को तैयार नहीं कोल इंडिया, पर सरकार बलि चढाकर मानेगी!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

सरकार को इतनी जल्दी क्यों पड़ी है कि कोल इंडिया की वाजिब शिकायतों की सुनवाई नहीं हो रही है ? कोयला ब्लाकों के घोटाले में हाथ काला होने के बावजूद निजी बिजली कंपनियों के लिए सरकार सरकारी नवरत्न कंपनी कोल इंडिया की बलि चढ़ाने पर आमादा है। हालांकि कोल इंडिया बलि बनने के लिए फिलहाल तैयार नहीं है। कोयला की भूमिगत आग अभी ठंडी पड़ने के ासार नहीं है। तय है कि लपटें अबकी दफा कोयलांचल से बाहर बाकी देश को भी झुलसाने के लिए काफी है।सरकार कोल इंडिया पर दबाव डालकर फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट साइन करवाने की तैयारी कर रही है। एक तरफ कंपनी कह रही है कि उसे एग्रीमेंट के लिए और वक्त चाहिए। उधर, दूसरी ओर कोयला मंत्री का कहना है कि 31 मार्च की डेडलाइन खत्म होने से पहले कंपनी एग्रीमेंट पर दस्तखत कर देगी।लेकिन, क्या कोल इंडिया सच में ये करार करना चाहती है? क्योंकि पिछले 2 दिनों में कोल इंडिया के बोर्ड की 2 बार बैठक हो चुकी है और फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई। हालांकि कोल इंडिया ने सरकार से इसके लिए थोड़ा वक्त मांगा है और साथ ही फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट के तहत पेनाल्टी भी घटाने को कहा है।बिजली कंपनियों के समक्ष पैदा हुई ईंधन की जबरदस्त किल्लत के बीच प्रधानमंत्री कार्यालय :पीएमओ: ने बिजली फर्मों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की। पीएमओ ने सार्वजनिक क्षेत्र की कोल इंडिया को बिजली फर्मों के साथ ईंधन आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर करने का भी निर्देश दिया।इससे पहले 15 फरवरी को पीएमओ ने कोल इंडिया को निर्देश दिया था कि वह ऐसे बिजली संयंत्रों के साथ ईंधन आपूर्ति करार करें, जिसने बिजली वितरण कंपनियों के साथ लंबी अवधि का करार किया है। 31 दिसंबर 2011 तक परिचालन शुरू करने वाले बिजली संयंत्रों के साथ 31 मार्च 2012 तक र्अंधन आपूर्ति करार करने को कहा गया था।

तैयारी देखते हुए लगता है कि कोलइंडिया को एअर इंडिया के अंजाम तक पहुंचाने के लिए सरकार राजधानी एक्सप्रेस की गति से भाग ​​रही है। अभी रक्षा बजट और रक्षा तैयारियों पर वास्तविक तैयारियों के आंकड़े सामने आने लगे हैं। पवित्रता और गोपनीयता की दुहाई से ​​देश की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो जाती। इसीतरह सरकारी कंपनियों के बारह बजाने का जो गोरखधंधा चला है, उसके बारे में एअऱ इंडिया ​
​और बीएसएनएल के हश्र को देखते हुए जागे हुए लोगों के कान खड़े हो जाने थे। पर लगता है कि यह देश अब अटूट निद्रा में है और सत्यानाश की किसी सुनामी से किसी की नींद में खलल नहीं पड़ने वाली!सरकार ने ये भी कहा है कि वो टीसीआई के दबाव में कोल इंडिया को करार करने से नहीं रोक सकती। इसके अलावा कोयला मंत्री ने ये भी साफ किया है कि कोयले की कीमत कोल इंडिया सरकार खुद तय करती है, सरकार इस बारे में कोई निर्देश नहीं देती। और न ही टीसीआई, कोल इंडिया पर कीमतों को बढ़ाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर जितना करने का दबाव डाल सकती है।सूत्रों के मुताबिक सरकार अब राष्ट्रपति के जरिए अपनी बात मनवाने की तैयारी में है। कंपनी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाला ब्रिटेन का फंड टीसीआई भी कंपनी में सरकार के दखल को गलत बता चुकी है।इस मामले में कोल इंडिया का बोर्ड कोयला मंत्रालय को एफएसए में नियमों में बदलाव पर प्रस्ताव भेजेगा। लेकिन सरकार एफएसए नियमों में बदलाव को तैयार नहीं दिख रही है।

कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने बिजली कंपनियों को करार के तहत 80 फीसदी कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के सरकार के निर्देश को मानने से मना कर दिया है। ईंधन आपूर्ति करार के मसौदे पर विचार करने के बाद कोल इंडिया के निदेशक मंडल ने कोयले की आपूर्ति (मात्रा) को लेकर बिना कोई प्रतिबद्घता के मसौदे को मंजूर करने का निर्णय किया।इससे पहले कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने कोयला मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की थी और 20 साल तक बिजली कपंनियों को आपूर्ति सुनिश्चित करने के करार पर हस्ताक्षर करने में असमर्थता जताई थी।

कोल इंडिया ने बिजली क्षेत्र के उपभोक्ताओं के साथ समझौते की रूपरेखा तय करने के लिए और समय मांगा है। सरकार ने कोल इंडिया लिमिटेड को यह संकेत दे दिया है कि उसे पीएमओ के निर्देश का सख्ती से पालन करना चाहिए और बिजली उत्पादक कंपनियों के साथ ईंधन आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर करते समय 80 फीसदी सुनिश्चित आपूर्ति का वादा करना चाहिए, भले ही सीआईएल के कई स्वतंत्र निदेशकों की इस पर आपत्ति है। कोयला मंत्रालय के एक उच्च अधिकारी ने कहा, 'सरकार ने अपना रुख एकदम स्पष्ट कर दिया है, यद्यपि 80 फीसदी की शर्त पर निर्णय टल दिया गया है।'टीसीआई कोल इंडिया के फ़्यूल सप्लाई क़रार के सख़्त ख़िलाफ़ है और वह लगातार इसका विरोध कर रही है।टीसीआई ने वित्त मंत्रालय को नोटिस भेजा है, जिसमें लिखा है कि कोल इंडिया ने सरकार के दबाव में आकर फ़्यूल सप्लाई क़रार किया है और इसकी वजह से कंपनी के कारोबार पर बुरा असर पड़ा है।

गौरतलब है कि अगर कोल इंडिया फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट कर लेती है तो पावर कंपनियों को जरूरत का 80 फीसदी कोयला मिलना तय हो जाएगा। हालांकि, कोल इंडिया का शेयरधारक टीसीआई लगातार फ्यलू सप्लाई एग्रीमेंट का विरोध कर रहा है। लेकिन सरकार ने टीसीआई की आपत्ति पर साफ कह दिया है कि निवेशक चाहें तो कंपनी में बने रह सकते हैं या उससे निकल भी सकते हैं।बहरहाल सरकार कोल इंडिया के इस प्रस्ताव पर विचार करके पेनाल्टी घटा सकती है।लेकिन पेनाल्टी घटाने से कोयला आपूर्ति की गारंटी से जुड़ी समस्याएं कत्म नहीं हो जातीं।लंदन की हेज फंड द चिल्ड्रेन इनवेस्टमेंट फंड (टीसीआई) ने कोल इंडिया (सीआईएल) मेंं अपने निवेश के मामले को लेकर भारत सरकार के खिलाफ दो द्विपक्षीय निवेश समझौते के तहत कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। टीसीआई की ब्रिटेन और साइप्रस स्थित दो इकाइयों के जरिए कोल इंडिया में 1 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी है और उसने मंगलवार को वित्त मंत्रालय को नोटिस भेजा है। नोटिस में भारत और ब्रिटेन के बीच वर्ष 1994 में हुए द्विपक्षीय निवेश समझौते और वर्ष 2002 में भारत और साइप्रस के बीच हुए ऐसे ही समझौते का उल्लेख है। बैंकों से पावर कंपनियों को कर्ज जुटाने में कोई दिक्कत नहीं आ रही है। मंत्रालय लगातार इस बात पर नजर रख रहा है कि बैंक पावर कंपनियों को कर्ज आसानी से दे।ग्यारहवीं योजना के दौरान तय लक्ष्य पूरा न कर पाने की प्रमुख वजह ईंधन की उपलब्धता में कमी और कोयले की ऊंची कीमतों का होना रहा है। कोल इंडिया (सीआईएल) अप्रैल में शुरू हो रही अगली तिमाही में कोयले की कीमतों में बढ़ोतरी कर सकती है। कंपनी ने जनवरी में अपने विशाल कार्यबल के वेतन में 25 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी की घोषणा का उसकी वित्तीय सेहत पर पडऩे  वाले असर को देखते हुए यह कदम उठाया है।कोल इंडिया दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है और घरेलू कोयला आपूर्ति में उसकी 82 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है। यही कारण है कि खनन कंपनी द्वारा की जाने कीमत में कोई भी बढ़ोतरी का कोयले की ज्यादा खपत वाले बिजली, इस्पात, सीमेंट और उर्वरक जैसे प्रमुख क्षेत्रों में व्यापक असर देखा जाता है।

विद्युत मंत्रालय ने 12वीं योजना के लिए 75,785 मेगावाट उत्पादन क्षमता का विस्तार करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि इसके लिए कितने निवेश की जरूरत होगी, अभी इसका आंकलन मंत्रालय भी नहीं कर पाया है। ग्यारहवीं योजना के दौरान 53,922 मेगावाट उत्पादन क्षमता का विस्तार हुआ है। जो कि योजना के लिए तय लक्ष्य से करीब 8,000 मेगावाट कम है। सरकार ने इसके पहले 11वीं योजना का संशोधित लक्ष्य 62,000 मेगावाट रखा था। बुधवार को विद्युत मंत्रालय द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि 29 मार्च तक हमने 11वीं योजना में 53,922 मेगावाट उत्पादन क्षमता का विस्तार किया है। शिंदे के अनुसार, तय लक्ष्य पूरा न कर पाने की प्रमुख वजह ईंधन की उपलब्धता में कमी और कोयले की ऊंची कीमतों का होना रहा है। उन्होंने बताया कि बारहवीं योजना को लेकर सरकार का 75,785 मेगावाट उत्पादन क्षमता का विस्तार करने की योजना है।

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