Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Thursday, August 9, 2012

अब क्या करेंगे चिदंबरम?अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 5.5 प्रतिशत!

अब क्या करेंगे चिदंबरम?अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 5.5 प्रतिशत!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

अब क्या करेंगे चिदंबरम?प्रणव के नक्शेकदम पर उन्होंने वित्तमंत्रालय की टी म बदल डाली। वित्त सचिव बदल दिये। संयुक्त सचिवों का कामकाज बदल दिया। ​​प्रधानमंत्री और प्रणव की तरह आर्थिक सुधारों की घोषणा कर दी। बाजार उठने लगा तो लगा असर होने लगा है। लेकिन बिना मेघे वज्रपात।​​ मूडी ने विकासदर में कटौती दिका दी तो औद्योगिक उत्पादन फिर गिरने लगा।मानसून संकट के मद्देनजर कृषि विकास दर में सुधार होना ​​तो दूर, सूखा और बाढ़ के चलते फसलें चौपट हो जाने से मंहगाई और मुद्रास्फीति बढ़ने के आसार है। अब सब्सिडी घटें या न घटें, उद्योग जगत को राहत देने की वजह से राजस्व घाटा घटने की भी कोई उम्मीद नहीं है। विनिवेश लक्ष्य इसबार भी हासिल होगा, इसकी संभावना कम ही है।मूल समस्याओं पर ध्यान दिये बिना एक के बाद एक जनविरोधी कानून पारित करके कारपोरेट नीति निर्धारण को अंजाम देते रहने से और रंग बिरंगे मौद्रिक कवायद से अर्थ व्यवस्था पटरी पर आनी थी, तो प्रणव मुखर्जी और मनमोहन सिंह ने कोई कसर नही छोड़ी थी।अब वाकई मुश्किलें​ ​ बढ़ गयी हैं गृह मंत्रालय में फेल चिदंबरम, जो घोटालों में ऐसे पंसे हुए हैं, अर्थ व्यवस्था को सुधारने और बाजार की सर्वोच्च प्राथमिकता बनाये रखने के सिवाय अपना वजूद कायम रखना भी विपक्ष की मेहरबानी पर निर्भर है।ज्यादातर राज्य अब भी मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई के खिलाफ!अब तक केवल चार राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने ही इसे समर्थन देने का संकेत दिया है।केंद्र सरकार के रिटेल में एफडीआइ यानी खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के खिलाफ देश भर में गुरुवार को व्यवसायियों ने प्रतिवाद किया।इनमें दिल्ली, मणिपुर, दमन एवं दीव और दादर नगर हवेली हैं शामिल।महंगाई की मार से जूझ रही जनता के लिए एक बुरी खबर है। एक फिर महंगा हो सकता है पेट्रोल। इस बार पेट्रोल के दाम में करीब डेढ़ रुपये की बढ़ोतरी हो सकती है।


रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 2012 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया है। मूडीज एनालिटिक्स ने कहा है कि 'मुश्किल' वैश्विक परिस्थितियों, सुस्त घरेलू नीति और कमजोर मानसून के चलते इस साल भारत की आर्थिक वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत रहने की संभावना है। मूडीज ने कहा कि जहां इस साल भारत की जीडीपी वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत रहने की संभावना है, 2013 में इसके 6 प्रतिशत रहने के आसार है। इससे पहले, रेटिंग एजेंसी ने 2013 में जीडीपी वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। मूडीज एनालिटिक्स के वरिष्ठ अर्थशास्त्री ग्लेन लेवाइन ने कहा कि रिजर्व बैंक या सरकार की तरफ से नीतिगत मोर्चे पर बहुत मामूली प्रतिक्रिया दिखाई जा रही है और वैश्विक अनिश्चितताओं से हमें नहीं लगता कि अर्थव्यवस्था तेजी की ओर बढ़ सकेगी।

केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने गुरुवार को जून के औद्योगिक उत्पादन आंकड़े पर निराशा जताई और कहा कि सरकार बिजली और परिवहन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बाधा हटाने का काम करेगी, जिससे विकास बाधित हो रहा है। चिदम्बरम ने मासिक आंकड़े पर प्रतिक्रिया में कहा कि महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान देने, बाधाओं को हटाने और उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है।केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक जून में देश का समग्र औद्योगिक उत्पादन 1.8 फीसदी कम रहा। विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन में 3.2 फीसदी गिरावट का इस गिरावट में प्रमुख योगदान रहा। गुरुवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार महीने में तीसरी बार औद्योगिक उत्पादन घटा है।उन्होंने एक बयान में कहा कि विनिर्माण और निर्यात क्षेत्र बाधाओं को दोगुनी रफ्तार से हटाना होगा। हम उन समस्याओं का व्यावहारिक समाधान करना चाहते हैं, जिससे कोयला, खनन, पेट्रोलियम, बिजली, सड़क परिवहन, रेलवे और बंदरगाह क्षेत्र में उच्च उत्पादन बाधित हो रहा है।  

अर्थव्यवस्था पर चिंता और कमजोर नतीजों ने बाजार पर दबाव बनाया। सेंसेक्स 40 अंक गिरकर 17561 और निफ्टी 15 अंक गिरकर 5323 पर बंद हुए। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर भी कमजोर हुए।एशियाई बाजारों में मजबूती बढ़ने से घरेलू बाजारों ने भी तेजी के साथ शुरुआत की। शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स करीब 100 अंक उछला। निफ्टी ने भी 5350 के ऊपर का रुख किया।आईआईपी आंकड़े आने के पहले बाजार में उतार-चढ़ाव भरा कारोबार दिखा। लेकिन, निफ्टी 5350 के ऊपर बने रहने में कामयाब रहा। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में भी करीब 0.5 फीसदी की मजबूती नजर आई।

इस बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने के बाद एक बार फिर तेल कंपनियों पर पेट्रोल के दाम बढ़ाने का दबाव पड़ने लगा है। पेट्रोल पर कंपनियों का नुकसान 3.56 रुपए लीटर तक बढ़ गया है। पब्लिक सेक्टर की पेट्रोलियम कंपनियों ने इससे पहले 24 जुलाई को पेट्रोल का दाम 70 पैसे प्रति लीटर बढ़ाया था जबकि उसके बाद से ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल के दाम 12 डालर प्रति बैरल बढ़ चुके हैं।सरकार ने पेट्रोल के दाम जून 2010 में नियंत्रणमुकत कर दिये थे लेकिन तब से लेकर अब तक कभी भी इसके दाम बाजार के अनुरूप तय नहीं किए जा सके। कंपनियों ने पेट्रोल के दाम बढ़ाने का दबाव बनाया था लेकिन संसद के मानसून सत्र को देखते हुये उन्हें ऐसा करने से हतोत्साहित किया गया।इंडियन ऑयल कारपोरेशन के चेयरमैन आरएस बुटोला ने गुरुवार को यहां कहा कि हमें पेट्रोल पर 1.37 रुपये लीटर का नुकसान हो रहा है। यह नुकसान सिंगापुर के बेंचमार्क मूल्य के आधार पर पिछले पखवाड़े के औसत से है, लेकिन अब इस महीने के औसत मूल्य के हिसाब से नुकसान बढ़कर 3.56 रुपये लीटर तक पहुंच गया है।बुटोला ने कहा कि हमने इस मुद्दे पर विचार किया और बोर्ड स्तर पर भी इस पर चर्चा हुई है। हम इसे सरकार के समक्ष भी उठाते रहे हैं। हां, पेट्रोल के दाम बढ़ाने का मामला बनता है, हम इसके लिये दबाव बना रहे हैं, लेकिन मुद्रास्फीति उंची है, ऐसा करने से मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि तेल कंपनियां चाहती हैं कि पेट्रोल को सरकार वापस अपने नियंत्रण में ले ले और इस पर भी नुकसान की भरपाई की जाए।

'यमुना एक्सप्रेस-वे' पर कार-जीप से सफर करने के लिए 320 रुपए का टोल टैक्स देना पड़ेगा। ग्रेटर नोएडा से आगरा के बीच 165 किलोमीटर लंबा यह एक्सप्रेस-वे गुरुवार से खुल गया है।लेकिन अर्थ व्यवस्था के लिए कोई एक्सप्रेस वे दो दशक में बी नहीं बन पाया भारत के लगातार अमेरिकीकरण के बावजूद ।अमेरिकी अर्थ व्यवस्था और जनता करों के बोझ और तरह तरह के संकट से जूझ रही है मंदी के अलावा। यह मंदी दुनिया भर में अमेरिकी सैनिक अड्डों और अमेरिका​ ​ के युद्ध पर हो रहे अंधाधुंध खर्चे की वजह से है। उत्पादन प्रणाली को दुरुस्त करने के बजाय राष्ट्र के सैन्यीकरण, जनता के विरुद्ध युद्ध और एकदम अमेरिकी तर्ज पर चंद्र और मंगल अभियान,परमाणु पागलपन, इन सबके पीछे बाहैसियत गृहमंत्री चिदंबरम का योगदान कुछ कम नहीं है।​​ अब वित्तमंत्रालय की रसोई में उनके हाथ जलने लगे तो मलहम अमेरिका से तो नहीं आने वाला।अन्ना ब्रिगेड का जेहाद भले खत्म हो​ ​ गया हो, कालाधन के खिलाफ जोर पकड़ रही रामदेव लीला से कालाधन घुमाकर बाजार को चंगा करने का खेल भी अब उतना आसान न रहे, गार को कत्ल करने के बावजूद।

ताजा हाल यह है कि देश की अर्थव्यवस्था में और गिरावट संभव है। गुरुवार को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों से तो यही लगता है। हालांकि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की खामियों और अस्थिरता के लिए आलोचना होती रही है लेकिन उसके रुझान एकदम स्पष्ट हैं।आशंका है कि इस तिमाही में प्रदर्शन और खराब होगा। यह आशंका इस हकीकत के बावजूद है कि अब तक सूखे का पूरा प्रभाव कृषि उत्पादन पर पडऩा शुरू भी नहीं हुआ है। मांग कमजोर रहने के कारण सेवा क्षेत्र का विकास भी मजबूत बनाए रखना कठिन होगा। सरकार को अब इस बात की चिंता करनी चाहिए कि वह वर्ष 2012-13 के दौरान अपने विकास संबंधी लक्ष्यों को हासिल कर पाएगी अथवा नहीं? इसके अलावा यह भी कि उन लक्ष्यों तक नहीं पहुंच पाने का अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा? अगर विकास दर में चमत्कारिक सुधार नहीं हुआ अथवा कड़े सुधारों को अंजाम नहीं दिया गया तो राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.1 फीसदी के स्तर तक सीमित रखना असंभव होगा। वर्तमान आर्थिक हालातों के बीच जून में औद्योगिक उत्पादन में 1.8 फीसदी की कमी आई है। वहीं, आर्थिक गतिविधियों में नरमी से भी इस आंकड़े पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। विनिर्माण और पूंजीगत सामान क्षेत्रों के खराब प्रदर्शन के चलते भी औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आई है।जारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जून तिमाही में औद्योगिक उत्पादन 0.1 फीसदी घट गया है। उधर, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आधार पर 2011-12 में जून में ये दर 9.5 फीसदी और अप्रैल-जून तिमाही में यह 6.9 फीसदी बढ़ा है।सूचकांक में 75फीसदी से अधिक योगदान करने वाले विनिर्माण क्षेत्र में 3.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि बीते साल जून में इसमें 11.1 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी।पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन इस तिमाही में 20 फीसदी तक कम हुआ है। इससे यह संकेत मिलता है कि निवेश संबंधी खर्च में आगे भी कमी आ सकती है। आईआईपी के आंकड़ों को अलग-अलग करके देखने का भी कोई फायदा नहीं है। ज्यादा चिंता की बात यह है कि गैर टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं में भी साल दर साल आधार पर एक फीसदी की कमी आई है। इससे मांग में आ रही कमी उजागर होती है। पिछली मंदी के दौरान  ऊंची उपभोक्ता मांग ने ही हमें उसके असर से बचा कर रखा था, ऐसे में यह दोहरी चिंता का विषय है।आईआईपी के आंकड़ों का भारतीय रिजर्व बैंक सावधानीपूर्वक अध्ययन करेगा। रिजर्व बैंक ने कहा भी था कि शायद मौद्रिक सख्ती ने विकास गति को धीमा करने में भूमिका निभाई हो। उसने इसे अपरिहार्य परिणाम बताया। निवेश की कमी के चलते गत एक वर्ष से अधिक समय से औद्योगिक विकास लगभग नदारद है।

अप्रैल-जून तिमाही में भी विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और इस क्षेत्र ने 0.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की, जबकि बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 7.7 फीसदी बढ़ा था।
जून में पूंजीगत सामान बनाने वाले क्षेत्र में 27.9 फीसदी की जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई, जबकि बीते साल जून में इस क्षेत्र में 38.7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की थी।
भारतीय कंपनियों ने जून, 2012 के दौरान बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) व विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड (एफसीसीबी) के जरिए महज 1.99 अरब डॉलर की राशि जुटाई है। इससे पहले माह यानी मई, 2012 के दौरान भारतीय कंपनियों द्वारा ईसीबी व एफसीसीबी के जरिए विदेश से जुटाई गई राशि का आंकड़ा 3.37 अरब डॉलर के स्तर पर रहा था। यह जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा बुधवार को यहां जारी आंकड़ों से मिली है।

आरबीआई के मुताबिक, इस साल जून माह के दौरान भारतीय कंपनियों ने ऑटोमेटिक रूट के जरिए विदेशी बाजारों से 1.96 अरब डॉलर और एप्रूवल रूट के जरिए 3.15 करोड़ डॉलर की राशि जुटाई है। इस दौरान जिन कंपनियों ने विदेश से राशि जुटाई है, उनमें जेबीएफ पेट्रोकैमिकल्स, जेएसडब्लू स्टील, राजस्थान सन टेक्नीक एनर्जी, मर्सिडीज-बेंज इंडिया, एजुरे सोलर, रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज, इंडियन सिंथेटिक रबर व सुबेक्स के नाम प्रमुख हैं।जून, 2012 के दौरान जेबीएफ पेट्रोकैमिकल्स ने अपने नए प्रोजेक्ट के लिए विदेश से 41.6 करोड़ डॉलर की राशि जुटाई है।साथ ही राजस्थान सन टेक्नीक एनर्जी ने अपनी पावर परियोजनाओं के लिए 26.83 करोड़ डॉलर, मर्सिडीज-बेंज इंडिया ने आधुनिकीकरण के लिए 23.21 करोड़ डॉलर, जेएसडब्लू स्टील ने एफसीसीबी वापस खरीदने के लिए 22.5 करोड़ डॉलर और सुबेक्स ने एफसीसीबी की रि-फाइनेंसिंग के लिए 13.11 करोड़ डॉलर की राशि विदेशी बाजारों से जुटाई है।इसके अलावा, इंडियन सिंथेटिक रबर ने अपनी नई परियोजनाओं की फंडिंग के लिए 11.1 करोड़ डॉलर, एजुरे सोलर ने अपनी पावर परियोजनाओं के लिए 7.04 करोड़ डॉलर व रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज ने भी पांच करोड़ डॉलर की राशि विदेशी बाजारों से जुटाई है।

भारतीय इक्विटी कैपिटल मार्केट (ईसीएम) में नए सौदों में भारी गिरावट देखी जा रही है और 7 अगस्त, 2012 तक की अवधि के लिहाज से देखा जाए तो यह वर्ष 2004 के बाद के सबसे निचले स्तर पर आ गया है।ग्लोबल सौदों पर निगाह रखने वाली फर्म डीलोजिक ने कहा है कि इस साल 7 अगस्त तक भारत में ईसीएम के तहत कुल 44 सौदे हुए और इनकी वॉल्यूम महज 7.3 अरब डॉलर पर रही, जो कि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 18 फीसदी कम है। पिछले साल इसी अवधि में नौ अरब डॉलर मूल्य के 76 ईसीएम सौदे हुए थे।

केंद्र सरकार भले ही मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) को जल्द-से-जल्द इजाजत देने के लिए प्रयासरत हो, लेकिन इसमें उसे सफलता मिलती नहीं दिख रही है। दरअसल, अब तक केवल चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई को समर्थन देने का संकेत दिया है।इसका मतलब यही है कि ज्यादातर राज्य अब भी इस संवेदनशील मसले पर अपना विरोध जता रहे हैं। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि वालमार्ट जैसी ग्लोबल चेन को भारत के मल्टी-ब्रांड रिटेल सेगमेंट में प्रवेश के लिए अभी और इंतजार करना होगा।

वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को राज्य सभा में एक लिखित जवाब में बताया कि अब तक केवल चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई को समर्थन देने का संकेत दिया है। इनमें दिल्ली, मणिपुर, दमन एवं दीव और दादर नगर हवेली शामिल हैं। उन्होंने बताया कि इन चारों राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने रिटेल एफडीआई के बारे में जो लिखित संदेश भेजे हैं उसी से उनके समर्थन के संबंध में संकेत मिला है।गौरतलब है कि औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने गत 19 जून को सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को पत्र लिखकर मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को अनुमति देने के संवेदनशील मसले पर अपने विचार पेश करने को कहा था। वैसे तो केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 नवंबर, 2011 को ही मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई को अनुमति देने का निर्णय ले लिया था, लेकिन यूपीए सरकार के अहम सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के साथ-साथ कई राज्य सरकारों द्वारा भारी विरोध जताए जाने के कारण इस पर अब तक अमल नहीं हो पाया है।

No comments: