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Sunday, June 9, 2013

ट्वाइलेट, पाखाना -गुसलखाना हर्चि गेन





गढ़वाली हास्य -व्यंग्य 
 सौज सौज मा मजाक मसखरी 
   हौंस,चबोड़,चखन्यौ    
    सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं  

                                            ट्वाइलेट, पाखाना -गुसलखाना हर्चि  गेन


                            चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
(s = आधी  )

         (यह लेख एक समाचार - 1.16 Crore Toilets are 'MISSING' in Uttar Pradesh की प्रेरणा से  लिखा गया है )



  वैदिन पता चौल बल कुछ साल पैलि , सरकारी अनुदान से सरकारन हमखुण  मवारां (प्रति परिवार ) ट्वाइलेट याने पाखाना -गुसलखाना चीणि छौ अर अबि तलक हमन सरकारी लोन वापिस नि कार।   
  अब हमर समज मा इ नि आयि कि जब हमन एक दिन बि ट्वाइलेट भितर पाणि नि बर्त त  सवाल या च कि ट्वाइलेट बौण छन कि ना?
पण  चूँकि सरकारी रिकॉर्ड मा दस x आठ x सात फिट का ट्वाइलेट बणी छन त ट्वाइलेट बणी छन। भगवान झूठो ह्वे सकद पण हमर देस मा सरकारी रिकौर्ड तै झूट बुलणो हिकमत त माननीय जज बि नि करि सकदन। बिचारा जजुं क्या गळती? हमर अधिकारी बड़ा ही तेज अर होशियार जि होंदन।  तबि त स्याळ बि अचकाल अपण बच्चौं तै होशियारी सिखाणो भारतीय अधिकार्युं पास भिजदन।  याने कि हमर ट्वाइलेट हर्चि गेन
 हम अपण गिताड़  जीत सिंह नेगी जी मा गंवा बल नेगी जी हमर हरेकाक सरकारी अनुदान से बण्या  ट्वाइलेट हर्चि गेन जरा बथावदी कि हमर पाखाना -गुसलखाना मीलल?
जीत सिंह जीन बोलि - हैं ! ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना हर्चि गेन? हम बि 'भारी भूल' करदा छा अर भुलमार मा 'बीरा' तैं खुद्याणो 'उचि  निसि डाँड्यूँ' मा भेजि दींदा छा। हमर टैम पर कट्वरि हर्चि जावो त हर्चि जा इन बड़ी चीज जन कि ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना ! अब इन चीज जन की ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना तैं जनक्याण बि कठण च त इन कारो तुम ललित मोहन थपलियाल जी मा जावो। एक दै ललित मोहन थपलियाल जी को 'खाडू लापता' ह्वे छौ अर ऊंन वै 'लाप़ता खाडू' तैं ढूँडि बि छौ।
हमन बथाइ - नेगी जी ! ललित मोहन थपलियाल जी को तो कब का स्वर्गवास ह्वे गे।
जीत सिंह नेगी जी - अरे कैन बथाइ बि नी। एक दिन म्यार दगड़ बि इनि होण। खैर तुम इन कारो चन्द्र सिंह राही मा जावो।
हम चन्द्र सिंह राही जी मा गेवां अर हमन राही जी मा अपण बिपदा सुणाइ कि हमर सरा गाँवक हरेक परिवारों ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना हर्चि गेन अर राही जी से ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना खुज्याण मा मदद माँग।
चन्द्र सिंह राही जी- अरे हमर बगत पर त मनस्वाग बाग़ याने मैन इटर टाइगर लगद छौ। क्या अब ट्वाइलेट ईटर बाग़ बि लगण बिसे गेन।  एक बात बथावो कि यि ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना  सीमेंट , गारा , ईंट से ही बौण होला ना?
हम सब्युंन जबाब दे - अब हमन त बण्यु   ट्वाइलेट देख नी छन वो सरकारी कागज बुलणु च बल हमर पुंगड़म ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना बौणी छौ। अब जब ट्वाइलेट बौणि होलु तो सीमेंट , गारा , ईंट से ही बौण होलु।
राही जी - भै मि त फ्वां बाग़ याने मैन इटर को विशेषग्य छौं। अर म्यार बागौ ज्ञान बथान्द बल मैन इटर  बाग़ टॉयलेट भक्षण कबि बि नि करद। जानवर  अपण चरित्र कबि बि नि छुड़द। बाग़ इन चोरि नि करदो। ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना चुर्याण तो मनिखों को ही काम ह्वे सकद। इन कारो कि तुम  नरेंद्र सिंह नेगी  जी मा जावो। एक दें नेगी जीका बखर हर्ची गे छा तो नेगी जीन बड़ी तरतीब से अपण बखर खोजि छा।
हम सब नरेंद्र सिंह नेगी जी मा गंवां अर अपणी खैर लगाई कि नेगी जी ! हमर ट्वाइलेट- पाखाना -गुसलखाना मिसिंग छन।
नरेंद्र सिंह नेगी जी धै लगाण मिसे गेन -
ये भुलि ! हे घस्यानि!  म्यरा ट्वाइलेट हर्चि गेन। तुमन बि देखिन म्यरा ट्वाइलेट हर्चि गेन।
हमन ब्वाल - बल नेगी जी जौं दीदी -भुल्युं तै ही तुम पुछणा छंवाँ कि ट्वाइलेट कख छन जौंक ट्वाइलेट हर्च्यां छन।
नेगी जी - वो त या बात च!
हे पंचों! हे प्रधानो ! हे सरपंचों! हे ब्लॉक अध्यक्षों !
म्यरा ट्वाइलेट हर्चि गेन। तुमन बि देखिन म्यरा ट्वाइलेट हर्चि गेना । म्यरा गुसलखाना  हर्चि गेना !
हमन बथाइ - ह्याँ पंच ,प्रधान,  सरपंच , ब्लॉक अध्यक्ष सब्युंन  इश्वर की सौगंध खैक गवाही दियीं च कि हमर गाँ मा हरेक  परिवारौ वास्ता इकै ट्वाइलेट बौणि छा।
नेगी जी - औ त या बात च !
हे   पटवारियो, हे अधिकारियों! हे तहसीलदारों!  हे इंजीनियरों !
तुमन बि देखिन म्यरा ट्वाइलेट हर्चि गेना । म्यरा गुसलखाना  हर्चि गेना !
हमन बथाइ - हम सब यूँमा गे छया पण हम तै पता चौल बल पटवारियून ,  अधिकारियुन ! इंजिनियरुन , तहसीलदारुन  बि लेखि दियुं च बल हमर ट्वाइलेट बौण छन अर हमन यूंका समणी हौग बि च।
नरेंद्र सिंह जी -ओहो त बात इख तलक पौंची गे।
हे सोसल वर्कर्स ! तुमन बि देखिन म्यरा ट्वाइलेट हर्चि गेना । म्यरा पाखाना  हर्चि गेना !
हमन दुखड़ा सुणाइ - हम यूं सामाजिक कर्ताओं मा बि गेवां अर सब्युंन हम सणि धमकी दे बल जु हमन शिकैत कार तो हमारी खैर नी च
नेगी जी -
अबे निर्भागियो ! निस्सतियो! जनता का मूत  कथगा पेल्या ?
हे बदमाशो , हे दगाबाजो  ! जनता का गू , विष्ठा कथगा खैल्या?
हमन बथाई - हमन बि यूं सब्युं कुण बोलि छौ बल हमर कथगा हौग -मूत खैल्या? पण इ सौब हम पर हंसण बिसे गेन बल गीत गैक कुछ नि होंद। यूंन ब्वाल बल गरम पाणीन कूड़ नि फुकेंद, गाऴयूंन लौड़-गौड़ नि मोरदन , अर गाणा गैक रिशवतखोरी बंद नि होंद।
नरेंद्र सिंह नेगी - तो ! अब एकि पर्याय रयुं च।
जगावो  माचिस अर अन्याय , अनाचार, अत्याचार  पर आग लगै द्यावो
उठावो अपण मुट्ठी अर व्यभिचार, चोरी , सीनाजोरी तैं मुठके द्यावो
ल्यावो गंजेळी अर अनाचार, अन्याय , अखरापन, अगुण सब्युं तैं कुटि द्यावो 
उठाओ बसूला , उठावो कुलाड़ी अर भ्रस्टाचार की मौणि धळकावो
उठावो तलवार ! उठावो थमाळी  अर रिशवतखोरिक धड़ अलग करी द्यावो।
उठावो बंदूक अर कुसंगति, कुमति,  बिसगती    तै सद्यानौ  मौत का घाट उतारि  द्यावो
   


Copyright @ Bhishma Kukreti  6/06/2013           
(लेख सर्वथा काल्पनिक  है )


--
 
 
 
 
Regards
Bhishma  Kukreti

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