कोल इंडिया के लिए हड़ताल का खतरा अभी टला नहीं है जबकि देशभर में बिजली संकट के आसार!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोयला यूनियनें विनिवेश के खिलाफ अब भी हड़ताल का दावा कर रही हैं क्योंकि लकसकभा चुनाव के मद्देनजर कोयला राजनीति बेहद तेज हो गयी है। मजदूर नेताओं के बयानों के अलावा कोलगेट पर राजनेताओं की ोर से फिर प्रधानमंत्री के इस्तीफे की माग पर जोर दिये जाने से वित्त मंत्रालय के यूनियनों को मैनेज करने का दावा हवा हवाई हो गया है। केंद्र सरकार अब प्रधानमंत्री की साख बचाने के लिए कोलगेट को हर संभव तरीके से रफा दफा करने लगा है। लगता है कि शेयर बाय बैक और विनिवेश की योजनाएं चुनवी मजबूरी में फिर लटक ही जायेंगी। कुल मिलाकर सार यह है कि कोलइंडिया के लिए हड़ताल का खतरा अभी टला नहीं है।श्रमिक संगठनों की मांगों पर तत्काल विचार नहीं किया गया, तो कोल इंडिया में एक बार फिर हड़ताल हो सकती है। इससे कोल इंडिया के उत्पादन व प्रेषण की रफ्तार थम सकती है। दूसरी ओर , कोयला आपूर्ति में कमी की वजह से देशबर में बिजली संकट पैदा होने के आसार बन गये हैं। बिजली कंपनियां दाम भी बढ़ाने में लगी है।कोयला मंत्रालय ने जेएसपीएल, मोनेट इस्पात, एनटीपीसी तथा जीवीके पावर समेत 11 कोयला कंपनियों को आवंटित खदानों का विकास समय पर न करने को लेकर आज कारण बताओ नोटिस जारी किया। नोटिस में उनसे उत्पादन में देरी के कारण के बारे में स्पष्टीकरण मांगे गये हैं। ऐसा नहीं करने पर खदानों का आवंटन रद्द किया जा सकता है।भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से आज कोयला घोटाले को लेकर इस्तीफा मांगा। मालूम हो कि कोयला घोटाले की जांच में सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने से पहले सरकार ने बदलाव किया था।दूसरी ओर, आडवाणी के मान जाने से नरेंद्र मोदी के भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी तय मानी जा रही है। भाजपा अब काग्रेस को इस निर्मायक लड़ाई में कोई रियायत देने के मूड में नहीं है। कोलगेट क लेकर नये सिरे से बवाल पैदा होने की पूरी संभावना है। जिससे कोयला मंत्रालय और वित्त मंत्रालय की योजनाएं धरी की धरी रह सकती है। राजनीतिक दलों से नियंत्रित कोयला य़ूनियनें भी अब खामोश नहीं रहने वाली।कोयला घोटाले की जांच अब पीएमओ तक पहुंच गई है। सीबीआई को पीएमओ के आला अधिकारियों पर इस मामले में शक है। इसलिए अब सीबीआई पीएमओ के आलाधिकारियों से इस मामले में पूछताछ करेगी।
भारत सरकार बिजली कंपनियों को भरी रियायतें देने की नीतियों पर चल रही है , जबकि इन कंपनियों पर लाख करोड़ रुपया अभी बकाया है। जिसकी वसूली में कोलइंडिया को सरकारी मदद मिल नहीं रही है जबकि राज्य सरकारे दनदन बिजली दरें बढडकर इन कंपनियों के मुनाफे में इजाफा कर रही है। राजनीतिक दलों ने अभी इस घोटाले पर कुछ नही कहा है, जाहिर है कि यूनियने भी खामोश हैं।कोयला मंत्रालय राष्ट्रीय कोयला वितरण नीति (एनसीडीपी) में संशोधन कर सकता है बिजली मंत्रालय ने कंपीटिटिव बिडिंग गाइडलाइंस में संशोधन के लिए जारी किया नोट इस प्रस्ताव को जल्द ही आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी के समक्ष रखा जाएगा।इस फैसले पर भी यूनियनों का रवैया अभी साफ नहीं हुआ है। यूनियनें ्गर इसका विराध कर देती है तो कोयला के साथ साथ बिजली सेक्टर के लिए भी भारी संकट पैदा हो जायेगा।कम दर पर बिजली बेचने को मजबूर 7,000 मेगावाट के पावर प्लांट अव्यवहार्य (अनवायबल) साबित हो सकते हैं। यह आशंका बिजली क्षेत्र से जुड़ी क्रिसिल की रिपोर्ट में जाहिर की गई है। मंगलवार को जारी क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सुस्ती की वजह से अगले पांच साल में बिजली की मांग में सिर्फ 6.2 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।रिपोर्ट के मुताबिक, कड़ी प्रतिस्पर्धा की वजह से 7000 मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट 2.90 रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली बेच रहे हैं। लागत को देखते हुए इन पावर प्लांटों के अव्यवहार्य होने का खतरा काफी बढ़ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू कोयले पर आधारित 18,000 मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट के मार्जिन पर काफी दबाव रहेगा।
कोल इंडिया के लगभग 3.57 लाख एंप्लॉयीज को रिप्रेजेंट करने वाले ऑल इंडिया कोल वर्कर्स फेडरेशन और चार दूसरे नेशनल फेडरेशन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को विनिवेश के खिलाफ खत लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि अगर सरकार कोल इंडिया में अतिरिक्त 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के फैसले पर अमल करती है, तो वर्कर्स बेमियादी हड़ताल पर चले जाएंगे। यूनियनों की संयुक्त बैठक 24 जून को कोलकाता में होगी। स्टीयरिंग कमेटी का गठन होना है। यह कमेटी संयुक्त आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेगी।श्रमिक संगठन कोयला उद्योग को टुकड़ों में बांटने की कोशिशों व कोल इंडिया में विनिवेश की नीति के खिलाफ सरकार व प्रबंधन को करारा जवाब देंगे। बैठक में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) व सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के प्रतिनिधि शामिल होंगे। ग्यारह सूत्री मांगपत्र पर विस्तार से चर्चा होगी। रांची में संयुक्त सम्मेलन जून के अंत तक होना है।
यूनियनों की ग्यारह सूत्री मांगें :
-- कोल इंडिया में विनिवेश पर रोक लगे
-- कोल इंडिया की सहायक कंपनियों को बांटने पर रोक लगे
--कोयला उद्योग में आउटसोर्सिग बंद हो
--ठेका मजदूरों को एग्रीमेंट के अनुसार वेतन व सुविधाएं मिले
--कोल ब्लॉक का आवंटन नहीं हो
--अब तक उत्पादन नहीं हुए ब्लॉकों का लीज एग्रीमेंट रद हो
-- भूमिहीन हो चुके लोगों को मुआवजा, नौकरी व पुनर्वास की व्यवस्था हो
-- सभी कर्मियों को सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ मिलें
--कर्मियों की पेंशन 40 प्रतिशत हो
-- कोल इंडिया को इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्रीज घोषित किया जाए
-- कर्मचारियों की बहाली से प्रतिबंध हटे
-- कोल प्राइस की बढ़ोतरी और फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट के दौरान यूनियन प्रतिनिधियों को विश्वास में लिया जाए।
कोयला मंत्रालय ने कारण कोयला कंपनियों से बताओ नोटिस जारी करने की तिथि से 20 दिन के भीतर जवाब देने को कहा है। नोटिस में उनसे पूछा गया है कि कोयला खदान के विकास में देरी को क्यों न नियम एवं शर्तों का उल्लंघन माना जाए। जिन कंपनियों को नोटिस जारी किया गया है, उसमें जयप्रकाश एसोसिएट्स, बिड़ला कारपोरेशन, जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल), एनटीपीसी, मोनेट इस्पात तथा जीवीके पावर शामिल हैं। नोटिस 10 कोयला खदानों के लिये जारी किया गया हैं जिसमें उत्कल-बी1, पकरी बरवाडीह तथा उत्तरी मांडला कोयला खदान शामिल हैं।
इस बारे में संपर्क किये जाने पर कोयला मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि पिछले महीले अंतर-मंत्रालयी समिति की बैठक में 30 कोयला खदान आवंटियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्णय किया गया। 11 कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी करना उसी निर्णय का हिस्सा है। सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि आवंटित खदानें लंबे समय अनुत्पादक नहीं रहे। इसी के तहत ये कदम उठाये जा रहे हैं।
पिछले वर्ष सरकार ने 58 कोयला खदान आवंटियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था और उनमें से कंपनियों के खदानों का आवंटन रद्द कर दिया था। कुछ कंपनियों की बैंक गारंटी भी काटी गयी।
कोयला व बिजली मंत्रालय मिलकर बिजली उत्पादक कंपनियों को राहत देने जा रहे हैं। बिजली उत्पादक कंपनियों को फ्यूल की कीमतों में बढ़ोतरी का भार खरीदारों पर आसानी से डालने की इजाजत देने के लिए दोनों ही मंत्रालय अपने-अपने नियमों में संशोधन कर सकते है।कोयला मंत्रालय राष्ट्रीय कोयला वितरण नीति (एनसीडीपी) में संशोधन कर सकता है तो बिजली मंत्रालय बिजली कानून के तहत बनाए गए कंपीटिटिव बिडिंग गाइडलाइंस में। इस संबंध में बिजली मंत्रालय की तरफ से कैबिनेट नोट जारी किया गया है और इस नोट में इस बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है। इस प्रस्ताव को जल्द ही आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी के समक्ष रखा जाएगा।
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिल जाने पर बिजली उत्पादक कंपनियों को आयातित कोयले के इस्तेमाल में कोई परेशानी नहीं होगी, क्योंकि आयातित कोयले की कीमत में बढ़ोतरी होने पर वह आसानी से उस भार को खरीदार पर डाल सकेंगी। फ्यूल बढ़ोतरी के भार को खरीदार पर डालने का मैकेनिज्म मार्च, 2009 के बाद स्थापित होने वाली सभी बिजली कंपनियों पर लागू होगा।
कोयले की मांग व आपूर्ति के अंतर को समाप्त करने के लिए यह मैकेनिज्म तैयार किया जा रहा है। पिछले सप्ताह वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की अध्यक्षता वाली मंत्रियों के समूह की बैठक में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल व बिजली राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ज्योतिरादित्य सिंधिया की मौजदूगी में इस मैकेनिज्म के प्रस्ताव को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी के समक्ष रखने का फैसला किया गया था।
बिजली मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक इस मैकेनिज्म के अमल में आने के बाद बिजली कंपनियां कोयले की किल्लत होने पर आसानी से आयातित कोयले का इस्तेमाल कर पाएंगी, क्योंकि उन्हें इसकी बढ़ी हुई कीमत का भार खरीदार पर डालने की छूट होगी। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक इसका मतलब यह नहीं होगा कि बिजली कीमत हमेशा बढ़ती रहेगी।
मैकेनिज्म के तहत हर तीसरे या छठे महीने फ्यूल की स्थिति व उसकी लागत की समीक्षा होगी और उसके आधार पर बिजली कंपनियां बिजली नियामक के समक्ष कीमत में बदलाव के लिए आवेदन कर पाएंगी।
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक एनसीडीपी के मुताबिक बिजली कंपनियों को कोयले की 100 फीसदी आपूर्ति कोयला कंपनी ईंधन आपूर्ति समझौते के तहत करेगी जबकि नए समझौते के मुताबिक कोल इंडिया जरूरत का सिर्फ 80 फीसदी कोयले की आपूर्ति करेगी।
इनमें से 65 फीसदी घरेलू कोयले की तो 15 फीसदी आयातित कोयले की आपूर्ति होगी। कंपीटिटिव बिडिंग गाइडलाइंस में संशोधन के बाद बिजली कंपनियां आयातित कोयले में बढ़ोतरी के भार को खरीदार पर डालने के लिए नियामक के समक्ष आवेदन कर पाएंगी।
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