पुजारियों का एक पूरा गॉव मरघट में तब्दील, औरतें हुई
विधवा.
केदारनाथ के पंडों (पुरोहितों) के गॉव बमणी जोकि उखीमठ के पास है वहां चारों ओर बीभत्सता और वीराना छाया हुआ है. पूरा गॉव मरघट के सन्नाटे में तब्दील है. वहां के पुरोहित जो केदारनाथ में पूजा पाठ और कर्मकांड करते थे एक के भी जिन्दा होने की खबर नहीं मिल पायी है जिससे गॉव में मातम ही मातम देखने को मिल रहा है. सदी गली जो भी लाश इन पंडों पुरोहितों की मिल रही है उसकी जलती चिता की लपटों के साथ एक एक करके जाने कितनी कितनी माँ बहने विधवा हो चुकी हैं. कल तक जिन पंडितों के आशीर्वाद और कर्मकांड के बलबूते पर धर्म आस्था और विश्वास का एक सैलाव उम्दा करता था. जिनके चरण छूने के लिए भारत के कोने कोने से उनके यजमान जया करते थे आज वही बमनी गॉव इन चिताओं और लाशों के क्रियाक्रम हेतु किस पुरोहित को बुलाएगा यह मर्म असहनीय बना हुआ है.
ज्ञात हो कि चार धाम यात्रा के समय कपाट खुलने से पूर्व ही बमनी गॉव के पण्डे (पुरोहित) अपने यजमानों से पहले ही अपने पूर्वजों द्वारा तैयार की हुई बही को लेकर मंदिर प्रांगण के आस-पास बने अपने आवासों में सपरिवार आ जाते हैं, लेकिन विधि का विधान देखिये इस समय बामणी गॉव की बहुत कम औरतें ही अभी सपरिवार केदारनाथ आई हुई थी. इस बार सबकी जुबान पर बस यही शब्द सुनने को मिल रहे थे कि जाने क्या होगा ब्रह्म मूहूर्त से दो घंटे देरी से कपाट पहली बार खोले गए हैं. सब पण्डे परिवारों की जुबान में एक अनजाना भय पहले ही व्याप्त था. सूत्रों का कहना भी यही है कि इस बार १२ बजे के लगभग कपाट खोले जाने थे लेकिन वी आई पी नेताओं के समय पर न पहुँच पाने से यही व्यवधान इतना बड़ा अनिष्ट कर बैठा.
बाबा केदार में घटित इस दैवीय आपदा से खुद मौसम विभाग भी हैरान है क्योंकि मानसून के दो हफ्ते बाद पहुँचने की उम्मीद जताई जा रही थी. वहीँ धारी देवी से जुडी धार्मिक आस्थाओं की चर्चाओं का बाज़ार भी खूब गरम है.लोगों का कहना है की विगत १६ जून को शांय ४ बजे जब धारी देवी को उसके मूल स्थान से अन्यत्र स्थापित किया गया और जैसे ही शांय ६ बजे मंत्रध्वनियाँ बंद हुई कईयों ने एक अग्निमुखी बाण को केदारनाथ की दिशा में जाते हुए देखा जिसमें खूब गर्जना थी और तभीसे बारिश में बहुत तेजी आई. आस्थावान इस जहाँ एक और धारी मंदिर से जोड़कर देखते हुए कह रहे हैं कि इसी कारण श्रीनगर में बाढ़ आई. सनद रहे कि धारी मंदिर स्थापना से पूर्व में श्रीनगर का अस्तित्व ७ बार मिट चूका था यह शहर धारी देवी स्थापना के बाद ८वी बार बसाया गया है और तब से लेकर आपदा से पूर्व तक यहाँ कभी भी अलकनंदा की बाढ़ से तबाही नहीं हुई थी और न ही कोई ऐसी घटना हुई जिसे याद किया जा सके.
लोक मान्यता के अनुसार धारी देवी की मूर्ती मन्दाकिनी नदी में बहती हुई केदारनाथ से ही आई हुई बताई जाती है. मान्यता है कि जब जगद्गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ के मंदिर निर्माण की भागीदारी की थी तब वे श्रीनगर रुके यहीं उन्हें हैजा और कोलरा जैसी भयंकर बीमारियों से झूझना पड़ा लोगों को हैजा से मरते देख व खुद इसका प्रकोप झेलने वाले शंकराचार्य के सपने में आकर आदिनाथ केदार बाबा ने उन्हें कहा था कि वो माँ कलि का स्मरण करें और श्रीयंत्र को उल्ट दें उसी से यह अनर्थ हो रहा है. क्योंकि यह महामाया की नगरी है और यह वही स्थान है जहाँ नारद मुनि को यह भ्रम हो गया था कि उनसे सुन्दर विश्व में कोई नहीं है. तब महामाया ने ही उन्हें बन्दर का मुख दिया. जगद्गुरु ने आदिशिव की उपासना करने के पश्चात जैसे ही श्रीयंत्र को उल्टा किया वैसे ही पूरे आकाश में मेघों की गर्जना के साथ भंयकर बरसात शुरू हुई और अलकनंदा के जल स्तर में श्रीनगर ने समाधि ले ली. पूर्व नियोजित इस जानकारी से उस समय जो कुछ भी जनहानि धनहानि हुई हो उसका कोई ज्ञान तो नहीं लेकिन बहुत समय बाद धरी देवी की शिला (मूर्ती) किसी को इसी स्थान पर मिली जहाँ उसका विगत स्वरुप विद्धमान था. यह तो सभी जानते हैं कि माँ धारी देवी की मूर्ती सुबह से शाम तक अपने विभिन्न श्रृंगारों में बच्ची, सुहागन और कलि का रूप स्वतरू ही धारण करती हैं लेकिन आज के पढ़े लिखे समाज में पनपे अधर्मियों को यह पता नहीं था कि उसका विकराल स्वरुप क्या है.
केदारनाथ में बामणी गॉव के ही सारे पुरोहितों का सर्वस्व स्वाहा क्यों हुआ यह कहना तो मुश्किल है लेकिन यह तय है कि कहीं न कलाहीन हम पापियों द्वारा ऐसे अकल्पनीय पाप होते रहे जिसके क्रोध की जवाला में जाने कितने निर्दाेष लोगों की जाने चली गयी. बामणी गॉव की उन विधवा माँ बहनों के प्रति हमारी जो भी संवेद्नायीं हैं वे उनका सुहाग तो वापस नहीं दिला सकती लेकिन हमें यह चिंतन और मंथन अवश्य करना ही पड़ेगा कि आखिर किसी गुनाह की सजा यह दैवीय आपदा बनकर आई जिसमें हम उत्तराखंडी जनमानस का सर्वस्व तबाह हो गया.
News By- Manoj Ishtwal
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