Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Wednesday, July 24, 2013

मुनाफ़ाखोरी पर टिके पूँजीवादी ‘विकास’ का दुष्परिणाम है उत्तराखंड में मची तबाही!

मुनाफ़ाखोरी पर टिके पूँजीवादी 'विकास' का दुष्परिणाम है उत्तराखंड में मची तबाही!


राजकुमार

 

उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़के कारण अब तक जारी आंकड़ों के अनुसार दस हज़ार से ज़्यादा लोग अपनी जान गँवा चुके हैं और कई लापता हैं। स्थिति कितनी भयानक है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाढ़ के कारण कई

उत्तराखण्ड की त्रासदी को राष्ट्रीय शोक घोषित करने की उठी माँग, प्रधानमन्त्री को सौंपा ज्ञापन

उत्तराखण्ड की त्रासदी को राष्ट्रीय शोक घोषित करने की माँग करते हुये पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जंतर-मंतर पर किया श्रद्धाञ्जलि सभा का आयोजन (फाइल फोटो)

गाँव पूरी तरह से बर्बाद हो गये हैं खेत नष्ट हो गये हैं, जो गाँव और शहर अभी कुछ दिन पहले तक आबाद थे अब वहाँ मौत का भयानक सन्नाटा पसरा हुआ है।केदारनाथ, बद्रीनाथ समेत इतने सारे मंदिर, धर्मनगरी हरिद्वार, और हिन्दू धर्म के तथाकथित 33 करोड़ 'देवी-देवता' मिलकर भी इस विनाश को नहीं रोक सके! देवताओं का जन्म प्रकृति के भय से हुआ है और प्रकृति की शक्ति के आगे ये तमाम कपोल-कल्पित देवी-देवता लाचार हैं और जो काम ये तथाकथित 'देवी-देवता' नहीं कर सकते वो सारे काम कर्मठ मनुष्य मिल-जुलकर करता है जैसे कि उत्तराखंड में किया भी गया और आम जनता के सम्मिलित प्रयास से वहाँ फँसे कई लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। अलबत्ता इन राहत कार्यों का एक स्पष्ट वर्ग चरित्र भी था। मसलन खाते-पीते पर्यटकों की चिंता तो सबको थी पर इन तमाम धर्मस्थलों पर और वहाँ के तमामहोटलों, रेस्टहाउसों, धर्मशालाओं में काम करने वाले और केदारनाथ-बद्रीनाथ आदि में खच्चरों पर बैठाकर पर्यटकों को ऊपर-नीचे लाने-ले जाने वाले आम ग़रीब मेहनतकशों के जीवन को बचाने में मालिकों की सरकारों को इतनी चिन्ता नहीं थी। नरेंद्र मोदी को भी उनकी चिन्ता नहीं थी जो टनाटन लक्ज़री गाड़ियों और चार्टर विमान में केवल खाते-पीते गुजराती मध्यवर्ग को अपने साथ विमान में फुर्र से उड़ा कर वापस ले गये और राहुल गांधी को भी उनकी चिन्ता नहीं थी जिनके इंतजार में राहत सामग्री से भरे ट्रकों को 2-3 दिन तक केवल इसलिये रोककर रखा गया ताकि राहुल गांधी का उन्हें रवाना करते हुये का फोटो खिंचवाकर सस्ता बाजारु प्रचार किया जा सके। ये है इन पूँजीवादी राजनीतिक दलों का असली चेहरा जो अपनी चुनावी गोट लाल करने के लिये आम लोगों की लाशों पर घटिया वोट बैंक की राजनीति करते हैं।

इसी तबाही के दौरान हमें धर्म के असली रूप के दर्शन भी हुये जब लगातार ऐसी खबरें आती रहीं कि साधु-संतों ने लूटपाट करके पर्यटकों से पैसे छीने। आम तौर ये साधु-संत, पादरी मौलवी धर्मस्थलों में मुसीबतज़दा जनता की धार्मिक भावनाओं से खेलकर उसकी जेब धर्म के नाम पर काटते हैं पर यहाँ तो रुपया देखकर धर्म का ये नकली संयम भी टूट गया।


उत्तराखंड में जो तबाही मची है उसका कारण कोईदैवीय प्रकोप नहीं है जैसा कि तमाम चुनावी पार्टियों के नेता गला फाड़-फाड़ कर कह रहे हैं। यह सब बातें जानबूझकर जनता की आँखों मे धूल झोंकने के लिए कही जा रही हैं ताकि आम जनता इस तबाही के पीछे जो असली कारण हैं उन कारणों को कभी जान न पाये। इस तबाही का मुख्य कारण है लूट-खसोट पर टिकी मुनाफ़ाखोर, अमानवीय पूँजीवादी व्यवस्था। सच्चाई तो यह है कि जबसे उत्तराखंड राज्य बना है तब से हुआ सिर्फ़ इतना है कि लूट-खसोट बहुत तेज़ हो गयी है। उत्तराखंड के हालिया तेरह वर्षों के पूँजीवादी 'विकास' का नतीजा सबके सामने है। इस 'विकास' के केंद्र में वहाँ की आम जनता के लिये मूलभूत, शिक्षा, चिकित्सा,  और रोजगार या हिमालय के जीव,  वनस्पति और प्रकृति का संरक्षण कोई मुद्दा नहीं है। इस 'विकास' का फ़ायदा केवल वहाँ काम कर रही कम्पनियों, बिल्डरों, टूर-ट्रैवल आपरेटरों, ठेकेदारों व शराब-जंगल-वन माफिया को हुआ है जिसके चलते वहाँ के जंगल, जल और जमीन के संसाधनों का अनियन्त्रित दोहन हो रहा है। 'विकास' और पर्यटन के इसी नवधनाढ्य मॉडल के चलते वहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर नदियों के किनारे अवैध रुप से कई बहुमंजिला होटल, गैस्टहास, दुकानें आदि खुल गये हैं, सड़कें बनाने के लिए पहाड़ों को डायनामाइट लगाकर तोड़ा जा रहा है,  पेड़ों की अंधाधुँध कटाई हो रही है, पर्यावरण को नष्ट करने के लिये कुख्यात बड़े-बड़े विशालकाय बाँधों का जाल बिछाया जा रहा है। उत्तराखंड मे इस समय छोटी-बड़ी 558 परियोजनाएं बन रहीं हैं, अकेले गंगा नदी पर 70 परियोजनाएं बन रही हैं जिसके चलते लाखों हैक्टेयर घने जंगल नष्ट हो रहे हैं और पहाड़ खोखले किये जा रहे हैं। दूसरी तरफ आपदा प्रबन्धन के नाम पर यहां की सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है जबकि यह पूरा क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अत्यंत  संवेदनशील है लेकिन सरकार को लोगों की जान से ज़्यादा मालिकों के मुनाफ़े व हित की चिंता है इसलिये सब जानते हुए भी वह लोगों की जिन्दगी से खेल रही है। यह बात सही है कि मनुष्य ने अब तक जो भी विकास किया है वह प्रकृति पर विजय प्राप्त करके ही किया है तथा यह भी उतना ही सत्य है कि अगर इन प्राकृतिक संसाधनों का सही तरह से उपयोग किया जाये तो प्रकृति को नुकसान पहुँचाये बिना भी इनका उपयोग जनता की सेवा हेतु किया जा सकता है परंतु ऐसा इस लुटेरी, मुनाफ़ाखोर व्यवस्था में संभव नही है जहाँ इनका उपयोग जनता के कल्याण के लिए करने के बजाये मालिकों का मुनाफ़ा बढ़ाने के लिये किया जाता है। जनता के कल्याण के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग तो केवल एक ऐसी व्यवस्था मे ही संभव है जहाँ इन संसाधनों पर कुछ मुठ्ठीभर धन्नासेठों का कब्जा न हो व उन पर समस्त जनता का अधिकार हो।


http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/rajynama/2013/07/24/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%81%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B5

No comments: