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Thursday, July 25, 2013

अब बाढ़ का मौसम सामने है और आपदा प्रबंधन की कोई तैयारी भी नहीं है। नदीतटबंधों का कोई माई बाप नहीं।

अब बाढ़ का मौसम सामने है और आपदा प्रबंधन की कोई तैयारी भी नहीं है। नदीतटबंधों का कोई माई बाप नहीं।


उत्तर बंगाल से एक नहीं,तीन तीन केंद्रीय मंत्री हैं, पर नदी कटाव से आम जनता को कोई राहत मिल नहीं रही है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


सुंदरवन और सागर इलाके में तटबंध बनने का काम अभी खटाई में है। इसीतरह मालदह और मुर्शिदाबाद में पद्मा नदी के कटाव से बचने के लिए नदीतटबंध बनाने का काम बाधित है। सुंदरवन और सागर इलाके में आयला के बाद नदी तटबंध बनाने के लिए मिला केंद्रीय अनुदान का उपयोग भी  ठीक से नहीं हो पाया है। जमीन अधिग्रहण के लफड़े में।वहीं पंचायतों का चुनाव विलंबित हो जाने से मुर्शिदाबाद और मालदह में नदीतटबंध का काम रुका हुआ है। मौसम का हाल अभी ठीक से मालूमभी नहीं है। बरसात कायदे से शुरु ही नहीं हुई है। इस बीच सुद्रतटवर्ती डेल्टा इलाके में नदी तटबंध नदियों के महाज्वार कोटाल में टूटने लगे हैं।नदियां ्भी स उफनने लगी है। डीवीसी का पानी छूटने वाला ही है। पर पंचायत चुनाव में लगे प्रशासन को अभी आपदा प्रबंधन के लिए ऐहतियाती इंतजाम करने की फुरसत नहीं है।जबकि आपदा दस्तक देने लगी है।उत्तराकंड हादसे से अभी राज्य सरकार ने कोई सबक ली है,इसके भी सबूत नहीं मिल रहे हैं।मानसून आने से पहले वह समय होता है जबकि तटबंधों की मरम्मत के साथ-साथ इसकी ऊँचाई बढ़ा सकते हैं।लेकिन सुंदरवन या मुर्शिदाबाद या मालदह में ऐसी कोई हलचल नहीं है।गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद, हुगली, मिदनापुर, बर्दवान, 24 परगना आदि जिलों में गंगा, आदिगंगा, पद्मा और दामोदर नदियों के कटाव के चलते गांव के गांव बरसों तक नदी में समाते रहे हैं। हालत यह है कि  बारिश शुरू होने के साथ ही डुवार्स के भूटान सीमावर्ती चाय बागानों में नदी का कटावशुरू हो जाता है। ...महानंदा, गंगा, भागीरथी व फ़ुलवा नदी में कटाव से मालदा व मुर्शिदाबाद में समस्या लगातार जटिल हो रही है। उत्तर बंगाल से एक नहीं,तीन तीन केंद्रीय मंत्री हैं, पर नदी कटाव से आम जनता को कोई राहत मिल नहीं रही है।


2012 में उत्तर बंगाल की प्रमुख छह नदियों से तट कटाव और बाढ़ नियंत्रण के लिए ब्रह्मापुत्र बोर्ड ने 160 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। उसने प्रथम चरण में तीस्ता, तोर्षा, संकोश, जलढाका, रायडाक और कालजानी के बांध निर्माण के लिए उत्तर बंगाल बाढ़ नियंत्रण आयोग को सत्तर करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। दुर्गा पूजा के बाद ही निर्माण शुरू हो जाने की योजना थी। आयोग को गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग की तरफ से भी 56 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इस  रकम से महानंदा, धरला व कालजानी नदियों की तटबंध का निर्माण पूजा के बाद शुरू होना था।अब बाढ़ का मौसम सामने है ,पर हालात जहां के तहां हैं और आपदा प्रबंधन की कोई तैयारी भी नहीं है।



बहरहाल सुंदरवन इलाकों में नदी तटबंध अभी ​​बने नहीं है, पर पर्यटन के लिए सुंदरवन के कोर इलाके तक खोलने के चाक चौबंद इंतजामात हैं।आयला पीड़ित इलाकों में भी तटबंध का​​ काम शुरु ही नहीं हो पा रहा है। सुंदरवन इलाके में नदीतटबंध सिंचाई विभाग के हवाले है।नये तटबंध का काम ठेके पर होने हैं। मरम्मत का काम करता है सिंचाई विभाग।सुंदरवनमामलों के मंत्रालय और सिंचाई विभाग के राज्यमंत्री सुंदरवन के ही नेता मंटूराम पाखिरा नदीतटबंध के हाल का ब्यौरा तो दे नहीं पा रहे हैं लेकिन हालात से वे भी चिंतित हैं। उनके मुताबिक कुछ जगह नदी तटबंध कोटाल ज्वार से टूटे हैं और अनेक जगह उफनती हुई नदी खेतों में घुस रही हैं। मालूम हो कि सुंदरवन की नदियों का पानी खारा है।ेकबार यह खारा पानी खेत को स्पर्श कर लें तो वहां खेती नामुमकिन हो जाती है।इसलिए सुंदरवन के किसानों के लिए जान माल बचाने से ज्यादा चिंता ्पने खेतों को बचाने की है।


अभी गुरुपूर्णिमा में अनेक जगह महाज्वार ने नदियों को उथल पुथल कर दिया। अनेक जगह कगार टूट गये हैं।पाथरप्रतिमा के जीब्लाक के तहत सीतारामपुर,सागर के बोटखाली, वामनखाली,घोड़ामारा इलाकों में नदीतटबंध टूटने की खबर है।इस ज्वार की वजह से डायमंड हारबर के अनेक वार्ड भी जलमग्न हो गये।


राज्यमंत्री पाखिरा कहते हैंकि सावन के महीने में ऐसा आम तौर पर होता ही है। जबकि निवर्तमान जिलापरिषद कर्माध्यक्ष कविता बेरा की चिंता यह है कि अनेक इलाकों में खारा पानी खेत तबाह कर रहे हैं।


मुर्शिदाबाद और मालदह में ज्वार की समस्या नहीं है।वहां नदी के गर्भ में घरों और खेतों का समाना निरंतर जारी है।कटाव की निरतंरता में कोई व्यवधान नहीं है। फिर भी नदी तटबंध की समस्या हमेसा अनसुलझी ही रहती है। मुर्शिदाबाद का जलंगी बेहद प्रभावित है, जहां राष्ट्रपति बनने से पहले तक प्रणव मुखर्जी सांसद थे। लेकिन वहां बी इस समस्या का हल नहीं निकला है।


सुंदरवन की अधिकांश नदियों के तटबंध समुद्र का स्तर के बढ़ने के कारण टूटने की कगार पर हैं। इसके मद्देनजर दुनिया के सबसे बड़े सदाबहार जंगलों में अगले माह से 'सुंदरवन बचाओ' अभियान शुरू किया जाएगा,ऐसी घोषणा सत्ता से बेदखल होने से पहले 2010 में पश्चिम बंगाल सुंदरवन विकास मामलों के मंत्री कांति गांगुली ने की थी। वाम मोर्चे के अवसान के बाद यह कार्यक्रम खटाई में पड़ गया।तब गागुली ने


कहा था  कि सुंदरवन के लगभग 3500 किलोमीटर लंबे तटबंध के टूटने का खतरा पैदा हो गया है, क्योंकि बढ़ते जल स्तर ने अनेक इलाकों में इन पर दबाव बढ़ा दिया है।हालात बदले नहीं हैं। बदतर हो गये हैं।


उन्होंने तब यह भी कहा कि 'आइला' तूफान के पिछले साल आने के बाद क्षतिग्रस्त हुए कुछ तटबंधों की मरम्मत कर दी गई थी, लेकिन बढ़ते समुद्र स्तर के कारण उन्हें गंभीर खतरा हो गया है।अब हालत यह है कि पूरे तीन साल बीत जाने के बाद,सत्ता परिवर्तन के बावजूद यह खतरा बाकायदा मौदूद है और मजे मजे में टूट रहे हैं नदी तटबंध।



गांगुली ने तब यह भी कहा था कि सुंदरवन के लोग तटबंधों की ऊँचाई बढ़ाने के लिए खुद परिश्रम करेंगे। उन्होंने कहा कि हम इस समस्या को राष्ट्रीय समस्या घोषित किए जाने की माँग कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई असर नहीं पड़ा है।लेकिन अब हालत यह है कि तटबंध बनाने के लिए ही गांवों के लोग जमीन दे नहीं रहे हैं।



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