Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Saturday, September 28, 2013

केंद्र की राजनीतिक बिसात का मोहरा रघुराम राजन कमिटी

केंद्र की राजनीतिक बिसात का मोहरा रघुराम राजन कमिटी

रघुराम राजन कमिटी के सिफारिश मात्र से झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाएगा, ऐसा नहीं है. इसके लिए झारखंड के लोगों और छोटे-बड़े सभी राजनीतिक दलों को अपनी राजनीतिक ताकत के साथ-साथ आर्थिक ताकत को भी आंदोलन का हिस्सा बनाना होगा...

राजीव

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4373-kendra-kee-raajneetik-bisat-ka-mohra-raghuram-raajan-comiti-by-rajiv-for-janjwar


अति पिछड़े राज्यों की मांगों और जरूरतों पर विचार के लिए गठित रघुराम राजन कमेटी ने झारखंड को अति पिछड़े राज्यों में पांचवा अति पिछड़ा राज्य माना है. अति पिछड़े राज्यों में पहला स्थान ओडि़शा, दूसरा बिहार, तीसरा मध्य प्रदेश तथा चैथा छत्तीसगढ़ का है.

jharkhand_map

अल्प विकास सूचक में झारखंड पांचवें नंबर पर है. रघुराम राजन कमेटी ने पहली बार बहुआयामी सूचकांक के आधार पर विकास के पैमाने पर देश के 28 राज्यों को तीन श्रेणी में बांटा है. इसके साथ ही विकास की जरूरत और परफार्मेंस के आधार पर पिछड़े और गरीब राज्यों को मल्टी डायमेंशनल मैथड यानी बहुआयामी सूचकांक पद्धति पर अतिरिक्त सहायता देने की सलाह दी है.

उल्लेखनीय है कि परकैपिटा इनकम में झारखंड बिहार से अच्छी स्थिति में है, मगर बुनियादी सुविधाओं और आधारभूत संरचना के क्षेत्र में झारखंड बिहार से काफी पीछे है. बिहार के लोगों और राजनीतिक दलों ने अपना हक पाने के लिए एक लंबा अभियान चलाया. यहां तक कि आर्थिक-सामाजिक स्थितियों का दस्तजावेजीकरण कर उसे केन्द्र के सामने रखा, जिसके फलस्वरूप केन्द्र को भी गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूले से बाहर निकल कर देखने पर बाध्य होना पड़ा.

इसी पृष्ठभूमि में केन्द्र सरकार ने रघुराम राजन कमिटी का गठन कर उनकी अध्यक्षता में आर्थिक पिछड़ेपन का मानक तय करने की दिशा में कदम बढ़ाया. हालांकि बिहार को अभी तक कुछ ठोस हासिल नहीं हो पाया है. गौरतलब है कि बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को अस्वीकार करते हुए राजन कमिटी ने नये मानक तय कर सिर्फ इस बात की अनुशंसा की है कि बिहार को पहले से ज्यादा मिलेगा, लेकिन इसके लिए भी उसको अगले बजट तक इंतजार करना पड़ेगा.

रघुराम राजन कमिटी के सिफारिश मात्र से झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाएगा, ऐसा नहीं है. इसके लिए झारखंड के लोगों और छोटे-बड़े सभी राजनीतिक दलों को अपनी राजनीतिक ताकत के साथ-साथ आर्थिक ताकत को भी आंदोलन का हिस्सा बनाना होगा.

यह ठीक है कि झारखंड में भी विशेष राज्य की मांग जोर पकड़ती जा रही है तथा राजनीतिक दल जैसे भाजपा, आजसू, झाविमो तथा झामुमो लगातार इसकी मांग कर रहे हैं, मगर अनमने ढ़ंग से. जरूरत है संघर्ष को तेज करने की और साथ ही साथ इस बात का ख्याल भी रखा जाए कि संघर्ष कहीं निहित राजनीति का शिकार न हो जाए.

स्पष्ट है कि रघुराम राजन कमिटी ने न तो झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया है और न ही झारखंड के साथ हुए ऐतिहासिक भेदभाव से निपटने के लिए कोई पैकेज. इसलिए राजनीतिक दलों द्वारा यह प्रचार-प्रसार करने से ही काम नहीं चलेगा कि कमिटी ने झारखंड को अति पिछड़े दस राज्यों में पांचवे नंबर पर रखा है.

केन्द्र सरकार आज तक झारखंड की मांग को नजरअंदाज करती आ रही है और रघुराम राजन कमिटी की झारखंड के लिए की गयी अति पिछड़े राज्य की अनुशंसा दरअसल केन्द्र सरकार की राजनीति का परिणाम है. केन्द्र सरकार राजन कमिटी की रिपोर्ट का चुनावी लाभ यह कहते हुए लेगी कि हम राज्यों को विकसित बनाकर समता मूलक विकास को बढ़ावा दे रहे हैं.

कमिटी की रिपोर्ट तो दरअसल इस बात से बचने के लिए है कि पिछड़े राज्यों में बिहार, ओडिशा सहित पूर्वी भारत के राज्यों और राजनेताओं में अंदर ही अंदर केन्द्र की नीतियों को लेकर बढ़ते असंतोष का राजनीतिक ध्रुवीकरण न हो जाए. झारखंड के लोगों और राजनेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि राजन कमिटी की अनुशंसा कहीं केन्द्रीय राजनीति की शिकार न हो जाए, इसलिए झारखंडी नेताओं को बिहार के तर्ज पर केन्द्र पर दबाव बनाना पड़ेगा.

आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर केन्द्र सरकार अभी कई लोकलुभावन फैसले लेती रहेगी, जिसका फायदा अगर झारखंड के राजनीतिक दल और यहां के लोग लेना चाहें तो विशेष राज्य के लिए जनांदोलन की आवश्यकता होगी.

आज तक झारखंड के नेतागण और बुद्धिजीवी वर्ग ने सिर्फ अखबारों में बयानबाजी तक ही विशेष राज्य के लिए अपने संघर्ष को सीमित रख हुआ है, जरूरत है सड़कों पर उतरने की. तभी झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा हासिल हो पाएगा, अन्यथा केंद्र सरकार की निहित राजनीति का शिकार हो जाएगा.

rajiv.jharkhand@janjwar.com

No comments: