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Memories of Another day

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Monday, May 25, 2015

केशरिया हुई गयो रे कयामती नजारा और अब हर मर्ज लाइलाज है लेकिन आधी रात बाद पटाखे और आतिशबाजी देखो के कैसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना कि लाखों करोड़ों लोग खुश हैं कि आईपीएल जीत ली नीता अंबानी ने फिर एकदफा और गुलामी की जंजीरें टूट गइलन हो। उधरै बहुजन राजनीति के कारोबारी समझ रहे हैं खूब के बहुजन समाज हवा हवाई है,अंबेडकर एटीएमो से जो जितना निकाले सकै,वही मलाई है।वामपंथी दक्षिणपंथी सगरी कारपोरेट राजनीति इस जाति संघर्ष को जारी रखने में एढ़ी चोटी एक कर दियो कि मुक्त बाजार के कार्निवाल में विदेशी पूंजी और विदेशी हितों की बल्ले बल्ले। पलाश विश्वास


केशरिया हुई गयो रे कयामती नजारा

और अब हर मर्ज लाइलाज है लेकिन आधी रात बाद पटाखे और आतिशबाजी देखो के कैसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना कि लाखों करोड़ों लोग खुश हैं कि आईपीएल जीत ली नीता अंबानी ने फिर एकदफा और गुलामी की जंजीरें टूट गइलन हो।

उधरै बहुजन राजनीति के कारोबारी समझ रहे हैं खूब के बहुजन समाज हवा हवाई है,अंबेडकर एटीएमो से जो जितना निकाले सकै,वही मलाई है।वामपंथी दक्षिणपंथी सगरी कारपोरेट राजनीति इस जाति संघर्ष को जारी रखने में एढ़ी चोटी एक कर दियो कि मुक्त बाजार के कार्निवाल में विदेशी पूंजी और विदेशी हितों की बल्ले बल्ले।


पलाश विश्वास

bing.com/images



सावन के अंधों के लिए सबकुछ हरा हरा

केशरिया हुई गयो कयामती नजारा

जैसा कि अम्मा फिर अम्मा हैं और ताजनशीं भी हैं।


जैसे कि शारदा फर्जीवाड़ा अब खुदै सीबीआई,ईडी,सेबी,इत्यादि समेत शंघ परिवार का राजकाज फासिज्म है और है कैसिनो में तब्दील खुल्ला ताला यह अर्थव्यवस्था तमाम मेहनतकशों की वैदिकी कत्लेआम के बावजूद कि दहक रही आसमान और गोले बरसाने लगे आसमान,मंहगाई ऐसी की जरुरी चीजें छू लें तो झुलस जाये देहमन और बच्चे तमाम सर्वशिक्षा के मिडडे मिल के बावजूदो भूख से बिलबिला रहे हैं और उनन मा जो होनहार है,बेहतरीन रिजल्ट नेकाले हैं,उनके माई बाप बेबस कटेहाथ पांव ऐसे कि लाखों का फीस भर न सको।दाखिला नको नको नालेज इकोनामी भयो रे।


और अब हर मर्ज लाइलाज है लेकिन आधी रात बाद पटाखे और आतिशबाजी देखो के कैसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना कि लाखों करोड़ों लोग खुश हैं कि आईपीएल जीत ली नीता अंबानी ने फिर एकदफा और गुलामी की जंजीरें टूट गइलन हो।


आनंद तेलतुंबड़े के पास बाकायदा आंकड़े हैं जिन्हें गरज हों,उनसे आंकड़े देख लें ,तथ्यों की जांच करा लें कि रिजर्वेशन सबसे बड़ी धोखाधड़ी है और जाति व्यवस्था के नर्क को जारी रखने का स्थाई इंतजाम है।


हाथ कंगन को आरसी क्या,पढ़े लिखे को आरसी क्या,हिंदी और भाषाई अखबारों में मनोरंजन के अलावा सूचना तो होताइच नहीं इन दिनों बाकी सबकुछ पेइड है या प्रायोजित या फिर केसरिया हिंदुत्व का प्रचंड जलजला है और कोलकाता में टीवी पर पैनल है जो रातोंदिन बहस में तल्लीन ममता के हक में या खिलाफत में तोतमिलनाडु में तस्पवीरें देखकर लोग सुईसाइड करें कभी भी किसी भी क्षण


।राजस्थान में आरक्षण  आंदोलन का प्रसारण लाइव हो और हिंदू राष्ट्र में दलितों के नरसंहार पर सन्नाटा हो लेकिन खबर नहीं,आंकड़े नही कि सरकारी नौकरियां अब हुइबे ना करे हैं और न कोई नौकरी स्थाई है कि रजर्वेशन की गुंजाइश बने।


कुछेक बाहुबली जातियों का मलाईदार तबका जो बना और जो मिलियनर बिलियनर ऐमऐलए ऐमपी पधान पधानी ओ मंतरी संतरी मुखमंतरी, इत्यादि हुआ करे वे अपनी जात के अलावा बाकी बहुजनों की सोचे नहीं और मलाई बटोरने में रेवड़ियां सिर्फ अपनों अपनों को बांटे हैं और बाकी बाबाजी का ठुल्लू।


संगठिक क्षेत्रों में सिर्फ छह फीसद के आसपास रोजगार है कुल नौकरियों के जो तेजतेज घटने लगा है।रेलवे का निजीकरण हो गया और विस्तार और बुलेट के बावजूद सत्रह लाख के बजाये रेलवे कर्मचारी अब ग्यारह लाख के पास हैं तो कोल इंडिया में सत्तर फीसद कर्मचारियों की छंटनी का फैसला हुआ है और जो फिलहाल 3.4 लाख कर्मचारी है फिलवक्त वे एक लाख होंगे जल्द ही।


बाकी विनिवेश का ,निजीकरण का सिलसिला जितना तेज उतना तेज आरक्षण आंदोलन।अभी सभा दलित आदिवासी और पिछड़ों को आरक्षण मिला नहीं है कि ब्राह्मणों और राजपूतों का भी आरक्षण आंदोलन चालू आहे।दबंग पिछड़ी जातियां जो दलित उत्पीड़न में,स्त्री उत्पीड़ने में अव्वल हैं,उन सबको आरक्षण चाहिए।


मीडिया में झूठो का आरक्षण आंदोलनों की बहार और जलजंगल जमीन रोजगार आजीविका से बेदखली,बलात्कार और नरसंहार की शिकार तमाम वंचित समुदायों,थोक भाव से आत्महत्या कर रहे किसानों की कोई खबर नहीं,कोई खबर नहीं कि कैसे जनसंहारी नीतियां बन रही है और अमल में है,सिर्फ विकास ही विकास पादै हैं।


एक फीसद जामोशबाब में मस्त मस्त बाकी मीडियाकर्मी जंजीरों में कैद गुलाम।भाषाई मीडिया में रंगभेद नस्लभेद दलित उत्पीड़न और नंगे पांव सपादक हमेशा विदेश यात्रा पर दौड़े।


अंग्रेजो को हफ्ते में दो दिन छुट्टी और उसी हाउस में हिदी वालों को एक दिन।गधे की तरह खटने वाले बंधुआ दिहाड़ी मजदूरों की वेतनमान प्रोमोशन तबके को कोई परवाह नहीं और कानून अंधा है तो श्रम कानून खतम।


संपादक सारे गूंगे बहरे और अंधे धकाधक पेले हैं।जो ससुरे अपने हकहकूक के बारे में बोलबे का माद्दा न रखे वो ससुरे का मेहनतकशों के हक में बोले हो।पेइड न्यूज और पोस्तो रचना में सारा सृजन समाहित है और उंगलियां मैनफोर्स है।ऐसै है भाषाई मीडिया।कटकटेला अंधियारे के तेजबत्ती वाले कारोबारी।


मीडिया के लिए आरक्षण आंदोलन बड़ी खबर है कि क्योंकि मीणा आदिवासियों के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं गुज्जर,ऐसा समीकरण वोटों की राजनीति को चाहिए।लेकिन दबंग जातियों के कहर पर बोले नहीं कोई,बाकीर उलट खबर जरुर छापेके चाहि।


उधरै बहुजन राजनीति के कारोबारी समझ रहे हैं खूब के बहुजन समाज हवा हवाई है,अंबेडकर एटीएमो से जो जितना निकाले सकै,वही मलाई है।वामपंथी दक्षिणपंथी सगरी कारपोरेट राजनीति इस जाति संघर्ष को जारी रखने में एढ़ी चोटी एक कर दियो कि मुक्त बाजार के कार्निवाल में विदेशी पूंजी और विदेशी हितों की बल्ले बल्ले।


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