Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Tuesday, January 26, 2016

Priyankar Paliwal रोहित वेमुला और प्रकाश साव को याद करते हुए !



Priyankar Paliwal

रोहित वेमुला और प्रकाश साव को याद करते हुए !

जब रोहित वेमुला और प्रकाश साव जैसे स्वप्नशील युवा आत्महत्या करते हैं तब एक व्यवस्था की सड़ांध की ओर हमारा ध्यान जाता है . उस गलाज़त की ओर जिसे अब हमने लगभग सहज-स्वाभाविक मान लिया है . वरना, पद सृजित किए जाने और भरे जाने की बन्दरबांट के बारे में अब कौन नहीं जानता . कम से कम हिंदी विभागों में सबको पता है.

रोहित को मैं नहीं जानता था पर प्रकाश से परिचित था; प्रकाश की कविताओं से भी . एक संवेदनशील और गम्भीर युवा कवि-सम्पादक के रूप में उसकी पहचान थी. आर्थिक परेशानियों की आशंका के बावजूद रोहित और प्रकाश की मृत्यु के कारण आर्थिक तो निश्चय ही नहीं हैं. पर कुछ लोग मूल बातों से ध्यान भटकाने के लिए ऐसा प्रचार जोर-शोर से कर रहे हैं.

रोहित वजीफायाफ्ता पीएचडी छात्र था, हालांकि कई महीनों से उसे छात्रवृत्ति का भुगतान नहीं हुआ था. पर वह उसे देर-सवेर मिल ही जानी थी. प्रकाश भी केंद्रीय हिंदी संस्थान में कार्यरत था, भले अस्थायी रूप में. शायद सोलह हज़ार प्रति माह मिलते थे . यह कोई अच्छी स्थिति और अच्छी तनख्वाह नहीं है पर शायद बचे रहने के लिए यह बेरोज़गारी से निस्संदेह बेहतर स्थिति है.

तब ऐसा क्या है जो इन युवाओं को बेचैन करता है ? वही जो इधर हमको-आपको नहीं करता. वही भ्रष्टाचार,वही बंदरबांट,वही जातिवाद,प्रतिभा की वही नाकदरी,स्वाभिमान का वही अपमान,वही चापलूसी और चेला-प्रतिस्थापन, वही अवसरों और पुरस्कारों की छीनाझपटी...... सूची बहुत लम्बी है.

हम सबके आसपास सीमित-प्रतिभा और असीमित शक्ति-सम्पन्न ऐसे अवसरवादी लोग मिल जाएंगे जिनकी कीर्ति-कथा लगभग हरिकथा की तरह अनंत है . उनकी शक्ति के स्रोत भी इतने जाहिर हैं कि किसी शोध की नहीं सिर्फ आंख-कान खुले रखने की ज़रूरत है.

हो सकता है जाति की संकीर्ण हदबंदी के हिसाब से रोहित और प्रकाश दलित की श्रेणी में फिट न बैठें, बावजूद इसके कि कुछ बीफ-फेस्टिवल-फेम दलितवादी खुले गले से ऐसा प्रचारित कर रहे हैं. पर हिंदुस्तान में अब हर वंचित व्यक्ति दलित की श्रेणी में और हर ईमानदार आदमी अल्पसंख्यक की गिनती में आना चाहिए .रोहित और प्रकाश जैसे युवा इसी अर्थ में दलित हैं.

क्या इन शिक्षित,संवेदनशील और स्वप्नशील युवाओं का आत्मघात हमें एक न्यायपूर्ण समाज के गठन के लिए संवेदित करता है ?

या इस श्मशानी वैराग्य के बाद हम सब अपने-अपने कारोबार और अपनी-अपनी दुनियादारी में मगन हो जाएंगे. वही दुनियादारी जिसमें बेचैनी के वे सारे कारण मौजूद हैं जो रोहित और प्रकाश को लील गये . वही दुनियादारी जो भ्रष्टाचार और अन्याय और लेन-देन पर टिकी है.

आइए कुछ आत्ममंथन करें ताकि रोहित और प्रकाश आत्महत्या न करें बल्कि इस व्यवस्था से लड़ने का और इसे बदलने का हौसला पाएं .

Comments
Hitendra Patel
Hitendra Patel आत्म मंथन का कुछ फल मिले भी या यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है ? 'हम क्या कर सकते हैं इसके अलावा 'वाली मुद्रा हम कब तक लिए रहेंगे ? कम से कम खुल कर बोलें और लाभ पाने व्यक्ति के साथ खड़े न हों। कम से कम यह तो हम कर ही सकते हैं। किसी प्रकाश और उस जैसे उपेक्षित के साथ हमारा व्यवहार ही उन्हें सहारा दे सकते हैं। उसके लिए कुछ सोचिए।
--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments: