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Thursday, March 22, 2012

आखिर इस मुल्‍क में कब तक ऐसा चलता रहेगा?

http://mohallalive.com/2012/03/22/a-thanks-letter-to-vishwadeepak/

Home » आमुखमोहल्‍ला लाइवसंघर्ष

आखिर इस मुल्‍क में कब तक ऐसा चलता रहेगा?

22 MARCH 2012 3 COMMENTS

मोहल्ला लाइव की हमेशा यही कोशिश रही है कि वो यथासंभव मानवाधिकारों के साथ खड़ा दिखे और न्‍याय के लिए तमाम तरह के संघर्षों के साथ चलता रहे। इन कोशिशों में हम कितने कामयाब रहे हैं, कहना मुश्किल है। अभी हाल में ही पत्रकार अहमद काजमी की गिरफ्तारी का मामला उठाया। इस गिरफ्तारी के पीछे भारतीय गणराज्‍य की बेबसी से अधिक हमने उसकी अन्‍यायप्रियता देखी। काजमी आतंकवादी हैं, ऐसा हमारे शासन ने हमें बताया। लेकिन हमारा यकीन है कि यह पूरा मामला एक वृहत्तर साजिश का नतीजा है। इस बारे में हमने कई लेख प्रकाशित किये। युवा पत्रकार विश्वदीपक ने इस मुद्दे की ओर हमारा ध्‍यान दिलाया। उन्‍होंने सबसे पहले इस मुद्दे पर हमारे लिए लिखा भी, मैंने एक आतंकवादी के बेटे को देखा, वह सच बोल रहा था! कल उन्हे एक मेल प्राप्त हुआ है, जिससे जानकारी मिलती है कि उनके लेख को लखनऊ में उर्दू के अखबारों ने भी प्रकाशित किया है। उर्दू के कुछ ब्लॉग और बेवसाइट पर भी ये आया है। विश्वदीपक हमारे साथ शुरू से जुड़े रहे हैं, और हमेशा से वे तीखे-तल्‍ख सवाल उठाते रहे हैं। गिरिराज किशोर से लेकर राहुल गांधी तक कई उदाहरण हैं। हम यहां, विश्‍वदीपक को मिले उस पत्र की कॉपी साझा कर रहे हैं : मॉडरेटर

दीपक जी,
आदाब

पका एक लेख जो कि लखनऊ के उर्दू समाचार पत्र ने अपने संडे एडिशन में छापा है, जिसका हेडिंग कुछ ऐसा है, मैंने एक दहशतगर्द के बेटे को देखा, वो सच बोल रहा था। आप ने एक जगह पर लिखा है, जम्‍हूरी (डेमोक्रेटिक) गुंडों के इशारे पर नाचने वाली पुलिस धमकी दे रही है कि गुनाह कबूल करो वरना मोसाद को सौंप देंगे। यकीन जानिए हर मुसलमान अब यह अदालत पुलिस पार्लियामेंट सब को कुछ ऐसी ही नजरों से देखने लगा है। वो लोगों के सामने बोल तो देता है कि हमें अदालत पर पूरा भरोसा है लेकिन क्‍या वाकई ऐसा है। आपने बड़ी हिम्‍मत का काम किया है। हमारे एक दोस्‍त हैं, एक दिन जब उनसे पाकिस्‍तान की मीडिया और कोर्ट के बारे में बात चल रही थी, उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान के राइटर की किस्‍मत अच्‍छी है कि वो जो सोचते हैं, वो लिख देते हैं। लेकिन आपके इस आर्टिकल से ऐसा लगा कि यहां भी ऐसे लोग हैं, जो अंजाम की परवाह किये बगैर सच बोलना जानते हैं, लेकिन उनकी बातों को आम जनता तक पहुंचने नहीं दिया जाता है। आखिर में मेरा एक सवाल आपसे यह है कि क्‍या इस मुल्‍क में ऐसा ही चलता रहेगा और यह कब तक चलता रहेगा?

नेहाल सगीर

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