Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Monday, April 30, 2012

आईला ! नो राजनीति

आईला ! नो राजनीति



इलेक्ट्रोनिक मीडिया का हाल तो भेड़िया धसान जैसा है. एक ने हूआं किया नहीं कि बाकी भी हूआं-हूआं का राग अलापने लगते हैं. सारे चैनल सचिन को राजनेता का चोला पहनाकर इस बहस में जुट गए कि क्या सचिन कांग्रेस की डूबती नैय्या को पार लगा पायेंगे...

पीयूष पन्त

 सचिन तेंदुलकर को राज्यसभा के लिए नामित किये जाने को लेकर माहौल गरम है. तमाम राजनीतिक दल इसे असली मुद्दों से भटकाने के लिए कांग्रेस की राजनीतिक चाल बता रहे है, तो भारतीय मीडिया तो सचिन को एक राजनेता के रूप में पेश करते हुए अनेक तरह के सवाल उठाता रहा - क्या सचिन राज्यसभा में कुछ बोलेंगे या चुप रहेंगे, क्या सचिन कांग्रेस की नैय्या को पार लगा पायेंगे, क्या सचिन क्रिकेट की तरह राजनीति में भी सफल हो पायेंगे आदि-आदि. कोई यह नहीं पूछ रहा कि क्यों सचिन ने कांग्रेसी राजनीतिक चाल का  मोहरा बनना स्वीकार किया, तब जबकि वे अगला विश्वकप खेलने का इरादा घोषित कर चुके हैं.या फिर क्या वे क्रिकेट में सक्रियता के चलते राज्यसभा में सक्रिय रहना तो दूर, उपस्थित भी रह पायेंगे?

sachin-rajya-sabha

भारतीय मीडिया भारतीय मीडिया तो इस खबर के आने के साथ ही सचिन को खिलाडी नहीं, बल्कि कांग्रेसी नेता के रूप में देखने लगा. इस तरह की हेडिंग लगने लगीं- सचिन एंटेर्स पोलिटिक्स, सचिन राजनीति में या फिर राजनेता सचिन. जबकि सचिन ने न तो कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है और ना ही वे किसी पार्टी के कोटे के तहत किसी राज्य से निर्वाचित होकर आये हैं.

उन्हें तो राष्ट्रपति ने संविधान की उस धारा 80 के तहत नामित किया है जिसमें 12 ऐसे व्यक्तियों को नामित करने का प्रावधान है जो कला, विज्ञान, साहित्य और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशिष्ट अनुभव व स्थान रखते हों. इसमें खेल के क्षेत्र का ज़िक्र नहीं है. सच तो ये भी है की आज तक किसी भी खिलाडी को राज्यसभा के लिए नामित नहीं किया गया था. तो क्या राष्ट्रपति ने संवैधानिक परंपरा का उल्लंघन इसलिए किया, ताकि कांग्रेस  अपनी राजनीतिक चाल चल सके?

भारतीय मीडिया (खासकर इलेक्ट्रोनिक) का हाल तो भेडिया धसान जैसा है. एक ने हूआं किया नहीं कि बाकी भी हूआं-हूआं का राग अलापने लगते हैं. यही हुआ भी. सारे चैनल सचिन को राजनेता का चोला पहनाकर इस बहस में जुट गए कि क्या सचिन कांग्रेस की डूबती नय्या को पार लगा पायेंगे? कुछ चैनल तो यहाँ तक छलांग लगाने लगे कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के  युवा चेहरे के रूप में राहुल गांधी के पिट जाने पर क्या सचिन कांग्रेस  का नया युवा चेहरा बन पायेंगे? या ये कहें कि क्या वे कांग्रेस के लिए पोलिटिकल ब्रांड एम्बेसडर बन पायेंगे? 

दरअसल, यह समझना होगा कि राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए मनोनीत सदस्य आमतौर पर राजनीति से परे अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज होते हैं और राज्यसभा के लिए उनके मनोनयन का मतलब होता है उनके योगदान के लिए उनका सम्मान करना और उनका आभार प्रगट करना. हाँ, इतना ज़रूर है कि सत्ताधारी दल इन मनोनयन के ज़रिये राजनीति करते हुए प्रतिष्ठित लोगों को अपने पाले में दिखाने का प्रयास करता है या फिर इन्हें सम्मानित कर जनता के बीच वाहवाही लूटने की कवायद करता है. 

वैसे इन सदस्यों को मनोनीत करने के पीछे सदिच्छा यह भी रहती है कि अपने अनुभवों का फायदा उठाते हुए ये सदस्य समय-समय पर सदन में चलने वाली बहसों मे हिस्सा लेकर अपना योगदान देंगे. हालांकि ऐसा बहुत कम ही होता है कि नामित सदस्य सदन में सक्रियता दिखाएं. वर्ष  1952 से लेकर अब तक लगभग 150 लोगों को राज्यसभा के लिए नामित किया जा चुका है, लेकिन ऐसे लोग मुट्ठीभर ही हैं जिन्होंने बहस में हिस्सा लेकर या प्रश्न पूछ कर अपनी सक्रियता दिखाई हो.

राज्यसभा के शुरुवाती दौर में ज़रूर ऐसा होता था, लेकिन उस समय नामित किये जाने वाले लोग आज की तुलना में कहीं ज्यादा गुरु गंभीर और सदस्यता के उत्तरदायित्व को समझते थे. आज के सदस्य की निगाहें तो बस सदस्यता से मिलने वाली सामाजिक  प्रतिष्ठा और सांसद को मिलने वाले आर्थिक लाभ पर ही टिकी रहती है. ये लोग तो सदन में उपस्थित रहना भी नहीं चाहते. इसका सबसे सटीक उदाहरण विख्यात गायिका लता मंगेशकर हैं, जो शपथ लेने के बाद फिर पलट कर नहीं आयीं. हालाँकि कृषि विशेषज्ञ एमएस  स्वामीनाथन, फिल्म अदाकारा शबाना आजमी और मशहूर शायर एवं कवि जावेद अख्तर कुछ उदाहरण  भी हैं जो काफी सक्रिय रहे हैं.

ऐसे  में लगता नहीं कि सचिन अपनी सक्रियता दिखायेंगे. वैसे भी वो कह चुके हैं कि वे अगला विश्वकप खेलना पसंद करेंगे. यह बात जगजाहिर है कि वे खाते, पीते, सोते, जागते क्रिकेट  में ही रमे रहते हैं. बाकी समय वो विज्ञापनों के लिए शूट करने और ब्रांड एम्बेसडर बन करोड़ों कमाने में बिता देते हैं. ऐसे में राज्यसभा पहुंचने और देश, समाज तथा आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर बोलने का उनके पास समय ही कहाँ रहेगा. वैसे भी वो बस एक शब्द 'आईला' बोलने के लिए ही जाने जाते हैं.

piyush-pant

वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पन्त राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के विश्लेषक हैं. 

No comments: