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Thursday, June 21, 2012

सिनेमा में सरोकार लेकर आई 'शंघाई'

http://www.janjwar.com/2011-06-03-11-27-26/2011-06-03-11-46-05/2768-cinema-shanghai-in-india-plash-vishvas-janjwar


सेज जो बहिष्कार, विस्थापन और नरसंहार का अर्थशास्त्र है, इस प्रस्थान बिंदु को संबोधित किये बिना फिल्म शंघाई पर बातचीत बेमानी है. 'सोने की चिडिय़ा, डेंगू- मलेरिया, गुड़ भी है, गोबर भी... भारत माता की जय' इस गाने पर बवाल मच गया है...

पलाश विश्वास

विमल राय की फिल्म दो बीघा जमीन में जमींदार किसान के खिलाफ है तो मदर इंडिया में किसान परिवार के सर्वनाश का उत्तरदायी महाजन है, ​​श्याम बेनेगल की निशांत और अंकुर, गौतम घोष की दखल और मृणाल सेन की तमाम फिल्मों में पूरी सामंती व्यवस्था बेनकाब है. लेकिन​ ​ फिल्म 'शंघाई' में विस्थापन के मूल में बिल्डर- प्रोमोटर माफिया हैं, जो आम मुंबइया फिल्मों में इन दिनों खूब दिखता है.

दोटूक कहें तो फिल्म शंघाई के माध्यम से निर्देशक दिबाकर बनर्जी ने बाकायदा आंख में उंगली डालकर दिखा दिया है कि उस गांव 'भारतनगर' की हत्या कैसे हो रही है. दिबाकर बनर्जी अपने यथार्थवादी और अनूठे ट्रीटमेंट की वजह से मुख्यधारा से अलग खड़े हो कर भी अपनी जगह बनाने में अब तक कामयाब रहे हैं. 

दिबाकर की नई फ़िल्म 'शंघाई' एक राजनीतिक क्राइम-थ्रिलर है. शंघाई में समावेशी विकास के नारे के साथ सेज की जो पृष्ठभूमि है, वह दरअसल देस के खुला बाजार बनने और राष्ट्र के कारपोरेट​ ​ बन जाने की कथा है. अमेरिका कारपोरेट है, इसलिए कारपोरेट व्यवस्था के हक में खड़ा सत्ता वर्ग विचारधाराओं और दलों से उपर इस कदर ​​अमेरिकापरस्त है. राष्ट्र और समाज के अमेरिकापरस्त बन जाने और सीमांत बहिष्कृत शरणार्थी बस्तीवासी आदिवासी अछूत पिछड़ी बहुसंख्यक​ ​ जनसंख्या के विलोप की कथा है शंघाई.

shanghai-movie इस फिल्म को देखते हुए मुख्यमंत्री के किरदार में सुप्रिया पाठक और उनका स्थान प्रतिरोध आंदोलन की फसल काटने के अंदाज में ले लेने वाली तिलोत्तमा के चेहरे सर्वव्यापी हैं, जो भारत के कोने-कोने में पहचाने जा सकते हैं. अलग-अलग शक्ल ओ शूरत अख्तियार किये. यही सत्ता का कारपोरेट चेहरा है. फिल्म को देखते हुए सिंगुर, नंदीग्राम, नवी मुंबई, कलिंगनगर, जैतापुर, नियमागिरि पहाड़, अबूझमाड़, कुडनकुलम, समूचे मध्य भारत, समूचा ​​आदिवासी भूगोल, अछूत हिमालय और बहिष्कृत पूर्वोत्तर आंखों के सामने तिरें नहीं, यह असंभव है. 

सत्त्तर के दशक में जब सथ्यू, मृणाल सेन, श्याम बेनेगल जैसों की अगुवाई में समांतर फिल्मों का सैलाब उमड़ा, और उससे इतर सत्यजीत राय,​ ऋत्विक घटक जैसे दिग्गज फिल्मकारों ने जो फिल्में बनायीं, उस दौर तक भारत न खुला बाजार बना था और न तब तक कारपोरेट साम्राज्यवाद के ​​साथ ग्लोबल हिंदुत्व और जियोनिज्म का गठजोड़ बना था, इसलिए जाहिरा तौर पर कारपोरेट परिदृश्य सिरे से गायब है. 

तब भूमि सुधार के मुद्दे बालीवुड की अच्छी फिल्मों की कथानक हुआ करती थी और मूल निशाना सामंती महाजनी सभ्यता थी. पर आज के सामाजिक यथार्थ महाजनी सभ्यता और मनुस्मृति का नशीला काकटेल है, तो समाज खुले बाजार में फैमिली बार एंड रेस्त्रां,कैसीनो, शापिंग माल, सेज, कैसिनो, डिस्कोथेक या फिर ​​फेसबुक वाल है, जहां दुश्मन नकाबपोश हैं और समावेशी विकास के बहाने बिल्डर प्रोमोटर सेनसेक्स राज के कैसीनो में आपको कहीं भी कभी भी मार गिराने की फिराक में हैं और आप एकदम अकेले निहत्था असहाय मारे जाने के लिए समर्पित प्रतीक्षारत. 

सारे कर्मकांड यज्ञ आयोजन इसी वधस्थल की वैदिकी संस्कृति है और कारपोरेट हिंसा वैदिकी हिंसा है और जैसा कि भारतेंदु बहुत पहले कह चुके हैं कि वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति. उसी तर्ज पर सेज​ ​ भारतनगर के राष्ट्रधरम के मुताबिक कारपोरेट हिंसा हिंसा न भवति. लेकिन नरसंहार के विरुद्ध प्रतिरोध राष्ट्रद्रोह जरूर है. जल जंगल जमीन की लड़ाई तो क्या, उसकी बात करने वाला हर शख्स माओवादी है. हम लोग अवतार से अभिभूत थे और प्रतीक्षा कर रहे थे कि मसाला फिल्मों की राजनीति में​ ​ निष्णात भारतीय दर्शकों को कारपोरेट राजनीति पर बनी फिल्म कब देखने को मिलेगी. इस मामले में शंघाई एक सकारात्मक पहल जरूर है.

इस फिल्म में कारपोरेट बिल्डर माफिया राज को बेरहमी से बेनकाब तो किया ही गया है, लेकिन इसके साथ साथ भारतमाता के स्कारलेट आइटम​ ​ के जरिये हिंदू राष्ट्रवाद के जनविरोधी आक्रामक पाखंड की धज्जियां उड़ायी गयी है. बहुजन मूल निवासियों की बेदखली के लिए भारत माता और वंदेमातरम का हिंदुत्व अब कारपोरेट है और यही भारत नगर के सेज अभियान का थीम सांग है.

'शंघाई' में विशाल शेखर के संगीत के तेवर कथानक के मुताबिक हैं. एलबम में अलग-अलग रंगों के पाँच ट्रैक्स हैं, जिन्हें पाँच अलग गीतकारों ने शब्द दिये है.'भारत माता की जय' एलबम को एक जोशीली शुरुआत देता है. एक सड़क का धुंआधार जुलूस गीत है जिसमें देश की विसंगतियों पर कटाक्ष है. फिल्म 'शंघाई' के गीत 'भारत माता की जय...' पर बवाल मच गया है. यूट्यूब पर इस वीडियो को लोग खूब पसंद कर रहे हैं, लेकिन यह गीत के गायक विशाल ददलानी को धमकियां मिल रही हैं. 

'सोने की चिडिय़ा, डेंगू मलेरिया, गुड़ भी है, गोबर भी... भारत माता की जय' ये बोल हैं इमरान हाशमी और अभय देओल की आने वाली फिल्म 'शंघाई' के. अपने 'कंट्रोवर्शल' लिरिक्स की वजह से यह गीत यूट्यूब पर काफी पॉपुलर हो रहा है. करीब एक हफ्ते पहले अपलोड किए गए इस सॉन्ग को 65 हजार से ज्यादा लोग देख चुके हैं. विशाल पर पैसों की खातिर भारत माता का अपमान करने का आरोप लग रहा है. यहां तक कि ददलानी की मां को भी उसने घसीट लिया है. 

उन्होंने ट्वीट किया, 'यह सॉन्ग कुछ इस तरह होना चाहिए, 'विशाल की मम्मी पीलिया और एड्स की मरीज है. बोलो विशाल की मम्मी की जय.' ऐसे में, विशाल भी पीछे नहीं रहे इस पर उन्होंने ट्वीट किया, 'मिस्टर बग्गा मुझे धमकी देने की बजाय इस गाने को ध्यान से सुनो. देशभक्ति की आड़ में गुंडागर्दी नहीं चलेगी. और रही बात मां की तो वह आपकी भी होगी.' गौरतलब है कि सोने की चिड़िया डेंगू मलेरिया ...भारत माता की जय " के विरोध में बजरंग दल आगे आया है और उसने शंघाई फिल्म से इस गाने को हटाने की मांग की है ! बजरंग दल का कहना है कि फिल्म के इस गाने में भारत माता पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है !
सत्ता और कारपोरेट तानाबाना को दिवाकर ने वास्तव में बराबर साधा है, जिसमें केंद्र और राज्य के जनविरोधी चरित्र का बेहरीन​ फिल्मांकन हुआ है. इस फिल्म की कहानी ग्रीक लेखक वासिलिस वासिलिकोस की किताब जेड से प्रेरित है. आसान कहानी को दिलचस्प ढंग से पर्दे पर पेश किया है और कलाकारों का अभिनय भी शानदार है. फिल्म की मूल कथा यूनान में तब रची गयी थी, जब राजनीतिक हत्याओं के जरिए पूंजीवाद का कारपोरेट कायाकल्प हो रहा था. 

प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट, खुला बाजार, कानून पर कारपोरेट वर्चस्व जिसे हम आर्थिक सुधार कहते हैं, सामाजिक न्याय, भूमि सुधार और समता के सिद्दांत के खिलाफ है. संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूची के विरुद्ध है. फिल्म की शुरुआत होती है भारत के एक ऐसे राज्य से जहां पर इलेक्शन शुरु होने जा रहे हैं. उसी राज्य का एक बहुत ही ईमानदार और सम्माननीय समाज सेवी डॉक्टर एहमदी (प्रसेनजीत चैटरजी) वहां की सरकार पर इल्जाम लगाते हुए कहता है कि सरकार एक एसईज़ी प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन का बहुत ही बड़ा हिस्सा प्रयोग कर रही है वो भी वहां पर रह रहे लोगों को बिना मुनासिब मुआवज़ा दिए.

डॉक्टर एहमदी एक जनसभा के दौरान अचानक ही एक दुर्घटना में मारा जाता है. शालिनी (कल्की)कहती है कि यह एक दुर्घटना नहीं बल्कि एक सोची समझी साजिश है. उसी समय जोगीन्दर परमार ( इमरान हाशमी) यह दावा करता है कि उसके पास ऐसा सबूत है जिससे ये साबित होता है कि डॉक्टर एहमदी का खून कोई दुर्घटना नहीं बल्कि एक साजिश है और ये सबूत सरकार के लिए भी मुसीबत बन सकता है. सरकार द्वारा एक आई ए एस ऑफिसर (अभय देओल) इस मामले की छानबीन के लिए बुलाया जाता है और फिर ये तीनों शालिनी, जोगिन्दर परमार और आई एस ऑफिसर मिलकर सच की इस लड़ाई में शामिल हो जाते हैं.

सेज प्रकरण दरअसल भारत में सत्ता वर्ग के वर्चस्ववादी कारपोरेट समाज के लिए पायलट प्रोजेक्ट है, जहां देश का कानून, संविधान, सरकार, प्रशासन, ​​जनप्रतिनिधित्व, मीडिया, नागरिकता, नागरिक और मानव अधिकारों की कोई प्रासंगिकता नहीं है. सेज देश के भीतर विदेश है, जहां देश का कानून लागू नहीं होता. जाति उन्मूलन, सामाजिक न्याय., समता और भूमि सुधार जैसे प्रसंग वहां गैरप्रासंगिक है. फिल्म में भारतनगर जो गांव है और जिसे शंघाई​ ​ बनाया जाना है, वह दरअसल कोई एक गांव नहीं, पूरा देश है , जिसे सेज की सेज पर सजाने की राजनीति सत्ता में है. 

हकीकत में सिंगुर,​ ​ नंदीग्राम, नवी मुंबई जैसे सेज तो पायलट प्रोजेक्ट ही थे , जिसके प्रतिरोध के बहाने अंततः सत्ता वर्ग के ही वर्चस्व की राजनीति साधी गयी और सत्ता व वर्चस्व के चेहरे बदल दिये गये. इस प्रक्रिया को भी बेहद खूबसूरती से शहीद अहमदी की विधवा मिसेज अहमदी के सत्ताबदल के बाद मुख्यमंत्री ​​बन जाने की नियति मध्ये अभिव्यक्त दी गयी है. ज़मीन पर उसी की हड्डियों के चूने से ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं, वह देश जी के अहसान तले दब जाता है. यह वैसा ही है जैसी कहानी हमें 'शंघाई' के एक नायक (नायक कई हैं) डॉ. अहमदी सुनाते हैं.

शंघाई पहले मछुआरों का एक गाँव था, पर प्रथम अफ़ीम युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने इस स्थान पर अधिकार कर लिया और यहां विदेशियों के लिए एक स्वायत्तशासी क्षेत्र का निर्माण किया, जो 1930 तक अस्तित्व में रहा और जिसने इस मछुआरों के गाँव को उस समय के एक बड़े अन्तर्राष्ट्रीय नगर और वित्तीय केन्द्र बनने में सहायता की.१९४९ में साम्यवादी अधिग्रहण के बाद उन्होंने विदेशी निवेश पर रोक लगा दी और अत्यधिक कर लगा दिया. १९९२ से यहां आर्थिक सुधार लागू किए गए और कर में कमी की गई, जिससे शंघाई ने अन्य प्रमुख चीनी नगरों जिनका पहले विकास आरम्भ हो चुका था जैसे शेन्झेन और गुआंग्झोऊ को आर्थिक विकास में पछाड़ दिया. 1992 से ही यह महानगर प्रतिवर्ष ९-15% की दर से वृद्धि कर रहा है, पर तीव्र आर्थिक विकास के कारण इसे चीन के अन्य क्षेत्रों से आने वाले अप्रवासियों और समाजिक असमनता की समस्या से इसे जुझना पड़ रहा है.

इस महानगर को आधुनिक चीन का ध्वजारोहक नगर माना जाता है और यह चीन का एक प्रमुख सांस्कृतिक, व्यवसायिक और औद्योगिक केन्द्र है. 2005 से ही शंघाई का बन्दरगाह विश्व का सर्वाधिक व्यस्त बन्दरगाह है. पूरे चीन और शेष दुनिया में भी इसे भविष्य के प्रमुख महानगर के रूप में माना जाता है.चीनी जनवादी गणराज्य का सबसे बड़ा नगर है. यह देश के पूर्वी भाग में यांग्त्ज़े नदी के डेल्टा पर स्थित है. 

यह अर्थव्यवस्था और जनसंख्या दोनों ही दृष्टि से चीन का सबसे बड़ा नगर है. यह देश की चार नगरपालिकाओं में से एक है और उसी स्तर पर है जिसपर कि चीन का कोई अन्य प्रान्त.चीन के पूर्वी शहर शंघाई, हांगकांग और चोंगकिंग शहर को एक सर्वे में उनकी समृद्धि, आकर्षक इमारतों और खूबसूरत लड़कियों के कारण सर्वाधिक 'सेक्सी शहरों'' की सूची में क्रमश: पहला, दूसरा और तीसरा स्थान मिला है.

palash-biswasपलाश विश्वास वरिष्ठ पत्रकार हैं. 

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