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Monday, June 18, 2012

प्रोनब के भोट देबे ना!

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प्रोनब के भोट देबे ना!

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प्रोनब के भोट देबे ना!

प्रणब मुखर्जी से ममता बनर्जी न जाने किस जनम का बदल ले रही हैं. जो लोग बंगाल की राजनीति और प्रणब से ममता के संबंधों से परिचित रहे हैं वे भी यह अंदाजा नहीं लगा पाये होंगे कि ममता प्रणब को ऐसे मौके पर चोट मारेंगी जब निजी तौर पर उन्हें ममता के समर्थन की जरूरत आ पड़ी है. लेकिन बदले की इस भावना का नुकसान प्रणब से ज्यादा ममता को हो सकता है.

प्रणब को मारी गयी चोट खुद उन्हें प्रणब से ज्यादा कष्ट देगी. प्रणब का विरोध कर ममता सिर्फ और सिर्फ अपना नुकसान करने जा रही हैं. ममता का स्वाभाव एक जिद्दी राजनेत्री का है जो अपने मन से कोई भी फैसला ले सकती हैं. लेकिन अब तक उनकी जिद उतनी हास्यास्पद नहीं साबित हो पाई है जितनी कि अब होने जा रही है. अब जब यह साफ हो गया है कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ममता के लाख चढ़ाने के बाद भी चुनाव में शामिल नहीं होने जा रहे हैं तो भी वे उनके लिए प्रचार कर रही हैं. राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के तहत होता है और उसमें जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होती है तो भी ममता अपने फेसबुक एकाउंट के जरिये कलाम का प्रचार कर रही हैं. वे अपने को तो हास्यास्पद साबित कर ही रही हैं कलाम की प्रतिष्ठा पर भी बट्टा लगा रही हैं.

प्रणब के राष्ट्रपति बनने की स्पष्ट सम्भावना से बंगाली जातीय बोध एक बार फिर गौरवान्वित महसूस कर रहा है, ममता का इस गौरव बोध के खिलाफ जाना उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है. पार्टी के संसद और विधायक भी भीतर ही भीतर ममता के इस निर्णय से नाराज हैं. अब यह नाराजगी खुल कर मीडिया में चर्चा का विषय बन गयी है. इस नाराजगी को भांपकर ममता ने अपनी पार्टी के मतदाताओं के लिए व्हिप जरी करने का फैसला लेने वाली हैं.

मतलब साफ है कि वे किसी भी कीमत पर प्रणब को राष्ट्रपति भवन जाने से रोकना चाहती हैं. बहल ही ममता के विरोध से प्रणब का बाल भी बनाका नहीं होगा लेकिन ममता आगामी चुनाओं में इसका नुकसान उठाएंगी. बंगाल में वे भले ही बहुत लोकप्रिय रही हैं लेकिन तब तक वाम मोर्चे को सत्ता से बेदाकह्ल नहीं कर पाई थीं जब तक कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ीं. अब जब कांग्रेस के विधायकों ने गठबंधन तोड़ने का प्रस्ताव पास कर दिया है तो ममता को कांग्रेस के सहयोग का रास्ता बंद होता दिखाई दे रहा है.

और आगामी विधान सभा चुनाव में वे जब ५ साल के एंटी इनकम्बेंसी के साथ कांग्रेस के बिना अकेले लड़ने जाएँगी तो वाम मोर्चा विरोधी मत बंटेगा और उनको सत्ता से बेदखल करने का वामपंथी सपना ही संभवत: पूरा होता दिखाई दे रहा है. और फिर प्रणब दा राष्ट्रपति भवन से ममता के इस पराभव पर मुस्करा रहे होंगे.

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