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Wednesday, July 18, 2012

अमेरिकी मदद से ही क्षत्रपों की नकेल कस ली गयी और अब आर्थिक सुधारों के लिए मैदान साफ !

 अमेरिकी मदद से ही क्षत्रपों की नकेल कस ली गयी  और अब आर्थिक सुधारों के लिए मैदान साफ !

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

ओबामा की चाहे जितनी आलोचना हो, हकीकत यह है कि अमेरिकी मदद से ही क्षत्रपों की नकेल कस ली गयी है और पूरा कार्यक्रम अत्यंत योजनाबद्ध ढंग से संपन्न हो गया।राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस ने न केवल यूपीए गठबंधन को आखिरी वक्त तक ममता दीदी के सस्पेंस के बावजूद अटूट बनाये रखने में कामयाबी हासिल की, बल्कि विपक्षी राजग और वामपंथी गठबंधनों में दरारें बी पैदा कर दी हैं। राजनीतिक बाध्यताओं का अब कोई किस्सा नहीं है और न ही राजनीतिक चुनौतियों का कोई मामला है।दीदी के समर्थन से पहले हिलेरिया की कलकत्ता दौरे में भारतीय बाजार में पूंजीनिवेश के लिए दबाव का जो माहौल बनना शुरु हुआ, टाइम में अंडर एचीवर कवर स्टोरी और बराक ओबामा के हालिये प्रवचन से उसका पूरा चक्र पूरा हो गया। भारत में अमेरिकी कंसल जनरल ने बंगाल में पूंजी निवेश का विस्तृत ब्यौरा भी सार्वजनिक कर दिया है। ममता के अंतिम फैसले से पहले बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्र भी अमेरिका से हो आये हैं। आर्थिक पैकेज का चारा और है। अब आर्थिक सुधारों के लिए मैदान साफ है । सबसे पहले ईंधन में सब्सिडी खत्म करने की तैयारी है , जिसके तहत एलपीजी सिलिंडरों की संख्या में कटौती के अलावा उद्योग जगत के लंबे समय की मांग मुताबिक डीजल पर नियंत्रण मुक्त करना तय है।इस पर तुर्रा यह कि युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी की जोरदार तैयारी हो रही है।कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि पार्टी में बड़ी भूमिका निभाने के बारे में फैसला खुद राहुल गांधी को करना है।पार्टी राहुल को 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश कर सकती है, इसलिए उन्हें अभी बड़ी भूमिका निभाने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। गौरतलब है कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह समेत तमाम पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राहुल गांधी को संगठन में बड़ी भूमिका देने का राग अलापा है।

इसी बीच अमेरिका के एक थिंक टैक ने भारत को सुझाव दिया है कि उसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआई] की सीमा 26 फीसदी की जगह 50 फीसदी से अधिक करना चाहिए, ताकि अमेरिकी कंपनियां रक्षा उद्योग में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित हों।'सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशन स्टडीज' ने अपनी रिपोर्ट में अमेरिका और भारत दोनों को रक्षा साझेदारी की पूर्ण संभावना का दोहन करने के लिए कई सुझाव दिए है, जिसमें से एक है एफडीआई की सीमा बढ़ाना। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका-भारत रक्षा व्यापार में पिछले दशक में काफी बदलाव हुआ है और भारती रक्षा क्षेत्र में आज अमेरिकी कंपनिया अधिक सक्रिय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सुझावों पर अमल करने से दोनों देशों के रक्षा संबंध में और गहराई आएगी।

योजना आयोग ने 2012-13 के लिए उत्तर प्रदेश की 57,800 करोड़ रुपये की वाषिर्क योजना को आज मंजूरी दे दी जो कि पिछले साल की तुलना में 10,000 करोड़ रुपये अधिक है। इसमें कुंभ मेले के लिए 800 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता भी शामिल है।योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच यहां हुई एक बैठक में प्रदेश के लिए वाषिर्क योजना को अंतिम रूप दिया गया। राज्य की वाषिर्क योजना पर संतोष जताते हुए यादव ने कहा कि यह एक अच्छी शुरुआत है।बैठक के दौरान यादव ने कहा, 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंतिम वर्ष में 10 प्रतिशत की वृद्धि लक्ष्य को हासिल करने के लिए 16.70 लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी जिसमें से 4.86 लाख करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र से आयेंगे, जबकि 11.84 लाख करोड़ रुपये का निवेश निजी क्षेत्र में होगा।बैठक के बाद अहलूवालिया ने कहा, आयोग द्वारा 800 करोड़ रुपये कुंभ मेले के लिए मंजूर किया गया है जो 2012.13 में राज्य के लिए मंजूर 57,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त होगा। आयोग ने बीते वित्त वर्ष में उत्तर प्रदेश के लिए 47,000 करोड़ रुपये की वाषिर्क योजना मंजूर की थी।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारी 25 और 26 जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर रहेंगे। निजी बिजनेस घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने और ग्रामीण शाखाओं को बंद किए के विरोध में कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया है।लेकिन पूरे नवउदारवादी युग में आर्थिक सुधारों के मामले में कर्मचारी मजदूर संगठनों की भूमिका देकते हुए इससे कोई फर्क नही पड़ने ​
​वाला है। रस्मी विरोध से न निजीकरण और न विनिवेश रुका है,आर्थिक सुधार रुकेंगे, इस तरह का कोई अंदेशा नहीं है।बहरहाल,यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स ने कहा कि मांगों का एक पत्र 26 मार्च को सरकार को सौंपा गया था, लेकिन इस मामले में कोई फैसला नहीं किया गया। फोरम का दावा है कि बैंकों के करीब 10 लाख अधिकारी और कर्मचारी हड़ताल में शामिल रहेंगे।

आने वाले दिनों में आम आदमी पर महंगाई की चौतरफा मार पड़ सकती है। बढ़ते सब्सिडी खर्च को घटाने की कोशिश में जुटी सरकार डीजल को आंशिक तौर पर नियंत्रण मुक्त करने की तैयारी कर रही है। यदि डीजल के दाम बढ़ते हैं तो परिवहन लागत बढ़ने से अन्य वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ना तय है। इसके अलावा सरकार की आर्थिक रूप से सक्षम परिवारों के लिए सस्ते रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या सीमित करने की भी योजना है। पेट्रोलियम राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने बुधवार को कहा कि सरकार एलपीजी पर हर साल 36 हजार करोड़ रुपये सब्सिडी देती है, जबकि सब्सिडी युक्त सिलेंडर लेने वाले ऐसे लोगों की तादाद भी काफी होती है, जो आर्थिक रूप से कमजोर तबके से नहीं हैं और उन्हें सब्सिडी की जरूरत भी नहीं है।उन्होंने कहा कि सरकार एलपीजी पर सब्सिडी घटाने पर जल्द ही फैसला कर सकती है। यदि आर्थिक रूप से सक्षम तबके के लिए सिलेंडरों की संख्या सीमित की जाती है तो इससे गरीब लोगों का सस्ती रसोई गैस पाने का हक भी प्रभावित नहीं होगा और सरकार को सब्सिडी पर 8 से 10 हजार करोड़ रुपये की भी बचत होगी।पेट्रोल के दामों को लेकर उन्होंने कहा कि वह निजी तौर पर मानते हैं कि हमें अमेरिका जैसी व्यवस्था अपनानी चाहिए, जहां दाम रोजाना बदलते हैं और विभिन्न कंपनियों के अलग-अलग दाम हैं।डीजल के दामों में बढ़ोतरी को उन्होंने नाजुक मुद्दा बताया। आरपीएन सिंह ने कहा कि यदि डीजल के दामों में इजाफा होता है तो इसका अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है। इसलिए हम ऐसा समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि डीजल के दामों में बढ़ोतरी का अर्थव्यवस्था पर कम से कम असर पड़े और राजकोषीय घाटा भी कम करने में मदद मिले।उन्होंने कहा कि सरकार डीजल को आंशिक तौर पर नियंत्रण मुक्त करने की कोशिश कर रही है, ताकि लोगों पर कम से कम असर पड़े। उन्होंने याद दिलाया कि 2010 में डीजल को नियंत्रण मुक्त किया गया था, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका क्योंकि कच्चे तेल के दाम बढ़ने लगे। उन्होंने कहा कि सरकारी तेल कंपनियों पर सब्सिडी के चलते भारी बोझ पड़ रहा है।

दूसरी ओर, खाद्य उत्पादों की जमाखोरी रोकने को सरकार व्यापारियों के लिए स्टॉक की सीमा निर्धारित कर सकती है। इससे महंगाई पर काबू पाने में मदद मिलेगी। मॉनसून कमजोर रहने से दालों के उत्पादन में कमी की आशंका के मद्देनजर सरकार आम आदमी को कीमतों में बढ़ोतरी से राहत देने के लिए राशन की दुकानों से सब्सिडाइज्ड दाम पर दालों की बिक्री की स्कीम दोबारा शुरू कर सकती है। खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने कहा, 'हम दालों को लेकर चिंतित हैं क्योंकि इनका उत्पादन कम हो सकता है। हम कुछ कदम उठाने का प्रस्ताव दे रहे हैं।' खाद्य मंत्रालय सब्सिडाइज्ड कीमतों पर राशन की दुकानों के जरिए आयातित दालों के डिस्ट्रिब्यूशन की स्कीम दोबारा शुरू करने के लिए कृषि मंत्रालय से बातचीत कर रहा है। सरकार ने नवंबर 2010 में इस स्कीम की शुरुआत की थी। इसके तहत गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) और गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों को 10 रुपए प्रति किलोग्राम की सब्सिडी पर दालें मुहैया कराई गई थीं। पिछले साल जून में इसे बंद कर दिया गया। थॉमस ने बताया कि उनका मंत्रालय स्कीम को सफलता से लागू करने के लिए 10 रुपए प्रति किलोग्राम की सब्सिडी को बढ़ाने पर भी विचार कर रहा है। इस मुद्दे पर वित्त और कृषि मंत्रालयों से बात की जाएगी। थॉमस के मुताबिक, 'हम इसके लिए पेपर तैयार कर रहे हैं और कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद राज्यों को सब्सिडाइज्ड कीमतों पर दालों के डिस्ट्रिब्यूशन की स्कीम शुरू कर दी जाएगी। इससे कीमतों पर नियंत्रण किया जा सकेगा।' बुधवार को खाद्य सम्मेलन से इतर थॉमस ने कहा कि खाद्य उत्पादों का सीमित स्टॉक रखने का निर्देश देने पर सरकार फैसला कर सकती है। अभी इस पर विचार किया जा रहा है कि अलग-अलग खाद्य जिंसों की स्टॉक सीमा क्या हो। कई फसलों की बंपर पैदावार को देखते हुए सरकार ने स्टॉक सीमा हटा ली थी। थॉमस ने कहा कि अनाज और चीनी का उत्पादन मांग के मुकाबले ज्यादा है। इसे लेकर कोई दिक्कत नहीं है। मगर मानसून की बेरुखी के चलते दालों की पैदावार कम रहने की आशंका है। दालों की किल्लत महंगाई को और भड़का सकती है। इसे देखते हुए ही सरकार कदम उठाने पर विचार कर रही है।

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने बुधवार को घोषणा की कि संसद का मानसून सत्र आठ अगस्त से शुरू होगा और सात सितम्बर तक चलेगा। बंसल ने बताया, "प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले निर्देशों के बाद मैंने आठ अगस्त से मानसूस सत्र बुलाने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखा है।" उन्होंने कहा कि मानसून सत्र सात सितम्बर तक चलेगा।मानसून सत्र आमतौर पर जुलाई में शुरू होता है, लेकिन 19 जुलाई के राष्ट्रपति चुनाव और सात अगस्त के उपराष्ट्रपति चुनाव के कारण मानसून सत्र को आगे बढ़ाना पड़ा है। सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री ने मानसून सत्र बुलाने का निर्णय इसलिए लिया, क्योंकि आमतौर पर सत्र की तारीखें तय करने वाली संसदीय मामलों की मंत्रिमडंलीय समिति की बैठक नहीं हो पाई है।प्रणब मुखर्जी को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की ओर से राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद सरकार अभी लोकसभा में सदन के नेता की नियुक्ति नहीं कर पाई है।


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