मज़दूरों पर पुलिसिया कहर, 98 को जेल
जनज्वार. उत्तराखण्ड के रुद्रपुर स्थित सिडकुल, पन्तनगर के टाटा वेण्डर आटोमोटिव स्टंपिंग एण्ड असेम्बलिंग लिमिटेड (असाल) के 98 मज़दूरों को 6-7 जून की आधी रात पुलिसिया दमन के साथ गिरफ्तार करके हल्द्वानी, नैनीताल व अल्मोड़ा की जेलों में बन्द कर दिया गया है. अपनी मांगों के लिए संघर्षरत इन मजदूरों को शांतिभंग की आशंका (धारा 151) के तहत गिरफ्तार किया गया है.
इस बर्बर घटना के बाद स्थानीय मज़दूरों में बेहद रोष व्याप्त है. उन्होंने 11 जून को जिला मुख्यालय पर मज़दूर पंचायत का ऐलान कर दिया है. चर्चा है कि मज़दूरों के दमन की यह पूरी कार्यवाही मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की टाटा प्रबन्धन से डील का परिणाम है.
गौरतलब है कि 28 मई को असाल प्रबंधन ने पुराने बचे 170 ट्रेनी मज़दूरों को निकालकर नये अनट्रेंड ठेका मज़दूरों से काम करवाना शुरू कर दिया था. 30 मई की सुबह फोर्कलिफ्ट की चपेट में आने से श्याम कुमार नामक एक मज़दूर की दर्दनाक तरीके से मौत हो गयी थी. ध्यान देने वाली बात यह है कि श्याम कुमार का काम पर यह महज दूसरा दिन था.
घटना को दबाने के लिए प्रबंधन श्याम कुमार के शव को गायब करने की फिराक में था, लेकिन इसके विरोध में मज़दूरों ने पूरे कारखाने का घेराव कर दिया. मजदूरों को हावी होते देख प्रबंधन ने पुलिस बल को वहां बुला लिया. भारी पुलिस फोर्स के दबाव के बावजूद आक्रोशित मज़दूर डटे रहे.
लगभग 8 घंटे के तनावपूर्ण माहौल और उपजिलाधिकारी की मध्यस्तता में मृतक के परिजनों को 10 लाख मुआवजे, पत्नी को स्थायी नौकरी व बच्ची की पढ़ाई के खर्च की घोषणा के बाद मज़दूरों का प्रदर्शन शांत हुआ. इसी के साथ माहौल की नजाकत को देखते हुए प्रबंधन ने लिखित तौर पर मौजूदा विवाद हल होने तक कारखाने को बन्द रखने का ऐलान किया, जिस पर उपजिलाधिकारी और स्थानीय विधायक के भी हस्ताक्षर थे.
लेकिन प्रबंधन की मंशा कुछ और थी. वह बगैर पुराने मज़दूरों को लिए कम्पनी खोलना चाहता था. मज़दूर भी तेवर में थे. जिस कारण असाल के साथ ही तीन दिनों से टाटा के मुख्य कारखाने में भी उत्पादन ठप हो गया. इसलिए जिला प्रशासन भी अपने लिखित वायदे से मुकर गया और आधी रात में हमलाकर 42 मज़दूरों को उठा लिया गया. शेष मज़दूरों की गिरफ्तारी सुबह की गयी. पता चला है कि प्रशासन की यह पूरी कार्यवाही मुख्यमंत्री के सीधे निर्देश पर हुई है.
दरअसल, पूरे टाटा ग्रुप और यहाँ के अन्य इंजीनियरिंग उद्योगों में अवैध ट्रेनी के नाम पर मज़दूरों का जमकर शोषण होता है. असाल के मज़दूरों नें इसे चुनौती देते हुए पिछले 6 माह से संघर्ष की राह पकड रखी है. मज़दूरों के विरोध पर 26 अप्रैल को उपश्रमायुक्त ने कम्पनी के प्रमाणित स्थाई आदेश से ट्रेनी को अवैध बताते हुए उसे हटाने और ट्रेनी के बहाने दो-तीन साल से कार्यरत मज़दूरों के स्थाईकरण की नीति बनाने का आदेश दे दिया था. इससे खफा प्रबंधन ने फेसले के विपरीत 28 मई को 170 ट्रेनी मज़दूरों को ही काम से निकाल दिया. असाल प्रबंधन इससे पूर्व 5 स्थाई मज़दूरों के निलम्बन के साथ 23 पुराने ट्रेनी मज़दूरों को निकाल चुका था.
गौरतलब है कि असाल में महज 21 मज़दूर स्थायी हैं. बाकी सारा काम ट्रेनी के नाम से भर्ती किये गये मजदूरों से करवाया जाता है. इसी कारण आए दिन होने हादसे होते रहते हैं. इन हादसों में न जाने कितने मज़दूरों के अंग-भंग हो चुके हैं. मज़दूरों ने इसी शोषण व अन्याय का विरोध किया था और संघर्ष की राह पकडी थी. फिलहाल, संयुक्त रूप से स्थानीय मज़दूर संगठनों-यूनियनों और जनपक्षधर शक्तियों ने लामबन्दी और विरोध का सिलसिला शुरू कर दिया है.
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