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Sunday, December 6, 2009

सत्याग्रह से सूचना अधिकार तक


 
 बहस : बात पते की 

नक्सलवाद: समस्या बनाम आंदोलन
किसी ज़माने में मनमोहन सिंह को नक्सली बता कर गिरफ्तार करने के लिए पंजाब पुलिस बेहद सक्रिय थी. नक्सलियों पर मनमोहन सिंह को अपना साथी बताने का दबाव बनाया जा रहा था. आज वही मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री हैं और उनकी राय में नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है. नक्सलवाद को समस्या और आंदोलन के रूप में देखने का नजरिया कैसे बदलता है, यह दिलचस्प है.
पत्रकार अनिल चमड़िया का विश्लेषण
 
 मिसाल बेमिसाल : झारखंड 

एक मास्टर, जो गुरु भी है गोविंद भी...
झारखंड के पिपराडीह में आदिवासी बिरहोर बच्चे पढ़ाई के नाम से ही बिदकते थे. जो बच्चे केवल खेलने में लगे रहते थे और नेवले-खरगोश की तलाश में या फिर लकड़ी वगैरह इकट्ठा करने के लिए जंगलों में दिन-दिन भर भटका करते थे, उन्हें सुबह से शाम तक पढ़ने के लिए बिठा पाना आसान काम नहीं था. लेकिन एक गुरु ने तय किया कि इन बच्चों को पढ़ा-लिखा कर ही दम लेंगे.
गिरिडीह, झारखंड से लौटकर संदीप कुमार की रिपोर्ट
     
 बहस : बात पते की 

ग्लेशियरों के नहीं पिघलने का झूठ
एक तरफ जब सारी दुनिया में ग्लेशियर के पिघलने पर चिंता जताई जा रही हो, तब भारत के पर्यावरण और वन मंत्री जयराम रमेश द्वारा जारी की गई रिपोर्ट हिमालयन ग्लेशियर्स इससे इंकार कर रही है. खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का विश्लेषण
 
 बहस : बात पते की 

वंदे मातरम् क्यों कहना होगा ?
स्वतंत्रता के पहले वंदे मातरम् समाज के एक हिस्से में लोकप्रिय था परन्तु मुस्लिम लीग को तब भी इस पर सख्त आपत्ति थी. एक बार फिर वंदे मातरम् पर बहस शुरु हो गयी है. सांप्रदायिकता विरोधी चिंतक राम पुनियानी का विश्लेषण
     
 मुद्दा : समाज 

शिक्षा को बाजारू मत बनाइए
भारत सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी निवेश के अलावा निजी-सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से पूंजी निवेश की योजना बना रही है. दरअसल वह शिक्षा को भी अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्र की तरह देख रही है. सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे का विश्लेषण.
 
 मुद्दा : बात पते की 

भगत सिंह के बारे में कुछ अनदेखे तथ्य
भगतसिंह की उम्र का कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति, क्या भारतीय राजनीति का धूमकेतु बन पाया? महात्मा गांधी भी नहीं, विवेकानन्द भी नहीं. लेकिन भगतसिंह का यही चेहरा सबसे अप्रचारित है. इस पर वे भी ध्यान नहीं देते जो सरस्वती के गोत्र के हैं. गांधीवादी चिंतक कनक तिवारी का विश्लेषण
 
     
 

खबरें और भी हैं

  चेन्नई: सन्यास लेंगे एम. करुणानिधि
  वॉशिंगटन: आतंकियों का साथ छोड़े पाकिस्तान: ओबामा
  रांची: मधु कोड़ा न्यायिक हिरासत में
  जैसलमेर: सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त, पायलट सुरक्षित
  फ्लोरिडा: गोल्फर टाइगर वुड्स हताहत
  इस्लामाबाद: लंदन के अखबारों में मुशर्रफ को नोटिस
  नई दिल्ली: पंजाब में फिर भिंडरावाला के पोस्टर
  रांची: शाहरुख के बाद हम डॉन: मधु कोड़ा
 
     
 

 
     
   
         
 हिंद स्वराज : सौ साल 

गांधी दर्शन का मौलिक सूत्र
हिन्द स्वराज गांधीजी के जीवन दर्शन का मौलिक सूत्र है और अन्तिम समय तक गांधीजी उसे ऐसा ही मानते रहे. वे देख रहे थे कि इन दिनों मानव सभ्यता एक आंतरिक क्रूरता की दिशा में बढ़ रही है और उसकी आंतरिक कोमलता की कुर्बानी देकर तथाकथित सभ्यता का ठाठ रचा जा रहा है. इसलिए गांधीजी ने यह बार-बार कहा कि-मानव परिवार को आंतरिक कोमलता का बलिदान नहीं करना चाहिए.
रामेश्वर मिश्र पंकज के विचार
 
 हिंद स्वराज : सौ साल 

दस्तक देता दस्तावेज
गांधीजी ने स्वयं ही कहा है कि उनके विचार उनके अपने हैं भी और नहीं भी. यह तो सही बात है कि विचार के क्षेत्र में विचार से ज्यादा वैचारिक दृष्टि का महत्व होता है. कहीं यह नहीं लगता कि गांधीजी ने केवल विरोध के लिए विरोध किया हो, न तर्क के लिए तर्क. आज हमें गांधीजी के संदर्भ में प्रचलित सफलता या असफलता जैसी कसौटी और परिभाषा को भी छोड़ना होगा.
नरेश मेहता के विचार
 
 हिंद स्वराज : सौ साल 

हिन्द स्वराजः कार्य योजना और नैतिक चेतना
यह एक विचित्र बात है कि संविधान सभा में गांधी जी का उल्लेख नहीं था. न ही उन्होंने किसी प्रकार का उसमें भाग लिया, जिस तरह की संवैधानिकता पर वर्तमान भारतीय व्यवस्था टिकी हुई है. प्रश्न उठता है कि ऐसी स्थिति में गांधीजी के विचारों का क्या संकलन हो सकता है? यह अपेक्षा कि एक कार्य योजना प्रस्तुत की जानी चाहिए, वास्तव में नितांत आधुनिक अवधारणा है.
गोविन्दचंद्र पांडे के विचार
         
 मिसाल बेमिसाल : झारखंड 

सत्याग्रह से सूचना अधिकार तक
गांधी को अपना आदर्श मानने और देवी-देवताओं के साथ तिरंगे की पूजा करने वाले झारखंड के हज़ारों टाना भगतों को जब आज़ादी के बाद भी अपना अधिकार नहीं मिला तो उन्होंने अपनी लड़ाई नये तरीके से शुरु की. अहिंसा और सत्याग्रह में विश्वास करने वाले टाना भगतों का नया हथियार बना आरटीआई यानी सूचना का अधिकार. बरसों से जारी लड़ाई की पहली सफलता इसी हथियार से मिली.
रांची से कुमार कृष्णन की रिपोर्ट
 
 मुद्दा : उड़ीसा 

ज़मीन गरम है
उड़ीसा के नारायणपटना इलाके में पिछले दिनों पुलिस फायरिंग में चासी मुलिया आदिवासी संघ के दो नेताओं के मारे जाने के बाद दहशत का माहौल है. संघ को माओवादी समर्थक बताने वाली पुलिस लगातार संघ से जुड़े लोगों की तलाश कर रही है तो संघ के आदिवासी नेताओं का आरोप है कि पुलिस हर असहमति और विरोध को 'माओवाद' प्रचारित कर उसका दमन करने की कोशिश कर रही है.
भुवनेश्वर से पुरुषोत्तम ठाकुर की रिपोर्ट
 
 मुद्दा : बात पते की 

गरीबों को लूटने का सरकारी तंत्र
अगर कोई गरीब महिला बकरी खरीदना चाहती है तो उसे लघु वित्त संस्थान से ऋण मिल जाएगा. लेकिन इसके बदले उसे 24 प्रतिशत की भारी ब्याज दर के साथ ऋण चुकाना पड़ता है. दूसरी ओर शहर में अगर आप एक कार खरीदना चाहते हैं तो आपको 8 प्रतिशत ब्याज दर पर आसानी से ऋण मिल जाएगा. टीवी या फ्रिज खरीदना तो और भी सस्ता है. गरीबों के लिए सरकार का यह दोहरा मापदंड क्यों ?
कृषि और खाद्य विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का विश्लेषण
             
 बहस : बात पते की 

क्या यह सब सलवा जुड़ूम है ?
रायपुर में प्रमोद वर्मा की स्मृति में हुए आयोजन पर प्रगतिशील-जनवादी लेखकों के खेमे में लगातार बहस चल रही है. प्रलेस से संबद्ध खगेंद्र ठाकुर की टिप्पणी
 
 मुद्दा : बात पते की 

नोबेल की नाकाम अदा
नोबेल समिति को चाहिए कि वह संन्यास ले ले और अपनी अकूत सम्पदा को ऐसे किसी अन्तर्राष्ट्रीय शांति संगठन को को दे दे, जो स्टारडम और रेटरिक से अभिभूत न होती हो. इतिहासकार हॉवर्ड ज़िन की टिप्पणी.
 
 मुद्दा : बात पते की 

अब हलफ़नामा दर्ज करना ज़रूरी
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के कार्यक्रम में प्रगतिशील लेखकों के शामिल होने को लेकर खड़े हुये विवाद पर छत्तीसगढ़ के डीजीपी व संस्थान के संयोजक विश्वरंजन की टिप्पणी.
 
 बहस : बात पते की 

प्रेम गली अति सांकरी
प्रेम भ्रामक शब्द है और वस्तुतः सेक्स पर टिका हुआ है. प्रेम में देखना और चाहना मात्र वासना है. प्रेम में आदर्श और अशरीरी जैसी स्थिति की जो लोग वकालत करते हैं, वह केवल लाचारी है. कथाकार कृष्ण बिहारी का विश्लेषण.
             
 

मानुष

हकु शाह. वार्तालेख-पीयूष दईया

नंदीग्राम डायरी

पुष्पराज

कला बाज़ार

अभिज्ञात

मैत्री

तेजी ग्रोवर

दूर देखती आंखें

विश्व कविता से एक चयन

 


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Palash Biswas
Pl Read:
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