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Wednesday, April 4, 2012

दिखाने को और, आम आदमी का हाड़ मांस चबाने के दांत और हैं!

दिखाने को और, आम आदमी का हाड़ मांस चबाने के दांत और हैं!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

दिखाने को और, आम आदमी का हाड़ मांस चबाने के दांत और हैं!पिछले बीस साल से ये दांत अपना काम बखूबी कर रहे हैं। पर राजनीतिक मुलम्मा का चाकलेटी स्वाद और हर मौसम आम के मजे में ​​निष्णात पचानब्वे फीसद के आईपीएल दिलो दिमाग में इस कदर हावी है कि टूटते जाने, घुटते रहने और मौत की अंधेरी गुफा में धकेल दिये जाने का अंदेशा नहीं है। महाशक्ति भारत की अंध उपासना में हम खामोशी से पैमाने बदलते हुए देख रहै हैं। गरीबी रेखा, मुद्रा स्फीति, नागरिकता,​ ​ पहचान और वित्तीय मुद्रा नीतियों में फेरबदल करके क्रयशक्ति संपन्न अल्पसंख्यकों के हित बहाल रखते हुए बाकी देश को बहिस्कृत अछूत में तब्दील करना हमें समावेशी विकास का उत्कर्ष नजर आता है। ऐसे में राजनीतिक वर्ग की अटूट एकता से नीति निर्धारम की हर प्रक्रिया नरसंहार संसकृति को ही मजबत बनाती है। आम बजट के बाद ऐसा ही हो रहा है। तरह तरह की नौटकियों के परदों की आड़ में हकीकत छुपाने के बावजूद आम​ ​ आदमी पर अब खुले बार होने लगे हैं। प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट जारी है। कानूनी जामा पहनाया जा रहा है धड़ल्ले से आम आदमी की बेदखली का। अंध राष्ट्रवाद के जरिये काला धन और भ्रष्टाचार को सफेद बनाया जा रहा है। जल जंगल जमीन आजिविका और नौकरी खोते हुए लोग इस धोखाधड़ी के खिलाफ मगर खड़े नहीं हो सकते। राष्ट्र का इस कदर सैन्यीकरण हो गया है और जनांदोलन इस तरह फरेब बन चुके हैं, विचारधाराएं एटीएम मशानों में तब्दी ल हो चुकी है कि आम आदमी मरते दम चूं नहीं कर सकता!अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री और वित्ता मंत्री कठोर फैसले लेने की वकालत ही नहीं कर रहे, बल्कि इन्हें लागू करने की भी पुरजोर तैयारी में जुटे हुए हैं।

ज्यादा खुश मत हो जाइये कि अभी कम से कम एक महीना पेट्रोल-डीजल और गैस के दामों में बढोतरी नहीं होगी। हालांकि यह इसलिए नहीं हो रहा है कि अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में गिरावट हुई हो बल्कि यह सियासी मजबूरी के चलते हो रहा है। पिछले एक महीने में खाद्य तेलों के दाम में 10 फीसदी तक की तेजी दर्ज की गई है। दूसरी तरफ, तेल कंपनियों ने सरकार को अल्टिमेटम दे दिया है कि उन्हें पेट्रोल के दाम बढ़ाने की इजाजत नहीं मिली, तो वे बिक्री ही बंद कर देंगी। दिल्ली और मुंबई में खुले दूध के दाम 6 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ गए हैं। अमूल ने भी पर्याप्त संकेत दे दिए हैं कि वह अगले कुछ दिनों में दूध की कीमत 2 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ा सकती है। सूत्र बता रहे हैं कि तेल कंपनियां कुछ भी कर लें सरकार पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि करने की इजाजत नहीं देने वाली है। क्योंकि एक तो दिल्ली में एमसीडी का चुनाव है दूसरे अभी तक बजट पास नहीं हो सका है। देश के साठ प्रतिशत से अधिक पेट्रोल पंप चलाने वाली सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल ने सोमवार को पंपों पर पेट्रोल की कमी का डर दिखाया। इंडियन ऑयल के प्रबंध निदेशक आरएस बुटोला ने कहा कि पेट्रोल के आयात पर भारी नुकसान हो रहा है। ऐसे में अगर घाटा जारी रहा, दाम नहीं बढ़ाए गए तो आयात में कमी करनी होगी।इसका सीधा असर यह होगा कि पंपों पर पेट्रोल कम उपलब्ध होगा। इससे आम आदमी को शिकायत हो सकती है। पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने कहा कि डीजल, केरोसीन, एलपीजी के दाम बढ़ाने पर कोई फैसला नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि पेट्रोल के दाम नियंत्रण मुक्त हैं तो कंपनियों को निर्णय करना है।

मुंबई में बेस्ट की बसों में रोजाना सफर करने वाले 45 लाख मुंबईकरों को अब अपनी जेब और ढीली करनी होगी। सोमवार को हुई बेस्ट समिति की बैठक में बस किराये में 1 रुपये से लेकर 5 रुपये तक की बढ़ोतरी के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई।प्रस्ताव के मुताबिक साधारण बेस्ट बस का न्यूनतम किराया 4 से बढ़कर 5 रुपये होगा। 3 किलोमीटर पर 6 रुपये का टिकट अब 7 रुपये का होगा। 5 किलोमीटर पर 7 रुपये का टिकट 10 रुपये का होगा। 7 किलोमीटर पर 8 रुपये का टिकट 12 रुपये का होगा। 10 किलोमीटर पर 10 रुपये का टिकट 15 रुपये का होगा।दिल्ली में चुनाव के मद्देनजर यह कार्रवाई भले ही रुकने वाली है पर बाकी राज्यों में परिवहन का खर्च तो बढ़ने ही वाला है। कारों की बिक्री ​​बढ़ी है। पेट्रोल सस्ता हो या मंहगा,कारवालों की सेहत पर कोई असर नहीं होने वाला है। रेल किराया में वृद्धि के खिलाफ ममता बनर्जी ने अपने रेलमंत्री को बदल डाला। पर रेल बजट से हफ्तेभर पहले मालबाड़े में वृद्धि वापस नहीं हुई। ऊपर से दीदी ने राज्य के बाहर से आने वाले माल के लिए एंट्री टैक्स लगा दी। मंहगाई बढ़ाने का ऐसा दुरुस्त बंदोबस्त होने के बाद भी राजनीतिक चीखें अश्लील लगती नहीं क्या?भ्रष्टाचार को नव उदारवादी सरकारों द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीतियों की देन करार देते हुए माकपा ने बुधवार को कहा कि सिर्फ वाम-लोकतांत्रिक विकल्प ही बड़े उद्योगों, सत्तारूढ़ राजनेताओं व नौकरशाहों के गठजोड़ से मुकाबला कर सकता है जो देश के दुर्लभ संसाधनों व सार्वजनिक कोषों को 'लूट' रहे हैं।माकपा की 20वीं कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए पार्टी के महासचिव प्रकाश करात ने यहां कहा कि संप्रग के कार्यकाल में प्राकृतिक संसाधनों की लूट अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंच गई।करात ने कहा कि लोक सेवकों के बीच भ्रष्टाचार पर काबू के लिए सिर्फ मजबूत व प्रभावशली लोकपाल ही पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष की दिशा नव उदारवादी सरकारों और भ्रष्ट गठजोड़ की ओर होनी चाहिए।कोई वामपंथी मसीहा लोगों से पूछे देशभर के मजदूर आंदोलन , छात्र आंदोलन, महिला आंदोलन, बुद्धिजीवी समर्थन और किसान संगठन पर वर्चस्व के बावजूद, तीन राज्यों में सरकारें होने के बावजूद, पिछली यूपीए सरकार में भारत अमेरिकी परमामु समझौता होनेतक साझेदार होने के ​​बावजूद वामपंथी क्या घास छील रहे थे या फिर सो रहे थे? आज अचानक आम आदमी के लिए उनकी नींद में खलल कैसे पड़ गयी?

इंडस्ट्री को पायदा हो , यह सरकार की बुनियादी प्राथमिकता है ौर इसे जायज ठहराने के लिए ऐसे किसी भी कदम के साथ आम ादमी को नत्ती कर दिया जाता है। मसलन मंहगाई बढ़ने की आशंका से डरी सरकार ने रेल मालभाड़े पर 1 अप्रैल से लगने वाले सर्विस टैक्स को 3 महीने के लिए टाल दिया है। सरकार के इस फैसले से एक तरफ इंडस्ट्री को राहत मिली है दूसरी ओर रेलवे के हाथ से बिजनेस खिसकने का डर भी कम हो गया है।मार्च के महीने में रेल से ढुलाई करने वालों पर दोहरी मार पड़ी। पहले तो बजट से 1 हफ्ते पहले ही भाड़ा 15-30 फीसदी बढ़ा दिया गया और उसके बाद आम बजट में 12 फीसदी का सर्विस टैक्स लगा दिया गया। लेकिन बाद में जब सरकार को महंगाई में तेज बढ़ोतरी का एहसास हुआ तो सर्विस टैक्स लगाने का फैसला 3 महीने के लिए टालना पड़ा। थोड़ी समय की इस राहत से ही इंडस्ट्री खुश है।दरअसल 1 अप्रैल 2010 से रेल माल ढुलाई पर 10 फीसदी सर्विस टैक्स लगाने का ऐलान किया गया था। लेकिन तब से सरकार इसे 4 बार टाल चुकी है। डर है कि रेलवे के हाथ से ढुलाई का बिजनेस फिसल ना जाए। आखिर रेलवे की 70 फीसदी कमाई मालभाड़े से ही होती है। देखना होगा कि तीन महीने बाद सरकार क्या फैसला लेती है।

मसलन शेयर बाजार डांवाडोल हालत से उबर जाये , इस गरज से राजीव गांधी इक्विटी स्कीम में निवेशकों के पास 1 साल के बाद अपने शेयर बेचने का विकल्प होगा। बजट में स्कीम के लिए 3 साल का लॉक-इन पीरियड रखे जाने का प्रस्ताव था।वित्त मंत्रालय, आरबीआई, सेबी और स्टॉक एक्सचेंज की बैठक में राजीव गांधी इक्विटी स्कीम के नियम तय किए गए हैं। नए नियम 1 महीने में नोटिफाई कर दिए जाएंगे।बजट में राजीव गांधी इक्विटी स्कीम का प्रस्ताव रखा गया है, जिसमें सालाना 10 लाख रुपये से कम आय वाले लोग निवेश कर पाएंगे। स्कीम में निवेशकों को 50000 रुपये तक के निवेश पर 50 फीसदी टैक्स छूट मिलेगी।

मसलन हर्षद मेहता से भी बड़े घोटाले की सुगबुगाहच के बीच वायदा बाजार की तस्वीर सुधारने के लिए फॉर्वर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) कई अहम कदम उठाने जा रहा है।एफएमसी के चेयरमैन, रमेश अभिषेक का कहना है कि फ्यूचर मार्केट की तस्वीर सुधारने के लिए सट्टेबाजी, हेजिंग में समानता और हाजिर बाजार के साथ तालमेल बिठाना बेहद जरुरी हो गया है।रमेश अभिषेक ने माना है कि वायदा बाजार में काफी सट्टेबाजी हो रही है और एफएमसी इस पर रोक लगाने की तैयारी कर रहा है।रमेश अभिषेक के मुताबिक जल्द डिलिवरी सेंटर के साथ कमोडिटी की लॉट साइज और दूसरे जरूरी बदलाव किए जाएंगे।इसके साथ ही, कारोबारियों में भरोसा बढ़ाने के लिए एफएमसी हाजिर कारोबारियों से सुझाव लेने वाला है।

मसलन आम बजट में प्रोमोटरों और बिल्डरों को चांदी की सौगात देने के बाद अब जानकारी के मुताबिक सरकार जल्द ही रियल्टी सौदों पर देखरेख रखने संबंधित कानून का प्रस्ताव संसद में  रख सकती है। माना जा रहा है कि बजट सत्र के दूसरे चरण में रियल्टी सौदों से जुड़े बिल को संसद में विचार के लिए रखा जा सकता है।सूत्रों का कहना है कि रियल एस्टेट रेगुलेशन और डेवलपमेंट बिल पर ड्राफ्ट नोट पहले ही संसद में भेज दिया गया है। रियल एस्टेट रेगुलेशन और डेवलपमेंट बिल के तहत डेवलपरों को खरीदारों के 70 फीसदी फंड को अलग से बैंक खाते में रखने का प्रस्ताव है। प्रोजेक्ट पूरा करने में अलग से खाते में रखी गई रकम का इस्तेमाल किया जा सकेगा।सूत्रों की मानें तो डेवलपरों के लिए रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (आरईआरए) के साथ रजिस्टर कराना अनिवार्य बनाया जा सकता है। वहीं ड्राफ्ट बिल के मुताबिक रजिस्ट्रेशन से पहले डेलवपरों को प्रोजेक्ट के प्री-लॉन्च की इजाजत नहीं होगी। साथ ही अथॉरिटी के पास प्रोजेक्ट को मंजूर या नामंजूर करने के लिए 15 दिनों की समयसीमा होगी। अगर प्रोजेक्ट में देरी हुई तो खरीदरों को ब्याज सहित पूरी रकम रिफंड दिए जाने के प्रस्ताव है।वहीं बिल्डरों को लिखित में एग्रीमेंट के साथ अग्रिम रकम के तौर पर 10 फीसदी से ज्यादा राशि वसूलने की इजाजत नहीं होगी। सभी राज्यों में रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी बनाई जाएगी। केंद्र सरकार की ओर से रियल एस्टेट अपीलैट ट्रिब्यूनल बनाया जाएगा। ट्रिब्यूनल में अथॉरिटी के आदेशों की सुनवाई की जाएगी।

अब लीजिये जिनकी कारपोरेट लाबिइंग ने रंग दिखाये हैं, जिन्हें निरंतर बेल आउट मिला हुआ है,जिनके कारोबारी हितों के मद्देनजर नीतिनिर्धारण होता है, शासन चलता है, आम जनता के मुकाबले जिन्हें दोगुणी सब्सिडी मिली हुई है, टैक्स फोरगन के जिनके आंकड़े अखबारों में नहीं छपते, कंपनी और कारपोरेट टैक्स में छूट ,गार में ढिलाई, विनिवेश और इंप्रस्ट्रक्चर से जिस तबके को सबसे ज्यादा फायदा हुआ,जिनके लिए शेटर बाजार में लिवाली बिकवाली का खेल है, खुल्ला बाजार है, दुनियाभर में निवेश के मौके हैं, वे लोग सरकारी नीतियों को ही जिम्मेवार बताकर मुर्दे को फिर मारने की तैयारी में हैं।दिग्गज एमएफसीजी कंपनियां एक बार फिर दाम बढ़ाने की तैयारी में हैं। इस बार में वे इनपुट कॉस्ट के बढ़ते दबाव की दलील दे रही हैं। करीब एक पखवाड़े पहले बजट में एक्साइज ड्यूटी बढ़ाए जाने के बाद एफएमसीजी कंपनियों ने अपने कुछ प्रोडक्ट्स के दाम 3 फीसदी तक बढ़ाए थे। आम उपभोक्ताओं के लिए यह दोहरा झटका है। अगले कुछ महीने में पैकेज्ड मिल्क, बिस्कुट, दही, खाद्य तेल, हेयर ऑयल, साबुन, शैंपू, बाम और डिटरजेंट के दाम 5-10 फीसदी बढ़ने वाले हैं। गौरतलब है कि पिछले दो महीने में कंस्यूमर प्रॉडक्ट कंपनियों ने मांग घटने के डर के बावजूद हर रोज दैनिक जरूरत के कम से कम एक सामान की कीमत बढ़ाई है। पिछले कई महीनों से बढ़ रही कमोडिटी की कीमतों के चलते फूड, पर्सनल केयर और हाउसहोल्ड प्रॉडक्ट्स श्रेणियों में 15 से ज्यादा लोकप्रिय ब्रांडों के 70 से ज्यादा स्टॉक कीपिंग यूनिट्स (एसकेयू) के दाम पिछले दो महीनों में बढ़ाए गए हैं। एसकेयू किसी प्रोडक्ट के खास मॉडल या पैकेजिंग के खास आकार को कहते हैं। कच्चे माल की बढ़ती कीमतों ने हिंदुस्तान यूनिलीवर, प्रॉक्टर एंड गैंबल और डाबर जैसी कंपनियों को मुनाफा बनाए रखने के लिए नियमित तौर पर कीमतों की समीक्षा के लिए मजबूर कर दिया है।हिंदुस्तान यूनिलीवर, जीएसके कंज्यूमर, गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, इमामी, डाबर, मैरिको, पारले, अमूल और केविनकेयर ने या तो प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ा दिए हैं या ऐसा करने की तैयारी में हैं। कंपनियों के दाम बढ़ाने की वजह यह है कि सैफ फ्लावर ऑयल, मिल्क, मेंथॉल और पेट्रोलियम डेरिवेटिव्स के दाम जनवरी के बाद से लगातार बढ़ रहे हैं, जबकि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान इसकी कीमतें फ्लैट बनी हुईं थीं। दूसरी ओर, रीटेलर विभिन्न उत्पादों को डिस्काउंट के ऑफर से जोड़कर लोगों को खींचने की कोशिश कर रहे हैं।

बढ़ती महंगाई में घरेलू बजट को तैयार करना पहले ही महिलाओं के लिए कुछ कम मुश्किल नहीं था और अब सेवा कर में इजाफे से उन्हें बड़ा झटका लगा है। बचत तो दूर जरूरी खर्च के लिए भी उन्हें कई बार सोचना पड़ रहा है। दिनोंदिन बढ़ती महंगाई से देश की 82 फीसदी महिलाओं का घरेलू बजट चरमरा चुका है। प्रमुख उद्योग संगठन एसोचैम के ताजा सर्वे में यह उजागर हुआ है।सर्वे में अधिकतर महिलाओं ने माना कि सेवा कर में इजाफे से उनके लिए घर में फोन कनेक्शन और घर से बाहर खाना महंगा हो जाएगा। रोजमर्रा की चीजें महंगी होने के कारण ज्यादातर मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले अपने खर्च कम करने के तरीके ढूंढ रहे हैं। 72 फीसदी ने कहा कि उत्पाद शुल्क में 2 फीसदी इजाफा होने से प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुएं, सौंदर्य प्रसाधन और रसोई की कई वस्तुएं महंगी हो जाएगी। वाशिंग मशीन, डिशवाशर, फ्रिज और एयर कंडीशनर जैसे घर के जरूरी सामानों को खरीदने के लिए भी अब उन्हें अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इसलिए उन्हें कई वस्तुओं के बजट में कटौती करनी पड़ रही है।उल्लेखनीय है कि 72 फीसदी लोगों ने बाहर खाने की आदतों में बदलाव करने की बात कही है। 65 फीसदी ने कपड़ा खरीदारी खर्च और 59 फीसदी ने घूमने पर खर्च कम कर दिया है। 38 फीसदी लोगों ने वाहन खर्च और 32 फीसदी ने रियल एस्टेट पर खर्च करने की योजना में कटौती की है। एसोचैम के महासचिव डी एस रावत का कहना है कि घरेलू बजट के अलावा छात्रों पर भी सेवा कर की मार कम नहीं पड़ेगी। सेवा कर में इजाफे से जीमैट, जीआरई जैसी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों को कोचिंग क्लास के लिए ज्यादा फीस चुकाना होगा। जबकि नृत्य और खेल अभ्यास भी पहले से महंगा हो जाएगा।

गौरतलब है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में पेट्रो मूल्य वृद्धि का बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। सबसे बड़ी अड़चन तो यूपीए सरकार की अपनी सहयोगी व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से ही पेश आ सकती है। दिसंबर 2011 में जब अंतिम बार पेट्रोल की कीमतें बढ़ाई गई थी तब बड़ी मुश्किल से ममता बनर्जी को मनाया गया था। तब ममता ने यह भी कहा था कि अगली बार आम जनता पर बोझ डाला गया तो वह सरकार से समर्थन वापस ले लेंगी। रेलवे किराया वृद्धि पर ममता के रवैये को देखने के बाद कांग्रेस अब यह जोखिम नहीं लेना चाहती। सरकार के पैर में आम बजट ने भी जंजीर डाल दी है। आम बजट 20012-13 से संबंधित वित्त विधेयक पर वोटिंग अभी होनी है। ऐसे में अगर पेट्रो मूल्य वृद्धि की गई तो आम बजट को पारित करवाना मुश्किल हो सकता है। वित्त विधेयक के पारित नहीं होने की सूरत में सरकार भी गिर सकती है। इस मजबूरी को पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी भी बखूबी समझ रहे हैं। यही वजह है कि वह भी अपने स्तर पर तेल कंपनियों को यह समझा रहे हैं कि जहां तीन महीने इंतजार किया, वहां कुछ हफ्ते और इंतजार कर लें।

इस बीच शेयर बाजार में तीन दिन से जारी तेजी बुधवार को थम गई। वैश्विक बाजारों में नरमी के रुख और अगले चार दिन बाजार बंद रहने के बीच निवेशकों की मुनाफा वसूली से बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 111 अंक टूटकर बंद हुआ। पिछले तीन सत्रों में 540 अंक की बढ़त हासिल करने वाला सेंसेक्स 111.40 अंक की गिरावट के साथ 17486.02 अंक पर बंद हुआ। इसी तरह, नेशनल स्टाक एक्सचेंज का निफ्टी भी 35.60 अंक टूटकर 5322.90 अंक पर बंद हुआ। दूसरी तरफ कोल इंडिया लि. (सीआईएल) का कानूनी दल बिजली उत्पादक कंपनियों के साथ ईंधन आपूर्ति करार (एफएसए) की समीक्षा कर रहा है। कंपनी ने कहा है कि वह जल्द ईंधन आपूर्ति करार पर दस्तखत करेगी। कल ही कोल इंडिया को सरकार की ओर से बिजली उत्पादक कंपनियों के साथ ईंधन आपूर्ति करार करने के लिए राष्ट्रपति की ओर से निर्देश जारी किया गया।  कोल इंडिया [सीआइएल] सरकारी कंपनी है। यह सरकार के हिसाब से ही चलेगी। बाजार या अल्पांश शेयरधारकों के आधार पर इसे नहीं चलाया जा सकता है। देश की दिग्गज कोयला उत्पादक कंपनी की कार्यशैली को लेकर उठ रहे सवालों पर कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने यह बात दो टूक कही है।जायसवाल ने निवेशकों की इस आलोचना को खारिज कर दिया कि सरकार अल्पांश शेयरधारकों की कीमत पर महारत्‍‌न कंपनी को तानाशाही के साथ चला रही है। ऐसी आलोचनाओं का जवाब देते हुए जायसवाल ने साफ कहा कि जिन्होंने भी कोल इंडिया के शेयर खरीदे हैं, वे बखूबी जानते हैं कि यह सरकारी कंपनी है। सरकार समाजवादी रीति-नीति के लिए प्रतिबद्ध है। अगर किसी ने यह समझकर इसके शेयर खरीद रखे हैं कि कंपनी उनके मनमुताबिक या बाजार के हिसाब से चलेगी, तो यह कतई संभव नहीं है। सरकार ने मंगलवार को राष्ट्रपति की ओर से निर्देश जारी कर सीआइएल को बिजली उत्पादक कंपनियों के साथ ईधन आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर करने को कहा है। साथ ही निर्देश दिए हैं कि वह कंपनियों को न्यूनतम 80 प्रतिशत सुनिश्चित डिलीवरी का आश्वासन दे।

पिछले छह महीने में साबुन, बिस्कुट और खाद्य तेल जैसी रोजाना इस्तेमाल में आने वाली चीजों के दाम पहले ही तीन से पांच बार बढ़ चुके हैं। हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल) ने हाल में डव साबुन और सर्फ एक्सेल क्विकवॉश के दाम बढ़ाए थे। कंपनी की योजनाओं की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि एचयूएल की जल्द ही दूसरे ब्रांड्स के दाम बढ़ाने की भी योजना है।

एचयूएल के प्रवक्ता ने बताया, 'आम बजट में एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स में की गई बढ़ोतरी के असर को कम करने के लिए हम दाम में कुछ बढ़ोतरी करेंगे।' डाबर अपने डाबर आंवला जैसे हेयर ऑयल ब्रांड्स के दाम करीब 5 फीसदी बढ़ा सकती है। डाबर के सीईओ सुनील दुग्गल ने बताया कि कमोडिटीज की कीमतों के बढ़ते दबाव के कारण कंपनी की दाम बढ़ाने की योजना है।

हालांकि, कंपनियां डिमांड में संभावित कमी आने या ग्राहकों के दूसरे ऑप्शन अपनाने को लेकर चिंतित हैं। ज्यादातर कंपनियों का कहना है कि इनपुट कॉस्ट प्रेशर काफी ज्यादा है। प्रति पैकेट के दाम 5-10 रुपए बढ़ाने की योजना बना रही केविनकेयर के सीएमडी सी के रंगनाथन का कहना है, 'कमोडिटीज की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के बोझ को उठा पाना हमारे लिए संभव नहीं है।'

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