Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Saturday, June 9, 2012

इस खबर का संबंध क्रिकेट के खिलाड़ी से है, क्रिकेट से नहीं

http://mohallalive.com/2012/06/08/after-6-decades-family-and-kapil-dev-collect-pooran-singh-s-ashes/

रिपोर्ताज

इस खबर का संबंध क्रिकेट के खिलाड़ी से है, क्रिकेट से नहीं

8 JUNE 2012 3 COMMENTS

मेलबर्न में पूरन सिंह की अस्थियां लेते हुए उनका भतीजा। पास में खड़े हैं कपिल देव।

♦ मेलबर्न से अशोक बंसल

ज जिस तरह से क्रिकेट के सितारे सचिन तेंदुलकर को सरकार हर तरह उपकृत करना चाहती है, कर रही है, ऐसा पहले के क्रिकेट सितारों के साथ नहीं होता था। कपिल देवे ऐसे ही सितारे रहे हैं, जिन्‍हें हमारी सरकारों ने लगभग भुला दिया है। कपिल भावुक हैं। सन 2011 में जब हम विश्व कप जीते, तो टीवी पर अपनी टिप्पणी दर्ज करते हुए कपिल इतने भावुक हुए कि रो पड़े। वे भावुक ही नहीं मानवीय भी हैं।

मेलबर्न में उपनगर पॉइंट कुक की एक लाइब्रेरी में अखबारों के पन्ने पलटते हुए मुझे कपिल देव की असाधारण मानवीयता के दर्शन अचानक हुए। तब मेरे मुंह से बरबस निकल पड़ा कि कपिल देव का कद किसी पद या पुरस्कार का मोहताज नहीं।

दरअसल, भारत के लोगों की आस्ट्रेलिया में पढ़ने और यहां बसने की ललक चार दशक पहले पैदा हुई थी। लेकिन आस्ट्रेलिया के इतिहासकार बताते हैं कि भारत के लोग 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से आस्ट्रेलिया के साथ व्‍यापार के संबंध जोड़ चुके थे और इस व्यापार को ईस्ट इंडिया कंपनी ने मान्यता दे रखी थी। भारतियों का यहां आने और बसने का सिलसिला तब से बना हुआ है।

बात सौ वर्ष पुरानी है। पंजाब के जालंधर शहर के गांव उप्पल्भूपा का गरीब किसान पूरन सिंह विक्टोरिया आया और यहां फेरी वाला बन घर-गिरस्थी के सामान बेचने लगा। धीरे धीरे पूरन संपन्न हो गया। वह खेती करने लगा और एक अच्छे फार्म का मालिक हो गया। आस्ट्रेलिया के एलिस नाम के एक परिवार से उसकी दोस्ती हो गयी। पूरन आस्ट्रेलिया में बस तो गया लेकिन अपने रंग-ढंग और ठेठ पंजाबी संस्कृति को भूल नहीं पाया। एलिस का परिवार दाह संस्कार करने वाली एक कंपनी चलाता था। पूरन ने इस कंपनी को कह रखा था कि उसके मरने पर उसकी अस्थियां भारत की पवित्र गंगा में विसर्जित की जाए। एक दिन पूरन बीमार पड़ा और 8 जून 1947 को उसने विक्टोरिया के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली। पूरन ने अपने पीछे जो रकम छोड़ी, उसका एक हिस्सा एलिस के परिवार, दूसरा अस्पताल को अनुदान और तीसरा अपने भारत में बसे भतीजे को छोड़ा।

एलिस परिवार ने पूरन सिंह की अस्थियां एक बर्तन में सुरक्षित रख दीं। पूरन सिंह ने शादी नहीं की थी। भतीजा पंजाब के गाव में था। उन्हें एक टेलीग्राम से खबर भेज दी गयी। लेकिन भतीजा गरीबी के कारण आस्ट्रेलिया नहीं जा सका। एलिस परिवार का पूरन सिंह की अस्थियों से पीढ़ी दर पीढ़ी लगाव बना रहा। आज इस परिवार की 70 साल की एक महिला विरोनिका जिंदा है। विरोनिका पर आस्ट्रेलियन इतिहासकार लेन केन्ना की नजर पड़ी। विरोनिका का कहना था कि "मेरे पिता जैक ने 1986 में मरते वक्त कहा था कि मैं पूरन सिंह की अस्थियां नष्ट न होने दूं। मैंने प्रण कर लिया कि मैं अपने जीते जी पूरन सिंह की अस्थियों को एक स्थान पर दफना कर यादगार चिन्ह बनवा दूंगी या अपने खर्चे पर भारत जाकर पवित्र गंगा में विसर्जित कर दूंगी।" विरोनिका ने विक्टोरिया के एक कब्रिस्तान में पूरन सिंह की अस्थियों को सुरक्षित रख दिया और उस स्थान पर पूरन सिंह के नाम की तख्ती भी लगा दी।

इतिहासकार लेन केन्ना के प्रयास से जून 2010 में मेलबर्न टेलीविजन एसबीएस ने पूरन सिंह के जीवन का रोचक खुलासा किया। बस इस फिल्म जैसी कहानी में इस वक्त कपिल देव का प्रवेश हुआ। मेलबर्न टीवी की खबर को इंग्लेंड के टीवी ने भी उठाया। कपिल ने इस स्टोरी को सुना। उन्होंने जालंधर के गांव उप्पल्भूपा में पूरन सिंह के भतीजे हरमल उप्पल से संपर्क किया और अपने खर्चे पर कपिल हरमल के साथ 25 जुलाई 2010 को मेलबर्न आये। दोनों ने 63 साल से इंतजार कर रहीं पूरन सिंह की अस्थियों को संभाला और भारत लाकर पवित्र गंगा में विसर्जित किया। मेलबर्न टीवी को दिये एक इंटरव्यू में कपिल देव ने कहा, "मैं खुश हूं। मुझे गर्व है कि मैं किसी व्यक्ति की अंतिम इच्छा पूरी करने में काम आ रहा हूं।"

भारत के महान क्रिकेटर कपिल देव की मर्मस्पर्शी संवेदनाओं को आस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध दैनिक "दी एज" ने प्रमुखता से छापते हुए टिप्पणी की कि "अखबारों को अच्छी स्टोरी कभी-कभी मिलती है, हृदय को छूनेवाली और मर्मस्पर्शी। इस कहानी का ताल्लुक क्रिकेट के एक महान खिलाड़ी से तो है, पर क्रिकेट की दुनिया से नहीं।"

महान खिलाड़ी कपिल की महानता में चार चांद उस वक्त लग जाते हैं, जब हमें मालूम होता है कि कपिल ने अपनी महानता को न तो कभी भुनाया और न ही अखबार और टीवी पर इसका ढिंढोरा पीटा।

(अशोक बंसल। पेशे से शिक्षक। पत्रकारिता में रुचि। दो पुस्तकें प्रकाशित। ऑस्ट्रेलिया की ऐतिहासिक घटनाओं पर तीसरी पुस्तक सोने के देश में जल्‍दी प्रकाशित होगी। आजकल ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में हैं। उनसे ashok7211@yahoo.co.in पर संपर्क कर सकते हैं।)


No comments: