कोका कोला की लूट का नया क्षेत्र उत्तराखंड
पानी और प्यास के इस धंधे में जल जैसे बुनियादी संसाधन पर कब्जा जमाकर लूट का बाजार तैयार किया जाता है. इस समय पारंपरिक किस्म के कारोबार जबर्दस्त मंदी के शिकार हैं, इसलिए हथियार उद्योग, सेक्स इंडस्ट्री, नशा, ऊर्जा और भोजन का कारोबार चल रहा है, जिसमें सबसे लाभकारी उद्योग प्यास का है...
कमल भट्ट
टेलीविजन पर प्रसिद्ध सॉफ्ट डिंक्स बनाने वाली कंपनी कोका कोला का विज्ञापन एक नई पंचलाईन के साथ आ रहा है. इस पंचलाईन के बोल हैं 'हां हां मैं क्रेजी हूं ....' विज्ञापन खत्म होते होते नैपथ्य से सूत्रधार की आवाज आती है कि 'बेवजह खुशियां बांटिए, कोको कोला पिलाईए'. इस विज्ञापन को देखकर टेलीविजन गुरू को ही अपना सच्चा मार्गदर्शक मानने वाली नई पीढ़ी ही नहीं बल्कि विचारवान, तर्क करने वाली पुरानी पीढ़ी के,शहरी ही नहीं ग्रामीण अंचल में निवास रने वाला मध्यमवर्ग खुद को धन्य तथा अपने जीवन को सार्थक होता हुआ महसूस करता है जब वह कोका कोला पीता या पिलाता है.

बेवजह ही खुशियां बांटने को 'क्रेजी' हुए जा रही यह कोका कोला कम्पनी अब उत्तराखण्ड में अपना प्लांट लगाने जा रही है. बीती 17 अप्रैल को उत्तराखण्ड सरकार की ओर से मुख्यमंत्री महोदय ने हिन्दुस्तान कोका कोला बेवरेज प्राईवेट लिमिटेड (एचसीसीबीपीएल) के साथ एक मेमोरेण्डम आफ अन्डरस्टैंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं. सरकारी नुमाइंदों ने इसे अपनी नायाब उपलब्धि घोषित करते हुए बताया है कि इस प्लांट के लगने से राज्य में 600 करोड़ का पूंजी निवेश आ रहा है और कम से कम 1000 नौकरियां सृजित होने वाली हैं, लिहाजा यह जश्न मनाने का समय है.
लेकिन जानकार बता रहे हैं कि कोका कोला खुशियां नहीं जहर पिला रहा है और वह लोगों को प्रफुल्लित करने के लिए नहीं, बल्कि अकूत मुनाफा पीटने के लिए 'क्रेजी' हुआ जा रहा है. कोका कोला का अरबों का कारोबार लगभग मुफ्त में मिल रहे कच्चेमाल की बदौलत बनता है. सरकार जनता के लिए जहर परोसने वालों की कतार में शामिल होकर क्रेजी हो रही है, लेकिन राज्य की जनता इस पागलपन पर भौचक्की है.
जनता पूछ रही है कि राज्य सरकार को शीशम, खैर और अन्य कई दुर्लभ प्रजाति के लगभग 50 हजार पेड़ों के बलि चढ़ाने जाने का अफसोस क्यों नहीं है? अमेरिका, यूरोप के समेत कई देशों में प्रतिबंधित की गयी और भारत में विवादास्पद रही इस कंपनी पर उत्तराखंड सरकार को ऐसा क्या दिख रहा है, जो खेतों की कीमत पर इस बदनाम कंपनी के लिए लाल कारपेट बिछा रही है. आखिर राज्य की कांग्रेस सरकार केरल के प्लाचीमाड़ा, राजस्थान के कालाडेरा, बनारस के मेहंदीगंज, बलिया और हापुड़ के अनुभवों को क्यों नहीं समझना चाहती जहां इंसानी जिंदगियों को इस कंपनी ने जुहन्नुम बना दिया है.
वरिष्ठ भूगर्भशास्त्री डॉ आर श्रीधर कहते हैं, ' पानी पर आधारित ऐसे उद्योग पानी को साफ करने के लिए रिवर्स आस्मोसिस यानि आरओ तकनीक की मदद लेते हैं. इस तकनीक आधा पानी वेस्ट के तौर पर बाहर आता है. इस वेस्ट में तमाम किस्म के रसायनों का घातक स्तर पर मिश्रण होता है. इस वेस्ट को अगर जमीन में या नदी में छोड़ा जाएगा तो यह और भी घातक परिणाम पैदा करेगा. इन मामलों में कम्पनी की हिस्ट्री अच्छी नहीं है.
दुनिया की सबसे बड़ी 100 विशालकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कोका कोला शामिल है. इसका कारोबार दुनिया के 180 से भी ज्यादा देशों में फैला हुआ है. इस कंपनी की परिसम्पत्तियां 8617.4 करोड़ डालर ( 2012 की बैलेंस सीट के अनुसार ) से भी ज्यादा है. 1997 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कोका कोला प्रतिवर्ष एक अरब बोतलें बेचता है. उसका मानना है कि - ''इस साल भले ही 1 अरब बोतलें बेची हों, दुनिया अभी भी अन्य पेयों की 47 अरब बोतलों का उपयोग कर रही है. हम तो अभी शुरूआत भर कर रहे हैं.''
इस कथन से समझा जा सकता है कि इन कम्पनियों की मुनाफे की हवस कितनी खतरनाक है. शीतलपेय और बोतल बंद पानी का कारोबार करने वाली इन कम्पनियों के उत्पाद अपनी लागत पर पच्चीस गुना यानि 2500 प्रतिशत के मुनाफे पर बेचे जाते हैं. यह मल्टीनेशनल कम्पनी पीने के पानी, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स (नान एल्कोहालिक ), फ्रूट जूस, जूस, हेल्थ टी, काफी, रेडी टू ड्रिंक काफी, इनहेंच्ड वाटर इत्यादि सेक्सनस् में कोका कोला, कोका कोला लाईट, मिनट मेड, स्प्राईट, फेंटा, थम्स अप, डाईट कोक, कोकाकोला जीरो, विटामिन वाटर, आनेस्ट टी, फ्यूज टी, एनओएस इनर्जी डिंक, स्मार्ट वाटर, मेलो यलो, फ्रेस्का, दासानी और किनले जैसे 500 उत्पाद बनाती है.
पेय कम्पनियों को इसलिए इतना मुनाफा होता है, क्योंकि इनका कच्चा माल यानि पानी लगभग मुफ्त का होता है. पानी और प्यास के इस धंधे में जल जैसे बुनियादी संसाधन पर कब्जा जमा कर लूट का बाजार तैयार किया जाता है. राजनीति और अर्थ मामलों के जानकारों के मुताबिक इस समय दुनिया भर में पारंपरिक किस्म के कारोबार जबर्दस्त मंदी के शिकार हैं. इसलिए इस समय हथियार उद्योग, सेक्स इंडस्ट्री, नशा, ऊर्जा (खनिज तेल व प्राकृतिक गैस इत्यादि) और भोजन का कारोबार चल रहा है. इसमें सबसे सुरक्षित और लाभकारी उद्योग है प्यास का.
भारत में इस समय बोतलबंद पानी के कारोबार का आकार 8000 करोड़ का है और 2015 तक इसके 15 000 करोड़ तक हो जाने का अनुमान है. इस समय कोका कोला इस बाजार के एक चौथाई पर यानि 25 प्रतिशत पर कब्जा कर चुका है. इस धंधे की वृद्धि दर 40-45 प्रतिशत सालाना आंकी गई है. भविष्य की इसी मांग को देखते हुए नए व सुरक्षित निवेश के क्षेत्रों की तलाश के पीछे की असली वजह यह टारगेटेड मुनाफा है.
कंज्यूमर एण्ड रिसर्च सेंटर, अहमदाबाद के अनुसार इन कोल्ड ड्रिक्स में सीसा (लेड) पाया जाता है जो अनुमानित मात्रा से लगभग दो गुना अधिक होता है. इससे दिल, जिगर, गुर्दे की बीमारियों का खतरा होता है. इन उत्पादों में पौष्टिकता के लिहाज से कोई गुण नहीं होता. अफसोस कि इतने जहरीले पदार्थों वाले इन पेयों को विज्ञापनबाजी से इतना लोकप्रिय बनाया जाता है.
अब तक कोका कोला पर बैल्जियम, फ्रांस, लक्समबर्ग, पोलेण्ड, इटली, फिलीपींस में प्रतिबंध लगाया जा चुका है. इंग्लैंड में इस कम्पनी की पानी की बोतलों में कैंसर पैदा करने वाले रसायनों (जैसे - ब्रोमेट, क्रोमियम और लेड) की बड़ी मात्रा की मौजूगदी का पता चला. अमेरिकी शोध ऐजेंसी के मुताबिक पानी में ब्रोमेट की अधिक मात्रा से मनुष्यों में किडनी, थायराइड व अन्य अंगों में कैंसर होने की आशंका होती है. बमुश्किल एक रुपए की लागत वाले इन पेयों को 25 गुना महंगा बेच कर लोगों को बीमार बनाया जा रहा है. सेंटर फार साइंस एण्ड एनवायरमेंट की निदेशक सुनिता नारायण के अनुसार ये रसायन ओबेसिटी यानि मोटोपे, मधुमेह, त्वचा रोग, दिल की बीमारियों का जोखिम, सदमा, मूच्र्छा, मितली आना, आंखों संबंधी शिकायतें, रक्तचाप, कैंसर तथा क्रोमोसोम परिवर्तन के कारण बन सकते हैं.
महाराष्ट्र के थाणे में कोका-कोला कारखाने के खिलाफ आंदोलन, शिवगंगा - तमिनाडु में कोकाकोला प्लांट को जन विरोध के चलते भागना पड़ा. केरल के पलक्कड़ जिले के प्लाचीमाड़ा गांव में कोकाकोला के बाटलिंग प्लांट लगने के तीन वर्ष के भीतर ही वहां का भूमिगत जल स्तर घटने से कुंए सूख गए और जल भी पीने योग्य नहीं रहा. छः महीने बाद ही प्लांट के दो किमी. के दायरे में किसानों व ग्रामीणों को भूमिगत जल की गुणवत्ता और मात्रा में परिवर्तन दिख गया था. कुएं का पानी दूधिया होने लगा था.
उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 20 किमी दूर मेंहदीगज में कोका कोला के बाटलिंग प्लांट के खिलाफ आक्रोश फूटा था. जयपुर के पास डेरागांव में कोका कोला प्लांट लगने के तीन साल में पानी 40 फुट से भी नीचे चला गया. बलिया (उत्तर प्रदेश), मध्य प्रदेश, पंजाब और गुजरात में भी कोका कोला का विरोध हुआ. राजस्थान हाईकोर्ट ने 8 अक्टूबर 2004 को शीतल पेयों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया.
पीएसआई के वैज्ञानिकों ने पूरे देश में कोका कोला प्लांट के आसपास के क्षेत्रों से भूजल के 21 और मिट्टी के 13 नमूनों की जांच की. अधिकांश मामलों में केंसर की वजह बनने वाले कैडमियम, कैडमियम और लेड की मात्रा आदर्श मात्रा से 40 से 80 गुना तक ज्यादा पाया गया.
छरबा के स्थानीय आबादी को अपने लगाए हुए जंगल के उजाड़ दिए जाने, जमीन के पानी को चूस लिए जाने और जमीन के भीतर के पानी को जहरीला बना दिए जाने का डर सता रहा है. वह कह रहे हैं कि सिडकुल से अब तक कितना रोजगार मिला है यह उनके सामने दिख रहा है. सरकार द्वारा की जा रही रोजगार की बात उन्हें हजम नहीं हो रही. 60 के दशक में छरबा गांव के निवासियों के अथक प्रयत्न से ग्राम पंचायत की इस जमीन पर यह मिश्रित वन लगाया गया था. उस समय वन महकमे ने इसे प्रेरणादायक कार्य बताते हुए ग्राम पंचायत को इस सराहनीय कार्य के लिए अपनी ओर से पुरस्कृत किया था और इस ग्राम पंचायत का नाम राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भेजा था. इसी 68 एकड़ भू-भाग में से 60 एकड़ कोका कोला को देने का निर्णय सरकार ने लिया है.
इस संबंध में कंपनी लगाये जाने के खिलाफ संघर्षरत ग्रामीण प्रमोद किमोटी कहते हैं, 'यह प्लांट कम से कम 2 लाख लीटर पानी प्रतिदिन खींचेगा. इसमें से आधा उत्पाद बनकर बिकेगा और आधा जहरीला वेस्ट बनकर बाहर आएगा. अगर यह पानी जमीन से निकाला जाता है तो निसंदेह इससे भूगर्भीय जल स्तर पर प्रभाव पडे़गा. इतनी भारी मात्रा में जमीन से पानी खींचे जाने का प्रदूशण के अलावा दूसरा नुकसान लगभग 52 हजार एकड़ खेती के रकबे वाले इस गांव तथा आसपास के दूसरे इलाकों की खेती को होगा.'
कमल भट्ट उत्तराखंड के युवा पत्रकार हैं.

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