लोग चिटफंड में निवेश न करें लेकिन इस घटना के बाद डाकघरों में भी तो उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
राज्य में चिटफंड फर्जीवाड़े के मद्देनजर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी पानीहाटी की सभा में आम जनता को सलाह दी कि वे ऐसी कंपनिों में निवेश न करें। जबकि अब यह खुलासा हो ही गया है कि डाकघरों और जीवन बीमा निगम के एजंटों को भी इन कंपनियों ने अपनी एजंट श्रृंखला में शामिल कर रखा है। अल्प बचत योजनाओं और बैंकों के बचत खाता में ब्याजदरों से निवेशकों के अधूरे सपने पूरे नहीं हो सकते और वे हर जोखिम उठाते हुए इन सपनों के पीछे अंधी दौड़ में शामिल हो रहे हैं और होते रहेंगे। बीमा के बाजार से जुड़ जाने से अब तो प्रीमियम भी वापस नहीं हो रहा है। इस राष्ट्रव्यापी संकट में अल्प बचत के लिए डाकघरों का ही भरोसा था। अब वह भी टूटने लगा है। कोलकाता के गौरवशाली परंपरा वाले मुख्य डाकघर से २००८ और २०११ के बीच फर्जी चेक के जरिये डेढ़ करोड़ रुपये का भुगतान उठाकर निवेशकों को अल्प बचत से तोड़ने का काम होता रहा और जीपीओ ने इस मामले को दबाने की भरसक कोशिश की।
कोलकाता की विरासत को समेटे जीपीओ की चहारदीवारी में ऐसाहो गुजरा तो राज्य के बाकी डाकघरों में क्या कुछ नहीं होता होगा, सोचकर ही दिमाग खराब हो जाता है। अब लोग चिटफंड कंपनियों में निवेश न करें और शेयर बाजार काखेल भी उनके बस में न हो तो वे कहां निवेश करें?
सबसे गंभीर बात तो यह है कि मुख्य डाकघर के अधिकारियों ने न तो इस सिलसिले में पुलिस से कोई शिकायत की औरन ही अपनी ओर से कोई कार्रवाई की। हर शाक पर जब उल्लू बैठा हो तो अंजामे गुलिस्तान क्या होगा?
दरअसल जीपीओ के खातों के आडिट के दौरान यह खुलासा हुआ कि एक नहीं दो नहीं, बल्कि अठारह फर्जी चेकों के माध्यम से निवेशकों को डेढ़करोड़ रुपये का चूना लगा है।मुख्य डाकघर के अधिकारियों के मुताबिक इस मामले में विभागीय जंच चल रही है और इसी के तहत एक शार्टिंग पोस्टमैन तपन मित्र को निलंबित कर दिया गया है।
अधिकारियों ने यह जरुर माना कि इस फर्जीवाड़े के पीछे कोई गिरोह है। जब मुख्य डाकघर में गिरोह ऐसी कला का प्रदर्शन कर सकता है तो बाकी डाकघरों में गिरोहबंदी और कर्मचारियों की मिलाभगत से क्या क्या गुल नहीं खिल सकते हैं।
यह वारदात वामजमाने में हुआ और जीपीओ केंद्र सरकार के अधीन नहीं है। खासकर इस मामले में कोई एफआईआर नहीं है, तो सीधे तौर पर राज्य सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। यह डाक व्यवस्था का मामला है।
केंद्रीय एंजंसियों की सक्रियता के बावजूद अपने एजंटों और कर्मचारियों के चिटफंड गोरखधंधे में शामिल होने के खुलासे के बाद जीवन बीमा निगम और डाक विभाग की ओर से अभी कार्रवाई होना बाकी है।
पर अल्पबचत से जुड़़ी है राज्य सरकार के ऋणलेने की पात्रता, तो जिम्मेवारी बनती हो या नहीं, इस विवाद से परे राज्य की बदहाल आर्थिक हालत को देखते हुए यह अत्यंत गंभीर घटना है।
लोग चिटफंड में निवेश न करें लेकिन इस घटना के बाद डाकघरों में भी तो उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है!

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