Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Saturday, September 15, 2012

जनता के खिलाफ इस युद्ध में मनमोहन के मुकाबले कोई नहीं! बाकी विरोध रस्म अदायगी है, ​​सौदेबाजी है या फिर चुनावी कवायद।

जनता के खिलाफ इस युद्ध में मनमोहन के मुकाबले कोई नहीं! बाकी विरोध रस्म अदायगी है, ​​सौदेबाजी है या फिर चुनावी कवायद।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

डा. मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री हैं, राजनेता नहीं। वे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं, बाहैसियत प्रधानमंत्री लेकिन उन्हें जनता के प्रति जिम्मेवार माना जाता है। पिछली दफा भारत अमेरिकी परमाणु संधि पर वे पीछ नहीं हटे। न सरकार गिरी और न संधिका कार्यान्वन रुका। खुले बाजार का कारपोरेट एजंडा पिछले बीस साल से बेरोकटोक चल रहा है। पहले चरण के सुधारों को लागू करने में सत्ता वर्ग को बदलती सरकारों  के बावजूद कोई दिक्कत नहीं हुई। मनमोहन परमाणु संधि के बाद न केवल सरकार बचाने में सफल हुए, बल्कि चुनाव जीतकर लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए  चुन लिए गये। मुख्य विपक्ष संघ परिवार से संबद्ध है, जो आर्थिक सुधारों के मामले में अपनी प्रतिबद्धता जताने का कोई मौका नहीं छोड़ता। अमेरिका इजरायली सैन्य गठबंधन में भारत को साझेदार बनाने में संघी राजनीति का सबसे बड़ा योगदान है। भाजपा का परंपरागत जनाधार व्यापारी तबके में  है और खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी के वर्चस्व से भाजपा के इसी वोट बैंक, जो हिंदुत्व राष्ट्रवाद का धारक वाहक है, को खोने के डर से भाजपा रस्मी विरोध कर रहा है। बाकी आर्थिक सुधारों को लागू करने में उसे कोई एतराज नहीं है। बल्कि कोयला घोटाले के बहाने संसद के मानसून सत्र की हत्या करके संघ परिवार ने मनमोहन को दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के लिए मजबूत जमीन दे दी।वामपंथी तो पहले ही मजदूर, किसान छात्र आंदोलनों की हत्या करके खुले बाजार के विरोध की हर संभावना को खारिज कर चुके हैं बंगाल और केरल में सत्ता बचाने के लिए, जो अंततः वे बचा नहीं ​​सके। ममता और मुलायम या फिर मायावती के किस्से जगजाहिर है। खुलासे की क्या जरुरतय़ सुधारों को लेकर बवंडर का कोई नतीजा होने वाला नहीं है। कारपोरेट चंदा अब टैक्सफ्री है। कारपोरेट के पैसे से राजनीति करने वाले, कारपोरेट हितों के खिलाफ कब तक खड़े रहेंगे दिवालिया राजनीति के भरोसे जनसंहार की एस बाजारू संस्कृति पर तो रोक लगने से रही। मनमोहन की सरकार गिर भी गयी, जो असंभव है, तो भी पिछले चुनावों की तरह इस बार भी जनादेश को हक में करने वाले तमाम तत्व मसलन हिंदुत्ववादी ताकतें, जिनके तार अमेरिका और इजराइल से जुड़े हैं, मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा अब ७४ पर्तिशत कर दी गयी है,और अंततः बाजार मनमोहन के साथ हैं। जनता के खिलाफ इस युद्ध में मनमोहन के मुकाबले कोई नहीं है। बाकी विरोध रस्म अदायगी है, ​​सौदेबाजी है या फिर चुनावी कवायद। मारे जाने कोनियतिबद्ध भारतीय जनता का तरणहार कोई नहीं है।

मालूम हो कि विनिवेश और निजीकरण का सिलसिला भाजपाई सरकार ने ही तेज किया था।बाकायदा विनिवेश मंत्रालय के जरिये। मनमोहन सिंह ने विनिवेश तेज करने के जो कदम उठाये, निजीकरण का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसका संघ परिवार ने विरोध कब किया? इसी तरह मीडिया में विदेशी पूंजी के वर्चस्व का विरोध कौन करता है? खुदरा कारोबार के अलावा दूसरे क्षेत्रों में विदेशी पूंजी की आमदनी से आपत्ति किसे है ?परमाणु ऊर्जा के किलाफ आंदोलन में सिर्फ जनसंगठन ही क्यों है, कोई राजनीतिक दल नही?शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, परिवहन, संचार, सिंचाई जैसी बुनियादी सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ कौन माई का लाल सड़पर खड़ा है?खुला बाजार है तो आर्थिक सुधार भी होंगे।यह अनिवार्य है। अब बाजार के व्याकरण से समाज और देश चल रहे हैं, भाषा और संस्कृति​ ​ बिगड़ रही है, नीली क्रांति की आबोहवा है। इन बुनियादी मसलों की रोकथाम के बिना सत्ता परिवर्तन की कवायद से जनता का कोई भला नहीं होने वाला।केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में 51 प्रतिशत, विमानन क्षेत्र में 49 प्रतिशत और प्रसारण में 74 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को मंजूरी दी। इसके एक दिन पहले सरकार ने डीजल कीमतों में प्रति लीटर पांच रुपए का इजाफा करने तथा साथ ही सब्सिडी वाले रसोई गैस की आपूर्ति साल में केवल छह सिलेंडरों तक सीमित करने की घोषणा की थी।

प्रमुख अमेरिकी अखबारों ने भारत द्वारा बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार और विमानन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को अनुमति देने के फैसले को पिछले दो दशक का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया है। हालांकि आशंका जताई कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के लिए ये प्रस्ताव बड़े राजनैतिक जोखिम भरे हैं।


मनमोहन के तेवर से साप जाहिर है कि उनके दांव कहां हैं, और क्यों हैं और जनता और राजनीति की वे कितनी परवाह करते हैं! देश में आर्थिक सुस्ती के माहौल और नीतिगत ठहराव पर आलोचनाओं का सामना कर रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक में कहा कि अब बड़े सुधारों का वक्त आ गया है। उन्होंने अपना कड़ा रुख जाहिर करते हुए कहा कि अगर हमें जाना है तो हम लड़ते हुए जाएंगे।प्रधानमंत्री का यह साफ इशारा मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई की अनुमति जैसे फैसले पर विरोध कर रहे सहयोगी दलों के लिए था। इससे उन्होंने तृणमूल समेत अन्य दलों को यह संकेत भी दे दिया कि वह अब सुधारों पर उनके विरोध की परवाह किए बगैर कदम बढ़ाते रहेंगे।प्रधानमंत्री ने सरकार के फैसलों को जायज ठहराते हुए कहा कि इससे विकास की रफ्तार तेज होगी और मुश्किल वक्त में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। फैसलों को राष्ट्रहित में बताते हुए उन्होंने सभी पक्षों से सहयोग की अपील भी की।

बाजार किस हद तक मनमोहन के साथ है,शेयरों की उछाल से साफ जाहिर है। यही मनमोहन की जान अटकी हुई है। बाजार की ताकत से ही बलवान है मनमोहन। गौरतलब है कि फिलवक्त मनमोहन के आर्थिक सुधारों के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर ममता बनर्जी भी आकिरकार बाजार की ताकतों के खुले समर्त ने की वजह से ही ३५ साल के वाम शासन को खत्म करने में कामयाब रही। ममता के लिए बी बाजार की मर्जी के खिलाफ कोई मंजिल तय करना असंभव है। बाकी राजनेताओं की भी यही नियति है।हफ्ते के अंतिम कारोबारी दिन शुक्रवार को भारतीय शेयर बाजार तेजी के साथ बंद हुआ। अमेरिकन फेडरल रिजर्व से मिले बेहतर संकेतों और सोने में तेजी के बीच सेंसेक्स 443 अंकों की उछाल के साथ बंद हुआ। तेजी के साथ सेंसेक्स में कारोबार 18464 पर बंद हुआ। वहीं, निफ्टी में भी तेजी का दौर जारी रहा। 142 अंकों की बढ़त दर्ज कराते हुए निफ्टी 5577 पर बंद हुआ। दिलचस्प है कि 10 महीने बाद सेंसेक्स-निफ्टी में एक साथ इतनी तेजी देखी गई है।

केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने सरकार की ओर से बहु ब्रांड खुदरा कारोबार, विमानन और प्रसारण के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ाए जाने के फैसले को आर्थिक सुधारों की दिशा में उठाया गया सही कदम बताया है।सरकार की ओर से शुक्रवार को लिए गए इन फैसलों पर शनिवार को अपनी प्रतिक्रिया में चिदंबरम ने संवाददाताओ से कहा कि ईंधन, उर्वरकों और खाद्य पदार्थों पर सरकार की ओर से जिस स्तर पर सब्सिडी दी जा रही है उससे मौजूदा वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद पर इसका दबाव 2.4 प्रतिशत तक होने का खतरा है जबकि बजट में इसके 1.9 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था।उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सब्सिडी में कटौती जरूरी है। इससे तात्कालिक स्तर पर भले ही कुछ परेशानी ङोलनी पडे़ लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर इसके नतीजे बेहतर होंगे। राजकोषीय घाटा कम होगा जिससे अर्थव्यवस्था जल्दी पटरी पर आ सकेगी।


संप्रग के महत्वपूर्ण सहयोगी तृणमूल कांग्रेस, सपा और बसपा ने डीजल मूल्यवृद्धि और सब्सिडी आधारित रसोई गैस की संख्या सीमित किए जाने तथा बहु ब्रांड खुदरा में एफडीआई का विवादास्पद फैसला वापस नहीं लिए जाने पर इशारों इशारों में केंद्र से अपना समर्थन वापस लेने की चेतावनी दी है।

वाम दलों और सपा सहित आठ प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने मल्टी-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने, डीजल के दाम बढ़ाने और रसोई गैस सिलेंडर की सीमा तय करने के सरकार के फैसले को जन विरोधी बताते हुए 20 सिंतबर को देशव्यापी हड़ताल करने की शनिवार को घोषणा की।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता एबी वर्धन ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने 20 तारीख को हड़ताल का सुक्षाव दिया था जिसे स्वीकार कर लिया गया है। इस हड़ताल में चारों वाम दल, सपा, तेदेपा, जदयू-एस और बीजद संयुक्त रूप से शामिल होंगे।

तृणमूल कांग्रेस ने मल्टीब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई और डीजल के मूल्य में वृद्धि को वापस लेने के लिए संप्रग सरकार को शुक्रवार को 72 घंटे की समय सीमा दी है। पार्टी ने संसदीय दल की 18 सितंबर को आपात बैठक बुलाने का फैसला किया।

कोलकाता में एक रैली में बनर्जी ने कहा कि हमने इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए मंगलवार को पार्टी की बैठक बुलाई है। अगर केंद्र डीजल की कीमतों में वृद्धि और मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई और सस्ते एलपीजी की संख्या सीमित करने के फैसले को वापस नहीं लेता है तो चाहे जितना भी कठिन हो हम फैसला करेंगे। मुझे उम्मीद है कि लोग गलत नहीं समझेंगे।उन्होंने कहा कि हम संप्रग सरकार को नहीं गिराने के पक्ष में हैं। हम हमेशा से गठबंधन नहीं तोड़ने के पक्ष में रहे हैं, लेकिन हम लोगों के प्रति प्रतिबद्ध हैं। डीजल मूल्यवृद्धि वापस लिए जाने की मांग करते हुए बनर्जी ने हर साल सब्सिडी आधारित 24 सिलिंडरों की आपूर्ति किए जाने की मांग की है।बहुब्रांड स्टोर खोलने का निर्णय राज्यों पर छोड़ने के केंद्र के फैसले का हवाला देते हुए बनर्जी ने कहा कि क्या यह संभव है मैंने कभी इस बारे में नहीं सुना है। लखनऊ में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने खुदरा क्षेत्र में एफडीआई का विरोध करते हुए कहा कि उनकी सरकार राज्य में इसे लागू नहीं होने देगी।खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के फैसले के खिलाफ सपा द्वारा केन्द्र की संप्रग सरकार से समर्थन वापसी लेने की सम्भावना सम्बन्धी सवाल पर अखिलेश ने कहा समर्थन जारी रहेगा या नहीं, इसका फैसला सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगे। सपा साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के लिये संप्रग सरकार को समर्थन दे रही है। मायावती ने केंद्र के फैसले को जन विरोधी बताया और कहा कि नौ अक्टूबर को एक रैली के बाद संप्रग को समर्थन जारी रखने को लेकर फैसला करेगी।

तृणमूल महासचिव और रेल मंत्री मुकुल रॉय ने कहा कि हम फैसले को वापस लेने के लिए 72 घंटे की समय सीमा दे रहे हैं। अगर सरकार ने हमारी बात नहीं सुनी तो मंगलवार को होने वाली तृणमूल संसदीय पार्टी की बैठक में हम चर्चा करेंगे और कठोर रुख अपनाएंगे।उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस खुदरा, बीमा और उड्डयन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एफडीआई की अनुमति देने की प्रबल विरोधी हैं, क्योंकि यह देश की जनता के लिए नुकसानदेह होगा।उन्होंने कहा कि हम खुदरा कारोबार में एफडीआई के पक्ष में नहीं हैं। हम उड्डयन क्षेत्र में भी एफडीआई के पक्ष में नहीं हैं। हम हमेशा आम आदमी के पक्ष में हैं। उन्होंने कहा कि अपने चुनाव घोषणा पत्र में जो कुछ भी हमने उठाया उसपर हम कायम रहेंगे।

चार करोड़ परिवारों को सड़क पर खड़ा होकर अर्थशास्त्रियों की सरकार विदेशी पूंजी के सहारे एक करोड़ रोजगार देने का ढोल पीट रही है। ​​आंकड़ों की धोखेबाजी का इससे बड़ा क्या सबूत हैखुदरा व्यापार के जरिये भारत में लगभग 4 करोड़ परिवारों की रोजी रोटी चल रही है। 1998 की आर्थिक गणना के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 38.2 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 46.4 प्रतिशत लोग खुदरा व्यापार के क्षेत्र में रोजगार कर रहे थे। वर्तमान में खुदरा व्यापार का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14 प्रतिशत योगदान है। अनुमान के अनुसार देश में रिटेल यानी की खुदरा बाजार का कारोबार लगभग 30 लाख करोड़ है, जो सालाना 20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है।

बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक, अपने विशाल आकार और कारोबार के कारण वालमार्ट के आगे भारत के छोटे दुकानदारों के टिकने की बात तो दूर, देश के सबसे बड़े कारपोरेट समूहों के लिए भी उससे प्रतियोगिता करना मुश्किल होगा। देश की दस सबसे ज्यादा मुनाफा कमानेवाली कंपनियों का कुल मुनाफा भी वालमार्ट के मुनाफे से कम है। ऐसे में कितनी देशी कंपनियां उससे मुकाबले में टिक पाएंगी, यह कह पाना म‌ुश्किल है। फार्च्यून 500 की साल 2012 सूची में वालमार्ट का दुनिया की सबसे बड़ी और ताकतवर कंपनियों में दूसरा स्थान है। इसने 2011 में कुल 447 अरब डालर का कारोबार किया था। इसकी कुल परिसंपत्तियां 193.4 अरब डालर की हैं, जबकि शेयर बाजार में उसकी कीमत 71.3 अरब डालर है। दुनिया के 15 देशों में उसके कोई 8500 सुपर स्टोर्स हैं। इनमें 22 लाख कर्मचारी काम करते हैं। भारत में यह कंपनी थोक व्यापार में भारती एयरटेल के साथ संयुक्त उपक्रम चलाती है।

कार्फूर एसए दुनिया की दूसरे नंबर की कंपनी हैं। 2009 तक इसके दुनिया भर में 1,395 हाइपरमार्केट्स थे। कार्फूर के स्टोर्स मुख्यतः यूरोप, लेटिन अमेरिका और अरब देशों में हैं। 2010 में इसकी कुल बिक्री 119.88 बिलियन यूएस डॉलर थी । 2007 में कार्फूर ने भारत में दो अलग-अलग यूनिट कार्फूर डब्लूसी और सी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शुरू की थी। कार्फूर ने भारत में व्यापार बढ़ाने के लिए फ्यूचर समूह के साथ भी समझौते किए थे।

वालमार्ट की तहर कार्फूर का भी विवादों से नाता रहा ह‌ै। श्रम कानूनों के विशेषज्ञ वालमार्ट की तरह ही इसे भी कर्मचारियों के हितों का ध्यान न रखने वाली कंपनी मानते हैं। 2007 में फ्रांस सरकार ने इसे गलत प्रचार करने का दोषी पाया था। 2009 में फ्रांस सरकार ने ही स्वास्‍थ्य व उत्पादों से संबंधित कानूनों का उल्लंघन करने के कारण इसपर 220,000 यूरो का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया था।

मेट्रो जर्मनी की सबसे बड़ी हाइपर मार्केट चेन है। रेवेन्यू के मामले में वालमार्ट, कार्फूर, टेस्को और क्रोगर के बाद इसका दुनिया में 5वां स्थान है। हालांकि डेलॉयट ग्लोबल पॉवर ने 2011 के रिटेल कं‌पनियों के सर्वे में इसे तीसरा स्थान दिया था। 2010 में इसका कुल रेवेन्यू 90.85 बिलियन यूएस डॉलर था। इस कंपनी के स्‍टोर्स जर्मनी सहित पूर्वी यूरोप के सभी देशों में हैं।

टेस्को ब्रिटेन की मल्टी रिटेल कंपनी है। डेलॉयट ग्लोबल पॉवर ने 2011 के रिटेल कं‌पनियों के सर्वे में इसे चौथा स्थान दिया था। हालांकि कई बाजार विशेषज्ञ इसे दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी मानते हैं। 2010 में इसका कुल रेवेन्यू 90.43 बिलियन पाउंड‌ था। ब्रिटेन के खुदरा बाजार में इसकी 30 फीसदी की हिस्‍सेदारी है। टेस्को पर अपने प्रतियोगियों को प्रतियोगिता से बाहर करने के लिए अनुचित तौर-तरीके अपनाने के आरोप लगते रहे हैं।

क्रोगर अमेरिका की रिटेल कंपनी है। 2012 में इस कंपनी ने 90.4 बिलियन यूएस डॉलर का व्यापर किया था। क्रोगर का मुख्यालय अमेरिका के सिनसिनाटी में है। क्रोगर एक ऐसी कंपनी है, जिसके कर्मचरियों को यूनियन बनाने का अधिकार है। हालांकि प्रतिस्पर्धा में अनुचित तौर-तरीके अपनाने के आरोप इस कंपनी पर भी लगते रहे हैं।

मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई के फैसले के खिलाफ सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फिर दोहराया कि समाजवादी पार्टी रिटेल में एफडीआई के पक्ष में नहीं है। उन्होंने कहा कि रिटेल में एफडीआई से प्रदेश के खुदरा व्यापारियों, किसानों, दुग्ध उत्पादकों के नुकसान होगा।

अखिलेश ने कहा कि उत्‍तर प्रदेश में खुदरा क्षेत्र में एफडीआई लागू नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र सरकार एफडीआई लाना ही चाहती है तो सड़क, बिजली के क्षेत्र में लाए। उस पर हमें कोई आपत्ति नहीं है। यूपीए सरकार से समर्थन वापसी के सवाल पर अखिलेश ने कहा कि इस पर अंतिम फैसला सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ही लेंगे।

9-10 अक्टूबर को समर्थन वापसी पर फैसलाः माया
खुदरा व्यवसाय में विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति, डीजल के बढे़ दामों और रसोई गैस की राशनिंग से बिफरी बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने केंद्र सरकार को समर्थन देने पर फिर से विचार किए जाने की घोषणा कर दी है। मायावती ने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की नीतियां गरीब विरोधी लग रही हैं इसलिए मनमोहन सरकार को समर्थन जारी रखने पर पुनर्विचार किया जाएगा। बसपा केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है। बसपा अध्यक्ष ने कहा कि आगामी 09 अक्टूबर को यहां पार्टी की महारैली आयोजित की जाएगी। जिसमें केद्र को समर्थन देने या नहीं देने की घोषणा की जा सकती है।

एफडीआई का फैसला सरकार की भारी भूलः आडवाणी
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी कहा कि अगर केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने यह सोचकर किराना में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का फैसला लिया है कि वह ऐसा करके जनता का ध्यान कोयला ब्लाक घोटाले से हटा देगी तो यह उसकी भारी भूल है।

आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि कल ही उच्चतम न्यायालय ने कोयला ब्लाक घोटाले के बारे में सरकार से छह सवालों का उत्तर देने के लिए कहा था। अगर सरकार ने इस मकसद से एफडीआई पर निर्णय लिया है कि भ्रष्टाचार से ध्यान हटाकर आर्थिक सुधार पर बहस शुरू हो जायेगी और सबका ध्यान बंट जायेगा तो यह उसकी भारी भूल है।

व्यापारी 20 को करेंगे भारत बंदी
खुदरा कारोबार में विदेशी कंपनियों को इजाजत देने के विरोध में व्यापारियों ने 20 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है। अखिल भारतीय व्यापार परिसंघ के महासचिव परवीन खंडेलवाल ने बताया कि पहले 18 सितंबर को बंद का आह्वान किया गया था , लेकिन उस दिन गणेश चतुर्थी है। यह पर्व पश्चिम भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। लोगों को असुविधा से बचाने के लिए तिथि में बदलाव किया गया है।

खंडेलवाल ने कहा कि 20 सितंबर को देश का व्यापार पूरी तरह बंद रहेगा। सरकार के फैसले से देश के छोटे व्यापारी, किसान और उपभोक्ताओं को कोई फायदा नहीं होने वाला है। विदेशी कंपनियां मुनाफा कमाने के उद्देश्य से भारत आएंगी और एक बार अपना अधिकार जमा लेने के बाद वह उपभोक्ताओं एवं किसानों का शोषण करेंगी।

न्यूयार्क टाइम्स ने कहा कि सिंह की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार पर भारत की नरम पड़ती अर्थव्यवस्था में तेजी लाने, रोजगार बढ़ाने व देश के बुनियादी ढांचे में सुधार का भारी दबाव है। इन अखबारों ने देश में वालमार्ट जैसे प्रमुख विदेशी ब्रांडों को कारोबार की मंजूरी देने के निर्णय को इस दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम बताया है।

अमेरिका के इस प्रमुख अखबार ने कहा कि खुदरा, विमानन और प्रसारण क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए खोलना पिछले दो दशक के सबसे बड़े आर्थिक सुधार हैं लेकिन ये योजनाएं विवादास्पद बनी रहेंगी, विवाद पैदा करेंगी और यह साफ नहीं है कि सरकार का ढीला-ढाला गठबंधन इन योजनाओं पर अमल करने के लिए लंबे समय तक बरकरार रहेगा या नहीं।

अखबार ने कहा सिंह आर्थिक प्रस्तावों के साथ बड़े राजनैतिक जोखिम ले रहे हैं जो उनके सत्तारुढ़ गठबंधन को तोड़ सकता है। वाशिंगटन पोस्ट जिसने हाल ही में सिंह को मौन प्रधानमंत्री और बेहद भ्रष्ट सरकार की नेतत्व करने वाला दुविधाग्रस्त और निष्प्रभावी नौकरशाह करार दिया था, ने कहा कि उनके द्वारा ये घोषित सुधार 2004 से लेकर अब तक के सबसे बड़े और कड़े आर्थिक सुधार हैं जबकि उन्होंने प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया था।

अखबार के मुताबिक आर्थिक वृद्धि में नरमी, उच्च मुद्रास्फीति और एक के बाद एक घोटाले के कारण दो साल तक रक्षात्मक रवैया अख्तियार करने के बाद भारत की गठबंधन सरकार अब इस सप्ताह कड़े फैसले लेने के लिए तैयार है। एक अन्य अखबार द वाल स्ट्रीट जर्नल ने सुधार को देश की आर्थिक नरमी की दिशा बदलने और विदेश पूंजी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए नाटकीय पहल करार दिया।

न्यूयार्क टाइम्स ने कहा कि सिंह की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार पर भारत की नरम पड़ती अर्थव्यवस्था में तेजी लाने, रोजगार बढ़ाने व देश के बुनियादी ढांचे में सुधार का भारी दबाव है। इन अखबारों ने देश में वालमार्ट जैसे प्रमुख विदेशी ब्रांडों को कारोबार की मंजूरी देने के निर्णय को इस दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम बताया है।

देश में सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बडे़ बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का मानना है कि देश में मुद्रास्फीति की दर अब भी काफी उंची बनी रहने और पूंजी तरलता संतोषजनक स्तर पर रहने के कारण ब्याज दरों और नकद आरक्षण अनुपात (सीआरआर) में तत्काल कोई कटौती होने की संभावना नहीं है।

एसबीआई के प्रबंध निदेशक और मुख्य वित्तीय अधिकारी दिवाकर गुप्ता ने कहा कि हर एक बैंक की इच्छा होती है कि सीआरआर में कटौती हो क्योंकि सीआरआर में कटौती से बैंकों की पूंजी में बढोतरी होगी। हालांकि उन्होंने कहा कि सीआरआर में कटौती के लिए अगर पूंजी तरलता निर्धारक कारक है तो मुझे अभी कटौती की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।

गुप्ता ने कहा कि थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर अगस्त में मुद्रास्फीति 7.55 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, जिसकी वजह खराब बारिश के कारण आलू, गेहूं और दालों की ऊंची कीमतें थीं। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति निरंतर बढ़ रही है और ऐसी स्थिति में भारतीय रिजर्व बैक ब्याज दरों में कटौती कैसे कर सकता है?

उन्होंने कहा कि इस बीच ऋण विकास दर जमा विकास दर के साथ चाल नहीं मिला पा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षो में जमा राशि में 75,000 करोड़ रुपए की बढोतरी दर्ज की गई है, जबकि ऋण विकास केवल 15,000 करोड़ रुपए का ही रहा है। इसके अलावा गैर निष्पादित परिसंपत्तियां बैंकों के लिए चिंता का बहुत बड़ा कारण बनी हुई हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में शनिवार को योजना आयोग की पूर्ण बैठक में 12वीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज को मंजूरी दे दी गई। दस्तावेज में आर्थिक विकास दर को ग्यारहवीं योजना में हासिल 7.9 फीसदी से बढ़ाकर 8.2 फीसदी करने की बात की गई है। कुल योजना आकार 47.7 लाख करोड़ रुपये रखा गया है, जो ग्यारहवीं योजना अवधि (2007-12) में हासिल निवेश से 135 फीसदी अधिक है। प्रमुख क्षेत्र के रूप में आधारभूत संरचना, स्वास्थ्य और शिक्षा को चुना गया है।
विकास में मौजूदा सुस्ती को देखते हुए विकास दर के पूर्वानुमान को पूर्वघोषित नौ फीसदी से घटाकर 8.2 फीसदी कर दिया गया है।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, "योजना आयोग की पूर्ण बैठक में स्वीकार किया गया है कि अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति में बदलाव को देखते हुए विकास दर के अनुमान को नौ फीसदी से घटाकर 8.2 फीसदी करना वाजिब लगता है।"

आयोग ने बैठक के दौरान आए सुझावों को भी शामिल करने का फैसला किया। यह वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के इस सुझाव पर काम करेगा कि खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम में रियायत 12वीं योजना अवधि के आखिर तक प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण के माध्यम से दिया जाए।

बैठक में यह भी सुझाव दिया गया कि विभिन्न योजनाओं में लाभार्थियों को भुगतान आधार यूआईडी प्रणाली के माध्यम से किया जाए।

12वीं योजना अवधि में कृषि विकास दर का लक्ष्य 4 फीसदी रखा गया है। जबकि विनिर्माण क्षेत्र में यह लक्ष्य 10 फीसदी रखा गया है।

बैठक में गरीबी उन्मूलन, शिशु मृत्यु दर, दाखिला औसत और रोजगार सृजन जैसे विभिन्न आर्थिक और सामाजिक लक्ष्यों की भी समीक्षा की गई।

No comments: