चेयरमैन माओ ने मुझे बचा लिया
रामचंद्र गुहा के लेख अक्सर गंभीर बहस और विवाद का कारण बन जाते हैं. यह लेख भी गंभीर बहस की मांग करता है. वैसे उनका लिखा तथ्यों और तर्कों पर आधारित होता है. यह लेख आज 'दैनिक हिन्दुस्तान' में प्रकाशित हुआ है- जानकी पुल.
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दावा यह किया जाता है कि मार्क्सवाद इतिहास के प्रति भौतिकवादी दृष्टिकोण रखता है जिसमें वर्गीय संबंधों और उत्पादन के साधनों को व्यक्तियों की करनी से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन व्यवहार में जो राजनैतिक सत्ताएं मार्क्सवादी सिद्धांतों का दावा करती हैं उनमें अपने नेताओं की अभूतपूर्व पूजा की जाती है। दुनिया भर की कम्युनिस्ट पार्टियां अपनी पवित्र त्रयी यानी मार्क्स,एंजेल्स और लेनिन की जरा भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती। किसी बुर्जुआ लोकतंत्र के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की वैसी गुलामी की हद तक चाटुकारिता नहीं की गई जैसे कभी सोवियत संघ में जोसेफ स्टालिन की हुई थी। आधुनिक वक्त में स्टालिन की व्यक्ति पूजा की बराबरी दो नेताओं की पूजा कर सकती है। पहले उत्तर कोरिया के किम इल सुंग और दूसरे चीन के माओत्से तुंग। मुझे याद है कि 1990 के दशक में जब मैं दिल्ली के सुन्दर नगर में उत्तर कोरिया के दूतावास के आगे से गुजरता था तो उसकी दीवार पर लगे उनके प्रिय नेता के गुणगान को देखकर जोर-जोर से हंसता था।
वहीं हंसी मुझे कुछ दिनों पहले आई जब लंदन के एक फुटपाथ पर 'द मिरेकल्स ऑफ चेयरमैन माओ' नाम की एक किताब मिल गई। यह किताब 1971 में छपी थी और इसमें 1966 से 1970 के बीच चीनी प्रेस और रेडियो के कुछ अनुदित अंश हैं। इसे एक कम्युनिस्ट विरोधी पत्रकार जीआर अरबन ने संपादित किया है और इस किताब का एक मौजूं और व्यंग्यात्मक उपशीर्षक है 'भक्तिप्रद साहित्य का संकलन'। इस संकलन की कहानियां इतनी अद्भुत हैं कि मैं उनमें से कुछ यहां सुनाना चाहता हूं। जैसे एक लड़की जो कईं साल से गूंगी और बहरी थी वह चेयरमैन माओ की प्रेरणा से अचानक गाने लगी। एक दूसरा प्रकरण यह है कि एक महिला का ऑपरेशन होना था जिसके पेट में 45 किलोग्राम का ट्यूमर था। जिन डॉक्टरों ने यह ऑपरेशन किया उन्होंने श्रद्धा के साथ अपने महान नेता की लाल किताब पढ़ी थी। जो ऑपरेशन उन्होंने किया उसकी प्रेरणा उन्हें माओ के इस कथन से मिली 'बिखरे हुए अलग-अलग दुश्मनों पर पहले हमला करो, एकजुट ताकतवर दुश्मनों से बाद में निपटो'। इसी तरह से डॉक्टरों ने पहले ट्यूमर के आसपास की ऊत्तक हटाए और फिर ट्यूमर को हटा दिया। जब मरीज को होश आया तो पहला वाक्य जो उसने बोला वह था - चेयरमैन माओ जिंदाबाद। चेयरमैन माओ ने मुझे बचा लिया।
चीनी टेबल टेनिस टीम ने 1959 में विश्व चैंपियनशिप जीती तो उसके एक खिलाड़ी ने अपनी सफलता का राज बताया। उसने बताया कि टेबल टेनिस की टेबल पर चीनी खिलाड़ियों ने माओं के लेखों 'अंतर्विरोधोंके बारे में' और 'व्यवहार के बारे में' से प्रेरणा हासिल की थी। दूसरे खिलाड़ी ने बताया कि 'चेयरमैन माओ की शिक्षाओं ने हमें सिखाया कि हमें दुनिया में सबसे ऊपर पहुंचने के लिए अपना रास्ता खुद बनाना चाहिए।' सन 1965 में विश्व चैंपियनशिप जीतने के बाद उसी खिलाड़ी ने बताया कि उन लोगों ने चेयरमैन माओ के सिद्धांतों का अध्ययन और व्यवहार को सामने रखकर क्रांतिकारी द्वंद्वात्मकता का पालन किया है। उसने कहा कि टेबल टेनिस के बैट माओ के विचारों का अनुगमन करते हैं। एक और दिलचस्प मामले में उत्तर-पूर्वी चीन के पार्टी कार्यकर्ताओं ने माओं के विचारों को कस्बाई नाईयों के मन में उतारने की कोशिश की इन कार्यकर्ताओं को चंद पूंजीवाद के अनुगामियों का विरोध सहना पड़ा जो 'मुनाफा पहले' और इसी तरह के बकवास संशोधनवादी नारे परजीवी ल्यूशाओची के असर में लगा रहे थे। आखिरकार क्रांतिकारी विचारधारा की विजय हुई हालांकि काफी संघर्ष करना पड़ा। अप्रैल 1969 में पेईचिंग रेडियो से एक नाई का अनुभव प्रसारित हुआ। 'एक शाम चिह सुंगता नामक एक नाई हमेशा की तरह एक बस्ती में लोगों के बाल काटने गया जहां उसने महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति की उपलब्धियों के बारे में बताया।
वह रात देर से घर पहुंचा। वह जागता रहा और करवटें बदलते हुए उसने चेयरमैन माओ की शिक्षाओं की रोशनी में अपनी दिनभर के काम का विश्लेषण किया। चिह सुंगता को कुछ तकलीफ महसूस हुई जब उसे याद आया कि जब वह एक लकवाग्रस्त व्यक्ति के बाल काट रहा था तब उसने देखा था कि उसका कंबल गंदा था। फिर भी चिह सुंगता ने उसे धोया नहीं। उसने पाया कि उसने जनता के हक में पूरी तरह काम नहीं किया था जैसे चेयरमैन माओ ने सिखाया है। अगली सुबह जल्दी उठकर वह उस लकवाग्रस्त व्यक्ति के घर गया और उसका कंबल धो दिया।' चेयरमैन माओ के चीन में वर्गीय एकजुटता निश्चय ही पारिवारिक संबंधों से ज्यादा बड़ी थी। जब एक औरत एक ट्रक के नीचे कुचलकर मर गई तब उसके पति के मन में सबसे पहले ट्रक ड्राइवर के बारे में नफरत के भाव आए। तब उसे चेयरमैन माओ की सीख याद आई। 'हमें हर तरह से व्यक्तिगत लाभ से व्यापक सामाजिक लाभ की ओर चलना है।' इसके बाद वह ट्रक ड्राइवर के पास गया और उसे माफ कर दिया। उसने ड्राइवर से माओ के विचारों का अध्ययन करने की भी गुजारिश की, जो किसी क्रांतिकारी के लिए उतने ही जरूरी हैं जितने किसी ड्राइवर के लिए स्टीयरिंग व्हील।
ड्राइवर भावुक हो गया और उसने उस मृत महिला के पति को गले से लगा लिया। ड्राइवर ने कहा कि 'मैं चेयरमैन माओ का आभारी हूं कि उनकी वजह से आप जैसे महान व्यक्ति से मेरा परिचय हुआ। इस दुखद दुर्घटना से सीखा हुआ सबक हमेशा याद रखूंगा और चेयरमैन माओ के विचारों का अध्ययन और व्यवहार करता रहूंगा।' भारत की संविधान सभा में एक विख्यात भाषण में भीम राव अंबेडकर ने राजनीति में व्यक्ति पूजा के खतरों से आगाह किया था। उनकी चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया गया जिसका सबूत यह है कि कुछ तमिल जयललिता की पूजा करते हैं,कुछ गुजराती नरेन्द्र मोदी, कुछ मराठी बाल ठाकरे और सारे कांग्रेसी इंदिरा, राजीव वगैरह को देवता मानते हैं। खुद अंबेडकर को भी उनके अनुयाइयों ने दैवीय मूर्ति बना दिया है। इसके बावजूद लिबरेशन आर्मी डेली में 13 अगस्त 1967 को छपा यह संपादकीय सबसे आगे है।
'चेयरमैन माओ दुनिया के सर्वाधिक असाधारण और महान जीनियस हैं और उनके अनुभव चीन में और बाहर भी सर्वहारा संघर्षों को इस तरह व्यक्त करते हैं कि वे अटूट सत्य बन जाते हैं। चेयरमैन माओ के निर्देशों का पालन करते हुए हम यह बिलकुल नहीं सोचते कि हम उन्हें समझ रहे हैं या नहीं। क्रांतिकारी संघर्षो का अनुभव बताता है कि हम चेयरमैन माओ के कई निर्देशों को शुरू में पूरी तरह या अंशत: नहीं समझ पाते लेकिन उन्हें लागू करने के क्रम में कई सालों में धीरे-धीरे समझते हैं।' मेरा ख्याल है इसी को अंधश्रद्धा कहते हैं। कुछ भी कहें 60 के दशक में माओ के साथ जो चमत्कार जोड़े गए हैं वे आजकल के किसी हिंदू बाबा को बहुत पीछे छोड़ देते हैं।
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