| Sunday, 05 May 2013 10:29 |
नयी दिल्ली (भाषा)। अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाकर किए जाने वाले हमलों से उनकी रक्षा करने के लिए लाए जाने वाले विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा विधेयक का भविष्य अधर में लटकता दिख रहा है और विधि मंत्रालय द्वारा उठायी गयी आपत्तियों के चलते संप्रग दो के शासनकाल में इसके पारित होने की संभावनाएं बेहद क्षीण हो गयी हैं। विधि मंत्रालय ने विधेयक के मसौदे को लेकर आपत्तियां जाहिर की हैं तथा गृह मंत्रालय इस पर राज्य सरकारों के साथ और विचार विमर्श की योजना पर काम कर रहा है । गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने प्रेट्र को बताया, '' हमें और अधिक विचार विमर्श करना पड़ेगा। राज्य सरकारों के साथ और सलाह मशविरा करने की जरूरत है क्योंकि किसी भी तरह की अशांति के हालात में उनकी ही मुख्य जिम्मेदारी होती है ।'' गृह मंत्रालय के अधिकारी महसूस करते हैं कि विचार विमर्श की प्रक्रिया में महीनों का समय लग सकता है क्योंकि अधिकतर गैर कांग्रेस शासित राज्य विधेयक के कई प्रावधानों की खुली मुखालफत कर रहे हैं । भाजपा ने प्रस्तावित विधेयक का कड़ा विरोध किया है और इसे ''खतरनाक'' बताते हुए कहा है कि इससे संविधान के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचेगा। पार्टी ने यह सवाल भी उठाया है कि विधेयक में यह पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है कि बहुसंख्यक समुदाय ही हमेशा दंगों के लिए जिम्मेदार होता है । प्रस्तावित विधेयक का तृणमूल कांग्रेस , समाजवादी पार्टी , बीजू जनता दल , अन्नाद्रमुक और अकाली दल द्वारा भी विरोध किए जाने की आशंका है जो क्रमश: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश , ओडिशा , तमिलनाडु तथा पंजाब में सत्ता में हैं । सूत्रों ने बताया कि विधेयक में मामलों को सुनवाई के लिए संबंधित राज्यों से बाहर स्थानांतरित किए जाने और गवाहों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जाने का भी प्रावधान किया गया है । |
Sunday, May 5, 2013
सांप्रदायिक हिंसा विधेयक का भविष्य अधर में
सांप्रदायिक हिंसा विधेयक का भविष्य अधर में
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