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Friday, May 3, 2013

रमेश की चेतावनी का असर, बंगाल को केंद्र से अनुदान बंद होने लगा!

रमेश की चेतावनी का असर, बंगाल  को केंद्र से अनुदान बंद होने लगा!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


पश्चिम बंगाल के जंगलमहल में अब नया संकट खड़ा हो गया हौ और उसका संबंध माओवाद से कतई नहीं है। यह विकास के कार्यक्रम के कार्यान्वयन का मामला है। राज्य सरकार और केंद्र के बीच रस्सकशी से अब जंगलमहल में घोषित अमन चैन के बीच विकास गतिविधियां ठप हैं। वैसे भी अदालती विवादों के चलते राज्यभर में पंचायतों और पालिकाओं केचुनाव की निकटभविष्य में कोई संभावना नहीं है।केंद्रीय ग्रामोन्वयन मंत्री जयराम रमेश ने पहले ही तेतावनी जारी कर रखी है कि स्थानीय निकायों का नियंत्रण और संचालन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के हाथ में न हो तो शहरी विकास परियोजना और मनरेगा समेत तमाम सामाजिक योजनाओं के लिए केंद्रीय अनुदान बंद हो जायेगा।​इसके अलावा केंद्र सरकार की जो बैंकों के मार्फत नकद सब्सिडी देने की योजना है, उसके लिए स्थानीय निकायों का कामकाज ठप होने से राज्यवासियों के लिए भारी संकट खड़ा हो जाने का अंदेशा है क्योंकि एनपीआर के तहत बायोमेट्रिक पहचान का आधार कार्ड बनाने का काम इन्हीं निकायों को करना है। जो अभी कायदे से शुरु ही नहीं हुआ है और उसका पटाक्षेप भी हो गया है। केंद्रीय सामाजिक योजनाओं को भी अब आधार कार्ड से जोड़ा जा रहा है, जिससे खासकर गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले राज्य के बेशुमार नागरिकों के लिए अब आफत आने वाली है।

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​केंद्रीय मंत्री रमेश हवाई फायर नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बल्कि अपनी चेतावनी के मुताबिक कार्रवाई करने की शुरुआत कर दी है। जंगल महल के​​ तीन जिलों पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया में ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए केंद्र ने १४९१ करोड़ रुपये मंजूर किये हैं। पर अब केंद्र राज्य सरकार को यह रकम देने से सिरे से मना कर रही है।केंद्रीय ग्रामोन्वयन मंत्री जयराम रमेश ने मुखययमंत्री ममता बनर्जी को सूचित कर दिया है कि कार्यक्रम के क्रियान्वयन में प्रगति न होने से आगे केंद्रीय अनुदान दिया नहीं जा सकता। मालूम हो कि राज्य सरकार ने केंद्र से इस कार्यक्रम के लिए ८६० करोड़ रुपये और मांगे हैं। यह अगर पथ संकेत हैं तो राज्य में मेट्रो और रेल परियोजनाओ के कार्वान्वयन का जो हाल है, उसमे भी केंद्रीय मदद के स्रोत सूख जाने की आशंका है। राज्यों को केंद्रीय मदद के अलावा केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं में एक बड़ा हिस्सा मिलता है।


बिहार, उड़़ीसा और उत्तर प्रेदेश की तरह विशेष मदद की बाद तो भूल जाइये, अब मंजूर अनुदान देने से भी केंद्र हाथ खींचने लगा है।चिटफंड फर्जीवाड़े में दमकल वाहिनी में तब्दील राज्य सरकार इस आर्थिक बदहाली और अराजकता के माहौल में इस नये विपर्यय का कैसे सामना करेगी, उसकी कोई दिशा फिलहाल नहीं दीख रही है।जंगल महल में ग्रामीण सड़क निर्माण की प्रगति का आलम यह है कि तीन जिलों में कुल जमा छह यूनिटें काम कर रही हैं, जिसे राज्य सरकार बारह करने पर राजी हो गयी है, जबकि केंद्र सरकार के मुताबिक परियोजना के तहत कुल १६२० किमी सड़क के निर्माण के लिए कम से कम २२ यूनिटों को काम पर होना चाहिए।


गौरतलब है कि पिछले कई महीनों से ममता पश्चिम बंगाल के लिए विशेष पैकेज व अन्य तरह की मदद मांग रही हैं। बिहार के लिए केंद्र से 12,000 करोड़ रूपए के विशेष पैकेज मंजूर होने के अगले ही दिन  पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सवाल किया कि केवल उनके ही राज्य को :उसके हिस्से से: क्यों वंचित रखा जा रहा है और उन्होंने केंद्र पर उनके राज्य के साथ राजनीतिक भेदभाव करने का आरोप लगाया। पश्चिम बंगाल के लिए विशेष मदद की राह भले ही मुश्किल हो, योजना आयोग के साथ हुई बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बाजी मार ली। आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने राज्य में विकासकार्यो की प्रशंसा करते हुए 30,314 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दे दी। यह पिछले साल के मुकाबले 17 फीसद अधिक है।ममता ने तब राज्य के प्रदर्शन के लिए अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा कि उनकी नजर खास तौर से सामाजिक क्षेत्र पर है। बालिकाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। जंगलमहल, सुंदरबन, उत्तरी  बंगाल के पिछड़े जिलों को मुख्यधारा में जोड़ा जा रहा है।अब जंगल महल के लिए केंद्रीय अनुदान फंस गया तो बाकी रकम कितनी और कब मिल पायेगी इसमें संदेह है।


इस पर तुर्रा यह कि जब केंद्र से पहले से मंजूर अनुदान ही खटाई में जाने लगा है तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि चूंकि सेबी और रिजर्व बैंक चिटफंड कंपनियों की निगरानी करने में नाकाम रहे, इस वजह से वह सारदा समूह द्वारा ठगे गए निवेशकों को उनके पैसे वापस करने के लिए केंद्र से 500 करोड़ रपए देने की मांग करेंगी। मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह तूफान पिछली (वाम मोर्चा) सरकार के कामों और केंद्र सरकार की लापरवाह नीतियों की वजह से आया। सेबी और रिजर्व बैंक ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभायी। वह बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। बनर्जी ने इससे पहले ठगे गए निवेशकों के लिए 500 करोड़ रुपये के राहत कोष की घोषणा की थी।


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