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Friday, May 3, 2013

राज्यों और केंद्रीय एजंसियों में तालमेल नहीं और न ही कानून का राज है, इसीलिए देशभर में महामारी की तरह फैली है चिटफंड कंपनियां!

राज्यों और केंद्रीय एजंसियों में तालमेल नहीं और न ही कानून का राज है, इसीलिए देशभर में महामारी की तरह फैली है चिटफंड कंपनियां!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


देशभर में चिटपंड कंपनियों का सर्वव्यापी प्रभाव है। केंद्रीय सरकार ने आर्थिक सुधारों के बहाने वित्तीय गतिविधियों को जो बेलगाम छूट दी है, उसका खामियाजा भुगत रहे हैं भारतवासी।देशभर में पेड़ों पर निवेश करने वाले लोग मिल जायेंगे। सोना गिरवी रखकर लोन लेने का जो कारोबार है , वह केरल से शुरु होकर पूरे देश में निरंकुश चला रहा है। सारा पूर्वोत्तर चपेट में है। मुंबई पर भी राज है चिटफंड कंपनियों का । पाप का घड़ा खुला बाजार में फटने लगा तो गैरकानूनी फर्जी वित्तीय संस्थाओं पर अंकुश के लिए  अब जाकर कहींप्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम के दिशानिर्देशों के मुताबिक​ अब एक उच्चक्षमता संपन्न केंद्रीय नियामक संस्था बनाने की तैयारी है।सेबी, रिजर्व बैंक और सरकारी क्षेत्रों के बैंको के शीर्षस्थ अधिकारियों की बैठक के बाद यह तय हुआ है।इस नियामक संस्था के छाते के अंदर काम करेंगी तमाम केंद्रीय एजंसियां। लेकिन शारदा फर्जीवाड़े के खुलासे से इन केंद्रीय संस्थाओं और राज्यों के बीज तालमेल का अभाव जो नंगा सच बनकर सामने आ गया है, उसके मद्देनजर इससे भी हालात सुदरने की उम्मीद कुछ कम ही है।


असम सरकार ने अपने कानूनी हथियार को ताक पर रखकर राज्य में और गुवाहाटी के रास्ते पूरे पूर्वोत्तर में चिटफंड साम्राज्य बनने की खुली छूट दे दी,उससे साफ जाहिर है कि कानून होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। जब तक कि कानून लागू नहीं होता। बंगाल सरकार के पास भी १९७८ का कानून है, जिसपर आजतक अमल ही नहीं हुआ।


इससे पहले संचयिता और ओवरलैंड चिटफंड प्रकरण में तत्कालीन राज्य सरकार ने राज्य में फौजदारी कानून के तहत ही कार्रवाई की तो अब शारदा समूह के मामले में ऐसा क्यों नहीं संबव है ? विशेषज्ञों के मुताबिक फौजदारी कानून के तहत गिरप्तारी से लेकर संपत्ति तक बरामद करने के प्रावधान हैं।धोखाधड़ी रोकने के लिए भारतीय दंडविधान संहिता में पर्याप्त प्रावधान है, जिन्हें कभी लागू ही नहीं किया जाता।यहां तक कि बाजार में जो निवेश इन कंपनियों का है, वहां से भी रकम वापस लेकर निवेशकों को लौटाना संभव है। पर संचयिनी और ओवरलैंड प्रकरणों से जो परंपरा बनी है, राजनीतिक संकट मुकाबला करने के अलावा सत्तादल को छोटे निवेशकों के हितों और उनकी लगायी पूंजी की रिकवरी के बारे में कोई कार्यक्रम नहीं बनाने की आदत है। यही परंपरा शारदा समूह के मामले में और दूसरी सैकड़ों फर्जी कंपनियों के मामले में देशभर में अलग अलग राज्य सरकारे निभा रही है। जिससे यह धोखाधड़ी अब महामारी का रुप ले चुकी है।


गौरतलब है कि मात्र फौजदारी कानून के जरिये संचयिनी मामले में चालीस फीसदी तक रिकवरी बाजार से कर लेने का दावा करते हैं इस प्रकरण के जांच अधिकारी।ओवरलैंज मामले में उनकी डेढ़ हजार एकड़ जमीन की कुरकी की जा​​ चुकी थी। इस अनुभव से सबक लेकर अभी से क्यों नहीं कार्रवाई कर रही है?  जुबानी जमा खर्च से जनता का क्या हित सधने वाला है?


बंगाल से सटे झारखंड, असम और बिहार के बाद अब उड़ीसा में भी इस गोरखधंदे का महामारी जैसा असर सामने आने लगा है। इस पूरे मामले में राज्यसरकारों ौर केंद्रीय एजंसियों के बीच जो तालमेल होना चाहिए , वह सिरे से गायब है। सेबी ने बंगाल सरकार पर आरोप लगाया है कि उसकी सलाह के मुताबिक बंगाल सरकार ने संदिग्ध चिटपंड कंपनियों के खिलाप एफआईआर तक दर्ज नहीं की। इसीतरह असम और त्रिपुरा सरकार की ओर से सीबीआई जांच के लिए पहल होने के बावजूद बंगाल सरकार इसके लिए कतई तैयार नहीं है। देशभर में फैले इस गोरखधंधे के लिए सीबीआई जांच की प्रासंगिकता से इंकार नहीं किया जा सकता। सीबीआई ने बंगाल सरकार पर दबाव बढ़ाते हुए कह दिया है कि राज्य सरकार तैयार हो तो वह जांच करने के लिए तैयार है। भार बार केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पर्याप्त कानून न होने की शिकायतें कर रहे हैं। अब चारों तरफ कानून बदलने की मुहिम सी छिड़ गयी है। लेकिन कानून का राज जो सिरे से गायब है, उसतरफ किसी की नजर नहीं है। जिससे फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनियों को अपना गोरखधंधा बेरोकटोक चलाने में दिक्कत नहीं होती।


राज्य सरकार की कार्रवाई का आलम यह है कि प्रयाग के खिलाफ कार्रवाई की औपचारिकता शुरु होते न होते अखबारों में उसकी तरफ से विज्ञापन मुहिम चालू है। एमपीएस के जवाहरलाल नेहरु रोड स्थित कोलकाता के दफ्तरों की निगरानी की जा रही है। लेकिन वहां जो ताला लगा है, वह पुलिस ने नहीं लगाये। पुलिस सिर्फ पहरादारी कर रही है, आवाजाही रोक रो​क रही है। निवेशकों के हित में कहीं भी पुलिस की किसी कार्रवाई की खबर नहीं है। जबकि राज्यभर में बवंडर मचा हुआ है। अभी प्रयाग से राज्य के उद्योग मंत्री  पार्थ चटर्जी के नाम भी जुड़ गया है। वाम जमाने के वित्तमंत्री असीम दासगुप्त और चिटफंड विरोधी जिहादी माकपाई नेता गौतम देव के निजी सहायकों से पुलिस ने पूछताछ शुरु कर दी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर आरोप है तो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और माणिक सरकार के खिलाफ भी आरोप लगा दिये हैं खुद ममता दीदी ने।​

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शारदा समूह की धोखाधड़ी के शिकार निवेशकों की दुर्दशा से चिंतित उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि लोगों को इस तरह की धोखाधड़ी से बचाने के लिए विभाग किस तरह के जागरूकता कार्यक्रम चला सकता है, इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाए।पश्चिम बंगाल की चिट फंड कंपनी शारदा ग्रुप पर बढ़ते राजनीतिक विवाद को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने ऐसे तमाम मामलों पर सख्ती दिखाई है।मंत्रालय का कहना है आकर्षक निवेश का लालच देकर निवेशकों को ठगने वाली कंपनियों के खिलाफ सेबी, आरबीआई, कारपोरेट मामलों के मंत्रालय, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय जैसी कई केंद्रीय एजेंसियां कार्रवाई कर रही हैं।कोलकाता में शारदा ग्रुप पर निवेशकों के पैसे हड़पने के आरोपों से उठे विवाद के बीच जांच करने वाली मार्केट रेग्युलेटरी बॉडीज ने पाया है कि पश्चिम बंगाल और नॉर्थ-ईस्ट के राज्य इस किस्म की धोखाधड़ी के अड्डे बन चुके हैं।शारदा जैसी स्कीमों के जरिए लोगों के पैसे लूटने का धंधा सिर्फ पश्चिम बंगाल में नहीं देश में कई राज्यों में चल रहा है।इसी तरह कारपोरेट मामलों का मंत्रालय 31 कंपनियों के खातों की जांच का आदेश दे चुका है। मंत्रालय का मानना है कि देश के पश्चिमी राज्यों में पोंजी स्कीम की तर्ज पर भारी कमीशन का लालच देकर गैर कानूनी तरीके से फंड जुटाने के मामले सामने आ रहे हैं। उड़ीसा में 20,000 करोड़ रुपये के इन्वेस्टमेंट फ्रॉड का मामला सामने आया है, जिसमें 40 कंपनियां हजारों इन्वेस्टरों को बेवकूफ बना रही हैं। भुवनेश्वर के स्कूल टीचर बासुदेव मोहापात्र जब 60 साल की उम्र में रिटायर्ड हुए तो उन्होंने 7 लाख रुपए की अपनी ज्यादातर जमा-पूंजी सी-शोर ग्रुप की स्कीम में लगा दी। स्कीम में उन्हें 6 साल तक सालाना 24 फीसदी ब्याज देने के सपने दिखाए गए, साथ ही 6 साल के बाद पूरी रकम वापसी की बात भी कही गई। लेकिन कुछ महीनों के बाद ही मोहापात्र जी को ब्याज मिलना बंद हो गया। और तो और सी-शोर ग्रुप ने उन्हें निवेश की मूल रकम भी लौटाने से मना कर दिया, इसके बाद मोहापात्र जी को अहसास हुआ कि वो ठग लिए गए हैं।


चिट फंड कंपनियों ने बिहार-बंगाल जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों की जनता को जिस तरह से लूटा है, वह शासन-व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती है। अगस्त 1997 में गठित जस्टिस नागेंद्र राय जांच कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि 1990 में सिर्फ 71 चिट फंड कंपनियां थीं, 1997 में 339 हो गई। 1997 में 3653 करोड़ तथा 1998 में 1821 करोड़ रुपये की वसूली निवेशकों से हुई। यानी, आर्थिक उदारीकरण के पहले ही दशक में निजी कंपनियों को कम साक्षरता वाले इस प्रदेश में लूट की खासी गुंजाइश दिखी थी। भारतीय रिजर्व बैंक नान बैंकिंग कंपनी बनाने का लाइसेंस देता है और उसका कहना है कि उसने यहां किसी को कारोबार की अनुमति नहीं दी है। सेबी की भी इजाजत नहीं है।जमा योजनाओं के नाम पर बढ़ती धांधली को लेकर आलोचनाओं से घिरे वित्त मंत्रालय ने दावा किया है कि डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज जुलाई 2012 में ही सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा और सेबी व आरबीआई जैसी नियामक संस्थाओं के बीच तालमेल मजबूत करने का अनुरोध कर चुका है।


चिट फंड कंपनी शारदा के धराशायी होने से न सिर्फ उसके इन्वेस्टर्स मुश्किल में है, बल्कि पश्चिम बंगाल में माइक्रो फाइनैंस कंपनियों के लिए भी खासी दिक्कत पैदा हो गई है। लोकल पुलिस और म्युनिसिपल अथॉरिटी ने ज्यादातर गरीब औरतों को कानूनी तौर पर फंड मुहैया कराने वाली माइक्रो क्रेडिट कंपनियों से पूछताछ शुरू कर दी है। उनके लिए समूचा माइक्रो फाइनैंस बिजनस अचानक संदेहास्पद हो गया है।


एमएफआई की दिक्कत इसलिए भी बढ़ गई है कि चिट फंड चलाने वाली कंपनियों ने पॉप्युलर एमएफआई जैसे नाम रखे हुए हैं। कुछ ने भोले-भाले निवेशकों को बरगलाने के लिए एमएफआई के खाली किए दफ्तर में अपने दफ्तर खोल लिए। पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े एमएफआई में से एक विलेज फाइनैंशल सर्विसेज के सीईओ कुलदीप मैती कहते हैं, 'हम मामले से निपटने की कोशिश में लगे हैं। इंडस्ट्री 2010 के संकट से अभी बाहर निकली ही है। हम और परेशानी झेल नहीं सकते, खासतौर पर तब जब हम किसी तरह से चिट फंड से जुड़े नहीं हैं।'


देश के सबसे बड़े माइक्रो क्रेडिट ऑर्गनाइजेशन बंधन फाइनैंशल सर्विसेज के फील्ड रिप्रेजेंटेटिव्स को उत्तर बंगाल के कुछ जिलों में बंधन मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड के होने का पता चला। कुछ जगहों पर यह सोसाइटी बंधन के हाल में खाली किए गए दफ्तरों में अपने दफ्तर खोले हैं। सोसाइटी मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर, भारत सरकार के मल्टिस्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट 2002 के तहत रजिस्टर्ड होने का दावा करती है।सोसाइटी गांव वालों से गृह लक्ष्मी और धन वर्षा नाम की स्कीमों के जरिए 66 से 222 महीनों में 1000 रुपए और इसके मल्टिपल्स में डिपॉजिट ले रही है। बंधन फाइनैंशल सर्विसेज के सीएमडी चंद्र शेखर घोष कहते हैं, 'छह महीने पहले बंधन एग्रो इंडस्ट्रीज नाम से भी ऑर्गनाइजेशन बना था।' बंधन को यह भी महसूस हो रहा है कि शारदा से भी बड़ा एक चिट फंड पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के गांवों में बैंक की तरह चल रहा है।



बासुदेव मोहापात्र जैसे हजारों ठगी के शिकार निवेशकों का आरोप है कि इस लूट में पुलिस की मिलीभगत है। सी-शोर ग्रुप के चेयरमैन प्रशांत दास ना तो हमसे बात करने को तैयार हुए, ना ही उन्होंने हमारे ईमेल और फोन कॉल का जवाब दिया। उड़ीसा क्राइम ब्रांच का कहना है कि सी-शोर ग्रुप ने राज्य में 80,000 से ज्यादा निवेशकों को 600 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगाया है। 3 साल पहले फाइन इंडियासेल्स नाम की कंपनी ने भी ऐसी ही स्कीम के जरिए 2.25 लाख से ज्यादा निवेशकों से 575 करोड़ रुपये ठगे थे। सिर्फ उड़ीसा में ऐसी 40 ठग कंपनियों की पहचान हुई है, जिन्होंने निवेशकों के 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा डुबो दिए हैं।आरबीआई ने उड़ीसा में 17 नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों की सूची जारी की है जिन्हें इन्वेस्टरों से पैसे जुटाने की अनुमति नहीं है। लेकिन धोखेबाज कंपनियां म्युचुअल फंड फर्म्स या रियल एस्टेट कंपनियों की शक्ल में लोगों से पैसे जुटा लेती हैं। ऐसे मामलों में आरबीआई, सेबी, राज्यों के वित्त विभाग और पुलिस के बीच तालमेल की कमी की वजह से धोखेबाज अक्सर लोगों को लूटने में कामयाब हो जाते हैं। ऐसे मामलों में की जाने वाली कार्रवाई अक्सर नाकाफी साबित होती है, नतीजतन रेगुलेटर्स और अथॉरिटीज की नाक के नीचे फर्जी कंपनियां लोगों को अभी भी धोखा दे रही हैं।


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