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Friday, May 3, 2013

पाकिस्तानी जेलों में कैद हैं सैकड़ों सरबजीत

पाकिस्तानी जेलों में कैद हैं सैकड़ों सरबजीत


बंद करो घड़ियाली आंसू, सुनिश्चित करो सुरक्षा

अब कम से कम भारत सरकार पाकिस्तान की जेलों में बंद अन्य सरबजीतों की रिहाई के प्रयास करे तो हो सकता है इस सरबजीत की आत्मा को शान्ति मिले और यही इस शहीद की शहादत को सच्चा सम्मान होगा...

सिद्धार्थ शंकर गौतम


पाकिस्तान में लाहौर की कोटलखपत जेल में कैद सरबजीत की जिन्ना अस्पताल में हुई मौत को भारत सरकार की हार कहा जाए या पाकिस्तान का अजमल आमिर कसाब तथा अफज़ल गुरु की फांसी का तथाकथित बदला? 49 वर्ष के सरबजीत की लगभग आधी उम्र भारत सरकार की ओर से मदद के इंतजार में बीत गयी और उसे मौत भी नसीब हुई तो इसी इंतजार में कि इस पड़ाव पर तो उसके देश की सरकार उसकी वतन वापसी की कोशिशों को परवान चढ़ायेगी. पर हाय री किस्मत, प्रधानमंत्री के मौन और विदेश नीति की कमजोरी सरबजीत की जान पर भा

री पड़ गयी.

sarabjeet-surjeet

बीते शुक्रवार को लाहौर की कोट लखपत जेल में नफरत से भरे खूंखार कैदियों के सुनियोजित हमले में मरणासन्न हुए सरबजीत ने जिन्ना अस्पताल में बुधवार आधी रात के बाद भारतीय समयानुसार डेढ़ बजे इस बेरहम दुनिया से विदा ले ली. 1964 में पंजाब के भिखीविंड, तरनतारन में जन्मे सरबजीत में कभी लाहौर नहीं देखा होता यदि वह 28 अगस्त 1990 को सीमापार पाकिस्तान में गिरफ्तार नहीं होता.

पाकिस्तानी सेना ने सरबजीत पर भारतीय जासूस होने का आरोप लगाया, पर शायद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक भारतीय नागरिक को अपने यहां कैद कर रख पाना कठिन होता. लिहाजा 1991 में जासूसी के अलावा लाहौर व फैसलाबाद बम धमाकों के आरोप में लाहौर की एक अदालत में मुकदमा चलाकर पाकिस्तान सैन्य कानून के तहत मौत की सजा सुना दी गयी.

मामले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराते हुए उनकी सजा बरकरार रखी. कुछ वर्षों तक मामले को कूटनीति के तहत दोनों देशों की सरकारों ने दबाकर रखा किन्तु मार्च 2006 में एक बार पुनः पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी समीक्षा याचिका खारिज की. समीक्षा याचिका खारिज करने का कारण सुनवाई के दौरान सरबजीत के वकील की गैरमौजूदगी को बताया गया. मौत की सज़ा पाए सरबजीत को एक और झटका तब लगा जब तीन मार्च 2008 को तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उनकी दया याचिका वापस कर दी. हालांकि तब तक भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सहानुभूति भी सरबजीत के साथ जुड़ चुकी थी लिहाजा मई 2008 में पाक सरकार ने सरबजीत की फांसी पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी.

इस बीच सरबजीत की रिहाई के लिए कई बार भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ताएं हुईं. एकायक 26 जून 2012 को पाकिस्तान सहित अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खबरें आईं कि पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सरबजीत की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है. हालांकि यह ख़ुशी अधिक समय तक नहीं टिक सही और कुछ घंटे में ही पाक ने इसका खंडन कर दिया. 26 अप्रैल 2013  को जेल में छह कैदियों के हमले में बेहद गंभीर रूप से घायल सरबजीत ने खुद कई बार खुद की जान को खतरा बताया था और कसाब तथा अफज़ल की भारत में फांसी ने सरबजीत पर अनहोनी होने के अंदेशे को पुख्ता कर दिया था.

पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों ने भी कसाब तथा अफज़ल का बदला सरबजीत से लेने की धमकी दी थी. ऐसे में भारत सरकार की अनजान खतरे के प्रति सवेदनहीनता और पाकिस्तान में कैदियों के साथ होने वाले अमानवीय वर्ताव पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की अनदेखी, दोनों ही कटघरे में हैं. सबसे अधिक शर्म तो भारत सरकार को करनी चाहिए जो सरबजीत के मामले से जुडी राष्ट्रीय अस्मिता और जनता की भावनाओं को नहीं समझ पायी. अब तो यह कहने में भी किसी को कोई गुरेज नहीं होगा कि इससे अधिक निकम्मी और कमजोर सरकार भारतीय लोकतंत्र में कभी नहीं रही.

पाकिस्तान की जहां तक बात है तो उससे किसी भी तरह की संवेदनशीलता की उम्मीद बेमानी ही है. जिस सरबजीत को पाकिस्तान ने जीते जी रहम की भीख देने से इनकार किया, उसी ने उनके शव की सुरक्षा में तमाम तामझाम दिखाया. उन्हें सुरक्षा तब दी गयी जब उनके प्राण पखेरू हो चुके थे. सबसे बड़ी विडंबना तो देखिये कि सरबजीत का इलाज जहां चार डॉक्टरों की टीम ने किया वहीं पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों का बोर्ड छह सदस्यीय था.

खैर अब जबकि सरबजीत का पार्थिव शरीर भारत लाया जा चुका है और पूरे राजकीय सम्मान से साथ उसकी अंतेष्टि भी कर दी गयी है, देखना होगा कि भारत सरकार का रुख इस पूरे मामले को लेकर पाकिस्तान के विरुद्ध क्या रहता है? क्या भारत पाकिस्तान से अपने सभी कूटनीतिक, आर्थिक, सामाजिक संबंधों को विराम दे देगा? क्या पाकिस्तान भारत को सरबजीत से जुडी सच्चाई बताएगा? सरबजीत की मौत से जुड़े मामले में संभावनाओं को न तो नकारा जा सकता है और न ही कुछ साबित किया जा सकता है.

हां, इतना अवश्य है कि भारत सरकार ने सरबजीत मामले पर जिस तरह की संवेदनहीनता का प्रदर्शन किया है वह देश के नागरिकों को कतई बर्दाश्त नहीं है. संवेदनाओं के नाम पर पीड़ित परिवार के समक्ष आंसू बहाने भर से किसी सरकार की नाकामी को नहीं छुपाया जा सकता. सरबजीत की मौत भारत-पाकिस्तान के लिए इतिहास भले ही बन जाए, मगर दोनों देशों के मध्य उपजी वैमस्यता की लकीर को ही आगे बढ़ाएगी. खैर; अब कम से कम भारत सरकार पाकिस्तान की जेलों में बंद अन्य सरबजीतों की रिहाई के प्रयास करे तो हो सकता है इस सरबजीत की आत्मा को शान्ति मिले और यही इस शहीद की शहादत को सच्चा सम्मान होगा.

siddharthashankar-gautamसिद्धार्थ शंकर गौतम उज्जैन में पत्रकार हैं.

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-06-02/69-discourse/3971-pakistani-jelon-men-kaid-hain-saikadon-sarbjeet-by-sidarthgautam-shankar-for-janjwar

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