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Friday, May 10, 2013

तृणमूल के भीतर उथल पुथल,विस्फोट अभी हो नहीं रहा है लेकिन स्थिति बाकायदा विस्पोटक!

तृणमूल के भीतर उथल पुथल,विस्फोट अभी हो नहीं रहा है लेकिन स्थिति बाकायदा विस्पोटक!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


शारदाकांड को लेकर तृणमूल के भीतर उथल पुथल मचा हुआ है।विस्फोट अभी हो नहीं रहा है लेकिन स्थिति बाकायदा विस्पोटक है।दागियों के खिलाफ खुलकर लोग बोल नहीं पा रहे हैंक्योंकि मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी न केवल उनका बचाव कर रही हैं, बल्कि बेहद आक्रामक तेवर अपनाये हुई हैं वे इस मुद्दे पर।ऐसे में बोलना अपनी मौजूदा हैसियत के खिलाप हो जायेगा। लेकिन खामोश भी रहे तो राजनीतिक भविष्ष्य अनिश्चित हो जाने की आशंका है।अजीबोगरीब अंतर्द्वंद्व में हैं तृणमूल के सारे नेता, जिनका दावा है कि वे इस कांड से जुड़े नहीं है। अब जनता जनार्दन के सामने अपना दावा भी पुख्ता करना अनिवार्य है। कबीर सुमन जैसे मुक्त पंछी की बात अलग है, उनपर दलीय अनुशासन लागू नहीं होता। पर उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी की गत देखने के बावजूद यह बेचैनी हदें पार करने लगी हैं।


तृममूल मजदूर आंदोलन को लेकर पहले भी विस्फोटक बातें करते रहे हैं शोभनदेव। मजदूर मोर्चा की नेता दोला सेन के साथ उनके युद्धविराम की खबर नहीं है। अब शारदाकांड के मद्देनजर ऐलानिया तौर पर नेताओं की स्वच्छ चवि अनिवार्य है कहकर उन्होंने यह भी साबित किया कि वे कभी भी बाजार में खड़े होकर ललकार सकते हैं, `आ, बैल मुझे मार!'


पार्थ के बजाय मदन मित्र, फिरहाद हकीम, बुजुर्ग नेता सुब्रत मुखर्जी दीदी के कहीं ज्यादा करीब होने लगे हैं। पार्थ को किनारे करके औद्योगिक विकास की दशा तय करने की दीदी की पहल को देखते हुए साफ जाहिर है कि उद्योग मंत्रालय के कामकाज से वे बहुत ज्यादा खुश तो हैं नहीं।पार्थ, सौगत राय, शुभेंदु अधिकारी और अब शोभन देव चट्टोपाध्याय भी पार्टी नेताओं की स्वच्छ छवि की बात करने लगे हैं।


एक तो दागियों के खिलाफ कामूम कानून की तरह काम करेगा , कहकर उन्होंने दीदी का मूड बांपने भयानक गलती कर दी। फिर दूसरे बड़ों के फंसे होने का भी उन्हें अंदाजा नहीं है। जहां खाद्य मंत्री ज्योति प्रिय मल्लिक खुलेआम माकपा नेताओं के साथ जहरीले नागों का जैसा सलूक करने का फतवा दे रहे हैं, जगदल से विधायक अर्जुन सिंह माकपा और कांग्रेस नेताओं को देख लेने की धमकी दे रहे हैं और दीदी ने उन्हें कुछ कहा भी नहीं है, वहीं पार्थ बाबू टीवी चैनलों पर माकपाइयों के साथ बैठकर पार्टी का बचाव करने या माकपाइयों पर सीधे हमला करने के बजाय अपनी छवि निखार रहे हैं।


सोमेन मित्र की विधायक पत्नी शिखा मित्र पहले ही अपने बागी तेवर के लिए प्रसिद्ध हो चुकी है। तृणमूल सुप्रीमो के सीबीआई विरोधी जिहाद से बेपरवाह सांसद सोमेन मित्र रात दिन फिरभी सीबीआई महामंत्र का जाप कर रहे हैं। औद्योगीकरण के मसले पर दीदी से अलग राय बताने की गुस्ताखी कर चुके सौगत राराय फिलहाल फ्रिज में हैं, जहां से आवाज बाहर आती नहीं है।सांसद शुभेदु अधिकारी दीदी के काफी नजदीक माने जाते हैं। नंदग्राम, हल्दिया और पूरे जंगलमहल में वे पार्टी की जान हैं, वे भी दागियों के खिलाप बिना देर किये कार्रवाई की मांग कर चुके हैं।


सुदीप बंद्योपाध्याय इस परिदृश्य में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।उनका वोट बैंक बाकी नेताओं से अलग है और उन्हें अगला चुनाव जीतने के लिए इस वोट बैंक का मिजाज समझना ही ​​होगा।दागियों के हक में खड़ा होकर आत्महत्या करने वालों में कम से कम वे नहीं हैं।हालात जिस तेजी से बदल रहे हैं, सुदीप को भी आर पार की हालत से निपटना होगा और अपनी जुबान पर लगे ताला को खोलना होगा।उन तमाम लोगों को देर सवेर अपनी स्थिति साफ करना होगी, जो  ऐसा कर​​ सकते हैं।जिनकी जुबान की चाबी दीदी  पास है, वे तो खैर मूक वधिर हैं ही।


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