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Tuesday, May 7, 2013

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के नेन्द्रा गाँव को सुरक्षा बलों ने तीन बार जलाया था . हम गाँव वालों को २००७ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने ले गये . गाँव वालों की इस हिम्मत से नाराज़ होकर पुलिस ने नेन्द्रा गाँव को चौथी बार फिर जला दिया .

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के नेन्द्रा गाँव को सुरक्षा बलों ने तीन बार जलाया था . हम गाँव वालों को २००७ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने ले गये . गाँव वालों की इस हिम्मत से नाराज़ होकर पुलिस ने नेन्द्रा गाँव को चौथी बार फिर जला दिया . 

इसके बाद हमने इसे चुनौती के रूप में लिये और हमने सरकार को चुनौती दे दी कि हम इस गाँव को बसा रहे हैं . हम गाँव में ही गाँव वालों के साथ रहेंगे ,सरकार अगर आदिवासियों को मारना चाहती है तो उसे पहले हमें मारना पड़ेगा . 

अपनी जान बचाने के लिये आंध्र प्रदेश में छिप कर रह रहे आदिवासियों को हम आंध्र से वापिस लाये . बहुत से आदिवासी जान बचाने के लिये जंगलों में छिपे हुए थे . उन्हें जंगल से निकाल कर हम लोग वापिस गाँव में लाये . सबकी झोपडियां दुबारा बनाई गयीं .

इसके बाद हम उस गाँव में साल भर से ज्यादा रहे . इन आदिवासियों का दो साल से बाज़ार आना बंद था . हमने आदिवासियों को बाज़ार ले जाना शुरू किया . इस बात से चिढ़ कर हमारे आदिवासी साथी सुखनाथ को पुलिस ने पकड़ कर जेल में डाल दिया . सुखनाथ पर इलज़ाम लगाया गया कि उसके पास से बम और नक्सलियों के पोस्टर मिले हैं . 

अदालत ने पूछा कि इनके पास से जो बम मिले थे वो कहाँ हैं ? पुलिस ने जवाब दिया कि वो बम तो हमने फोड दिये , अदालत ने पूछा कि इनके पास से जो पोस्टर मिले थे वो दिखाइए ? पुलिस ने कहा कि वो पोस्टर तो हमने जला दिये . अदालत ने कहा कि कोई गवाह लाइए , पुलिस ने जिन गवाहों को पेश किया उन्होंने पुलिस की कहानी को झूठ बताया . सुखनाथ को अदालत ने बरी कर दिया . लेकिन उसे दो साल जेल में रहना पड़ा . 

साथ के दोनों फोटो नेन्द्रा गाँव के हैं . एक में जला हुआ घर और उस घर की महिला और उसके बच्चे हैं . दूसरे चित्र में गाँव वालों से उनकी कहानी सुनते हुए बीच में एक बड़ी चट्टान पर मैं बैठा हूं .

अन्याय की कितनी ही कहानियां मेरे सीने में दबी पड़ी हैं . लेकिन किसे सुनाऊँ ?
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