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Saturday, May 4, 2013

शादी करने पर जहां उजाड़ दी जातीं बस्तियां

शादी करने पर जहां उजाड़ दी जातीं बस्तियां


यह कोई रहस्य नहीं, हजारों का है सच

पबनावा के हमलावरों के मंशा यहीं शांत नहीं हुई है. दलित समुदाय एवं युवक के परिवार पर दबाव डाला जा रहा है कि वे सूर्यकान्त और मीना की शादी तुड़वाकर उनकी लड़की को उनके हवाले कर दें,लेकिन चमार समुदाय ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया...

पबनावा से लौटकर जेपी नरेला 


दिन के करीब दो बजे थे जब हम कैथल के पबनावा गाँव की दलित बस्ती के गेट पर पहुंचे. यह वही दलित बस्ती थी, जहां 13 अप्रैल को गाँव की दबंग जातियों ने दलितों पर कहर ढाया था. बस्ती में प्रवेश से पहले हमें 15-20 पुलिस वाले दलित बस्ती के प्रवेश द्वार पर दिखे. इनमें से कुछ चारपाई पर लेटे आराम फरमा रहे थे, कई अलसाए ढंग से बैठे थे.

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सूर्यकान्त के पिता महिंदा पाल : दहशत में गुजरते दिन

देख के लग ही नहीं रहा था कि इतनी बड़ी वारदात के बाद ये पुलिस कर्मी दलित बस्ती की सुरक्षा के लिए अपनी ड्यूटी मुस्तैदी के साथ निभा रहे हैं.बहुत ही अनमने, अनचाहे ढंग से, जैसे कि केवल अपनी ड्यूटी निभाने के लिए यहां बैठें हैं, और वह भी एक दलित बस्ती की सुरक्षा का कार्य जैसे उनकी मजबूरी बन गया है . जब हम गेट पर पहुंचे थे तो अलसाई आँखों से उनमें से कई बैठे हुए सिपाहियों ने हमारी ओर देखा.

हमले की शिकार दलित बस्ती के लगभग हर घर का टीम ने मुआयना किया. बस्ती के ज्यादातर मकान खाली पड़े थे . चन्द मकानों में इक्का-दुक्का पुरुष-महिला मौजूद थे. पबनावा के दलित बस्ती के लोगों ने बताया कि 21 वर्षीय दलित युवक सूर्यकान्त ने गांव की ही उच्च जाति (रोड़) की मीना से 8 अप्रैल को चंडीगढ़ हाईकोर्ट में शादी कर ली. शादी हाईकोर्ट में इसलिए कि क्योंकि डिस्ट्रीक्ट कोर्ट में जोड़े की जान का खतरा था. 

संयोग से शादी के बाद जोड़े तो सलामत रहे, लेकिन इस अंतर्जातिय विवाह के बदला रोड़ जाति के करीब 6 सौ लोगों ने 13 अप्रैल की रात चमार समुदाय की बस्ती पर लाठी, कुल्हाड़ी, बन्दूक, देशी कट्टा इत्यादि हथियारों के साथ हमला बोल कर लिया दिया. गौरतलब है कि गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों में शामिल सूर्यकान्त शहर में मामूली नौकरी करते हैं और इनके पिता महिन्दा पाल ईंट भट्ठा मजदूर हैं, जबकि मीना के पिता पृथ्वीसिंह गरीब किसान की श्रेणी में आते हैं. 

करीब 125 मकानों के दरवाजे तोड़े, घरों का सामान तोड़फोड़ डाला, कई घरों के टेलिवीजन, फ्रीज तोड़ डाले. लगभग 10 मोटरसाइकलें तोड़ दीं. कलीराम ने बताया कि उनके घर का टेलीविजन और ड्रेसिंग टेबल तो तोड़ा ही, साथ ही करीब 29000 रुपए भी लूट कर ले गए . दर्शनसिंह ने बताया कि उनके गैस सिलेन्डर में आग लगाकर उनके मकान में विस्फोट करने का प्रयास किया, ताकि विस्फोट के बाद घर का कोई भी सदस्य बच न पाए . घरों में लगी पानी की टंकियां तोड़ डाली, नल तोड़ दिए गए, बस्ती में कई परचून की दुकानदारी कर रहे लोगों के दुकानों का सामान उठा ले गए और बाकी सामान तोड़फोड़ दिया गया . मले के दौरान तीन लोगों को गंभीर चोटें आई और रोहतक के सिविल अस्पताल में उनको भर्ती कराया गया . 

दलित बस्ती के दर्शन सिंह नामक युवक से हमने पूछा कि क्या हमले की आशंका आपलोगों को थी, तो उन्होंने बताया कि '13 अप्रैल को रोड़ जाति के समुदाय की दोपहर में एक पंचायत हुई थी, जिसमें करबी 500 लोग मौजूद थे . उसी में दलित बस्ती पर हमले का निर्णय लिया गया था.' दर्शन सिंह आगे कहते हैं, 'मैंने करीब ढाई बजे दोपहर ढ़ाड़ां गांव के थाना प्रभारी एवं डीएसपी कार्यालय में फोन कर हमले की आशंका की सूचना दी . दूसरी बार करीब शाम छह बजे फिर फोन किया. तीसरी बार करीब साढ़े आठ बजे रात को थाना प्रभारी, ढ़ाड़ां एवं डीएसपी कार्यालय को फोन किया. उसके बाद करीब 15-20 पुलिस कर्मी दलित बस्ती से दूर घूमते दिखाई दिए, जैसे वे हमारी सुरक्षा के लिए नहीं, सैर-सपाटा के लिए आये हैं.आखिरकार रात नौ बजे पुलिस की मौजूगदी में ही दलित बस्ती पर हमला शुरू हुआ.' दर्शनपाल की राय में 'घटना पुलिस प्रशासन, स्थानीय राजनीतिज्ञ के गठजोड़ से घटित हुई' 

इस घटना के बाद गांव ढ़ाड़ां के थाना प्रभारी ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के तहत मामला दर्ज कर करीब 22 लोगों को गिरफ्तार किया . प्राथमिक रिपोर्ट में कुल 52 व्यक्ति नामजद हैं . 30 व्यक्ति अभी फरार हैं . 14 अप्रैल को दर्ज एफआईआर में धारा 148/149/333/452/427/307/395/332/353/186/120बी लगाई गई है, जिसका एफआईआर नम्बर 39 है. 

चंदगीराम की ओर से दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि अन्तर्जातीय विवाह की सूचना के बाद रोड़ जाति के करीब 500-600 लोगों की 13 अप्रैल 2013 को पबनावा गांव में एक पंचायत हुई . पंचायत में निर्णय लिया गया कि रोड़ बिरादरी की लड़की को चमार जाति का लड़का भगाकर ले गया है, जिसमें हमारी बिरादरी की नाक कट गई है . इसी रंजिश के कारण सारी पंचायत ने फैसला कर योजनाबद्ध तरीके से हमारे मकानों पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया और हमारे को ढे़ड, चमार, जल्लाद, कह रहे थे . हमला देशी कट्टे से लेकर लाठियों, डंडों, कुल्हाडि़यों, तलवारों से किया गया है . उपरोक्त घटना और एफआईआर के बाद युवक एवं युवती दोनों हरियाणा पुलिस के सेफ हाउस में हैं .

हमलावरों के मंशा यहीं शांत नहीं हुई है. दलित समुदाय एवं युवक के परिवार पर दबाव डाला जा रहा है कि वे सूर्यकान्त और मीना की शादी तुड़वाकर उनकी लड़की को उनके हवाले कर दें . किन्तु चमार समुदाय ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया . हरियाणा की शिक्षामंत्री गीता देवी ने दलित परिवारों पर समझौते का भी दबाव डाला और कहा कि एक ही गांव में शादी करना ठीक नहीं होता है . 

सुरक्षा कारणों की वजह से दलित परिवारों की ज्यादातर महिलाएं और बच्चे पबनावा गांव से हटाकर दूसरी जगह भेज दिए गए थे . फिलहाल पबनावा गांव में दलित परिवारों में ज्यादातर पुरुष ही मौजूद हैं . घटना के बाद दलित बस्ती के गेट पर लगभग 15-16 निहत्थे पुलिस कर्मी सुरक्षा के लिए मौजूद हैं . पबनावा गांव के दलित समुदाय के लक्ष्मीचंद कहते हैं, 'दबंग जातियों को कानून व्यवस्था का डर नहीं है, आखिर सरकार तो उनकी ही है.'

घटनाक्रम के बाद दलितों को कुछ राहत सामग्री, राशन इत्यादि सरकार की ओर से भेजी गई है. लेकिन दलितों ने मांग की है कि जब तक सभी आरोपी गिरफ्तार नहीं कर लिए जाते हैं, हम लोग सरकार की कोई भी राहत मंजूर नहीं करेंगे . दलितों के टूटे घरों के दरवाजे बनाने के लिए सरकार की तरफ से कर्मचारी घर-घर पहुँच भी रहे हैं. दलित बस्ती के दर्शनसिंह ने बताया कि' हमलोग रोड़ जाति के लोगों के खेतों में मजदूरी करके साल भर का अनाज जमा कर लेते हैं . इस बार हमारा नुकसान हो गया है . अब धान की खेती का समय आ रहा है . अब रोड़ जाति के लोगों के खेतों में और काम नहीं कर पाएंगे, इसलिए भविष्य में खाने के भी लाले पड़ने वाले हैं . अभी कुछ आने-जाने वाले संगठन, व एनजीओ वगैरह हम लोगों के खाने के लिए कुछ आर्थिक सहायता दे जा रहे हैं, इसलिए अभी भुखे मरने की नौबत नहीं आई है.'

पबनावा गांव की सामाजिक-आर्थिक स्थिति

हरियाणा में जिला कैथल के गांव पबनावा की कुल आबादी लगभग 18 हजार के करीब है और करीब 8 हजार मतदाता हैं . इस आबादी में चमार जाति की आबादी 12 सौ के करीब है . बाल्मिकियों के घर 75-80 के करीब है, बाजीगर जाति के लगभग 30 परिवार हैं, नाइयों के लगभग 50 घर हैं, कुम्हारों के 50 घर, बढ़ई 150 घर, ब्राहम्ण करीब 100 घर, रोड़ जाति के करीब 200 घर और 50 घर मुस्लीमों के हैं (साथ में एक मस्जिद भी है) . लगभग 20-20 एकड़ कृषि भूमि रोड़ जाति के दो परिवारों के पास है . बाकी मध्यम व छोटे किसान हैं . ग्रामसभा की लगभग 30 एकड़ जमीन है . दलित परिवारों में कुछ परिवारों के पास एक एकड़ के आसपास जमीन है, जिससे उनके खाने भर की भी पूर्ति नहीं हो पाती. ज्यादातर दलित रोड़ जाति के खेतों में मजदूरी करते हैं . कई परिवार राजगिरी मिस्त्री का काम और कई परिवार अन्य मजदूरों के काम कर अपना गुजर-बसर करते हैं . करीब 17-18 दलित व्यक्ति छोटी-मोटी सरकारी नौकरी भी करते हैं . इनमें ज्यादातर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं . चमार जाति के लगभग 50 परिवार बीपीएल में आते हैं . इनमें शिक्षा का स्तर कुल करीब 5-6 नौजवान इंटर कॉलेज की शिक्षा व 4-5 स्नातक की शिक्षा ले रहे हैं . कई दलित परिवार गाय-भैंस भी पालते हैं .

हरियाणा में दलित उत्पीड़न

दलितों पर अत्याचार की घटनाएं पिछले डेढ़ दशकों से निरंतर बढ़ी है . हरियाणा में कांगे्रस की सरकार एक विशेष जाति की सरकार बनकर रह गई है . दूसरी तरफ, एक विशेष जाति के मध्ययुगीन बर्बर सामंती मूल्यों से ग्रसित खाप पंचायतें हरियाणा प्रदेश में निर्णायक भूमिका में मौजूद हैं . अन्तर्जातीय विवाहों के विरोध में पिछले दिनों कई फैसले ये खाप पंचायतें सुना चुकी हैं और ताकत के दम पर जबरदस्ती लागू की भी करवा चुकी हैं . हुड्डा सरकार के शासनकाल में दलित उत्पीड़न की घटनाएं दुलिना काण्ड, जिसमें 15 अक्टूर 2002 को झज्जर जिले में 5 दलितों की हत्या कर दी गई थी . गोहाना काण्ड: सोनीपत जिले के गोहाना में 2007 में दलितों के घरों पर हमला कर उनके घरों का सामान तोड़फोड़ कर घरों में आग लगाई गई, फिर लारा नाम के दलित युवक को गोली मार दी गई . दौलतपुर काण्ड: 15 फरवरी 2012 को उकलाना के दौलतपुर गांव में राजेश नाम के दलित युवक का हाथ इसलिए काट दिया गया कि उसने दबंगों से मटके से पानी पी लिया था . पट्टी गांव काण्ड: सन् 2012 में पट्टी गांव के एक दलित युवक ने दबंग जाति के युवती से प्रेम विवाह कर लिया तो दबंगों की पंचायत ने दलित युवक का मुंह काला कर पूरे गांव में घुमाया और उसके पिताश्री पर जुर्माना भी लगाया गया . डाबड़ा काण्ड: 9 सितम्बर 2012 को नाबालिग दलित लड़की से सामूहिक बलात्कार से दुखी पिता ने आत्महत्या कर ली . मिर्चपुर काण्ड: 19 अप्रैल 2010 के मिर्चपुर काण्ड में दलितों के 18 घरों में पेट्रोल और मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी गई थी जिसमें ताराचंद नाम के वाल्मिकी और उनके अपाहिज बेटी सुमन को घर में ही जिन्दा जला दिया गया था . भगाना काण्ड: मई 2012 मे दबंगों ने सामूहिक ग्रामसभा की जमीन और दलितों के घरों के सामने के चबूतरे पर कब्जा जमा लिया था और दलितों के प्रतिरोध के बाद दबंगों ने पंचायत कर समस्त दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया . 21 मई 2012 को करीब 70 दलित परिवारों को गांव से पलायन करना पड़ा . मदीना काण्ड: रोहतक जिला के गांव मदीना में अप्रैल 2013 में दबंग जाति के व्यक्तियों द्वारा दो दलितों की हत्या कर दी गई .

इन सारी घटनाओं में राज्य मशीनरी ने संविधान में दर्ज दलितों के नागरिक अधिकारों की धज्जियां उड़ा दी . पुलिस ने दबंग जातियों को शह दी कि वे दलित समुदाय के ऊपर खुले आम हमले करें . सामाजिक न्याय की अवधारणा की भी धज्जियां उड़ाई और साथ में दुनिया के सबसे मजबूत, सबसे बड़े और सबसे महान लोकतंत्र की भी धज्जियां उड़ाई . हरियाणा में तो चुनावी लोकतंत्र भी मृतप्रायः है, क्योंकि दलित समुदाय वहां पर दबंगों के दबाव में वोट डालते हैं और आरक्षित सीटों पर दबंगों के इशारे पर ही जीतते हैं और उन्हीं की चाटुकारिता करते हैं . दलित समुदाय के कल्याण के लिए वे कुछ भी नहीं कर पाते . संविधान की रक्षा करने वाली हरियाणा पुलिस, प्रशासन एवं सरकार अपने घर-गांव से पलायन किए हुए दलितों की पुनर्वास में आज तक कुछ भी नहीं कर पाई है . मिचपुर और भगाना के दलित परिवार आज तक दर-ब-दर की ठोकरें खाते घूम रहे हैं . हरियाणा की ये घटनाएं भारत के संविधान और लोकतंत्र को शर्मशार कर देने के लिए काफी है . गत वर्ष के दो माह के भीतर 16 सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हुईं, जिसमें 12 दलित महिलाएं थीं.

सन् 1947 में जब कांग्रेस पार्टी के हाथ में सत्ता आई तो नीति अख्तियार की गई थी कि भारत में जाति प्रथा को बनाए रखने में ही भारत के शासक वर्ग का हित है . इसलिए कांगे्रस ने कोई भी भूमि सुधार लगभग नहीं किया . नेहरू के खोखले समाजवाद, जिसके तहत पब्लिक सेक्टर का निर्माण हुआ, लेकिन भूस्वामियों की जमीन को उनके पास ही ज्यों का त्यों रहने दिया . आज उसी का नतीजा का है कि जमीन, उद्योगों एवं अन्य संसाधनों पर ऊपरी जातियों का कब्जा बना हुआ है और दलित आबादी 90 फ़ीसदी हिस्सा मजदूर है .

दलितों पर हरियाणा एवं देश के विभिन्न राज्यों में अत्याचार की घटनाएं निरंतर घट रही है . इस समस्या के निवारण के लिए भारत में क्रान्तिकारी भूमि सुधार की आवश्यकता है . तमाम दलित पार्टियों एवं संगठनों के स्थानीय कार्यकर्ता तो दलित उत्पीड़न के घटनाओं के विरोध में दिखाई पड़ने लगे हैं, किन्तु इनके नेताओं के लिए ये घटनाएं कोई मायने इसलिए नहीं रखती हैं कि इनको वोट बैंक की राजनीति करनी है और वर्तमान व्यवस्था की सेवा करनी है . इसलिए इनके पास दलित उत्पीड़न की रोकथाम और एवं जाति प्रथा की समाप्ति के लिए कोई भी जन आन्दोलन करने की नियत दिखाई नहीं देती है .

(जेपी नरेला जाति उन्मूलन आन्दोलन के राष्ट्रीय संयोजक हैं. यह रिपोर्ट जेपी नरेला,ए न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया के महासचिव अरूण मांझी और मजदूर नेता केके नियोगी द्वारा की गयी फैक्ट फाइंडिंग का अंश है.)

http://www.janjwar.com/society/1-society/3977-pabnava-dalit-atrocities-haryana

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