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Thursday, May 16, 2013

आइये, धर्म संकट में हैं और हम किसी अवतार का इंतजार करें! भविष्यवाणियों में आस्था रखें!


पलाश विश्वास


हम भारतीय अब जाने अनजाने चियारिन संस्कृति के धारक वाहक हो गये हैं। कुछ हुआ नहीं कि चियारने लगे! टांगें उठा उठाकर जंपिंग झपांग के साथ उपयुक्त नृत्य निर्देशन में चियारना ​​अब तमाम समस्याओं का समाधान हो गया है।


काहे मनवा दुःख को रोवे, जिये वही जो मुंह मा खैनी दबाइके सोवे!


अब हम आर्थिक सुधारों के दूसरे चरण में हैं। पहले हम भारत उदय का जश्न मना रहे थे और अब भारत निर्माण कर रहे हैं।बहुसंख्य बहुजन जनता तो हजारों हजार साल से अछूत हैं। उनका क्या जीना और क्या मरना! आदिवासी तो मुख्यधारा के अलगाव के शिकार हैं। दमन उत्पीड़न के लिए नियतिबद्ध। प्रतिरोध में आखेट के लिए सर्वथा उपयुक्त और इसीलिए वधस्थल है यह भारत वर्ष, जिसे हम मृत्यु उपत्यका कभी नहीं कह​​ सकते!नस्ली भेदभाव का शिकार जो भूगोल है, वहां `महासेन' की मार पड़े या  ग्लेशियर पिघलने से महाप्रलय हो जाये या समुद्रतट​​ रेडिएशन सुनामी के पर्यटनस्थल बन जाये, भूकंप हो या भूस्खलन, बेदखली हो या मनवाधिकार हनन , यह सब तो उसी मनुस्मृति​​ व्यवस्था और धर्मग्रंथों का जन्मजन्मांतर का जंजाल है, ईश्वर का अटल विधान है। आस्था अविचल होनी चाहिये क्योंकि हम एकमुश्त धर्मराष्ट्र और मुक्त बाजार के विश्व नागरिक हैं। जहां एकमात्र जन समस्या है पूंजी का अबाध प्रवाह, वह ठीक है तो हरि के गुण गाओ!


रोटी मिले तो खाओ वरना खाली पेट जश्न मनाओ। आखिर आईपीएल किस मर्ज की दवा है?


कर्मफल ही सामाजिक न्याय और समता का आधार है। इनक्लुसिव ग्रोथ है।वर्ण अकाट्य है।


विकासगाथा के इस स्वर्णिम युग में बस, बहुत हुआ, अब तमाम घोटालों, सेक्स कारोबार, फिक्सिंग, लाबिइंग, कालाधन वगैरह वगैरह पर चर्चा बंद हो ही जानी चाहिए।


सोशल नेटवर्किंग के शरारती तत्वों को बांग्लादेशी ब्लागरों की तरह सबक सिखा देना चाहिए ताकि वे पर्दाफास करते रहने की बुरी लतत से बाज आये! सबकुछ कारपोरेट मीडिया, टीवी चैनलों और चिटफंड माफिया अंडरव्र्ल्ड प्रायोजित सिनेमा की तरह भव्य होना चाहिए।असुंदर जो है, उसे काटकर निकाल फेंकना चाहिए। यह रंगभेद नहीं है, सौंदर्यशास्त्र है। जिनका सौंदर्यबोध बीमार है, उन्हें इस उदित भारत से फौरन देशनिकाला दे दिया जाये!


जो चीजें मुक्त बाजार की अनिवार्यताएं हैं, उन्हें लेकर हंगामा बरपा है। लेकिन  जनता तो मुक्त बाजार से खुश है। अपने खेत होने​​ के बावजूद कहीं और पेड़ पर निवेश कर देते हैं। जमा पूंजी बाजार के हवाले करने में कोताही नहीं करते। उपभोग और भोग के लिए सर्वत्र ​​कतारबद्ध हैं। इतनी शांति है लेकिन जो लोग गृहयुद्ध पर आमादाहैं, वे ही जनसमस्याओं का दिनप्रतिदिन सृजन करते रहते हैं। सत्तर के दशक को निपटा  दिया जब समूची युवा पीढ़ी बगावत पर थी। अब तो सर्वत्र जोंबो, जिंदा लाशों का नागिरक समाज है, जिसके मानवाधिकार या नागरिक अधिकारों से कोई सरोकार हैं ही नहीं। बायोमेट्रिक नागरिकता की यह रोबोटिक पीढ़ी है, जिसे अपनी सहूलियतों को छोड़ किसी की कोई परवाह नहीं।


विचारधाराएं तक कारपोरेट हो गयी। लोकतंत्र कारपोरेट हो गया। इस कारपोरेट के जो गुण अवगुण हैं , उन्हें हमने मान लिया है। राष्ट्रपति भवन हो या संसद ​​विधानसभा या राजनीति या शिक्षा या समाज या धर्म सर्वत्र कारपोरेट वर्चस्व है।


तो फिर क्यों खुजली है?


कानून तो बनते रहते हैं। संविधान भी कुछ होता है। पर कानून का राज कहां है? मौज मस्ती से कौन रोक रहा है? सारे जन माध्यम रंगीन ​​कंडोम हो गये हैं। चाबी तोड़कर शुरु हो जाइये! कहीं भी! कौन रोकता है? कानून है तो रक्षा कवच भी हैं!


समरथ को दोष नाहीं गुसाई!


ढोल गवार शूद्र पशु औ नारी सब ताड़न के अधिकारी।


रामचरित मानस बांच ले मन की अग्न शांत हो जायेगी।


होइहिं वही जो राम रचि राखा।


कोयला घोटालों को लेकर सारा देश प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांग रहा है। तो एक रेलमंत्री और एक कानून मंत्री की बलि चढ़ा दी। अब क्या ​​चाहते हो? राजा को शंबुक बना दिया? फिर क्या चाहिए?


राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग चलाओगे क्योंकि सारे घोटालों के तार देश के प्रधान धर्माधिकारी के रक्षाकवच से टकराकर सिरे से गुम हो ​​रहे हैं?


वित्तमंत्री को भगा दोगे जो हर रंग में अल्पमत सरकारों के बावजूद आपके लिए १९९१ से खुले बाजार में देश को तब्दील करने के लिए खून पसीना एक कर रहे हैं?दुनियाभर में घूम घूमकर देश बेच रहे हैं!


इंदिरा जमाने से लेकर मनमोहन जमाने तक नरसंहार संस्कृति की जयजयकार है। हत्यारे राष्ट्रनेता हैं और आप ​​उनकी पैदल सेना। राजनीति के रंग बदलते हैं पर हालात नहीं बदलते । नीतियों की निरंतरता जारी रहती है। निजीकरण की धूम है।​​ विनिवेश जारी है। उत्पादन ठप हैं तो सेवाओं की बहार है।कंप्यूटर का जमाना भी लद गया, रोबोट के लिए जगह खाली नहीं करोगे? क्या आंकड़ों और विज्ञापनों में भरोसा नहीं है? तो इस उपभोक्ता जीवन का मतलब क्या है, भाई?


आयातित विचारधारा के दम पर जो क्रांति कर रहे थे, उनमें से ज्यादा व्यवस्था में सध गये हैं। घोटालों में सराबोर हैं। करोड़पति से लेकर ​​अरबपति हैं।


आपको अपनी किस्मत आजमाने से कौन रोकता है?


जनता को ठगने के लिए कौन विदेशी पूंजी चाहिए जनता की जो पूंजी है, वहीं लुटकर ही तो विदेशी पूंजी बनकर फिर फिर लौट आती है। पोंजी किसलिए है?


फिर बिना पूंजी कारपोरेट फंडिंग का अद्भुत प्रावधान है। चमत्कार कीजिये। लोगों को बुरबक बनाने की , अपनों की पीठ पर छुरा मारने की​​ कला सीख लीजिये। देवों और देवियों की अनंत सिलसिला है , किसी का भी भक्त बनकर अपना मठ चालू कर दीजिये।प्रवचन से पूंजी का अंबार लग जायेगा।


सुबह से टीवी देख देखकर माथा खराब है, कुछ आयं बायं लिखा हो तो माफ करना!


आजादी के बाद तमाम रंग बिरंगे घोटाला, सेक्स कारोबा, फिक्सिंग, हत्या, नरसंहार, दंगा, फिक्सिंग, स्टिंग, पर्दाफाश, लाबिइंग पर बवंडर से कुछ बदला है?


बदला सिर्फ राजनीति का रंग है, बाकी जस का तस , फिर भी हम परिवर्तन उत्सव में सराबोर है। मुद्रास्फीति के आंकड़ों से भुखमरी का हिसाब बनाते हैं। गरीबी की परिभाषा से देश की सेहत बदल देते हैं।आंकड़ों में विकास हो जाता है। लोग खुदकशी करते हैं या स्वेच्छा मृत्यु का आवेदन या फिर जल सत्याग्रह! पर कहीं कुछ भी नहीं  टूटता।​

​​

​अपने मनमोहन बाबू के लिए शुभ ही शुभ है। असम से नामांकन होते न होते कोयला घोटाला हाशिये पर चला गया। आईपीएल अब सचमुच आईपीएल हो गया।


और तो और , यहा कोलकाता में टीवी चैनलों को दीदी मां यानी दीदी और मां माटी की सरकार से फुरसत मिल गयी! चैनलो पर खेल खत्म होने  के बाद भी आईपीएल है। पैनलों में आईपीएल है।


कोई ललित मोदी फरार हैं वर्षों से, उनकी कोई खोज खबर है? कोच्चिं की टीम भले बंद हो गयी, पर शशि थरुर फिर मंत्री बन ही गये!


बलात्कारकांड के प्रसारण में पहले भी तमाम मुद्दे और संसदीय अधिवेशन निष्णात होते रहे हैं। राष्ट्रमंडल खेलों का घोटाला याद है कोबरा पोस्ट ने जो निजी बैंकों के स्विस बैंकों में तब्दील हो जाने का खुलासा किया, उसका क्या?


अंधे अगर नहीं हैं, तो शारदा प्रमुख सुदीप्त सेन और उनकी खासमखास को देख लीजिये। उनके जलवे पर खैर मनाइये! कहां तो सीबीआई​​ को लंबा चौड़ा पत्र लिखकर गायब हुए थे तमाम महान से लेकर महामहिम तक को कटघरे पर खड़ा कर रहे थे! अब बाकायदा हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल करके सीबीआईजांच का विरोध कर रहे हैं। सुनवाई टल गयी ५ जून तक।जांच ठप है। न एफआईआर हुआ और संपत्ति जब्त हुई। बंगाल और बाकी देश में हजारों चिटफंड कंपनियां बेखौफ तमाम केंद्रीय एजंसियों की सक्रियता और  राज्यों में राजनीतिक बवंडर, कानूनी न्यायिक कवायद , आत्महत्याओं के बीच धंधा चालू रखे ​​हुए हैं।


पैसा कहां से निकालेंगे? हवाला है। आईपीएल है। तमाम राष्ट्रविरोधी संगठन और उनके देशव्यापी संगठन हैं। राजनीति के छोटे बड़े ​​आका हैं।अंडरवर्ल्ड है। कोयला माफिया है।सुदीप्त और देवयानी का खिला खिला चेहरा आईपीएलहै।


एक घोटाले का पर्दाफाश का मतलब कुछ और​​ बलिदान। बाकी गिरोहबंदी जारी। सट्टा जारी। आईपीएल जारी। दूसरे घोटालों पर फोकस का स्वथानांतरण। पुराना मामला रफा दफा।​​ सबूत गायब। अभियुक्ता छुट्टा सांड़ राष्ट्र नेता!


गंगास्नान के बाद पाप धुल जाता है। कुंब महाकुंभ तो पापियों के उद्धार के लिए है।​​ रस्म अदायगी है  तमाम खबरें। जब तक आत्मरति में निष्णात जोंबों और कंबंधों में प्राण न फूंक दिया जायेगा!


आइये, धर्म संकट में हैं और हम किसी अवतार का इंतजार करें! भविष्यवाणियों में आस्था रखें!


दिलोदिमाग पर बोझ ज्यादा लगता है तो किसी ज्योतिषी की शरण में जाकर कुंडली दिखा लें या फिर प्लरगतिशील वामपंथी परिवर्तनपंथी बंगालियों की तर्ज पर दसों उंगलियों में ग्रहों को शांत करने वाले रत्न धारण कर लें। कवच कुंडल जिनके पास हैं ,उनका क्या कहना?


वक्तव्य जारी करने वाले, आंदोलित होने वाले अब तक क्या छील रहे थे?


सबकुछ शारदासमूह की तरह पूर्व नियोजित। योजनाबद्ध। शल्यक्रिया की तरह निर्भूल। हम सिर्प चियारिनों की टांगउछालू नृत्य की चकाचौंध में असली खेल देख ही नहीं पाते।



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