Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Wednesday, May 15, 2013

देश के महत्वपूर्ण लोग जैसे डा उदित राज, डा. हनी बाबू, डा. शास्वती मजूमदार, डा. एस. के. सागर, डा. विजय वेंकटरमन, डा. सुकुमार, डा. केदार मंडल, डा. कौशल पवार, डा. सतवीर बरवाल, डा. श्री भगवान ठाकूर, डा. प्रभाकर पलाका, अनूप पटेल, लेनिन विनोबर, डा. देव कुमार ने ज्वाइंट एक्शन फ्रंट फार डेमोक्रेटिक एजुकेशन (अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं वामपंथी) का गठन इसलिए किया गया कि दिल्ली विश्वविद्यालय मंे चार वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम जितना लाभ का नहीं होगा उससे कहीं ज्यादा हानिकारक सिद्ध होगा। आज यूजीसी को इस संबंध में ज्ञापन देकर अनुरोध किया गया कि इसे तुरंत रोका जाए।

देश के महत्वपूर्ण लोग जैसे डा उदित राज, डा. हनी बाबू, डा. शास्वती मजूमदार, डा. एस. के. सागर, डा. विजय वेंकटरमन, डा. सुकुमार, डा. केदार मंडल, डा. कौशल पवार, डा. सतवीर बरवाल, डा. श्री भगवान ठाकूर, डा. प्रभाकर पलाका, अनूप पटेल, लेनिन विनोबर, डा. देव कुमार ने ज्वाइंट एक्शन फ्रंट फार डेमोक्रेटिक एजुकेशन (अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं वामपंथी) का गठन इसलिए किया गया कि दिल्ली विश्वविद्यालय मंे चार वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम जितना लाभ का नहीं होगा उससे कहीं ज्यादा हानिकारक सिद्ध होगा। आज यूजीसी को इस संबंध में ज्ञापन देकर अनुरोध किया गया कि इसे तुरंत रोका जाए।

Liked · May 10 

प्रेस विज्ञप्ति
नई दिल्ली। 10 मई, 2013

देश के महत्वपूर्ण लोग जैसे डा उदित राज, डा. हनी बाबू, डा. शास्वती मजूमदार, डा. एस. के. सागर, डा. विजय वेंकटरमन, डा. सुकुमार, डा. केदार मंडल, डा. कौशल पवार, डा. सतवीर बरवाल, डा. श्री भगवान ठाकूर, डा. प्रभाकर पलाका, अनूप पटेल, लेनिन विनोबर, डा. देव कुमार ने ज्वाइंट एक्शन फ्रंट फार डेमोक्रेटिक एजुकेशन (अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं वामपंथी) का गठन इसलिए किया गया कि दिल्ली विश्वविद्यालय मंे चार वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम जितना लाभ का नहीं होगा उससे कहीं ज्यादा हानिकारक सिद्ध होगा। आज यूजीसी को इस संबंध में ज्ञापन देकर अनुरोध किया गया कि इसे तुरंत रोका जाए।

यह आश्चर्य होता है कि यूजीसी इस पूरे मामले पर मूक दर्शक क्यों बनी है। क्या यूजीसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय को अनुमति दी है कि वह चार वर्ष के स्नातक पाठ्यक्रम लागू करे, अगर ऐसा है तो कब विश्वविद्यालय ने अनुमति मांगी और उसे इजाजत दी गयी। देश में 600 विश्वविद्यालय हैं तो क्या दिल्ली विश्वविद्यालय केवल अनोखा है जो इस पाठ्यक्रम को त्वरित गति से लागू करने पर आमादा है। यदि इतना बड़ा परिवर्तन शिक्षा जगत में करना ही था तो भारत सरकार और यूजीसी के तरफ से शुरुआत होनी चाहिए थी। इस पर पहले राष्ट्रीय बहस होती। दिल्ली विश्वविद्यालय के वाॅइस चांसलर का कथन असत्य है कि उन्हें इस कृत्य के लिए समर्थन मिला है लेकिन यह दबाव और छल-कपट से हासिल हुआ है। चार वर्ष के स्नातक कार्यक्रम के वजह से गरीब, देहात, अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछडे़ छात्रों के ऊपर वित्तीय बोझ बढ़ेगा जिससे वे भारी पैमाने पर मल्टीपल एक्जिट अर्थात् दूसरे एवं तीसरे वर्ष में अध्ययन को छोड़ देंगे। ये छात्र बड़े मुश्किल से हाई स्कूल में अंग्र्रेजी और गणित विषयों में पास होते हैं और उन्हें फिर से फाउंडेशन कोर्स मंे पढ़ना पड़ेगा जिससे शिक्षा के प्रसार पर भारी असर पड़ेगा। क्या वजह है कि दिल्ली विश्वविद्यालय इस पाठ्यक्रम को लागू करने में तेजी दिखा रहा है।

हम विश्वविद्यालय के आत्मनिर्भरता के पक्ष मंे है लेकिन यदि वह समाज के सभी वर्गों के पक्ष में हो तो। मानव संसाधन एवं यूजीसी अपनी जिम्मेदारी से 

होता है और वह स्थिति अब विश्वविद्यालय ने पैदा कर दी है। क्या दिल्ली विश्वविद्यालय संविधान के ऊपर है? यदि दिल्ली विश्वविद्यालय के वाॅइस चांसलर शिक्षा के प्रचार-प्रसार के पक्ष में होते तो इन वर्गों के छात्रों को पढ़ने का पूरा मौका मिलना चाहिए तो इससे पहले वे अन्य जरूरी कार्य जैसे आरक्षण, बुनियादी सुविधाएं छात्र एवं अध्यापक अनुपात और खाली पदों पर भर्ती पर ध्यान देते। सरकार चाहती है कि शिक्षा सब तक पहुंचे लेकिन कुलपति के इस कृत्य से वह अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहेगी। नाॅर्थ ईस्ट के छात्रों कोे हिंदी पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए अर्थात् उन्हें छूट देना चाहिए। साथ ही उत्तीर्ण करने का प्राप्तांक 40 प्रतिशत ना करके 33 प्रतिशत किया जाना चाहिए। ज्वाइंट एक्शन फ्रंट फार डेमोक्रेटिक एजुकेशन (अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं वामपंथी) महसूस करता है कि ना केवल गरीब, देहात, हिंदी भाषी छात्र शिक्षा से वंचित होंगे बल्कि दलित और पिछड़े भी। ये देश के बहुसंख्यक लोग हंैं और इतनी बड़ी आवाज की मांग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यूजीसी को फौरन हस्तक्षेप करना चाहिए और फिर भी कुलपति बाज नहीं आते हैं तो अनुदान को रोक देना चाहिए। यदि हमारी मांगे नहीं मानी जाती है तो शीघ्र ही बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा।
Like ·  · Share

No comments: