Follow palashbiswaskl on Twitter

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity Number2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti Basu is dead

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti Devi were living

Tuesday, November 5, 2013

सारे कुकर्म,भ्रष्टाचार और घोटालों का ठिकरा करदाताओं के मत्थे,चूंकि राजकोष अब दमकल है! রাজকোষে মাথা নুইয়েছে কামদুনি

सारे कुकर्म,भ्रष्टाचार और घोटालों का ठिकरा करदाताओं के मत्थे,चूंकि राजकोष अब दमकल है!

রাজকোষে মাথা নুইয়েছে কামদুনি


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल में उद्योग कारोबार से लेकर धर्म कर्म और कानून व्यवस्था सबकुछ सर्वग्रासी राजनीति के हवाले है। आम जनता से वसूले गये राजस्व और राजकोष भी राजनीतिक हित साधन के काम आ रहा है। बेहिसाब सरकारी खर्च दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। निवेश का हताशाजनक परिदृश्य बदल नहीं रहा है। माफिया और सिंडिकेट दुश्चक्र के शिकंजे में छटफटा रहे हैं उद्योग और कारोबार में लगे लोग। अपराधी और रंगबाज गली मोहल्ले गांवों  में राज कर रहे हैं। अपराध बेलगाम है।राजनीतिक रंग के हिसाब से पुलिस कार्वाई कर रही है। इतनी ज्यादा वारदातें हो रही हैं और इतना ज्यादा जनरोष बड़क रहा है कि विकास के वायदे निरर्थक हो गये हैं। राजकोष को दमकल बना दिया गया है।राजनीतिक गुंडे जिन कुकर्मों को रोज अंजाम दे रहे हैं,उनको रफा दफा करने में राजकोष को चूल्हे में झोंका जा रहा है।


भ्रष्टाचार और घोटालों का घटाटोप


भ्रष्टाचार और घोटालों का घटाटोप है और किसी भी मामले में कार्रवाई नहीं है।हर कहीं वही मुआवजा, नौकरी और प्रभावित इलाके में गैरजुरुरी सरकारी खर्च।जहां विकास कार्य सबसे जरुरी हैं,जो इलाके वाम सासन में सबसे ज्यादा विकास वंचित है,सत्ता उससे हजार योजन दूर। उद्योग और कारोबार का माहौल को सुधारने की प्राथमिकता खत्म है,और राजनीतिक समीकरण साधने की सर्वोच्च प्राथमिकता है। विपक्ष सत्तापक्ष दोनों तरफ से राज्य के विकास के लिए,राज्य को आर्थिक बदहाली से निकालने के लिए और आम जनता के हितों के लिए पहल करने की कोई राजनीतिक इच्छा ही नहीं है।


जेबकटी के अलावा असल में कुछ हो नहीं रहा


मां माटी मानुष की सरकार के परिवर्चन राज में रोज नये नये प्रकल्प की घोषणा,नये नये चमत्कार,मुआवजों की घोषणा,पीड़ितों को नौकरियां,रंग बिरंगे भत्तों,उत्सवों, योजनाओं के मार्फत राजकोष के बंटाढार और आम लोगों की जेबकटी के अलावा असल में कुछ हो नहीं रहा है।बंगाल के भविष्य और वर्तमान के लिए इससे खतरनाक कुछ नहीं है कि उद्योग कारोबार के लोगों में असुरक्षा और धनवसूली का आतंक पसर रहा है।बाहर से निवेश तो आ ही नहीं रहा है।जो निवेशक पहले से हैं,उनके सामने पलायन के सिवाय कोई बचना का रास्ता है ही नहीं।बेरोजगारी खत्म करने की कोई दिशा नहीं है और न कर्मसंस्कृति है।न कानून का राज है और न कानून व्यवस्था।इससे भी खतरनाक बात तो यह है कि नागरिक समाज खामोश तमाशबीन है और आम लोगों को आसमान में गहराते अशनिसंकेत के वज्रगर्भ मेघ दीख ही नहीं रहे हैं। भारी विपदा आन पड़ी हैं और लोग मदहोश हैं पार्टीबद्ध। कोई सही मायने में नागरिक हैं ही नहीं।


किस किस को मुआवजा


अकेले शारदा ग्रुप से जुड़े पश्चिम बंगाल के कथित चिटफंड घोटाले के 2,460 करोड़ रुपये तक का होने का अनुमान है। सवाल यह है कि किस किस को मुआवजा और नौकरी देगी सरकार।शारदा फर्जीवाड़े की जांच कर रहे श्यामल सेन आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में घोटाले का आकार 2,060 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है। आयोग ने मामले पर अपनी अंतरिम रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है और इतनी रकम के घोटाले का अनुमान लगाया है। हालांकि सूत्रों ने संकेत दिए कि प्रवर्तन निदेशालय ने भी घोटाले के आकार का अनुमान लगाया है, जो आयोग के अनुमान से अधिक है।जांच के दौरान आयोग को लगभग 17 लाख आवेदन मिले। हालांकि इनमें ज्यादातर आवेदन शारदा से जुड़े लोगों के थे, आमेजन, सुराहा माइक्रोफाइनैंस, सनमर्ग, आईकोर, रोज वैली और अल्केमिस्ट जैसी कंपनियों ने भी आयोग के पास शिकायत दर्ज कराई थी और सुनवाई के लिए आई थीं।लगभग 85 प्रतिशत शिकायतें 10,000 रुपये से कम निवेश के लिए थीं, जबकि किसी व्यक्ति द्वारा शारदा में सर्वाधिक निवेश 27 लाख रुपये हुआ था। इस बीच, श्यामल सेन आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य सरकार ने प्रभावित लोगों को मुआवजा देना शुरू कर दिया है। अक्तूबर महीने के शुरू में शारदा समूह में रकम लगाने वाले करीब 1,000 जर्माकर्ताओं को चेक वितरित किए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने लोगों को मुआवजा देने के लिए 500 करोड़ रुपये के एक कोष का निर्माण किया है।


सिंगुर का अवस्थान बदल गया


सिंगुर भूमि आंदोलन से ममता बनर्जी के राजनीतिक उत्कर्षकाल का शुभारंभ हुआ।सिंगुर से टाटामोटर्स को खदेड़ दिया गया,जहां किसानों को अपनी जमीन नया कानून बनाने के बाद भी अबीतक नहीं मिली।अनिच्छुक किसानों ने मुआवजा नहीं मिला और जमीन भी वापस नहीं मिली।अब उन्हें नाममात्र भत्ता दिया जा रहा है।सिंगुर मेंबेदखल किसानों के पास  कोई काम नहीं है, क्योंकि यहां फैक्टरी नहीं है और एक किसान के रूप में भी उनका कोई काम नहीं हैं, क्योंकि अब उनके पास जमीन ही नहीं बची है। हालांकि अब वहां से जमीन आंदोलन के दो दो नेता मंत्री हैं।मुख्यमंत्री भी सिंगुर से हैं,यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।क्योंकि सिंगुर के बिना दीदी का मुख्यमंत्रित्व सोचा ही नहीं जा सकता।दीदी ने सत्ता में आते ही सिंगुर के कायाकल्प की कसम खायी था।उन कसमों का क्या हुआ,उन वायदों का क्या हुआ,कौन मांगे हिसाब। बहरहाल टाटा की राजारहाट परियोजना के खिलाफ भी अब आंदोलन है,जिसे सत्तादल ने हरी झंडी दे दी है,लेकिन हिडको की जमीन पर प्रस्तावित इस जमीन के असली मालिक किसान आंदोलन कर रहे हैं इसलिए कि तृणमूली सिंडिकेट और प्रोमोटरों के हित में इस परियोजना को हरी झंडी मिली है। मजे की बात तो यह है कि राजारहाट में ही कृषि भूमि के हस्तांतरम के मामले में सरकार पूर्व माकपाई मंत्री गौतम देव को जिन आरोपों के तहत घेरने की कोशिश में हैं,अब राजारहाट के किसान वहीं आरोप तृणमूल नेताओं के खिलाफ लगा रहे हैं।सिंगर में टाटा के खिलाप लामबंद थी पार्टी और अब राजार हाट में टाटा के हक में लामबंद।


याद करें कि सिंगुर में टाटा मोटर ने अपनी सबसे सस्ती कार नैनो की फैक्टरी लगाई थी और उनकी योजना उस फैक्टरी से हर साल 2,50,000 कार तैयार करने की थी।शुरुआती पूंजी निवेश के बाद वहां वाहन बनाने वाली और कई छोटी-मोटी फैक्टरियां भी लगी थी, जो कार के लिए सहायक उपकरण तैयार करनेवाली थी।


जमीन का मसल हल हुआ ही नहीं


ममता बनर्जी सरकार ने घोषणा की है कि वह उद्योग के लिए किसानों के जमीन का अधिग्रहण नहीं करेगी और जिन्हें उद्योग लगाना हो वे सीधे किसानों या जमीन के मालिकों से जमीन खरीदे। तमाम सम्मेलनों और उत्सवों के बावजूद निवेशकों के लिए जमीन का मसला हल हुआ नहीं है।सरकार के इस निर्णय को लोग औद्योगिक विकास में अवरोधक मानते हैं।इससे ज्यादा बड़ा संकट यह है कि बाजार दरों पर जमीन खरीदने के लिए भी निवेशकों को अंततः राजनीतिक गुंडों और सिंडिकेट समूह से सौदेबाजी करनी पड़ रही है।


धर्म कर्म के नाम अपराधियों की खुली छूट

कालू पूजा आयोजनों में बंगाल भर में खास तौर पर कोलकाता ,हावड़ा,उपनगरों और शिल्पांचल में रंगबाजों का वर्चस्व वाम जमाने से चला आ रहा है। इस परंपरा को रातोंरात बदला नहीं जा सकता। वैसे भी पारंपारिक तौर पर काली पूजा तो डकैत ही करते थे।सिद्धकाली और गुह्यकाली की पूजा तांत्रिक करते थे।जनता तो रक्षा काली या भद्रकाली या श्यामा पूजा के उपासक हैं।दीवाली में वैसे भी भारत भर में धनलक्ष्मी की पूजा होती है और इसी दिन शेयर बाजार का मुहूर्त भी होता है। जाहिर है कि कालीपूजा में रंगबाजों के वर्चस्व के लिए सत्तादल को जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता।


लेकिन लगातर लोकसभा, विधानसभा,पंचायत और पालिका चुनाव जीतने के बाद रंगबाज राजनीतिक गुंडों का हौसला इतना बुलंद है कि अबकी दपा कालीपूजा पंडालों के आसपास फटकने से ही करतराते रहे लोग।दूर से आलोकसज्जा और आतसबाजी देखकर नशाखोर शब्दतांडव से दूर रहे लोग। जिन्होंने विरोध किया,उन तमाम लोगों को बंगाल भर में धुन डाला गया। पुलुसवाले भी बख्शे नहीं गये।उत्तर 24 परगना में बेटी को कुप्रस्ताव देने का विरोध करने पर एक पिता की जान भी चली गयी।


मंत्रियों और राजनेताओं के खुलकर पूजा आयोजनों से जुड़ जाने के बाद किसी माई के लाल में दम ही नहीं है कि ऐसी निरंकुश गुंडागर्दी का किसी भी स्तर पर विरोध करें।


यहीं नहीं,परिवर्तन जमाने में फर्जी धर्मगुरुओं, ज्योतिष कारोबारियों और तांत्रिकों के पौ बारह हैं।पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले से एक महिला सहित तीन लोगों को मानव बलि के प्रयास के लिए गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने रविवार को यह जानकारी दी। यह घटना शनिवार को राजधानी कोलकाता से करीब 240 किलोमीटर दूर स्थित जिले के बारुनियाघाटा गांव में घटी।


एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि हमने तंत्रमंत्र करते हुए एक महिला सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। वे लोग मानव बलि देने की तैयारी कर रहे थे। पुलिस के मुताबिक, सम्राट माल अपने वैवाहिक विवाद का समाधान करने के लिए महिला से संपर्क साधा। महिला ने कहा कि उसकी समस्या का एक तांत्रिक समाधान है लेकिन उसके लिए एक मनुष्य का सिर चाहिए होगा।


माल को यह भी बताया गया था कि शनिवार का दिन मानव बलि के लिए अत्यंत उपयुक्त है, क्योंकि उस दिन काली पूजा है। एक आदमी पर हमले के प्रयास में माल और उसके एक सहयोगी को ग्रामीणों ने दबोच लिया और पुलिस के हवाले कर दिया। बाद में महिला को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

अब मुआवजा और नौकरी का ही खेल

अपराध रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है।दागियों को राजनीतिक प्रोत्साहन और संरक्षण भरपूर हैं। बेआईनी चिंटफंड कारोबार निरंकुश है शारदा फर्जीवाड़े के भंडाफोड़ के बावजूद। मुआवजा देकर चिटफंड विरोधी जनरोष राजकोष दमकल से बुझा दिया गया। तो कामदुनी में भी राजकोष दमकल में तब्दील है। कामदुनी के पीड़ित दिल्ली में राष्ट्रपति भवन तक दस्तक दे आये।

खूब चिल्ल पों मचा। फिर वहीं ढाक के तीन पात।मुआवजा, नौकरी और विकास के बहाने बेहिसाब सरकारी खर्च के त्रिशुल से कामदुनी असुर का वध हो ही गया आखिर।


यहां तक कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर दिल्ली और कामदुनी में हुए प्रदर्शन 'स्वत:स्फूर्त' थे। प्रणब ने बीरभूम जिले में अपने पुश्तैनी गांव मिराटी में संवाददाताओं से कहा कि दिल्ली और कामदुनी तथा देश के दूसरे स्थानों पर लोगों ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार के विरोध में स्वत: स्फूर्त प्रदर्शन किए।




রাজকোষে মাথা নুইয়েছে কামদুনি


কৌশিক সরকার ও মণিপুষ্পক সেনগুপ্ত


চাকরি নয়, টাকা নয়৷ অপরাজিতার ধর্ষক খুনিদের ফাঁসি চাই!

গোটা কামদুনি গ্রাম চষে ফেলেও সেই পোস্টারগুলি আর খুঁজে পাওয়া যাবে না৷

কামদুনি আজ মাথা নত করেছে রাজকোষের কাছে৷


এক মাস আগেও কামদুনির বাড়ির দেওয়াল, পাঁচিল জানান দিত অপরাজিতার মর্মান্তিক মৃত্যুর ঘটনা৷ শোকস্তব্ধ এবং ক্ষুব্ধ কামদুনির মনের কথা বোঝার জন্য সেই পোস্টারগুলির বক্তব্যই যথেষ্ট ছিল৷


কিন্ত্ত এখন সেই পোস্টারগুলি আর নেই৷ কারা যেন ছিঁড়ে ফেলে দিয়েছে৷


নতুন পোস্টার পড়েছে কামদুনিতে৷ ২ টাকা কিলো দরে চাল৷ জব কার্ড৷ নতুন রাস্তা৷ এ রকম আরও কত কী সরকারি সুযোগ-সুবিধার কথা জানানো হয়েছে তাতে৷

রাষ্ট্রের 'পাইয়ে দেওয়া'র রাজনীতির কাছে মুখ থুবড়ে পড়েছে কামদুনির গরিবগুর্বো মানুষগুলির আন্দোলন, প্রতিবাদ৷ অপরাজিতার ধর্ষণ ও মৃত্যু তাঁদের প্রতিবাদ করতে শিখিয়েছিল৷ সেই অপরাজিতার মৃত্যুই বোধহয় প্রমাণ করে দিল টাকার কাছে সবই বিকিয়ে যায়৷ সত্যিই কি বিকিয়ে যায়? কোথায় গেল রাগে ফুঁসতে থাকা গ্রামের সেই সাধারণ মুখগুলো? যাঁরা মুখ্যমন্ত্রীর চোখে চোখ রেখে ছুড়ে দিয়েছিল সোজাসাপ্টা কিছু প্রশ্ন৷


কামদুনি হাইস্কুলের উল্টোদিকে বাঁশের মাচাটা এখনও আছে৷ এক সময় এখানেই প্রতিদিন জড়ো হতেন গ্রামের সাধারণ মানুষ৷ তৈরি হত আন্দোলনের রূপরেখা৷ মাচাটি আছে৷ কিন্ত্ত লোকগুলি যেন পাল্টে গিয়েছে৷ বিষণ্ণ কিছু মুখের ভিড়৷ অনেকটা যুদ্ধে পরাজিত সৈনিকদের মতো বডি ল্যাঙ্গোয়েজ৷ সেই মাচায় বসেই কথায় কথায় গ্রামের এক প্রবীণ ব্যক্তি বলছিলেন, 'আসলে কেউ পাঁচ টাকায় বিক্রি হয়, কেউ পাঁচ লক্ষে৷ বিক্রি সবাই হয়৷'


তবে কি কামদুনির বাসিন্দারাও.....?


ফোঁস করে উঠলেন তিনি৷ চোয়াল শক্ত করে বললেন, 'কামদুনি আন্দোলন বিক্রি হয়নি৷ কোনওদিন হবেও না৷' তবে ওই প্রবীণ ব্যক্তি মতো খোলামেলা সুর শোনা গেল না আর কারও গলাতেই৷ যদিও কামদুনি প্রতিবাদী মঞ্চের নেতা প্রদীপ মুখোপাধ্যায় বলছেন, 'কামদুনির আগুন যে এখনও নিভে যায়নি, আশা করছি ৭ নভেম্বরের মিছিলেই তার প্রমাণ দেওয়া যাবে৷'


প্রদীপবাবুর মতো গুটিকয়েক লোককে বাদ দিলে সরকারি সুযোগসুবিধা পাওয়া প্রসঙ্গে মুখে কুলুপ এঁটেছে গোটা কামদুনি৷ ধর্ষণ, প্রতিবাদ, প্রতিবাদী মঞ্চ, রাজ্য সরকার-এই বিষয়গুলি নিয়ে একটি শব্দও আর খরচ করতে চান না তাঁরা৷ কামদুনি প্রাথমিক বিদ্যালয়ের এক শিক্ষিকার কথায়, 'রাজনীতি গিলে খেয়েছে গোটা আন্দোলন৷ সরকার টাকা দিয়ে কিনে নিয়েছে একটা নাগরিক আন্দোলন৷ যে ভাবে নেতারা ভোট কেনে, ঠিক সে ভাবে৷' কামদুনি আন্দোলনে ফাটল ধরেছিল অনেকদিন আগেই৷ অভিযোগ, সরকারি ষড়যন্ত্রেই ভেঙ্গে দেওয়া হয়েছে কামদুনি প্রতিবাদী মঞ্চকে৷ তার পর বিস্তর সরকারি সুযোগ-সুবিধার প্রতিশ্রুতি৷ কামদুনি আন্দোলনের কফিনে শেষ পেরেক পোঁতার কাজ শেষ৷


বাপি মণ্ডল নামে স্থানীয় এক তৃণমূল নেতা শেখানো বুলির মতোই আউরে গেলেন, 'মা-মাটি-মানুষের সরকার কামদুনির উন্নয়ন করতে বদ্ধপরিকর৷ কামদুনি আন্দোলনের নামে সিপিএম এখানে রাজনীতি করছিল৷ মুখ্যমন্ত্রীর সদিচ্ছা দেখে ভুল পথ থেকে সরে এসে গ্রামের মানুষ উন্নয়নে অংশ নিয়েছে৷ কামদুনির জন্য রাজ্য সরকার যে একগুচ্ছ পরিকল্পনা নিয়েছে, সেটা আবার অনেকেরই সহ্য হচ্ছে না৷'


কামদুনি আন্দোলন এখন কার্যত অতীত৷ শাসকের চোখরাঙানিকে উপেক্ষা করে, সরকারি সাহায্য ফিরিয়ে দেওয়ার স্পর্ধা দেখিয়েছিল যে কামদুনি, সেই কামদুনিই এখন কার্যত আত্মসমর্পণ করেছে সরকার ও শাসকদলের সাঁড়াশি আক্রমণের চাপে৷ কন্যাশ্রী, যুবশ্রী, ক্লাবগুলিকে আর্থিক সাহায্যের মতো দান-খয়রাতির মাধ্যমে ভোটব্যাঙ্ক নিশ্চিত করতে সরকারি কোষাগার উন্মুক্ত করার যে কৌশল রাজ্য সরকার নিয়েছে, কামদুনির প্রতিবাদী আন্দোলনকে 'কিনে নিতে' শুধু কামদুনিতেই সামগ্রিক অনুপাতে অনেক বেশি টাকা খরচ করেছে সরকার ও শাসক দল৷ শুধু কামদুনির জন্যই এখন রাজ্য সরকারের পরিকল্পনা অনুযায়ী বছরে ব্যয় হবে ন্যুনতম ৭০ লক্ষ টাকা৷ পরোক্ষ আরো কিছু সুযোগসুবিধার কথা ধরলে খরচের পরিমাণ দাঁড়াবে কোটি টাকার বেশি৷ সাধারণ ও চালু প্রকল্পগুলির বাইরেই ব্যয় হবে এই টাকা৷ মাথাপিছু গড় ব্যয়ের তুলনায় যা অনেক বেশি৷ যার জেরে এখন কামদুনি নিয়ে যথেষ্ট 'আত্মবিশ্বাসী' শাসক দল ও রাজ্য সরকার৷


কামদুনির জন্য এই বিপুল ব্যয়ের মধ্যে অবশ্য অন্যায় দেখছেন না কামদুনিতে তৃণমূলের 'ক্রাইসিস ম্যানেজার' তথা রাজ্যের মন্ত্রী জ্যোতিপ্রিয় মল্লিক৷ তাঁর সাফ কথা, 'দিল্লি গণধর্ষণের ঘটনার পরেও তো সেই 'নির্ভয়া'কে বিদেশে চিকিত্‍সার জন্য পাঠিয়েছিল কেন্দ্রীয় সরকার৷ সেই পরিবারকে নানা ভাবে সহায়তাও করেছে কেন্দ্র৷ তখন তো এত কথা হয়নি! তা হলে কামদুনির ক্ষেত্রে এই প্রশ্ন তোলা হচ্ছে কেন?' অন্যদিকে কামদুনি প্রতিবাদ মঞ্চের নেতা, কামদুনি প্রাথমিক বিদ্যালয়ের প্রধান শিক্ষক প্রদীপ মুখোপাধ্যায়ের বক্তব্য, কামদুনির আগে ও পরে খরজুনা, গেদে-সহ রাজ্যের অন্যত্রও এমন ঘটনা ঘটেছে৷ সেখানে তো সরকার এমন ব্যবস্থা করেনি! নিশ্চিত ভাবেই কামদুনির আন্দোলনের প্রতিবাদের মেজাজ দেখেই সরকারের এই সিদ্ধান্ত৷ তা-ও এক অর্থে প্রতিবাদ আন্দোলনেরই সাফল্য৷


ক্ষমতায় আসার আগে বিরোধী নেত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ঘোষণা করেছিলেন, ক্ষমতায় আসলে তাঁর সরকারের উন্নয়ন মডেল হবে সিঙ্গুর৷ কিন্ত্ত সিঙ্গুরের জমি আন্দোলন যা করতে পারেনি, সব অর্থেই তার থেকে ঢের এগিয়ে গেছে কামদুনি৷ বারাসতের অদূরে হাজার দেড়েক মানুষের (ভোটার ৯৫০ জন) এই গ্রাম অপরাজিতার ধর্ষণ ও খুনের আগে পর্যন্তও ছিল পিছিয়ে থাকা একটি জনপদ৷ মাটির রাস্তা, বিদ্যুত্‍ পৌঁছেছে গ্রামের সামান্য অংশে, যোগাযোগ ব্যবস্থা দুর্বল, বিদ্যালয়ের পরিকাঠামোর ঘাটতি স্পষ্ট৷ এখন রাজ্য সরকারের যে পরিকল্পনা ও ঘোষণা, তাতে কামদুনিই হতে চলেছে আগামী দিনের 'উন্নয়ন মডেল'৷ অবশ্যই, প্রতিবাদ না করার শর্তে৷


'উন্নয়নের কাজ তো রাজ্য সরকার করেই থাকে'-মন্তব্য জ্যোতিপ্রিয় মল্লিকের৷ কিন্ত্ত এতদিন যা পায়নি কামদুনি, আজ তারা পেল কোন জাদুতে? তৃণমূলের রাজনৈতিক বক্তব্য, 'কামদুনির ঘটনার অপরাধীদের ফাঁসির দাবি আমরা করেছি৷ কিন্ত্ত কামদুনি নিয়ে বিরোধীরা যদি পিছন থেকে উস্কানি দেয়, তবে শাসকদল হিসাবে আমরা কী করে চুপ করে বসে থাকব? কেনই বা বসে থাকব?' আর তাই এখন জ্যোতিপ্রিয় মল্লিকের স্পষ্ট হুমকি, 'প্রতি মাসের ৭ তারিখে এতদিন মিছিল করত প্রতিবাদী মঞ্চ৷ আগামী ৭ তারিখে মিছিলটা করবে শান্তি কমিটি৷ বিরোধীরা রাজনীতি করলে আমরাও রাজনৈতিক ভাবেই তার মোকাবিলা করব৷ দেখা যাক, কার কত ক্ষমতা!' রাজ্যের খাদ্যমন্ত্রীর এহেন হুমকির প্রতিধ্বনি শোনা যায় কামদুনির চুনোপুটি তৃণমূল নেতাদের গলাতেও৷ তাঁরাও ক্ষমতা দেখাতে চান৷


কিন্ত্ত কী চায় সঙ্কীর্ণ দলীয় রাজনীতি থেকে শতহস্ত দূ্রে থাকা কামদুনির সাধারণ মানুষ?


কামদুনির অলিতে-গলিতে কান সন্তর্পণে কান পাতলে শোনা যাবে, তাঁরা বলছেন, 'আমরা আর দ্বিতীয়বার ধর্ষিতা হতে চাই না!'

http://eisamay.indiatimes.com/city/kolkata/kamduni-andolan/articleshow/25248208.cms?


ধর্ষিতাদের ক্ষতিপূরণে গঠনই করা হয়নি বোর্ড


এই সময়: বছরখানেক আগে মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ঘোষণা করেছিলেন, ধর্ষিতাদের আর্থিক সহায়তা দেবে রাজ্য সরকার৷ অথচ বছর ঘুরলেও সেই আশ্বাসের বাস্তবায়ন এখনও দূর অস্ত৷ মুখ্যমন্ত্রীর ঘোষণার আগেও দফায় দফায় সুপ্রিম কোর্ট এবং কেন্দ্রীয় সরকার এই ব্যাপারে বিশেষ বোর্ড গঠন করে ধর্ষিতাদের আর্থিক ও সামাজিক পুনর্বাসনের ব্যবস্থা করতে রাজ্য সরকারগুলিকে নির্দেশ দিয়েছে৷ কিন্ত্ত পশ্চিমবঙ্গ সরকার না মুখ্যমন্ত্রীর ঘোষণা কার্যকর করেছে, না মেনেছে সর্বোচ্চ আদালত এবং কেন্দ্রের নির্দেশ৷ অথচ গত ছ'মাসে কলকাতার আশপাশের জেলাগুলিতে কামদুনির মতো একাধিক নৃশংস ধর্ষণ এবং খুনের ঘটনা ঘটেছে৷ প্রায় সব ঘটনাতেই আক্রমণের শিকার আর্থিকভাবে অত্যন্ত পিছিয়ে থাকা পরিবারের মেয়েরা৷


শুধু পশ্চিমবঙ্গ নয়, গোটা দেশেই যৌন নির্যাতন বিশেষ করে অপহরণ করে গণধর্ষণ ও খুনের শিকার হচ্ছে আর্থিকভাবে অসচ্ছল পরিবারের মেয়েরাই৷ দেশের সর্বোচ্চ আদালত তাই একাধিক মামলায় বলেছে, এই ধরনের অপরাধের ক্ষেত্রে অপরাধীকে সাজা দেওয়াই যথেষ্ট নয়, আক্রান্ত মহিলার পাশে দাঁড়ানো রাষ্ট্রের কর্তব্য৷ আদালতের নির্দেশ অনুযায়ী এই ক্ষতিপূরণ পাওয়ার ক্ষেত্রে মামলায় অভিযুক্তের সাজা হয়েছে কি না, তা বিবেচ্য হবে না৷ শারীরিক ও মানসিক আঘাত এবং আর্থিক অবস্থা বিবেচনা করে সর্বোচ্চ দু'লক্ষ টাকা পর্যন্ত ক্ষতিপূরণ পেতে পারেন নিগৃহীতা ও তাঁর পরিবার৷ পরিস্থিতি বিচারে সেই অঙ্ক আরও বাড়তে পারে৷ কিন্ত্ত এ রাজ্যে সেই ক্ষতিপূরণ দেওয়ার প্রাথমিক কাঠামোটুকুও এতদিনে গড়ে তুলতে পারেনি রাজ্য সরকার৷


সুপ্রিম কোর্টের অন্যতম পরামর্শ ছিল, কোনও মহিলা ধর্ষণের শিকার হলে তাঁর শারীরিক ও মানসিক বিপর্যয়ের পরিধি বিবেচনা করে ক্ষতিপূরণ দেওয়ার জন্য নির্দিষ্ট বোর্ড গঠন করতে হবে৷ যার পোশাকি নাম ক্রিমিন্যাল ইনজুরিস কমপেনসেশন বোর্ড৷ বোর্ডের কাছে ধর্ষিতা বা তার পরিবার আর্থিত ও সামাজিক পুনর্বাসনের আবেদন জানাতে পারবে৷ এই মর্মে ২০১০ এবং এ বছর এপ্রিলে দু'টি পৃথক মামলায় রাজ্য সরকারগুলিকে তাদের কর্তব্যের কথা স্মরণ করিয়ে দেয় দেশের শীর্ষ আদালত৷ আদালতের সেই রায় রাজ্য পুলিশের ওয়েবসাইটেও তুলে দেওয়া হয়৷ কিন্ত্ত বাস্তবে বোর্ড গঠিত হয়নি আজও৷ বোর্ড গঠিত না হওয়ার কথা স্বীকার করেছেন স্বরাষ্ট্রসচিব বাসুদেব বন্দ্যোপাধ্যায়৷ সরকারি সূত্রের খবর, রাজ্য স্তরে ওই বোর্ড গঠনের কথা স্বরাষ্ট্রদপ্তরেরই৷ তাতে সমাজ কল্যাণ দপ্তরের প্রধান সচিব ছাড়াও স্বরাষ্ট্র দপ্তরের সচিব পদমর্যাদার একজন অফিসার এবং নারী ও শিশু অধিকার আন্দোলনের সঙ্গে জড়িত নাগরিক সমাজের প্রতিনিধিদের থাকার কথা৷ একই ধরনের বোর্ড থাকার কথা জেলাস্তরেও৷ জেলাশাসক, পুলিশ সুপার, জেলার মুখ্য স্বাস্থ্য আধিকারিক, নারী ও শিশুসুরক্ষা আন্দোলনের কর্মী এবং চাইল্ড ওয়েলফেয়ার কমিটির এক প্রতিনিধিকে নিয়ে বোর্ড গঠনের কথা৷ কোনও থানায় ধর্ষণের অভিযোগ দায়ের হলে সেই থানার ওসি ও সংশ্লিষ্ট পুলিশ সুপার মারফত সেই এফআইআরের কপি এবং মেডিক্যাল পরীক্ষার রিপোর্ট ৭২ ঘণ্টার মধ্যে বোর্ডের কাছে পৌঁছানোর কথা৷ বোর্ডের প্রতিনিধিরা সেই অনুযায়ী নিগৃহীতার সঙ্গে কথা বলে তাঁর অভিযোগের প্রাথমিক সত্যতা, তাঁর শারীরিক-মানসিক-আর্থিক ও সামাজিক ক্ষতির পরিধি বিচার করবেন৷ কিন্ত্ত সর্বোচ্চ আদালতের নির্দেশ মেনে কেন এখনও এ রাজ্যে কোনও বোর্ড গঠিত হল না, তা নিয়ে প্রশ্ন উঠেছে৷ বিশেষ করে কামদুনির আন্দোলন রুখতে সেখানে ধর্ষিতার পরিবারের তিনজনকে সরকারি চাকরি দেওয়া হয়েছে এবং এলাকার উন্নয়নে সরকার লাখ লাখ টাকা ঢালছে, তখন বাকিদের ক্ষেত্রে নীরবতায় অনেকেই বিস্মিত৷ যদিও কামদুনির মতই নৃশংস খুন-ধর্ষণের শিকার হয়েছেন বেশকিছু দিন আনি-দিন খাই পরিবারের মেয়েরা৷


স্বরাষ্ট্রসচিব দাবি করেছেন, 'বোর্ড গঠিত না হলেও কেউ আবেদন করলে ক্ষতিপূরণ করা হয়৷' এই ধরনের ঘটনায় ক্ষতিপূরণের প্রশাসনিক দায়িত্ব বর্তায় যে দপ্তরের উপর, সেই নারী-শিশু ও সমাজকল্যাণ দপ্তর সূত্রে বলা হয়েছে, ধর্ষিতাদের আর্থিক সহায়তার কোনও ব্যবস্থা বা প্রকল্প তাদের নেই৷ আক্রান্ত মহিলাকে আদালত হোমে রাখার নির্দেশ দিলে, দপ্তর তার ব্যবস্থা করে৷ যদিও বিভাগীয় মন্ত্রী সাবিত্রী মিত্র দাবি করেছেন, 'বোর্ড না থাকলেও আর্থিক সহায়তা দেওয়া হয়৷' তবে তাঁর দপ্তর সূত্রে জানা গিয়েছে, সাপে কাটা, বজ্রপাত বা প্রাকৃতিক বিপর্যয়ে মৃত্যু বা ক্ষয়ক্ষতির ক্ষেত্রে ক্ষতিপূরণে যেমন নির্দিষ্ট প্রকল্প এবং প্রশাসনিক বন্দোবস্ত আছে, ধর্ষণে ক্ষতিপূরণে তা নেই৷ এপিডিআর-এর মুখপাত্র রণজিত্‍ শূর এবং নারী আন্দোলনের কর্মী শাশ্বতী ঘোষও জানান, 'ধর্ষিতাদের আর্থিক পুনর্বাসন কীভাবে করা হয়, এনিয়ে কোনও নির্দিষ্ট প্রকল্প আছে বলে জানি না৷'



No comments: