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Saturday, April 4, 2009

उत्तर प्रदेश की मु‘यमंत्री मायावती ने...


भारत विरोधी, मनुष्यविरोधी, प्रकृतिविरोधी त्रिइबलिश संघ और मार्क्सवादियों का शैतानी चेहरा बेनकाबः भाजपा चुनाव घोषणापत्र में हिन्दू राष्ट्र का एजंडा पर्दाफाशः सेना का हिन्दूकरण रार्ष्ट्र और लोकतंत्र का सर्वनाशः विभाजन पीड़ित दलित शरणार्थियों को बांगलादेशी बताकर देश निकालाः प्रणव आडवाणी बुद्धदेव गठजोड़ नरसंहार के लिए



पलाश विश्वास


 


मुझे ताज्जुब है कि भाजपाई चुनाव घोषणापत्र के सबसे खतरनाक बिंदुओं पर राजनीतिक दलों, मीडिया और बुद्धिजीवियों की नजर नहीं पड़ी।


वर्ण वर्चस्व और मनुस्मृति शासन जारी रखने के लिए, अमरेकी इजरायली हितों को साधने के लिए यहूदी रक्त के धारक वाहक आर्य वंशज भारतीय ब्राह्मण मूलनिवासियों के कत्लआम जारी रखने हेतु आसन्न लोकसभा चुनाव में मजबूती से उभर रहे मूलनिवासी विकल्प को नाकाम करने के लिए अब सिर्फ कारपोरेट, मीडिया, शक्ति और माफिया पर निर्भर नहीं है। चूंकि दांव पर है नईदिल्ली की सत्ता, ब्राह्मण बनिया राज, जिसे गांधी ने समाजवादियों और मार्क्सवादियों के सहयोग से संघियों के सहारे भारत विभाजन करके लाखों बेगुनाह लोगों का खून बहाकर, माताओं बहनों का अस्मत गवाकर करोड़ों को शरणार्थी बनाकर हासिल किया। दिल्ली कहीं लखनऊ, कोलकाता, चेन्नई और पटना की तरह हमेशा के लिए भाजपा और कांग्रेस के कब्जे से बाहर न हो जाएं, जहां वामपंथी गद्दारी भी काम न आएं। इसके लिए फिल्म स्टार, खिलाड़ी, जनरल, शंकराचार्य, बाबा रामदेव और मीडिया की आड़ में दो दलीय बहुमत वाली चुनाव प्रणाली की आड़ में सवर्ण मतदाताओं के ध्रुवीकरण, वरुण गांधी का जलवा, मीडिया के झूठे सर्वेक्षण, मतदाता जागरुकता अभियान जैसे प्यासों के बावजूद कांग्रेस भाजपा मिलकर आधी लोकसभा सीटें जीतती नजर नहीं आ रहीं। तीसरा और चौथा मोर्चा मैदान में हैं। पुराने साथी साथ छोड़ गए। स्थानीय क्षत्रपों ने बगावत के झंडे बुलंद कर दिए। राजग संयोजक का टिकट तक का दिया गया।


ऐसे में भाजपा और संघ परिवार ने आखिरी दांव खेला है।


मालेगांम बम विस्फोट की गंूज मुंबई आतंकी हमले की हवा और अंध राष्ट्रवाद, आतंकविरोधी युध्ध, और चुनावी राजनूति के शोर में सिरे से गायब है।


मौका ताड़कर संघियों ने भारतीय सेना के हिंदूकरण का कार्यक्रम शुरु किया है।
याद करें, गांधी ने रामराज का नारा दिया तो जिन्ना ने धर्म और राजनीति के खतरनाक नतीजे की चेतावनी दी थी। नतीजतन दो राष्ट्र सिद्धांत के तहत न केवल भारत का विभाजन हुआ , बल्कि यह महादेश स्थाई युद्धक्षेत्र बन गया। कश्मीर और उत्तर पूर्व भारत में आग अभी बुझी नहीं है। मुस्लिम और दलित घृणा, आदिवासियों पर भयानक अत्याचार और मनुस्मृति कानून पर टिका है वर्न वर्चस्व।


एसे में मायावती को रोकने के लिए सेना को संघी बना देने के खतरनाक खेल के तहत भाजपा ने सेना के लिए अलग वेतन आटोग और सेना को आटकर में छूट देने का वादा किया है। गरीबी हटाओं और समाजवादी सब्जबाग दिखाने के अलावा।


कांग्रेस, भाजपा और माकपा के एजंडे में विभाजन पीड़ित दलित बांगालादेशियों के देश से निष्कासन सर्वोच्च प्राथमिकता पर है क्योंकि इन्ही पूर्वी बंगाल के दलित शरणार्थियों ने ही बाबा साहेब आंबेडकर को संविधान सभा के लिए चुनकर भेजा था। ग्लोबीकरण और आररक्षणविरोधी आंदोलन के बावजूद दलित आंदोलन अब इतना मजबूत हो गया है कि आरक्षण तो खत्म हुआ नहीं बल्कि दलित की बेटी अब प्रधानमंत्री बनेन को है। इसका प्रतिशोध लेने के लिए प्रणव, आडवाणी और बुद्धदेव के निशाने पर हैं बंगाली शरणार्थी।


माकपा ने इन बातों को तूल न देकर गोरखालैंड को मुदद्ा बनाते हुए भाजपा पर देश तोड़ने का आरोप लगाते हुए उसे सेना से खिलवाड़ करने कीखुली छूट दे दी है। सेना क्या कर सकती है ,यह पाकिस्तान और बांग्लादैश का इतिहास बताता है। हम अब तक टूटे नहीं, बिखरे नहीं, चूंकि सेन निरपेक्ष हैष


अब संघियों ने सेना को वर्युद्ध में शामिस करके दलितों, मुसलमानों और आदिवासियों को शिकस्त देने की ठानी है। माकपाइयों को इस पर एतराज नहींहै।


भाजपा ने दार्जिलिंग में गोरखा जनसमुदाय की मांगों पर विचार करने का वायदा किया है, इसे एक और बंग भंग बताकर नंदीग्राम सिंगुर मरीचझांपी का पोप धोने और बांग्ला सवर्ण राष्ट्रीयता को जगाकर बंगाल का लाल दुर्ग को अटूट बनाने की तिकड़म में राष्
्र और लोकतंत्र से खिलवाड़ करने के लिए संघियों को हरी झंडी दै दीहै।


मार्क्सवादियों के लिए यह शर्मनाक है कि उत्तराखंड. झारखंड, छत्तीसगढ़, गोरखालैं, तेलंगाना और उत्तर पूर्व के राष्ट्रीयता आंदोलन में नेतृत्व वामपंथी नहीं बल्कि संघी कर रहे हैं।


मजदूर आंदोलन और किसान आंदोलनों, दलित और आदिवासी आंदोलनों और मुसलमानों से माकपाइयों की गद्दारी जगजाहिर है।


अब संघियों से देश को बचाएगा कौन?


 


भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि उसने अपने घोषणापत्र में समाज के हर वर्ग के लिए जो वादे किए हैं उन्हें रुपये के नोट पर रिजर्व बैंक के गवर्नर द्वारा दिए गए वचन की तरह माना जाना चाहिए। भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने दावा किया कि पार्टी के घोषणापत्र का समाज के हर वर्ग में स्वागत हुआ है। उन्होंने कहा कि किसी भी पार्टी का घोषणापत्र वादों को पूरा करने का दस्तावेज होता है।


 


भाजपा के इस घोषणा पत्र की खूबियां .......


- २ रूपए गेंहूं चावल


- किसानों को ४ फीसदी पर लोन


- ६ फीसदी पर होम लोन देने का वादा


- सेंट्रल सेल्स टेक्स खत्म होगा


- रेहड़ी वालों को ४ फीसदी पर लोन


- पोटा कानून लाएंगे


- विदेश में जमा काला धन वापस लाएंगे


- एफबीटी खत्म करेंगे ( फ्रिंज बैनिफिट टैक्स )


- गांवो को पक्की सड़क


- आयकर में छूट


- रामसेतु नहीं टूटने देंगे


- पर्यटन क्षेत्रों को बढावा


- पूर्ण ऊर्जा व सड़क संपर्क स्थापित करने देंगे


- जनसुरक्षा बढ़ाई जाएगी


- भारत बांग्लादेश बाड़ लगाने का काम पूरा


- माओवादियों , आतंकवादियों के खिलाफ अभियान


- अलगवावादी, आतंकवादी समर्थित देशों पर दबाव नीति


- जय जवान सैन्य बलों अर्धसैनिक बलों को आयकर मुक्त


- सैन्य बलों के लिए पृथक वेतन आयोग का गठन


- सेनाओं और पैरामिलिट्री फोर्स को वेतन पर आयकर में छूट


- बिजली का उत्पादन निर्भरता कम


- मध्य प्रदेश की लाड़ली लक्ष्मी को पूरे देश में


- धारा 370 हटाएंगे


- सस्ती शिक्षा


- 2014 तक सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं


- घर पर एम्बुलैंस की व्यवस्था, नए एम्स की स्थापना पुर्नजीवित


- ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए कार्यक्रम


- अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाएंगें


- वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन कर मुक्त


 


 


विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने घोषणा की कि विहिप आगामी लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का पूरी तरह समर्थन करेगी क्योंकि उसने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण एवं देश में समान नागरिक संहिता लागू करने समेत संतों एवं परिषद के तमाम एजेंडे को अपने घोषणा पत्र में शामिल कर लिया है।


 


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भाजपा नेता और राजग के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी को सरकार के उच्चतम पद पर आसीन होते देखकर प्रसन्नता होगी।आरएसएस के नवनिर्वाचित सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने कहा है कि चुनावों का दौर चल रहा है, जो राष्ट्रहित के मुद्दों की बात कर रहे हैं, उन्हें की वोट डालना चाहिए। यह बात उन्होंने शुक्रवार को यहां नालंदा बीएड संस्थान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रांत बैठक में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भारत की स्थिति चिंताजनक है। केसी सुदर्शन के संन्यास और मोहन भागवत द्वारा संघ प्रमुख की कमान संभालने के एक दिन बाद वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रविवार को नागपुर पहुंचकर दोनों नेताओं से भेंट की। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस मुलाकात को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भागवत को आडवाणी का प्रबल समर्थक माना जाता है। इससे पहले,पत्रकारों से बातचीत में आडवाणी ने कहा ‘मैं जो कुछ भी हूं, संघ की बदौलत हूं।’ मोहन राव भागवत ने भी स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए स्पष्ट कहा कि हिंदुत्व के प्रति वे तनिक भी समझौता नहीं करेंगे. हिंदुत्व समर्थकों के कारण भारत के शेष सभी मतावलंबियों को वैचारिक स्वतंत्रता का वातावरण प्राप्त हुआ है, परंतु यह बना रहे इसके लिए जरूरी है कि इस वैचारिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने वाले हिंदू समाज की भी सुरक्षा हो और उसके सम्मान को ठेस न पहुंचे.


 


 मोहन भागवत, केएस सुदर्शन की जगह नए सरसंघचालक बने हैं। इस बारे में औपचारिक घोषणा नागपुर में संघ की राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा में की गई। यह आरएसएस में एक बड़ा बदलाव है। 59 साल के मोहन भागवत गुरु गोलवलकर के बाद सबसे युवा सरसंघचालक हैं। उनकी जगह लेंगे सुरेश जोशी उर्फ भय्यूजी जोशी। वह भी उम्र में भागवत से छोटे हैं। इस तरह आरएसएस की कमान युवा पीढ़ी संभालने जा रही है। वैसे भी काफी अर्से से मोहन भागवत ही संघ के संचालन की धुरी रहे हैं। संघ के शीर्ष नेतृत्व में यह परिवर्तन ऐसे समय में हुआ है जब देश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं और केंद्र में नई सरकार के गठन के लिए लोकतंत्र के महापर्व की प्रक्रिया पूरे जोशोखरोश के साथ चल रही है। देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है। सुदर्शन की जगह मोहन भागवत की नियुक्ति जहां आरएसएस के अंदर दबावों का नतीजा कही जा सकती है, वहीं यह बदलाव संघ से जुड़े संगठनों में विचारधारा के लेवल पर तब्दीली ला सकता है। बीजेपी संघ द्वारा भेजे गए संगठन मंत्रियों द्वारा चलाई जाती है और इन प्रचारकों की अहमियत कायम करने की व्यवस्था पार्टी के संविधान में बाकायदा की गई है। पार्टी ऐसा कोई काम भूल से भी नहीं कर सकती जो संघ परिवार को पसंद न हो।मोहन भागवत के आरएसएस प्रमुख बनाने का फायदा आडवाणी को ही होगा क्योंकि भागवत उनके समर्थक माने जाते हैं जबकि निवर्तमान आरएसएस प्रमुख के एस सुदर्शन और आडवाणी के बीच का तनाव जगजाहिर था. इसी बीच शिवसेना और कांग्रेस के बीच वाकयुद्ध तेज़ हो गया है. शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने एक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हिजडा कह दिया.


 


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति हिंदू है। हिंदू किसी सम्प्रदाय, मजहब और पंथ का नाम नहीं है। हिंदू हिन्दुस्तान की पहचान है। हिंदू राष्ट्र की सर्वागीण उन्नति से भारत शक्तिशाली होगा। उसमें दुनिया का कल्याण होगा, दुनिया सुंदर बनेगी और भारत की संस्कृति ऊपर उठेगी। हिंदुत्व से राष्ट्र की पहचान है। हिंदू संस्कृति में सारे विश्व में शांति स्थापित करने की क्षमता है। विश्व विश्वबंधुत्व की ओर इसी आधार पर बढ़ रहा है। अपनी इस पहचान के आधार पर भारत दुनिया को रास्ता दिखा सकता है।


भागवत ने कहा कि संघ कार्य का विस्तार देश के कोने-कोने में तीव्र गति से हो रहा है। सरसंघचालक ने पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम द्वारा कहे गए शब्दों को दोहराया कि आज का युगधर्म शक्ति की अराधना है। सही संस्कारों पर आधारित लोक शक्ति से ही भारत और विश्व का कल्याण होगा। संघ के स्वयंसेवक इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि 83 वर्ष के इतिहास में 60 वर्ष तक संघ का विरोध होता रहा। लेकिन स्वयंसेवकों ने उस विरोध का मुंहतोड़ जवाब दिया। असल में कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थो की पूर्ति के लिए इसका विरोध करते हैं। कुछ लोग तो जन्म ही सिर्फ विरोध के लिए लिए हैं।


उन्होंने कहा कि भारी विरोध के बावजूद आरएसएस आगे बढ़ रहा है। इसकी विजय निश्चित है। अब तो राष्ट्र की विजय के लिए संघर्ष करना है। भागवत ने कहा कि देश तरक्की तब करता है जब समाज का हर व्यक्ति देश की भलाई में जुटता है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में केवल हिंदू ही रहते हैं, इसे सभी को मानना होगा। साथ ही अपने आचरण से सभी में हिंदुत्व जगाना होगा।


ज्ञातव्य हो कि मोहन भागवत के सरसंघचालक बनने के बाद दिल्ली में उनका सम्मान समारोह आयोजित किया गया था। इस मौके पर संघ के निवर्तमान सरसंघचालक केसी सुदर्शन, सरकार्यवाहक सुरेश जोशी, क्षेत्रीय संघचालक बजरंग लाल गुप्ता, प्रांत संघचालक रमेश प्रकाश, सुरेश सोनी, रामेश्वर, सीताराम व्यास, राम माधव, मधुभाई कुलकर्णी, प्रवीण भाई तोगड़िया, चिरंजीव सिंह, मदन लाल खुराना, विजय गोयल आदि मौजूद थे।



 


 


दिन भर चले घटनाक्रम व बयानबाजी के बाद शुक्रवार को भाजपा नेता मेनका गांधी को एटा के जेल में कैद अपने पुत्र वरुण गांधी से चार अप्रैल को मिलने की इजाजत मिल गई। इससे पहले जिला मजिस्ट्रेट गौरव दयाल ने रासुका लगने के कारण एटा जेल में बंद भाजपा नेता वरुण गांधी को सात अप्रैल तक मेनका सहित किसी भी व्यक्ति से नहीं मिलने का आदेश जारी किया था। हालांकि देर रात उन्होंने मेनका को शनिवार को वरुण से मिलने की इजाजत दे दी।


 


वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह ने वरुण गांधी पर रासुका लगने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। जब अर्जुन सिंह से वरुण गांधी के कथित भड़काऊ भाषण और उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार द्वारा रासुका लगाए जाने पर उठे विवाद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है। 29 वर्षीय वरुण गांधी पर पिछले माह पीलीभीत में दिए गए उनके कथित भड़काऊ भाषण के मामले में रासुका लगाया गया।


 


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा के युवा नेता वरुण गांधी के विवादास्पद कथन का समर्थन करते हुए कहा कि कि वरुण ने जो मुद्दे उठाए है उन पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने संघ के मुखपत्र आर्गेनाइजर को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा है कि देश में आज जो हालात बन गए है उन्हीं के कारण वरुण को अपना मुंह खोलना पड़ा।


 


भाजपा ने अब यह साफ तौर पर मान लिया है कि वरुण गांधी चुनावी मुद्दा बन चुके हैं। इस मुद्दे पर आंदोलन की रणनीति की जिम्मा पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह और वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को सौंपा गया है। पूर्व पार्टी अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने शनिवार को यहां पत्रकारों से कहा कि भाजपा और बसपा ने वरुण को चुनावी मुद्दा बनाया है, जिसे हमने भी स्वीकार किया है।


 


वरुण गांधी पर रासुका लगाने के मामले पर आक्रामक भाजपा ने इस मामले को अब पूरे देश में उठाने का फैसला किया है। एटा जेल में बंद वरुण से मिल कर लौटे पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू की रिपोर्ट के बाद भाजपा ने साफ किया कि यह मामला पूरी तरह राजनीतिक है और उसका जवाब भी राजनीतिक अंदाज में ही दिया जाएगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह अब छह अप्रैल को वरुण से मिलने एटा जेल जा रहे हैं।


 


 केएस. सुदर्शन के स्थान पर मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के नए ‘सरसंघ चालक’ बनाए गए हैं।

यह फैसला संघ की यहां चल रही तीन दिवसीय प्रतिनिधि सभा के दूसरे दिन आज लिया गया।


 


आरएसएस पर प्रतिबंध संभव: मोइली

पूर्व प्रमुख सुदर्शन ने स्वास्थ्य कारणों से पद छोड़ा है और भागवत जो संघ के सरकार्यवाहक थे, को नया सरसंघ चालक बनाने की घोषणा की गई।

संघ के एक प्रवक्ता ने बताया कि भागवत ने यह पद स्वीकार कर लिया है और पदभार संभाल लिया है।

संघ के नए प्रमुख मोहन भागवत महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के हैं और पशु चिकित्सक भी हैं।


 


जो भी हूं संघ की वजह से हूं : आडवाणी

भागवत संघ में जिला प्रचारक, प्रांतीय प्रचारक, क्षेत्रीय प्रचारक और सरकार्यवाहक जैसे पदों पर रहने के बाद आज सरसंघचालक बने हैं।

भागवत ने सैकड़ों लोगों को अपने काम से प्रभावित कर संघ के तहत हिंदू समाज के उत्थान के लिए कार्य किया है।

भागवत ब्रिटेन, दक्षिण अप्रीका, केन्या और नीदरलैंड का भ्रमण कर चुके हैं। वह भारत में सभी राज्यों का वर्ष में दो बार दौरा करते हैं।


 


भारत में शामिल होना चाहता था नेपाल: सुदर्शन


 


भरतीय जनता पार्टी के चुनाव घोषणापत्र की खिल्ली उड़ाते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि भाजपा ने अपने घोषणापत्र में जो वादा किया है वह तब भी पूरा हो सकता था जब भगवा पार्टी सत्ता में थी।


 



माकपा के पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी ने कहा यह नयी बोतल में पुरानी शराब की तरह भी नहीं है। बोतल भी पुरानी है। घोषणा पत्र में उद्धृतं कई वादे तब भी पूरे किये जा सकते थे जब पार्टी छह साल तक सत्ता में थी। एक रैंक एक पेंशन के वादे के अलावा उन्होंने भाजपा के घोषणा पत्र में किसानों के लिए ऋण के संबंध में किये गए वादे का भी हवाला दिया।
पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में किसानों को चार फीसदी ब्याज पर रिण देने तथा असंगठित क्षेत्र के लोगों को सुरक्षा देने का वादा किया है।
येचुरी ने कहा कृषि संकट और किसानों की अप्रत्याशित आत्महत्या की घटनाओं के बावजूद जब वह सत्ता में थे तो किसानों को ऋण में छूट दिये जाने पर विचार करने से इंकार कर दिया था।


 


दार्जिलिंग में भारतीय जनता पार्टी [भाजपा] का प्रत्याशी क्या बदला समीकरण ही बदल गया। खासकर, पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह को प्रत्याशी बनाए जाने से स्थिति भिन्न हो गयी है। भाजपा के घोषणा पत्र में 'गोरखालैंड' शामिल किए जाने के बाद कल तक उसके विरोध में खड़ी क्रांतिकारी मार्क्सवादी [क्रामाकपा] अब उसे समर्थन देने के साथ दावा भी कर रही है कि दार्जिलिंग में जसवंत सिंह को जीतने से कोई रोक नहीं सकता।


 


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गरीबों को 2 रूपए किलो. की दर से गेहूं और चावल देने, कृषि ऋण माफ करने तथा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बाधाएं दूर करने और राम सेतु की रक्षा करने के वादा किया है। रामनवमी के मौके पर आज भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने 11 वर्ष के अंतराल के बाद पहली बार पार्टी का चुनावी घोषणा-पत्र जारी किया। ग्यारह साल बाद अपने घोषणापत्र के साथ चुनाव मैदान में जाने के बाद भी भाजपा के सभी वादे सत्ता में आने पर सरकार के वादे शायद ही बन सकें। अभी राजग का सरकार चलाने का एजेंडा आना बाकी है और वही उसकी भावी सरकार का असली एजेंडा होगा। रामनवमी के दिन भाजपा ने शुक्रवार को हिंदुत्व के रंग में रंगा अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी किया जिसमें राममंदिर, अनुच्छेद-370 और समान नागरिक संहिता के उसके पारंपरिक मुद्दों के अलावा कांग्रेस के तीन रुपये किलो गेहूं-चावल के वायदे की काट में केवल दो रुपये में गरीबों को अनाज देने का ऐलान किया गया है।


 


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कहना है कि लोकसभा के आगामी चुनाव में यदि उसे सफलता मिली और उसके नेतृत्व में केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनी तो वह अपने शासन के पहले 100 दिनों के भीतर पोटा कानून बहाल करेगी और उसे अत्यधिक कारगर बनाएगी।


 


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वादा किया है कि वह यदि सत्ता में आई तो बिजली के क्षेत्र में भारी निवेश करने के साथ-साथ अगले पांच वर्षो में कम से कम 1,20000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली सृजित करेगी।


 


भाजपा ने देश के एक बड़े हिस्से की गंभीर नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिये छत्तीसगढ़ सरकार का माडल अपनाने का वादा कर रमन सरकार की एक तरह से पीठ थपथपायी है। रमन सरकार राज्य में इस समस्या से आक्रामक रूप से सत्ता में आने के बाद से जूझती रही है। कई कडे़ कदमों के लिये उसे उच्चतम न्यायालय तक में घसीटने की कोशिशे भी लगातार होती रही है। भाजपा ने ही अपने घोषणा पत्र में छत्तीसगढ़ सरकार की योजनाओं को शामिल नहीं किया गया है, ...

 


माना जा रहा था कि भाजपा अपने मैनिफेस्टो में हिन्दुत्व पर लौट सकती है। पिछले चुनावों में भाजपा ने अपना घोषणा पत्र जारी नहीं किया था। एनडीए का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम जारी कर भाजपा ने अपने गठबंधन की बात प्रमोट की थी। उम्मीद यह भी की जा रही थी की यह घोषणा पत्र कांग्रेसी मैनिफेस्टो का जवाब होगा।


घोषणा पत्र जारी करने से पहले समारोह में भाजपा का अभियान गीत सुनाया गया। इस दौरान मंच पर आडवाणी, वैंकया, जसवंत सिंह, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह और अरूण जेटली मौजूद थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने घोषणा पत्र पढ़कर सुनाया।


 


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पहली बार अपने घोषणा पत्र में अनुवांशिकी संशोधित बीज (जीएम बीज) के मुद्दे को स्थान दिया है। पार्टी ने कहा है कि वह यदि सत्ता में आई तो बगैर सम्पूर्ण जानकारी के जीएम बीजों का इस्तेमाल नहीं होने देगी।


 


कांग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र जारी करते हुए प्रधानमंत्री ने आडवाणी के बयान पर पलटवार करते हुए पूछा था कि उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस के अलावा और योगदान क्या किया है। डा सिंह का कहना था कि यह आडवाणी ही थे, जिनके गृहमंत्री रहते इस देश की संसद पर हमला हुआ था, कंधार में आतंकियों को ले जाकर छोड़ा गया था, लालकिले पर हमला हुआ था और देश की फौजों को साल भर तक सीमा पर फिजूल ही रखा गया था।


 


अशोक सिंघल ने घोषणा की कि विहिप आगामी लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का पूरी तरह समर्थन करेगी क्योंकि उसने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण एवं देश में समान नागरिक संहिता लागू करने समेत संतों एवं परिषद के तमाम एजेंडे को अपने घोषणा पत्र में शामिल कर लिया है। सिंघल ने संवाददाता सम्मेलन में सिंघल ने कहा कि देश के संतों एवं विहिप ने धर्म रक्षा मंच के तहत तमाम राजनीतिक दलों एवं नेताओं के सामने अपनी ज्ञारह सूत्री मांगें रखीं थीं। इनमें से सभी मुख्य मांगों को भाजपा ने स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि मंच ने इस वर्ष जनवरी में मुंबई में अपनी बैठक में घोषणा की थी कि जो भी राजनीतिक दल या नेता उसके ज्ञारह सूत्री मांगों को अपना समर्थन देगा अथवा उन्हें मानेगा मंच उनका समर्थन करेगा। इस उद्देश्य से यह मांगें सभी राजनीतिक दलों एवं प्रमुख नेताओं को विहिप ने भेजी थीं।
विहिप नेता ने कहा कि इन मागों के संबन्ध में सिर्फ भाजपा से सकारात्मक जवाब मिला है जिसे देखते हुए ही विहिप एवं संतों ने इन लोकसभा चुनावों में उसका समर्थन करने का मन बनाया है।



यह पूछे जाने पर कि आखिर भाजपा जब पिछली बार केन्द्र की सत्ता में आयी तो वह अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण क्यों नहीं कर सकी सिंघल ने कहा कि इस कार्य के लिए उसके पास पूर्ण बहुमत नहीं सिंघल ने कहा इस बार देश की जनता से विहिप और संत यह अनुरोध करेंगे कि वह भाजपा को पूर्ण बहुमत देकर सत्तासीन करें जिससे अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के अपने वादे को वह कार्य रूप में परिणत कर सके। उन्होंने बताया कि धर्म रक्षा मंच ने अपनी मांगों में प्रमुख रूप से देश में हिंदुओं के मंदिरों के प्रशासन के लिए स्वायत्त बोर्ड बनाने धर्मांतरण रोकने के लिए कानूनी प्रावधान करने भारत को अध्यात्मिक देश घोषित करने राम सेतु जैसे स्थानों को पवित्र धरोहर घोषित करने राम मंदिर बनाने के मार्ग की बाधाएं दूर करने और देश में सभी के लिए समान नागरिक संहिता तैयार करने की बातें शामिल थीं। विहिप नेता ने कहा कि संतों ने अपने विचार विमर्श में पाया कि देश में 85 प्रतिशत हिंदू होने के बावजूद यहां हिंदुओं को द्वितीय श्रेणी का नागरिक समझा जाता है ऐसे में यह फैसला किया गया है कि हिंदुओं के स्वाभिमान की रक्षा करने वाले दल का विहिप एवं संत इन चुनावों में खुल कर समर्थन करेंगे।


 


भाजपा ने इस आरोप को गलत बताया कि उसने अपना चुनाव घोषणापत्र बनाने में कांग्रेस की नकल की है और फर्क सिर्फ इतना है कि उसमें कुछ वायदे इतने अधिक बढ़ा चढ़ा कर किए गए हैं कि उन्हें पूरा करना व्यवहारिक नहीं है।
पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने यहां कहा भाजपा ने कांग्रेसी घोषणापत्र की नकल नहीं की है। यह रिजर्व बैंक द्वारा करेंसी नोट पर किए गए वायदे जैसा है। हमारा घोषणा पत्र वायदे पूरा करने की गारंटी है। उन्होंने इस बात को गलत बताया कि कांग्रेस द्वारा तीन रूपए प्रतिकिलो के हिसाब से हर माह बीपीएल परिवारों को 25 किलो गेहूं या चावल देने की भाजपा ने नकल करते हुए दो रूपए प्रतिकिलो के हिसाब से 35 किलो गेहूं या चावल देने का वायदा किया है। जावड़ेकर ने कहा कि यह कांग्रेस की नकल नहीं है। वाजपेयी शासन में ऐसी व्यवस्था थी। कांग्रेस उसे बंद करने की दोषी है।
उन्होंने बताया कि पार्टी ने अपने इस घोषणापत्र की मुख्य बातों की 10 करोड़ कापियां छपवा कर देश भर में बांटने की योजना बनाई है।


 


भाजपा ने उन चीजों को भी अपने मैनिफेस्टो में शामिल किया है जो कांग्रेस से कहीं छूट गए थे। राजनाथ सिंह ने अंत में मैनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी समेत सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने घोषणा पत्र तैयार करने में मदद की है। राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने राजनीतिक , आर्थिक, सामाजिक , सांस्कृतिक सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए पत्र तैयार किया है। इसमें भाजपा की दार्शनिक अवधारणा को ध्यान में रखा गया है, यह संतुलित है। उन्होंने कहा कि यह अन्य पार्टियों के घोषणा पत्र की तरह विचार शून्य नहीं है। हमने यह केवल वादे नहीं किए हम इसका अक्षरशः पालन करेंगे, हर साल इसकी समीक्षा करेंगे। इस मौके पर आडवाणी ने कहा की घोषणा पत्र के अनुसार हम यह सारे वादे पूरे करना चाहते हैं। हम देश को सुरक्षा देना चाहते हैं। उन्होंने सैन्य सेवाओं को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक फायदा पहुंचाने का वादा किया, उन्होंने वीरता पुरस्कारों की राशी को 30000 रूपए तक बढ़ाने की बात भी कही।


 

लोकसभा चुनावा में भाजपा द्वारा जारी घोषणा पत्र को कांग्रेस ने मिथ्या व आमजन को गुमराह करने वाला बताया है। वरिष्ठ कांग्रेस जिला उपाध्यक्ष एवं नगर पार्षद प्रदीप पालीवाल, पार्षद ब्रजेश पालीवाल, रमेश पहाडिया, यूथ कांग्रेस के जिला प्रवक्ता प्रमोद पालीवाल ने कहा कि भाजपा पूर्व में भी राम के नाम पर वोट मांग कर राम के नाम को ही भुला चुके हैं। भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में राम मंदिर के निर्माण सहित विवादास्पद मुद्दों को उठाए जाने पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रमुख घटक जनता दल यूनाइटेड ने शुक्रवार को कहा कि यह भाजपा का घोषणा पत्र है और इससे जद यू का लेना देना नहीं है। जदयू महासचिव जावेद रजा ने कहा कि यह भाजपा का घोषणा पत्र है राजग का नहीं। उन्होंने कहा ''जदयू राजग का घटक है और राजग के न्यूनतम साझा कार्यक्रम से बंधा हुआ है। 


 उत्तर प्रदेश की मु‘यमंत्री मायावती ने भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता वरूण गांधी की मां मेनका गांधी पर पलटवार करते हुए आज कहा कि मां का दर्द समझने के लिए मां होना जरूरी नहीं है. सुश्री मायावती ने कहा कि सिर्फ बच्चा पैदा करके मां बन जाना ही मां की परिभाषा नहीं है. उन्होंने कहा कि मेनका गांधी को केवल अपने बेटे के दर्द की परवाह है, जबकि वह पूरे देश के करोडों लोगों का दर्द समझती हैं. राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सभी छह विधायक शनिवार को कांग्रेस में शामिल हो गए। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि बसपा के राजकुमार शर्मा, राजेन्द्र सिंह गुढा, गिरराज सिंह, रमेश मीणा, मुरारी लाल मीणा तथा रामकेश ने शनिवार को विधानसभा अध्यक्ष दिपेन्द्र सिंह शेखावत को कांग्रेस में शामिल होने का पत्र सौंप दिया।

 

महाराष्ट्र सरकार में कांग्रेस की साझेदार शरद पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अब तीसरे मोर्चे के करीब लगती है। यहां शुक्रवार को आयोजित तीसरे मोर्चे की विजय संकल्प रैली में बीजद, माकपा, भाकपा और राकांपा के नेताओं ने हिस्सा लिया। इस रैली में शरद पवार को भी आना था, वे नहीं पहुंच सके। उन्होंने पार्टी नेता प्रशांत नंद के मोबाइल फोन से रैली को संबोधित किया।

 

वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच में कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के विरोध में शुक्रवार को गुरुद्वारा साहिब के बाहर आत्मदाह का प्रयास करने वाले छह सिख नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। वहीं एसजीपीसी प्रधान अवतार सिंह मक्कड़ समेत एक दर्जन से अधिक संगठनों ने इस मामले में विरोध मुखर करने की चेतावनी दी है।

 

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने शनिवार आरोप लगाया कि राज्य में उनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में हराने की कोशिश के तहत भाजपा और माकपा ने आपस में गुप्त समझौता किया है।

ममता ने एक चुनाव रैली में कहा कि भाजपा ने सिर्फ माकपा को फायदा पहुंचाने के लिए राज्य की 42 में से 41 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए हैं क्योंकि माकपा विरोधी मतदाताओं का एक वर्ग तृणमूल कांग्रेस गठबंधन के बजाय भाजपा के पाले में जा सकता है।


उन्होंने कहा कि भाजपा राज्य के किसी भी हिस्से में मजबूत नहीं है। इसके बावजूद उसने सत्तारूढ़ माकपा की शह पर इस वामदल की विरोधी ताकतों के विभाजन के लिए 41 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं।


ममता ने कहा कि हालांकि राज्य के जागरूक मतदाता इस खेल को समझेंगे और उसका माकूल जवाब देंगे।


 

कांग्रेस महासचिव और अमेठी से उम्मीदवार राहुल गांधी की संपत्ति में पिछले पांच साल के दौरान चार गुने का इजाफा हुआ है। पिछले चुनाव में लखपति रहे राहुल अब दो करोड़ 33 लाख रुपए की संपत्ति के मालिक हैं। इतनी संपत्ति होने के बावजूद उनके पास कोई वाहन नहीं है और उन पर 23 लाख 25 हजार रुपए का बैंक लोन भी बकाया है। पिछले पांच साल के दौरान उनकी संपत्ति में 1.70 करोड़ रुपए से ज्यादा का इजाफा हुआ है।

 

कटक व भुवनेश्वर क्षेत्र के आर्कबिशप राफेल चीनाथ ने कंधमाल लोकसभा सीट और तीन विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव टालने की मांग चुनाव आयोग से की है। यहां 16 अप्रैल को चुनाव होने हैं। चीनाथ ने कहा कि कंधमाल में स्थिति तनावपूर्ण और अस्थिर है। उड़ीसा सरकार द्वारा चलाए जा रहे शिविरों में अब भी 3200 लोग रह रहे हैं।

दूसरी ओर कंधमाल के पुलिस अधीक्षक प्रवीण कुमार ने कहा है कि तिकाबाली, के नुआगांव और रैकिया में राहत शिविरों में रह रहे मतदाताओं को पुलिस सुरक्षा में मतदान केंद्रों तक ले जाया जाएगा। उनके लिए वाहनों का इंतजाम किया जाएगा। साथ ही संवेदनशील इलाकों में सघन गश्त की जाएगी और किसी प्रकार की हिंसा की घटना को नही होने दिया जाएगा।


केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह की पुत्री वीणा सिंह ने महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम के बीच शनिवार को सीधी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन दाखिल कर दिया।

वीणा सिंह अपने पति वीपी सिंह उर्फ राजा बाबा के साथ जिला निर्वाचन कार्यालय पहुंची और उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया। इस मौके पर अर्जुन सिंह के भतीजे अमर सिंह और साले वीरेंद्र सिंह परिहार भी मौजूद थे, जबकि कोई कांग्रेस नेता मौजूद नहीं था।


उल्लेखनीय है कि पूर्व में सीधी निर्वाचन क्षेत्र से अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह का नाम चल रहा था और सतना क्षेत्र से उनकी पुत्री वीणा सिंह का नाम था, लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने दोनों ही नामों पर सहमति नहीं दी और सीधी से अर्जुन सिंह के कट्टर समर्थक इंद्रजीत पटेल और सतना से अजय सिंह समर्थक सुधीर सिंह तौमर को टिकट दे दिया। आज वीणा सिंह द्वारा एकाएक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किए जाने से राजनीतिक क्षेत्रों में हडकंप मच गया है।


पुत्री के विरुद्ध भी प्रचार करुंगा


नई दिल्ली। अर्जुन सिंह ने सतना संसदीय सीट से अपनी पुत्री वीणा सिंह को टिकट नहीं दिए जाने को लेकर नाराजगी की अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा है कि यदि उनकी पुत्री कांग्रेस के विरुद्ध चुनाव लडे़गी तो वह उनके खिलाफ कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करेंगे।


सिंह ने आज यहां अपने निवास पर बुलाये एक संवाददाता सम्मेलन में साफ तौर पर कहा कि वह कांग्रेस के वफादार सिपाही हैं और पूरी वफादारी से पार्टी की सेवा करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि वह न सिर्फ मध्यप्रदेश के सतना और सीधी क्षेत्रों बल्कि उत्तरप्रदेश के अनेक क्षेत्रों में पार्टी के प्रचार के लिए जाएंगे।


संवाददाताओं ने सिंह पर कांग्रेस नेतृत्व की उनके साथ कथित नाइंसाफी के सवाल भी दागे लेकिन उन्होंने कहा कि वह पार्टी में खुद को मिले महत्व से पूर्णतया संतुष्ट हैं। आगामी लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश को लेकर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में भी उन्होंने साफ किया कि वह प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते हैं तथा पार्टी ने डा. मनमोहन सिंह को ही दोबारा प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया है।


सिंह ने कल एक बयान जारी करके सतना से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सुधीर सिंह तोमर के नाम की घोषणा का स्वागत किया है और सतना की जनता से तोमर का समर्थन करने की अपील की है। संवाददाताओं ने जब उनसे पूछा कि क्या उन्हें पता है कि वीणा सिंह सतना से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल करने वहां पहुंच गई हैं तो उन्होंने कहा कि न तो उन्हें मालूम है न ही मालूम करना है। सबका अपना अपना विवेक है।


एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने दावा किया कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बड़ी संख्या में सीटें हासिल होंगी।



आतंक व सांप्रदायिकता बड़ी चुनौती


 

आतंकवाद, नक्सलवाद और सांप्रदायिकता को देश के समक्ष चुनौती बताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को कहा कि परेशानी में डाल देने वाले विघटनकारी' तत्वों की 'उग्रता' समझनी होगी और उन्हें शिकस्त देने के तरीके ढूंढ़ने होंगे।

सिंह ने पाकिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों में हाल ही में आए बदलावों पर भी चिंता जताई और कहा कि दक्षिण एशिया में उथल-पुथल मची हुई है और क्षेत्र में हो रही घटनाओं से भारत का विकास प्रभावित हुआ है।


उन्होंने यहां अपने निवास पर आईएएस परिवीक्षार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आज ऐसी ताकतें हैं जो हमारी अर्थव्यवस्था और राजव्यवस्था को अस्थिर करना चाहती हैं।


सिंह ने कहा कि ये आतंकवाद के खतरे हैं। ये खतरे नक्सलवाद के खतरे हैं, हमें यह भी पहचानना होगा कि सांप्रदायिकता और धार्मिक द्वेष विघटनकारी तत्व हो सकता है।


उन्होंने रेखांकित किया कि इन परेशानी में डाल देने वाले विघटनकारी तत्वों की उग्रता को समझने की जरूरत है और कहा कि हमें ऐसे तरीके और युक्तियां निकालना होंगी कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए हम किस तरह अपनी अर्थव्यवस्था और राजव्यवस्था को सक्षम बना सकते हैं।


प्रधानमंत्री ने इन नवनौकरशाहों से सांप्रदायिकता, जातिवाद या क्षेत्रवाद के प्रति सचेत रहने और देश की एकता तथा अखंडता के लिए काम करने कहा। दक्षिण एशियाई स्थिति के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे समक्ष एक ऐसा पड़ोसी है जो शांति से दूर है। उन्होंने पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका का संदर्भ दिया और कहा कि इस सबसे हमारे विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा है।


उन्होंने कहा कि भारत के विकास की योजना बनाते समय हमें उस माहौल के प्रति सचेत रहना होगा जिसके अंदर हम काम कर रहे हैं।


प्रधानमंत्री ने आईएएस परिवीक्षार्थियों से कहा कि 'प्रचुर अवसर उपलब्ध हैं लेकिन उनके समक्ष कई चुनौतियां भी हैं'। शासन पर टिप्पणी करते हुए सिंह ने रेखांकित किया कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार और जनसेवकों के कर्तव्य निर्वहन के प्रति सचेत नहीं रहने को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।


प्रधानमंत्री ने देश की राजव्यवस्था के समक्ष 'विखंडन के बड़े खतरे' की ओर नौकरशाहों का ध्यान आकर्षित कराया और उनसे समग्र विकास तथा देश की अखंडता के लिए काम करने को कहा।


मानवीय पुट के साथ विकास पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि विकास में समाज के सभी वर्ग पर ध्यान दिया जाना चाहिए। सिंह ने कहा कि विकास प्रक्रिया को पटरी से उतार सकने वाले खतरों के प्रति सचेत रहते हुए भारत के भविष्य की ओर उम्मीद और विश्वास के साथ देखा जाना चाहिए।



अत्याचार बंद करें, वरना भुगतेंगी मायावती


 

वरुण गांधी मामले को तूल देने में जुटी भाजपा ने मुख्यमंत्री मायावती को चेतावनी दी कि उन्होंने दमन व अत्याचार की राजनीति बंद नहीं की, तो भारी कीमत चुकाएंगी। पार्टी ने कहा कि विपक्षी दल के उम्मीदवार [वरुण गांधी] को रासुका में निरुद्ध करके बसपा सरकार ने एक गलत परंपरा की शुरुआत की है।

शनिवार को 'फ्रेंड्स आफ बीजेपी' नामक संगठन की बैठक में शिरकत करने यहां पहुंचे भाजपा महासचिव अरुण जेटली ने पार्टी कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा अत्याचारी कार्यशैली से किसी पार्टी को सफलता नहीं मिलती। वरुण गांधी के खिलाफ रासुका तथा हत्या के प्रयास का मुकदमा बदले की भावना से उठाया गया कदम है। इन कानूनों का वरुण गांधी पर लगे मूल आरोप से कोई संबंध नहीं है। इसे लेकर पूरे समाज में गुस्सा है।


जेटली ने चेतावनी दी कि मायावती ने यह कदम वापस न लिया तो बसपा सरकार और पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। जेटली ने दावा किया लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने सहयोगियों के साथ अग्रिम पंक्ति की पार्टी बनकर उभरेगी।


उन्होंने कहा कि यूपीए व तीसरे मोर्चे में शामिल दल किसी भी कीमत पर अगली सरकार का हिस्सा बनने के लिए व्याकुल हैं। इनमें कोई वैचारिक साम्य नहीं है। उन्होंने कहा कि सपा व बसपा से ज्यादा भ्रष्ट सरकारें उत्तर प्रदेश के इतिहास में कभी नहीं रहीं। ये दल जातिवाद के सहारे सत्ता में रहना चाहते हैं। विकास से इनका कोई सम्बन्ध नहीं।



मायावती पत्थर दिल: मुलायम


आगरा। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने शनिवार को किसानों से हमदर्दी जताते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती को पत्थर दिल करार दिया। यादव ने दावा किया कि लालू, पासवान और उनके बिना दिल्ली में सरकार नहीं बन सकती।


वे शनिवार को यहां एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। हेलीकॉप्टर से उतर मंच पर आते ही उन्होंने माइक थाम मुख्यमंत्री मायावती पर साधा निशाना। कहा कि वह तो पूरे प्रदेश को पत्थर का बनाने पर तुली हैं। हरियाली उजाड़ पत्थर लगवा रही हैं, खुद भी पत्थर दिल हैं। यादव ने वरुण मुद्दे पर भाजपा और बसपा में नूरा कुश्ती बतायी। कहा कि भाजपा मुस्लिमों को अपशब्द कह रही है तो बसपा कार्रवाई की आड़ में मुस्लिमों पर डोरे डालने की कोशिश में हैं। मगर नौटंकी की असलियत सब समझते हैं।


सपा मुखिया ने कहा कि लालू यादव, रामविलास पासवान और उन्होंने हाथ मिला लिया है। दावा किया कि दिल्ली में उनके [लालू, पासवान और मुलायम] के बगैर सरकार नहीं बन सकती। उपस्थित जनसमूह से पार्टी प्रत्याशियों को जिताने की अपील करते हुए कहा कि हम देश में हर जगह जीतेंगे। हम भी मैनपुरी से जीत ही रहे हैं, मगर यहां से कमजोर करके हमें दिल्ली मत भेजना। उन्होंने पार्टी के एक पूर्व सांसद पर नाम लिए बगैर निशाना साधा और कहा कि एक दलाल बसपा की शरण में चला गया, जिसे हमने तीन-तीन बार संसद तक पहुंचाया, वो हमारे लड़के अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है। ध्यान रखना। इस अहसानफरामोशी का सबक जरूर सिखाना है। जाते-जाते वे कह गए कि फुरसत मिलते ही फिर आऊंगा।



लालू ने भाजपा को आड़े हाथ लिया


 


चतरा। राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने शनिवार को भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह भगवा दल आतंकवाद जैसे अति महत्वपूर्ण मुद्दे को भूलकर समाज को बांटने के लिए राम मंदिर मुद्दे को एक बार फिर उठा रहा है।


चतरा और कोडरमा लोकसभा क्षेत्रों में जनसभाओं को संबोधित करते हुए लालू ने कहा कि भाजपा की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [राजग] देश में बिखराव पैदा कर रहा है लेकिन वह राममंदिर मुद्दे के हथकंडे से लोगों को बेवकूफ नहीं बना सकता।


उन्होंने दावा किया कि भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का प्रधानमंत्री बनने का सपना सिर्फ ख्वाब बनकर ही रह जाएगा। लालू ने कहा कि भाजपा और राजद को देश में सांप्रदायिक तनाव फैलाने से रोकने के वास्ते यह हमारे लिए उनके खिलाफ करो या मरो की लड़ाई है।


राजद, लोक जनशक्ति पार्टी [लोजपा] और समाजवादी पार्टी [सपा] के एक साथ एक मंच पर आने के बाद कई नेताओं की नींद उड़ गई है।


रेलमंत्री ने कहा कि राजद, सपा और लोजपा का गठबंधन न तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ है और न ही कांग्रेस सोनिया गांधी के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि यह गठबंधन तो विभाजनकारी ताकतों को रोकने के साथ-साथ पिछड़ों, दलितों तथा समाज के अन्य वर्गों के गरीब लोगों के विकास के लिए किया गया है।


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए लालू ने कहा कि वह आखिर राजग की अपनी सहयोगी भाजपा पर वरुण गांधी के नफरत भरे भाषण के मामले से खुद को अलग करने के लिए दबाव क्यों नहीं डाल रहे हैं। साथ ही नीतीश राममंदिर मुद्दे को फिर जिंदा करने पर भाजपा से कुछ क्यों नहीं कह रहे हैं।


 


मोदी ने मनमोहन कार्यकाल ऊंगली उठाई



गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज आरोप लगाया कि केंद्र की संप्रग सरकार चुनावों की घोषणा के तुरंत बाद बिखर गयी है।
मोदी ने आज फिर आरोप लगाया कि मनमोहन सिंह एक कमजोर प्रधानमंत्री हैं। वह यहां क्लब मैदान में आज भाजपा उम्मीदवार हंसराज अहिर के लिये एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। अहिर चंदरपुर क्षेत्र के मौजूदा सांसद है। वह चंदरपुर लोकसभा क्षेत्र से फिर से चुनाव लड़ रहे हैं।
गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार उत्तर प्रदेश और झारखंड में संप्रग के घटक दलों ने कांग्रेस के लिये मात्र नौ सीटें ही छोड़ी। उन्होंने मनमोहन सिंह के पांच साल के कार्यकाल को कुशासर्नं वाला बताया। उन्होंने कहा कि सिंह ने विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के मद्देनजर एक विशेष राहत पैकेज का वादा किया था। लेकिन अपने वादे को पूरा करने में वह विफल रहें। किसी वित्तीय राहत के अभाव में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला जारी है।
मोदी ने दावा किया कि गुजरात के किसान फसल से कमाई के मामले में किसी भी कांग्रेस शासित राज्य की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं।


 


मोहन भागवत



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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत










मोहन भागवत
जन्म१९५०
चन्द्रपुर, भारत
धार्मिक मान्यताहिन्दू

मोहन राव भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक हैं। २१ मार्च को पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन के पदत्याग पर उन्हें नया सरसंघचालक नियुक्त किया।







अनुक्रम

[छुपाएँ]



[संपादित करें] बचपन


मोहन भागवत जी का जन्म सन १९५० में चन्द्रपुर, महाराष्ट्र में हुआ था।



[संपादित करें] शिक्षा


मोहन भागवत जी शैक्षणिक रुप से पशु चिकित्सक हैं।



[संपादित करें] आर.एस.एस से जुडा़व


मोहन भागवत जी को हाल ही में सरसंघचालक (आरएसएस प्रमुख) के रूप में पदोन्नत कर दिया गया है। वे अपने बाल्यकाल से ही संघ से जुडे़ हुए हैं। अपनी शिक्षा समप्ति के बाद से ही उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा और संघ प्रचारक के रुप में लगा दिया है। इनकी पदोन्नति संघ में ही रह कर हुई है| संघ में इनपर बहुत से दायित्व है:- अकोला के जि़ला स्तरिय प्रचारक, नागपुर के प्रादेशिक प्रचारक, बिहार के क्षेत्र प्रचारक, और आरएसएस के सामान्य सचिव / संवैधानिक प्रमुख।



[संपादित करें] पहचान







पूर्वाधिकारी
के. एस. सुदर्शन
आरएसएस के सरसंघचालक
२००९ –
उत्तराधिकारी
(कोई नहीं)


[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ









 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ



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यह लेख भारत स्थित एक हिंदू राष्ट्रवादी संघटन आर एस एस के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु आर एस एस देखें।







संघ के शाखा का एक दृश्य

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक हिंदू राष्ट्रवादी संघटन है जिसके सिद्धांत हिंदुत्व मे निहित और आधारित हैं। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर एस एस नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इसकी शुरुआत 1925 में डा. केशव हेडगेवार द्वारा की गयी थी । बीबीसी के अनुसार, संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है. 1925 के बाद से धीरे धीरे इस संस्थान का राजनैतिक महत्व बढता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनैतिक दल के रूप में हुई जिसे आमतौर पर संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा जाता है जो भारत के केन्द्रीय सत्ता पर अन्तत: सन 2000 में काबिज हुई।







अनुक्रम

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[संपादित करें] संघ परिवार की संरचनात्मक व्यवस्था


संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघ चालक का स्थान होता है जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा होती है। हर सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। संघ के वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत हैं। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखाओं द्वारा होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक से दो घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग पचास हजार से ज्यादा शाखाएँ लगती हैं। ये शाखाएँ संघ की बुनियाद होती है। सामान्यतया शाखा की गतिविधियों में खेल, योग वंदना और भारत एवं विश्व की साँस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है।



[संपादित करें] आलोचनाएँ


महात्मा गाँधी की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति से क्षुब्ध होकर 1948 में नाथूराम गोडसे द्वारा उनकी हत्या करने के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जाँच समिति की जाँच के बाद संघ को इस आरोप से बरी कर दिया गया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।


संघ के आलोचकों के द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियाँ अल्पसंख्यक- तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। उदाहरणार्थ- विवादास्पद शाहबानो प्रकरण एवं हज यात्रा में दी जानेवाली सब्सिडी इत्यादि की नीति समाप्त करे।


संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में ही हमेशा से उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और हम सिर्फ़ हिंदुओं के जायज अधिकारों की बात करते हैं। आलोचकों का कहना है कि ऐसे विचारों एवं प्रचारों से भारत का धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमज़ोर होता है। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है जिसमें बाबर द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक ढाँचा विवादित ढाँचा के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना है। अधिकांश हिंदुओं का ऐसा मानना है कि यहीं भगवान राम की पैदाईश हुई थी।



[संपादित करें] संघ की उपलब्धियाँ


संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है जिसकी शुरुआत 1925 से होती है। उदाहरण के तौर पर 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को गणतंत्र दिवस के 1963 के परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया। सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये।


वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँचने मे भीं सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में उपराष्ट्रपति पद पर भैरोसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग शामिल हैं।



[संपादित करें] संघ के सरसंघचालक


१. डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टरजी
२.
माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी
३.
मधुकर दत्तात्रय देवरस उपाख्य बालासाहेब देवरस
४.
प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया
५.
कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य सुदर्शनजी
६.
मोहनराव भागवत



[संपादित करें] सहयोगी सँस्थाएँ




[संपादित करें] यह भी देखें




[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ




  • पाञ्चजन्य - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखपत्र (हिन्दी साप्ताहिक)


  • Organiser - आर एस एस का मुखपत्र (अंग्रेजी साप्ताहिक)


  • श्री गोलवलकर गुरुजी - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को समर्पित हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी जालघर



  • गीत गंगा - दस से भी अधिक भारतीय भाषाओं में सैकडों राष्ट्रभक्ति गीत एवं एम् पी-३






 


भारतीय जनता पार्टी



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भारतीय जनता पार्टी


दल अध्यक्षराजनाथ सिंह
महासचिवअरुण जेटली
संसदीय दल अध्यक्षअटल बिहारी बाजपेयी
नेता लोकसभालाल कृष्ण आडवाणी (विपक्ष)
नेता राज्यसभाजसवंत सिंह (विपक्ष)
गठन1980
मुख्यालय11, अशोक रोड,
नई दिल्ली - 110001
गठबंधनराष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
लोकसभा मे सीटों की संख्या138
राज्यसभा मे सीटों की संख्या48
राजनैतिक विचारधाराहिंदुत्व
हिन्दु राष्ट्रवाद
आर्थिक उदारीकरण
अखंड मानवतावाद
प्रकाशनकमल संदेश
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भारतीय जनता पार्टी भारत का एक राष्ट्रवादी राजनैतिक दल है। इस दल की स्थापना ६ अप्रैल १९८० में हुई थी। इस दल के वर्तमान अध्यक्ष राजनाथ सिंह है। इस दल का युवा संगठन भारतीय जनता युवा मोर्चा है । २००४ के संसदीय चुनाव में इस दल को ८५ ८६६ ५९३ मत (२२%, १३८ सीटें) मिले थे। भाजपा का मुखपत्र कमल संदेश है, जिसके संपादक प्रभात झा हैं एवं संजीव कुमार सिन्‍हा संपादक मंडल सदस्‍य हैं।


भारतीय जनता पार्टी संघ परिवार नामक वटवृक्ष की प्रमुख शाखा के रूप में उभर कर सामने आई है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की इसके प्रतिपक्षियों द्वारा साम्प्रदायिक प्रतिक्रियावादी तथा न जाने क्या क्या कहा जाता रहा है। उन्हें बदनाम करने के उद्देश्य से जितना भी कीचड़ उछाला गया, संघ परिवार इन सबकी परवाह किए बिना निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ता ही चला गया। संगठन व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र को राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और राष्ट्रीय चेतना का मूलमंत्र मानते हुए सफलता की दूरवर्ती ऊंचाईयों तक पहुंचा है। आज यह संगठन अपने उत्कर्ष पर पहुंच चुका है। अब तो इसके पुराने समय से चले आ रहे विरोधी आलोचक यह मानने को विवश हो गए हैं कि भाजपा का कोई विकल्प नहीं और इसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। इस राष्ट्रीय संगठन की विजय-गाथा की कहानी इस प्रकार है :-


राष्ट्रों के उत्थान और पतन का दर्शन इतिहास का निर्माण करता है। भारतीय इतिहास के पन्ने संघ परिवार की स्पष्ट और विस्तृत संकल्पना का दिग्दर्शन करते हैं जिसके लंबे संघर्ष की कहानी सभी के लिए प्ररेणा का स्त्रोत है। भारत भारती की महान सभ्यता के गीत श्रीलंका से जावा व जापान तथा तिब्बत व मंगोलिया से चीन और साइबेरिया में गाए जाते रहे हैं। हूण और शकों द्वारा इसकी सभ्यता का आकलन कर हम पाते हैं कि इसकी सभ्यता रक्तरंजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई लेकिन इसने टूट कर बिखरना नहीं सीखा। इसे जीवंत बनाने के लिए विजय नगर एम्पायर, शिवाजी, महाराणा प्रताप तथा गुरू गोबिन्द सिंह के अलावा अनगिनत राष्ट्रनायकों के बलिदान एवम् महानायकों की अक्षुण्ण भूमिका रही है।


हाल के वर्षों में इस महान प्ररेणा की मशाल को लेकर स्वामी दयानन्द तथा स्वामी विवेकानन्द ने ज्ञान का ज्योतिर्मय प्रकाश फैलाया जिसे बाद में अरविंद, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी तथा अन्य लोकनायकों ने जन जन तक इसे प्रकाशित किया इस विरासत को आगे बढ़ाने में डॉ. हेडगेवार की भूमिका महत्वपूर्ण रही जिन्हाेंने 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की। 1940 में में प.पू गुरूजी द्वारा इस महान विरासत को आगे पहुंचाया गया। उनके दर्शन में भारतीय मुसलमानों के प्रति कोई दुर्भावना नहीं थी लेकिन वे जानते थे कि इससे पूर्व के शासकों का रवैया दुर्भावनापूर्ण रहा और उन्हाेंने हिंदुओं को मुसलमान बनने के लिए बाध्य किया। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि सभी को न्याय मिले लेकिन किसी को खुश करने के लिए उसे पक्षपात पूर्ण समर्थन न दिया जाए। इसके साथ ही उनका मानना था कि हम हिंदू राष्ट्र थे और हिंदू राष्ट्र हैं और महज़ विश्वास में परिवर्तन का अभिप्राय राष्ट्रीयता में परिवर्तन से नहीं लगाया जाना चाहिए।


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ गांधीजी के इस फलसफ़े से पूर्ण रूप से सहमत रहा कि हिंदू धर्म में ईसा, मोहम्मद, ज़ोरोस्टर तथा मोजेज़ के प्रति पूरी आस्था है और सम्मान भी। परिस्थितियों के परिणामस्वरूप अधिकांश हिंदू मुसलमान बनने के लिए विवश हुए। आज के संदर्भों में अधिकांश मुसलमान स्वतंत्र, समृध्द और प्रगतिशील भारत में हिंदुओं की तरह विचारधारा रखते हैं। विश्व में आ रहे बदलाव और विवेकशीलता के परिणामस्वरूप वे अपने प्राचीन विश्वास और जीवन पथ में परिवर्तन के लिए स्वतंत्र हैं और ऐसे भारतीय मुसलमान विचारधारा से हिंदू ही है।


अंग्रेजी हकूमत की फूट डालो और राज करो की कूटनीति को मान कर तथा राजनेताओं की अदूरदर्शिता के परिणामस्वरूप देश बंटवारे की आग में झोंक दिया गया। परन्तु संघ परिवार नि:संदेह अपनी एकता, मकसद और सुढ़ता के परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति को जीवंत रख पाया। अपनी स्थापना से लेकर अब तक, राष्ट्र निर्माण के कार्य में संलग्न रह कर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने 1930 से 1940 तक के संघर्षपूर्ण समय के दौरान वह सब कुछ कर पाया जो आज के सदंर्भ में हम देख रहे हैं लेकिन गांधी जी की हत्या और उस राष्ट्रीय क्षति के समय शासकीय राजनीति में आई गिरावट के परिणामस्वरूप इसे गहरा आघात लगा।


राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ तथा लाखों अन्य लोगों ने मुसलमान को खुश करने की महात्मा गांधी की नीति का समर्थन नहीं किया जो उन्होंने खिलाफत आंदोलन के समय उन्हें दिया लेकिन गाँधी जी के लिए उनके मन में अपार श्रध्दा थी। वास्तव में गांधी जी ने दिसम्बर, 1934 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शीतकालीन कैंप का दौरा किया था तथा भंगी कालोनी में दिल्ली के राष्ट्रीय स्वंय सेवकों के बीच भाषण भी दिया था। यह सितम्बर 1947 में भाषण दिया गया था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की आदर्श भावनाओं तथा कठोर अनुशासन की उन्हाेंने मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी। कभी भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की उन्होनें आलोचना नहीं की और उसकी खिलाफ़त में एक शब्द भी नहीं बोला लेकिन उनकी हत्या के उपरांत 17000 राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कार्यकर्ताओं के साथ गुरूजी पर गांधी जी की हत्या के षडयंत्र रचने का अभियोग लगाया गया जिसके लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा सत्याग्रह किया गया। परन्तु इस समय तक किसी भी विधायक अथवा सांसद ने इस विवाद को नहीं उठाया। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के लिए यह सत्य की परीक्षा थी और ऐसे सत्य के लिए जैसा कि गोखले जी ने कहा कि राजनीति में जो जितना गहरा काटा जाता है वह चारों ओर उतना ही अधिक प्रभाव छोड़ता है


जब तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक नन्हें पौधे की तरह रहा, हर समय अवांछित राजनीतिज्ञों ने उसकी जड़े काटने का प्रयास किया ताकि संघ रूपी वह पौधा ही समाप्त हो जाए लेकिन 1951 में गुरूजी के आर्शीवाद से डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ ने जन्म लिया और पहले ही आम चुनाव में देश की चार बड़ी पार्टियों में उसने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। तब से अब तक पार्टी ने कभी मुड़ कर नहीं देखा।


पहला दशक


पहली दशाब्दी का संपूर्ण कार्यकाल संगठनात्मक विकास तथा नीतिगत तथा वैचारिक प्रसार में ही बीत गया। कश्मीर, कच्छ तथा बेरूबारी जैसी समस्याओं से जूझने में इसने अपना अधिकांश समय बिताया जो कि प्रादेशिक अखण्डता से जुड़े प्रश्न थे लेकिन बदले में उसे क्या मिला, उसी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर जेल में बलिदान। अनुच्छेद 48 के अनुसार गाय के सरंक्षण की मांग करने वाली पार्टी यह थी जैसा कि महात्मा गांधी ने घोषणा की थी कि गाय का सरंक्षण स्वराज्य से भी महत्वपूर्ण है। जमींदारी और जागीरदारी के विरूध्द भी इस पार्टी ने अपना बिगुल बजाया। परमिट-लाइसेंस, कोटा राज के खिलाफ भी आवाज़ उठाने वाली यही पार्टी थी। न्यूक्लीयर ताकत बढाने के पक्ष में भी यही पार्टी थी ताकि देश की सैन्यशक्ति दुनियाँ के सामने अपनी अलग ही पहचान बना पाए। 1962 के चीन युध्द तथा 1965 में पाकिस्तान युध्द ने संघ परिवार को देश की संवेदनशीलता के शीर्ष पर बैठा दिया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक परिवार को 1965 में जन पुलिस कार्य सौंपा गया तब इसने समाज के सभी वर्गों और यहां तक कि मुसलमान भाईयों को संतुष्ट कर दिखाया। राष्ट्रीय एकता परिषद में गुरूजी को विशेष रूप से बुलाया गया और जनरल कुलवंत सिंह ने तब कहा कि पंजाब देश की तलवार की धार है जिसकी कमाँड राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है।


सभी देशों में पार्टी ने स्वतंत्रता आंदोलन का अलख जगाया। ऐसा ही कांग्रेस द्वारा किया गया लेकिन 1967 में कांग्रेस को सत्ता से हटना पड़ा। पंजाब से लेकर बंगाल तक सभी जगह कांग्रेस विरोधी सरकार और अमृतसर से लेकर कलकता तक कांग्रेस का कहीं नामोनिशान नहीं था।


कुछ राज्यों में जनसंघ और कम्यूनिस्ट पार्टियों ने अपने पांव गाड़ दिए। उनके मन में केवल यही भावना थी कि हम भारत की संतान हैं और भारत माता के लिए 20वीं शताब्दी के लिए समर्पित हैं।


कांग्रेस का वर्चस्व इससे समाप्तप्राय हो गया लेकिन धन की ताकत से कांग्रेस ने कई राज्यों में शासन सत्ता हथिया ली।


परंतु जनसंघ ने अपना हृदय संकुचित नही होने दिया। पंडित दीन दयाल उपाध्याय की अध्यक्षता में कालीकट में अभूतपूर्व सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में राष्ट्रीय भाषा नीति पर विचार विमर्श किया गया और यह निर्णय लिया गया कि सभी भारतीय भाषाओं का समादर करते हुए देश में राजभाषा की गंगा बहाई जाए। मलयायम डेली ने इस सम्मेलन के बारे में कहा कि दक्षिण से गंगा बहने का यह पहला अवसर रहा।


परंतु इस ऐतिहासिक सम्मेलन के उपरांत पं. दीनदयाल उपाध्याय की कुछ ही दिनों में हत्या कर दी गई और उनका शव मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर पड़ा मिला। भारतीय जन संघ ने इसकी सी.बी.आई से जांच की मांग की लेकिन जिस तरह की जांच की गई वह राजीनीति से प्रेरित थी। जिसके कुछ भी परिणाम नहीं निकल पाए।


हांलाकि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या भारतीय जनसंघ के लिए बहुत बड़ी दुर्घटना थी जिससे इस संस्था की संपूर्ण चूलें हिल गई। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बंगलादेश की मुक्ति आंदोलन के लिए इस दल ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और खाद्यान्नों कीे आत्मनिर्भरता और खाद्य सुरक्षा के लिए इसके द्वारा ऊंची वसूली दरों से इस दिशा में सकारात्मक प्रभाव पड़ा। 1971 का इसका चुनावी रणनीति गरीबी उन्मूलन के विरूध्द जंग थी। कांग्रेस ने गरीबी हटाओं इस नारे को चुरा कर 1971-1972 में भारतीय जनसंघ के साथ ने राजनीति कर में अपने स्थान का बरकरार रखा।


जयप्रकाश नारायण का आह्वान


चुनाव और उप चुनावों में जनसंघ ने सकारात्मक भूमिका अदा की और जयप्रकाश नारायण के हाथ मजबूत किए जो भ्रष्टाचार के समापन तथा एक पार्टी शासन के विरूध्द उठ खड़े हुए थे। तत्कालीन भारतीय जनंसघ बिहार और गुजरात में जन आंदोलन में संलग्न रही और वहां सफल भूमिका अदा करने में कामयाब रही। जयप्रकाश नारायण ने ज़ोरदार शब्दों में यह बात कही कि यदि जनसंघ सम्प्रदायकारी है तो मैं भी सम्प्रदायवादी हूँ। विरोधी पार्टियां चुनाव तथा उप चुनावों में कामयाब रही। एक गूंज पूरे देश में उठी सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है। बौखला कर श्रीमती इंदिरागांधाी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी और सैकड़ों उन लोगों को जिनका संबंध राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से था, जेल भिजवा दिया गया। लेकिन देश इस अग्नि परीक्षा के लिए तैयार था। वह संघ परिवार ही था जिसके 80 प्रतिशत से अधिक कार्यकर्ता इमरजेंसी में या तो जेलों में बंद थे या सत्याग्रह की तैयारी कर रहे थे।


श्रीमती गांधी ने चंडीगढ़ में, 1975 में आयोजित कांग्रेस के सत्र में इस तथ्य को स्वीकार किया कि हालांकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक देश के लिए अनजाना संगठन होने के बावजूद भी पूरे देश में गहरी छाप छोड़ गया है। लंदन के अर्थशास्त्री (दिसम्बर 4, 1970) ने संघ परिवार के भूमिगत आंदोलन के बारे में पूरे संसार को बताया कि संघ परिवार ही पूरे विश्व में नॉन-लेफ्ट रिवोल्यूशनरी पार्टी है। मर्ाक्सवादी पार्टी के नेता श्री ए.के.गोपावन को कहना पड़ा कि संघ परिवार के पास ऐसा ठोस उपाय है जो बहादुरी तथा बलिदान के लिए पूरे देश को प्रेरित कर सकती है।


इन सभी प्ररेणादायक प्रयासों से इंदिरागांधी की सरकार का 1977 में पतन हुआ और जनता पार्टी की सरकार जिसमें भारतीय जनसंघ, भारतीय लोक दल, कांग्रेस (ओल्ड), समाजवादी तथा सी.एफ.डी. घटक शामिल थे, ने सरकार की कमान संभाली। यहां इस सरकार के विदेश मंत्री के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा सूचना तथा प्रसारण मंत्री के रूप में श्री लाल कृष्ण अडवानी ने अपनी कमान संभाली और देश को आगे ले जाने की दिशा में बखूबी अपनी भूमिका का निर्वाह किया। लेकिन 30 महीने के बाद ही यह सरकार गिर गई जिसका प्रमुख कारण व्यक्तिगत सत्ता संघर्ष था जिसने जनता का आकांक्षाओं पर तुषाराघात किया। चरणसिंह सरकार को गिराने के लिए विदेशी धन के रूप में करोड़ों रुपए का व्यय किया गया। 11 फरवरी 1980 को स्टेट्समैन को यह समाचार में प्रकाशित किया गया कि रुपया जिसे काले विश्व बाज़ार में डिस्काउंट के रूप में प्रयोग किया जाता रहा वह अब प्रीमियम के रूप में चल पड़ा है। डॉलर की दर जो 7.91 रुपए 4 जनवरी को थी वही गैर सरकारी तौर पर 7.20 रुपए हो गई। अनजाने खरीददारों के कारण रूपए की दरों में काले बाजार में भारी वृध्दि हुई और यह जानकारी स्पष्ट रूप से सामने आई कि कहां विदेशी सरकारें चुनावों में पानी की तरह पैसा बहा रही है। फरवरी के प्रथम सप्ताह, 1980 में मुद्रा का अवमूल्यन उस दर तक पहुंचा जहाँ कोई सोच भी नहीं सकता था।


जनता पार्टी के घटक दलों का 1980 में विखण्डन हो गया। भारतीय जनसंघ पार्टी के घटक दलों ने इसे अनुचित करार करते हुए इस दल को भारतीय जनता पार्टी के रूप में स्थापित किया जिससे भारतीय राजनीति का नए इतिहास का सूत्रपात हुआ।स्वंय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष ने दोहरी सदस्यता का मामला उठाया। अटलजी और अडवानी जी सहित सभी ने एक स्वर में कहा कि हम अपनी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध को नहीं छोड़ सकते। भारतीय जनसंघ ने अलग होने का निर्णय लिया।


भारतीय जनता पार्टी का पहला सत्र बंबई में सम्पन्न हुआ जिसकी अध्यक्षता की अटल बिहारी वाजपेयी ने की। यह सम्मेलन काफी सफल रहा। इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए वयोवृध्द नेता श्री छागवन ने कहा मैं पार्टी का सदस्य नहीं हूँ और न ही पार्टी का कोई प्रतिनिधि भी नही हूँ लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जब मैं आपके समक्ष आपसे बात कर रहा हूँ तब मैं अपने आपको आप सबसे अलग नहीं महसूस कर रहा। इमानदारी और निष्ठा से आपके बीच का ही व्यक्ति हूँ जो यह कहना चाहता है कि बी.जे.पी. आपकी अपनी पार्टी है जो राष्ट्रीय स्तर की तो है ही लेकिन जिसकी निष्ठा और अनुशासन ऊंचे दर्जे का है।


आप सभी की इस विराट रूप में उपस्थिति इंदिराजी को हटाने में सक्षम भी है और इंदिराजी को बंबई का जवाब भी है।


इंदिराजी ने अकालीदल को बांटने और उसे कमजोर करने के उद्देश्य से भिंडरावाले को मान्यता दी और उसे प्रचारित किया जो देश के सामने सबसे बड़ी कलंकित सेवा थी। आज तक देश में यह आग ठंडी नहीं हो पाई है जिसका वर्तमान शिकार पंजाब के वर्तमान मुख्य मंत्री श्री बेअंतसिंह है।


लिट्टे से सांठगांठ कर उसे आर्थिक सहायता प्रदान करना, उसके लिए हथियार उपलब्ध करवाना और उसे हर प्रकार प्रोत्साहित करना कम खतरनाक कदम नहीं था और यह सब हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका की मैत्री के विरूध्द था।


अपने राजनीतिज्ञ पुत्र की हवाई दुर्घटना में निधन के उपरांत इसने अपने पायलट पुत्र को देश रूपी का सारथी बना दिया जिन्हें राजनीति का नाममात्र का भी अनुभव नहीं था।


भारतीय जनता पार्टी ने इन सभी उलटे कार्यों का प्रसार कर विरोध किया और निंरतर एक जुट होकर नैतिक और राष्ट्रीय चरित्र को प्रधानता हुई, अपनी राजनैतिक यात्रा में कोई अड़चन नहीं आने दी। प्रमुख नगरों में इसने कॉर्पोरेट चुनावों में अपने झंडे गाड़ दिए। यह जनभावना तब 1985 में फैली कि इंदिरा गांधी चुनाव में किसी भी स्थिति में नहीं जीत पाएँगी। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को भी यह कहते सुने गये कि वे इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं करेगें चाहे वे जीत कर भी आएँ। गोल्डन टेम्पल, अमृतसर की पवित्रता भंग करने के एवज में उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गई। सिक्ख समुदाय पर मानों वज्रपात हुआ। हत्याएं और लूटपाट में जानमाल के अतिरिक्त 10,000 करोड़ रुपए की क्षति हुई । ज्ञानी जैल सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से इस नरसंहार रोकने और सुव्यवस्था की अपील की। इस नाटक का अंत राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बना कर तथा राव को गृहमंत्री बना कर समाप्त हुआ लेकिन विडम्बना देखिए सिक्खों के विरूध्द किए गए नरसंहार की सज़ा किसी को नहीं दी गई।


श्री राजीव गांधी का शासन


सहानुभूति की लहर से कांग्रेस ने अधिक से अधिक सीटे आम चुनाव में जीती और पंडित नेहरू से भी ज्यादा बहुमत कांग्रेस को मिला। एक राजकुमार के रूप मिस्टर क्लीन की छवि राजीव के चेहरे पर जबर्दस्ती जड़ दी गई लेकिन अंत में यह महसूस किया गया कि चुनाव जीतना देश चलाने से काफी आसान है।


श्री लोंगोवाल के साथ हुए पंजाब करार का कभी कार्यान्वयन नहीं हो पाया। आसाम करार से बंगलादेश के घुसपेठियों की चांदी हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो का फैसला सुनाया तो शुरू में उसका पक्ष इस सरकार ने किया लेकिन कुछ समय बाद ही इनके द्वारा इसका विरोध किया जाने लगा। मुसलमानों को अपने पक्ष में करने के लिए अयोध्या में जो कुछ हुआ और बाद में हिंदुओं को खुश करने के लिए जो हुआ, वह सर्वविदित है। श्रीलंका में सेना भेज कर रक्तक्रांति की गई जो उद्देश्यहीन थी।


भारतीय जनता पार्टी ने अपनी अगली रणनीति के लिए अपनी कमर कस ली। 1984 के चुनावों की समीक्षा की गई और पाई गई कमियों में सुधार किया गया। संगठन को जटिलता से सरलता में परिणत कर मानवीय मूल्यों के अनुरूप संगठन को बनाया गया। चुनाव सुधारों के लिए पार्टी ने संघर्ष किया। बंगलादेश से घुसपैठ कर भारत में आने जैसे समस्याओं को उठा कर भाजपा ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया। राजीव गांधी के दो वर्ष भी अभी पूरे नहीं हो पाए थे कि भाजपा ने सरकार आरोपों की झड़ी लगा दी।


विजय पथ पर अग्रसर : भारतीय जनता पार्टी


आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, उड़ीसा, गोवा, गुजरात एवं महाराष्ट्र में 1995 के चुनावों के परिणाम और भी अधिक उल्लेखनीय रहे। आन्ध्र प्रदेश में मुख्य टक्कर टी.डी.पी एवं कांग्रेस के बीच थी लेकिन फिर भी भारतीय जनता पार्टी 3 सीटें झटक गई। परन्तु कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी ने 40 सीटें जीती एवं कांग्रेस को तीसरे स्थान पर छोड़ दिया। गोवा में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने 60 सीटों के सदन में 4 सीटों पर जीत दर्ज की। उड़ीसा में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी संख्या तिगुनी अर्थात 3 से 10 तक पहँचा दी। बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी को तीसरे स्थान पर छोड़ा एवं प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभर कर सामने आया। महाराष्ट्र में शिव सेना एवं भारतीय जनता पार्टी ने संयुक्त सरकार का गठन किया। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने दो-तिहाई बहुमत प्राप्त किया। इस प्रकार के सुखद परिणामों से न केवल भारतीय जनता पार्टी के आलोचकों बल्कि सभी को स्पष्ट हो गया कि अब भारतीय जनता पार्टी रूकने वाली नहीं है।


यह तर्कसंगत है कि 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल के साथ सीटों के समायोजन के कारण 89 लोक सभा की सीटों पर एवं 1991 में अयोध्या मुद्दे के परिणामस्वरूप 119 सीटों पर जीत दर्ज की। इसमें कोई संशय नही कि ये केवल अंशदायी घटक थे। हाल ही के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी अपने उत्कृष्ट कार्य-निष्पादन एवम् अयोध्या मुद्दे के कारण विजयी हुई जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि भारतीय जनता पार्टी मुख्यतया अपने उत्कृष्ट संगठन, कुशल नेतृत्व एवं कुलीनता के कारण आगे बढ़ी है।


सन् 1991 में जन कांग्रेस ने अपनी सरकार गठित की तब उसे बहुमत प्राप्त नहीं था। भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण जिम्मेवारी से कार्य किया एवं इसे अपना लोकसभा अध्यक्ष अपनी इच्छानुसार एवं सहमति से उपाध्यक्ष चुनने में सहायता की। लाईसेंस-परमिट-कोटा राज का सब तरह से विरोध होने के बावजूद भी सैध्दान्तिक रूप से इसने उदारीकरण की नीति का स्वागत किया। सरकार ने इजरायल एवं साउथ अफ्रीका को मान्यता दी जिसके पक्ष में भाजपा निरंतर पहल करती रही।


आरक्षण के मामले में भारतीय जनता पार्टी ने दूरदर्शिता दिखाई एवं अर्थव्यवस्था मानदंडों पर ओ.वी.सी का समर्थन किया जोकि उच्चतम न्यायलय के निर्णय में क्रीमि लेयर' के नाम से उल्लेख में आया।


भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकारों ने नई शिक्षा पध्दित का समर्थन किया एवं परीक्षा में नकल को अपराध घोषित किया। उन्होंने प्रशासन का विकेन्द्रीकरण किया एवं अंत्योदय योजना के अधीन गरीब एवं सीमांत किसानों को ऋण मुक्त किया। अपराधिक तत्वों के विरूध्द इसने युध्द छेड़ा एवं उन्हें जेल में डाला।


कांग्रेस की दोहरी नीति : कांग्रेस का दोहरा संबंध खुलकर सामने तब आया जब उन्होनें जनता दल एवं समाजवादी पार्टियों इत्यादि कि बीच मतभेद पैदा किये जिससे देश की जनता इनके विरूध्द खड़ी हो गई । उन्होनें अयोध्या के साथ खिलवाड़ जारी रखा परिणामस्वरूप 6 दिसम्बर, 1992 को विवादग्रस्त ढांचा गिराया गया। जो ढाँचा गिरने के पक्षधर थे, उन्होंने इसका स्वागत किया एवं संघ परिवार को बधाई दी और जो इसके पक्षधर नहीं थे उन्होंने संघ परिवार का खंडन किया हालांकि संघ परिवार का नेतृत्व यह नहीं जानता था कि यह किसने किया है। हम इसे सम्माजनक ढंग से कानून की विधि के अनुसार हटाना चाहते थे। जो कुछ भी हुआ वहा हमारी योजना का भाग नहीं था। इसलिए यह एक रहस्य पहेली बन कर रहा। अब यदि श्री अर्जुन सिंह के 1 दिसम्बर 1992 को मंत्रीमंडल से दिए गए त्यागपत्र में उल्लेख किए गए तथा पर नज़र डालें जोकि उन्होने प्रधानमंत्री को भेजा था जिसकी एक प्रति कांग्रेस के एक सक्रिय कार्यकर्ता द्वारा फैक्स द्वारा अयोध्या से भेजी गई थी जिसमें इस बात का उल्लेख था कि पाकिस्तान के कुछ एजेन्ट ढाँचे के साथ छेड़खानी एवं बाबरी मस्ज़िद को क्षति पहँचा सकते हैं यदि विश्च हिन्दू परिषद के कार सेवक अपने मिशन के अंतर्गत कामयाब नही हो पाते। विश्व हिन्दू परिषद का कोई ऐसा मिशन नही था। परन्तु मुद्दा यह है कि क्यों इस फैक्स सन्देश को सरकारी तंत्र से दूर रखा गया। अत: यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान एवं इसके मित्रों का उद्देश्य हिन्दू-मुस्लिम दंगें भड़काना, मुम्बई में बम विस्फोट करवाना था जिससे भारत की छवि खराब हो एवं भारतीय अर्थव्यव्स्था की विकास गति धीमी हो। यह भी रिर्पोटें प्राप्त हुई कि 6 दिसम्बर को नई दिल्ली में पाकिस्तान को हाई कमीशन में खुशियाँ मनाई गई। परन्तु इसके अतिरिक्त, सरकार ने चार राज्य सरकारों को बर्खास्त करते हुए चार राज्य विधान मण्डलों को भंग किया एवं भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार किया।


इसी बीच, उदारीकरण एवं वैश्वकरणी के नाम पर विदेशी बैंको एवं गैर-ईमानदार सट्टेबाजों को देश को धोखा देने के लिए अनुमति प्रदान की गई जिसके परिणामस्वरूप देश में करोड़ों रूपए के प्रतिभूति घोटाले हुए लेकिन सरकार इस विषय पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट की विसंगतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। उद्योगपतियों को करोड़ों रूपए की क्षति हुई जिन्होंने राष्ट्रीयकृत बैंको से अपने ऋणों की अदायगी नहीं की थी। दूसरी ओर लाभ कमा रहे सरकारी उपक्रमों को बेचा जा रहा है परिणामस्वरूप मूल्यों में अभूतपूर्व वृध्दि हुई। इसकी प्रतिक्रिया में भारतीय जनता पार्टी ने एक वार्षिक विकल्प बजट देकर मूल्य वृध्दि को रोका गया और रोजगार के अवसरों में वृध्दि की।


सबसे खतरनाक कार्य यह रहा कि विवादों के हर घेरे में सरकार का विदेशी ताकतों के आगे झुकना है जिससे हमारी अखंडता एवं स्वतंत्रता को खतरा है।


भारतीय जनता पार्टी के उदारीकरण योजना पर नजर डालने पर हम पायेगें कि हमने आंतरिक रूप से कम एवं बाह्य रूप से अधिक उदारीकरण को अपनाया है। फिलहाल हमें एक चीनी मिल अथवा जूते के फैक्टरी पा्ररंभ करने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होती है। निसंदेह इंस्पेक्टर राज ने लघु उद्योगों से संबंधित निमार्ताओं का निरन्तर शोषण किया है जोकि भारतीय उद्योग की रीढ़ की हड्डी है। परन्तु विदेशियों को बेकार खाद्य पदार्थों के विक्रय के लिए भारत में आने की अनुमति प्रदान की जाती रही है।


भारतीय जनता पार्टी की स्पष्ट स्थिति


वर्तमान राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम की अध्यक्षता में हमारा रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन द्वारा प्रस्तुत भारतीय किसान एवं प्रौद्योगिकी के मुद्दों पर जो प्रगति की ओर उन्मुख हैं, भारतीय जनता पार्टी की स्थिति स्पष्ट है। इसलिए पार्टी ने गहन पूंजीगत हाइटैक एवम् मूलभूत ढांचे के विकास क्षेत्रों में विदेशी पूंजी का स्वागत किया। तथापि उसने यह भी स्वीकार किया कि इसे उचित एवम प्रतियोगितात्मक दरों पर किया जाना चाहिए। चूंकि एनारॉन एक अदूरदर्शी, खर्चीला एवं अस्पष्ट सौदा था। अत: महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सरकार द्वारा इसे रद्द कर दिया गया। यह राष्ट्री हित एवम् राष्ट्रीय सम्मान को संरक्षित करने वाली पार्टी है। जिसका मूलमंत्र स्वदेशी भी है। इस मूलमंत्र में यह स्पष्ट रूप से अवगत करवाया गया है कि भारत किसी भी प्रकार की गलत शर्तों पर अनुदान नही लेगा पूरे विश्व ने भारत के इस पहलू को बेहतर माना है।


भारतीय जनता पार्टी की स्थिति का चित्रण डॉ. सैमुएल डीत्र हटिंगटन ने अपने लेख कलश ऑफ सिवलाइजेशन में किया है जिसके अंतगर्त वह कहता है कि अन्तर्राष्ट्रीय मॉनिटरी फंड तथा अन्य अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाएं अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए गैर पश्चिमी मुल्कों पर ऐसी शर्तें थोपता है जो उसे अपने हित में लगती हैं।


आज विदेशी दबाव बहुत अधिक है। राष्ट्रवादी ताकतों को संबल प्रदान करने के लिए देश को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। विदेशी दबाव के तले हमारे मिसाइल कार्यक्रम में रोक लग गई है। विपरीत परिस्थिति में सरकार ने सी.एन.एन के साथ असमान करार पर हस्ताक्षर किए हैं। देश में सांस्कृतिक ह्ास हो रहा है जिसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपना आधार तैयार किया है। उन्होने राष्ट्र विरोधी प्रत्यक्ष संशोधन बिल को पारित करने पर रोक लगाई है जिसमें एनरॉन सौदे को रद्द करना भी शामिल है।


भारतीय जनता पार्टी ने हर ऐसे विवादों का खुलकर विरोध किया। राष्ट्र विरोधी पेटेन्ट कानून में संशोधन के लिए विधेयक पारित करने की पूरी तैयार है। एनरॉन डील के परिसमापन के लिए दल ने जो कार्य किया, वह सर्वविदित है। स्टॉर टी.वी पर गाँधी विरोधी और राष्ट्र विरोधी कार्यक्रमों को रोक दिया गया। इतना ही संसद के अधिवेशन को प्रारम्भ करने और समापन पर वंदे मातरम के अनिवार्य गायन के लिए भी पार्टी ने सरकार को राजी करवाया। डॉ. जोशी के नेतृत्व में 1992 में भारतीय जनता पार्टी ने गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय घ्वज फहराया। भारतीय जनता पार्टी की कर्नाटक शाखा ने हुगली पब्लिक ग्राउंड में ईद की नमाज़ के साथ साथ विधिवत रूप से राष्ट्रीय घ्वज़ फहराया।


अनुच्छेद 44 के अधीन भारतीय नागरिकों पर अनिवार्य रूप से एक रूप सिविल कोड लागू करवाना और भाजपा की चार राज्य सरकारों को गिराने से जो स्थिति बनी, उसे कौन नही जानता। इस्लाम के नाम पर पत्नी को छोड़ कर दूसरी शादी की कुरीतियों को दूर किया। आज भारतीय जनता पार्टी निरंतर इन बुराईयों से लड़ रही है।


गणना करने वाले लोग सोचते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की रफ्तार गणितीय अनुपात में नही बढ़ सकती लेकिन वे नहीं जानते कि चुनाव का कोई गणित नही होता उसका तो रसायन है जो अन्य घटक दलों के साथ तालमेल को महत्व देता है। यह स्थिति स्पष्ट होन पर लाखों वे लोग जिनेने कभी भी भाजपा को वोट नही दिया, भाजपा के साथ हो गए। उत्तार प्रदेश की स्थिति को कौन नही जानता जहाँ एक दलित महिला का साथ देकर उसे मुख्यमंत्री के सिंहासन पर बैठा दिया। इसीलिए पायोनियर ने इस संबंध में लिखा कि राम ने शबरी को राजा बनाया


जब तक कांग्रेस का कोई विकल्प नही माना जाता था, आज की स्थिति में यह उल्टा हो गया है। अब भाजपा का कोई विकल्प नही दिखता। 1967 में आंतरिक समर्थन से 1989 में बाहरी समर्थन से भाजपा ने सबक सीखा और यह नेति नेति के सिध्दान्त पर चलता चला गया।


एकला चलो रे की पंक्ति ने भारतीय जनता पार्टी में प्राण फूंक दिए और इस सिध्दान्त ने उस पर जादू सा असर किया।


देश की स्थिति में आए महत्वपूर्ण बदलाव से वे लोग जो इसे पहले की तरह ही देखता चाहते हैं, उनके खेमे में बौखलाहट साफ देखी जा सकती है। भारतीय जनता पार्टी पूरे मनोयोग से देश में राम राज्य की स्थापना ओर रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रार्थना एक धर्मराज्य हाबले भारते की संकल्पना को चरितार्थ करने के महान संकल्प को पूर्ण करने में संलग्न है जो भारत की जनता जनार्दन की आकांक्षा भी है।









अनुक्रम

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[संपादित करें] संगठन का नेतृत्व



[संपादित करें] अध्यक्ष




[संपादित करें] पूर्व अध्यक्ष




[संपादित करें] विपक्ष के नेता





[संपादित करें] उपाध्यक्ष




[संपादित करें] महासचिव




[संपादित करें] कोषाध्यक्ष




[संपादित करें] सचिव




[संपादित करें] मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री




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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अभियान

 






आरएसएस कार्यकर्ता
आरएसएस प्रवक्ता का कहना है कि इस अभियान में लाखों कार्यकर्ता हिस्सा लेंगे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा है कि वह आम चुनाव से पहले पूरे भारत में विपक्षी कांग्रेस पार्टी के विरूद्ध एक बड़ा अभियान चलाने जा रहा है.

आरएसएस ने कहा है कि इस अभियान के तहत कांग्रेस की असलियत उजागर करने के लिए घर-घर जाकर लोगों को जागरुक बनाया जाएगा.


आरएसएस के प्रवक्ता राम माधव ने दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कांग्रेस पार्टी के दुर्भावनाग्रस्त अभियान का जवाब देने के लिए ऐसा अभियान चलाया जाना ज़रूरी था.


उन्होंने कहा कि कांग्रेस स्वाधीनता संग्राम में आरएसएस के योगदान के बारे में ग़लत प्रचार कर रही है.


राम माधव ने बताया कि आरएसएस के अभियान में लाखों स्वयंसेवक हिस्सा लेंगे.


आलोचना








 असल में ये नक़ली कांग्रेस है और इसकी नेता सोनिया गांधी एक नक़ली गांधी हैं

 

राम माधव, प्रवक्ता, आरएसएस


उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में कांग्रेस की भूमिका के बारे में किए गए दावों पर भी सवाल उठाए.


आरएसएस प्रवक्ता ने कांग्रेस पर आडंबरवाद का आरोप लगाते हुए कहा,"असल में ये नक़ली कांग्रेस है और इसकी नेता सोनिया गांधी एक नक़ली गांधी हैं".


उन्होंने कहा कि राजीव गांधी से विवाह के 15 वर्ष बाद उनका भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करना देश के प्रति उनके प्यार और प्रतिबद्धता के बारे में बहुत कुछ कहता है.


आरएसएस के इन दावों पर बहुत संभव है कि सारे देश में ध्यान नहीं दिया जाए मगर टीकाकारों का कहना है कि ऐसे वक़्त में जब भाजपा अपनी हिंदूवादी छवि को परे रखने की कोशिश कर रही है, आरएसएस का ये अभियान काफ़ी मायने रखता है.



 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


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वरुण गांधी साधारण बंदी माने जाएँगे

 














 

 








वरुण और मेनका गांधी
मेनका गांधी ने वरूण से न मिल पाने पर कहा है कि माँ ही माँ का दर्द समझ सकती है

उत्तर प्रदेश सरकार ने वरुण गांधी को राजनीतिक बंदियों की तरह उच्च श्रेणी यानी बी क्लास की सुविधा देने के बजाय साधारण बंदियों की तरह जेल में रखा है, इस कारण वह शारीरिक और मानसिक कष्ट में बताए जाते हैं.

एटा जेल में वरुण से मुलाक़ात करने वाले भारतीय जनता पार्टी नेता रमापति राम त्रिपाठी का कहना है "वरुण गांधी को जेल में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है".


उनका कहना था कि वरुण को पीलीभीत जेल में जो खाना दिया गया था वह आदमी के खाने योग्य नही था.


इंदिरा गांधी के पोते वरुण गांधी का दिल्ली में पूरे ऐशो-आराम से लालन पालन हुआ ऐसी स्थिति में जेल का उनका पहला अनुभव कैसा हो सकता है यह आसानी से समझा जा सकता है.


माँ ही माँ का दर्द समझ सकती है


बरेली में वरुण गांधी की मां मेनका गांधी ने एटा पुलिस अधिकारी का हवाला देते कहा कि उन्हें वरूण से सात तारीख़ से पहले मिलने नहीं दिया जाएगा.










वरुण गांधी
वरुण गांधी से इटा जेल में आम क़ैदियों का व्यवहार हो रहा है


उन्होंने मायावती की ओर इशारा करते हुए ये भी कहा कि एक माँ ही माँ का दर्द समझ सकती है.


मेनका के गांधी परिवार से संबंधों पर नज़र डालने से पता चलता है कि वरुण से उनका कितना लगाव रहा होगा.


वहीं जेल आधिकारियों का कहाना है कि जेल नियमों के मुताबिक़ किसी बंदी से सप्ताह में केवल दो बार मुलाक़ात हो सकती है. इसी नियम का हवाला देते हुए ज़िला मजिस्ट्रेट एटा ने आज वरुण की माँ मेनका गांधी को उनसे मुलाक़ात की अनुमति नही दी.


इससे पहले मेनका और भाजपा के अन्य नेता वरुण से बारी बारी दो दिन मिल चुके हैं.


नियमों का पालन


मुख्यमंत्री मायावती के दौर में वरुण गाँधी के मामले में जेल अधिकारी कड़ाई से नियमों का पालन कर रहे हैं. सामान्य तौर पर रासुका लगाने वाला डीएम ही बंदी की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए उच्च श्रेणी की सुविधा देने का आदेश साथ ही साथ दे देते हैं.


जेल नियमों के अनुसार आईजी जेल भी यह आदेश दे सकते हैं. पर वरुण के मामले में कोई अधिकारी पहल करने का जोखिम नही ले सकता.


 







 वरुण गांधी की चचेरी बहन प्रियंका गांधी ने भी उन्हें भगवतगीता ठीक से पढ़ने की सलाह दी थी क्योंकि वरुण ने मुसलामानों के ख़िलाफ़ अपने कड़वे भाषण में गीता का ज़िक्र किया था.

 


 


वरुण के प्रार्थनापत्र पर सीजेएम पीलीभीत ने वरुण को घर का खाना देने की अनुमति दी थी, जिसके लिए तीन लोग नामित हैं और जेल अधिकारी केवल उन्ही से वरुण के लिए खाना ले सकते हैं.


सुविधाएँ


पीलीभीत जेल में वरुण को अस्पताल में रख दिया गया था, जहां बेहतर सुविधा होती है, पर उन्हें मच्छरों ने परेशान किया और जेल कर्मचारी नियमों का हवाला देकर बत्ती नही बुझाते थे, जिससे नींद में दिक्कत आती थी.


पहली रात तो वह बमुश्किल सोए. रात भर पानी पीते रहे और बार बार पेशाब जाते रहे.


एटा में जेल के डाक्टर ने वरुण को शारिक रूप से बिलकुल फिट बताया है, इसलिए उन्हें अस्पताल के बजाय एक कोठरी में अकेले रखा गया है.


बिस्तर ज़मीन पर है. दरी, चादर और कंबल दिया गया है. समय काटने के लिए वरुण ने जेल पुस्तकालय से वाल्मीकि रामायण और गीता ली है.


उनकी चचेरी बहन प्रियंका गांधी ने भी उन्हें भगवतगीता ठीक से पढ़ने की सलाह दी थी क्योंकि वरुण ने मुसलामानों के ख़िलाफ़ अपने कड़वे भाषण में गीता का ज़िक्र किया था.


भाजपा नेता रमापति त्रिपाठी के मुताबिक़ वरुण का वज़न एक दो किलो कम हो गया है, वह थके और कमज़ोर लग रहे थे, लेकिन उनका मनोबल ऊंचा है और वह लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं.


भाजपा के एक नेता के मुताबिक वरुण विचारों से पक्के हिन्दुत्ववादी हैं, वह पूजा करते हैं और हनुमान जी के ख़ास भक्त हैं.


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