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Friday, March 6, 2009

वोट डालने के बाद क्या आप बच पायेंगे? इस देश के बहुसंख्य मूल निवास

वोट डालने के बाद क्या आप बच पायेंगे? इस देश के बहुसंख्य मूल निवासियों के लिए अब कोई जगह नही है।


पलाश विश्वास

 

माफ कीजिएगा मेरे दोस्तों, पाठकों।

 

तथाकथित रचनाकर्म को तो मैंने अरसे पहले तिलांजलि दे दी, अरसे से हिंदी में लेखन हो नहीं पाता।

 

 पत्र पत्रिकाओं में इस देश के बहुसंख्य मूल निवासियों के लिए अब कोई जगह नही है।

 

हिंदी हम सबके दुर्भाग्य से हिंगलिश में तब्दील होकर विचारों के बजाय बाजार और सेक्स का माध्यम बन गयी है।

 

अब पाठक देखना चाहते हैं। सूंघना चाहते हैं। भोगना चाहते हैं। मस्ती करना चाहते हैं। सुनना चाहते हैं। ब्रांड. रैम्प, फैशन, भोग, शापिंग, शीतल पेय, मोबाइल, ब्लू फिल्म, वीडियो, चुटकलों और अंध राष्ट्रवाद और कारपोरेट हिंदुत्व के शिंकजे में बैं।

 

ब्रेन वाशिंग और माइंड कंट्रोल के शिकार हैं। राजनीति पर चर्चा करते हैं। समझते नहीं। राजनीतिक अर्थ व्यवस्था, ग्लोबीकरण, ध्वंस और सामूहिक सर्वनाश, राजनीति के अगवाड़ पिछवाड़े मे चलते फिरते सोनागाछी और बिंडी बाजार को देखते नहीं हैं।

 

बजट और संसद की आड़ में विततीय और मुद्रा नीतियों की आड़ में मिथ्या मंदी के बहाने बूंजीपतियों की भरती जेबों की खबर नहीं है किसी को। अखबारों में विकास की धूं है, गरीबों के आंसू और जीवन, आजीविका, घर, जमीन, जल, जंगल से उनकी बेदखली की खबरों नहीं है।

 

पारमाणविक, रासायनिक, जैविक कारोबार जारी धड़ल्ले से। रोज संिधान और लोकतंत्र की हत्या होती है। बहुसंख्यक लोगों के लिए समानता और न्याय, नागरिकता, नागरिक अधिकार, मताधिकार, नागरिक अधिकार, मानव अधिकार, राष्ट्र, राष्ट्रीयता. जाति, धर्म, विरासत, लोक, आशा, आकांक्षाएंबमतलब हो ग.ी हैं। देश अब खुला बाजार है। अमेरिका की कोलोनी है। युद्ध, गृहयुद्ध, आतंकावाद, दुर्घटनाएं, आपदाएं और सामूहिक सर्वनाश अब हमारी नियति है। हर हाथ मे मोबाइल, हर घर में कम्पू्टर, कार, टीवी , फ्रीज, वाशिंग मशीन अव हमारा सपना है।

 

 बोलियों की बात खूब करते हैं। मातृभाषा के लिए खुन मांगते हैं। पर जड़ों से कटे हैं। जनपदों से कटे हैं। लोग और लोक से कटे हैं हम।

 

इस दुस्समय में हम यकीनन तमाशबीन नहीं हैं। पर साहित्य, समाज और राजनीति में कोई गूंज नहीं है। कृषि इस देश की अर्थव्यवस्था है। तबाह कर दी गयी। इंडिया इनकारपोरेशन, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, विदोशी वित्तीय संस्थानों, केंद्र और राज्य सरकारों, रिजर्व बैंक, फिक्क्की, सीआईआई, एसोचैम और अमेरिकी इजरायली आका ङमारी नियति तय कर रही है। सेज, रिटेल चेन, परमाणु ऊर्जा, कैमिकल हब, शापिंग माल, मल्टी प्लेक्स, इनफरमेशन टेक्लालाजी की धूम है। शेयर भाजार मे तब्दील हो गया जीवन।निर्यात के मोर्चे पर देश की स्थिति बिगड़ती जा रही है। निर्यात फरवरी में लगातार पांचवें महीने गिरा है...आईसीआईसीआई बैंक ने नए उपभोक्ताओं के लिए होम लोन की ब्याज दरों में 0.25-0.50 फीसदी कमी कर दी है। आरबीआई ने महज दो दिन पहले अहम नीतिगत दरों में 0.50 फीसदी कटौती कर बैंकों पर सस्ता कर्ज मुहैया कराने का दबाव बनाया था...वोडाफोन एसार ने शुक्रवार को नया ब्लैकबेरी सर्विस प्लान पेश किया । प्रोज्यूमर लाइफ@299 नामक यह प्लान 299 रुपये के मासिक रेंटल पर उपलब्ध होगा...

 

पर संसद से सड़क तक जनता से जुड़े मुददे नहीं हैं। कल कारखाने बंद। करोड़ों लोग बेदखल। करोड़ों बेनागरिक। खरोड़ों हाथ बेरोजगार। प्रणव मुखर्जी ने संसद में कह दिया कि वेतन कम होना चाहिए। वेतन कटौती शुरू। विदेशों से लाखओं बेरोजगारों की घुसपैठ रोजाना। लाखों लोगों की छंटनी। जूट मिलें, कपडां मिलें और चाय बागान बंद श्मशान। चतुर्दक मृत्यु जुलूस। गोलीकां और किसानों की आत्महत्याएं, सामूहिक बलात्कार अब खबरें नहीं हैं। सेलीब्रिटी और आइकन के पीछे भागता देश।अगर आप मानते हैं कि कंपनी का मुनाफा बढ़ने से उसके शेयरों के दाम भी चढ़ते हैं तो यह जरूरी नहीं हैं। देश का ऑफशोर सपोर्ट सर्विसेज सेक्टर इस बात को गलत साबित कर रहा है...

 

लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर हमले को काफी क्षुब्ध करने वाली घटना करार देते हुए भारत ने शुक्रवार को कहा कि इन घटनाओं से



स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान में आतंकवाद से निपटने की इच्छाशक्ति का अभाव है। भारत ने चेतावनी दी कि विश्व इन लपटों से तब तक बचा नहीं रह सकता है जब तक कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह सुनिश्चित नहीं कर लेता कि पाकिस्तान तुरंत आतंकवादी ढांचे को ध्वस्त करे।

विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने एक समारोह में कहा, लाहौर में इस सप्ताह श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर हुए हमले से सरकार की आतंकवाद से मुकाबले की इच्छाशक्ति में कमी और इस बुराई से लड़ने की क्षमता का अभाव स्पष्ट हो गया है और यह बदलाव की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण रुकावट के रूप में उभर कर सामने आया है। उन्होंने जोर दिया कि जिन देशों ने आतंकवाद को सरकारी नीति का हिस्सा बना लिया है, उनके सामने आतंकवाद की आधारभूत संरचना को ध्वस्त करने और इस बुराई को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहयोग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

 

नयी पीढ़ीं की चिंता नहीं किसी को। गली गली में सपनों के सौदागर नौकरी दिलानो के बहाने तरह तरह की दुकानें सजा.े बैछे हैं । बच्चों और अभिभावकों को गमराह करके डांदी काट रहे हैं। कोई अंकुश नहीं है। विज्ञापनों के जरिए ठगा जा रहा है। कोई नियमन नहीं है।

 

बताइए क्या लिखा जाये?

 

लिखा हुआ आप पढ़ते भी नहीं हैं।

 

इसीलिए अरसे से नही लिखा।

 

पर इस देश की जान हिंदी है। हिंदी के माध्यम से ही सारा खल जारी है। इसके पर्दाफाश के लिए फिर सोचा कि एक और कोशिश करें । शायद अबकी दफा आप पड़ने की कृपा करें।


 



आज कुढ सरकारी कर्मचारी मित्रों से बात हुई। ये तमाम लोग मिथ्या आंकड़ों में यकीन करते हैं। वेतन आयोग और मंहगाईभत्तों की घोषणाओं से मस्त हैं। पर विनिवेश की लटकती तलवार नहीं देख पाते। विनिवेश सूची में तेल कंपनियां, खदानों, सेल, कोल इडिया, रेल, डाक, संचार, जीवन बीमा, स्टेट बैंक, ओएनजीसी क्या कुछ नहीं है? सरकार को सत्ता में लौटने का इंतजार है। सूची तैयार है। ८४ कंपनियों का निनिवेश तत्काल होना है। वामपंथियों और ट्रेड यूनियनों ने पहले ही हरी झंदी दे दी है। कांग्रेस सत्ता में आयी तो वामपंथी उनके संग हो जाएंगे। क्योंकि केरल और बंगाल में नरसंहार जारी रखना है। अगर भाजपा आजाये तो विनिवेश ममंत्राल. चलाने वाले और ब्राह्मणों का राज मनुस्मृति अनुसार चलाने वाले क्या करेंगे, समझ सकते हैं। मायावती आयीं तो उनके साथ भी ब्राह्मण और वामपंथी दोनों होंगे।एक समय लगातार बढ़ रही महंगाई दर की वजह से हर तरफ हलचल मच गई थी और अब महंगाई दर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है...

 

सत्तर हाजार करोड़ रुपए करोड़पतियों को। पेट्रोल और डीजल मे छूट उन्हीं को। विदेशी निवेश की हदबंदी खत्म। अय्याशी का सारा सामान सस्ता। रोजगार नहीं। घर और जमीन से बेखल लोगों के लिए भोजन तक नहीं। छिकित्सा और शिक्षा बाजार से खरीद लीजिए। आरक्षण सिर्फ दलाल और भड़ुवे पैदा कर रहा है। रोजगार के सारे दरवाजे बंद, क्या करेंगे आप?एक समय लगातार बढ़ रही महंगाई दर की वजह से हर तरफ हलचल मच गई थी और अब महंगाई दर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है...


नैनो के खौफ से सस्ती होगी मारुति ऑल्टो

 

मारुति सुजुकी अपनी सबसे ज्यादा बिकने वाली मॉडल ऑल्टो के जरिए टाटा मोटर्स की लखटकिया कार नैनो से मुकाबले की योजना बना रही है। मारुति सुजुकी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पैसेंजर कार बाजार की यह अगुवा कंपनी मारुति ऑल्टो की कीमत घटाने और इसकी मार्केटिंग जोरशोर से करने की योजना बना रही है। कटौती के बावजूद ऑल्टो की कीमत नैनो के आसपास भी नहीं होगी, लेकिन उम्मीद है कि दाम काफी ज्यादा घटाए जा सकते हैं।


थम्स अप के खिलाफ चिंरजीवी के बेटे को हथियार बनाएगी पेप्सी

 

पेप्सिको इंडिया ने आंध्र प्रदेश में थम्स अप को टक्कर देने की फिर से तगड़ी कोशिश की है। कंपनी ने तेलुगू सिने स्टार राम चरण तेजा को आंध्र प्रदेश में पेप्सी को प्रोमोट करने के लिए जोड़ा है। कंपनी ने देश भर में चल रहे यंगिस्तान कैम्पेन के तहत तेजा को पेप्सी के विज्ञापन के लिए अपने साथ लिया है। तेजा तेलुगू के सिने स्टार और प्रजा राज्यम के प्रेसिडेंट चिरंजीवी के बेटे हैं। चिरंजीवी लंबे समय तक आंध्र प्रदेश में थम्स अप के ब्रांड अम्बेसडर रहे हैं।

पेप्सिको के कैटेगरी डायरेक्टर संदीप सिंह अरोड़ा ने सहमति जताते हुए बताया कि कंपनी यंगिस्तान के मैसेज के साथ ब्रांड इक्विटी को बनाए रखना चाहती है। कंपनी आंध प्रदेश के उपभोक्ताओं को मजबूत संदेश देना चाहती है। अरोड़ा ने बताया, 'हमें अपने ब्रांड के कद और स्थानीय जुड़ाव को और मजबूत करना चाहिए। हमें पूरा विश्वास है कि तेजा को साथ जोड़कर दोनों मामलों में हम बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे।' इसकी प्रतिद्वंद्वी थम्स अप की आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों और पश्चिम राज्यों में अच्छी पकड़ है। आंध्र प्रदेश में पेप्सी दोबारा सेंध मारने की कोशिश कर रही है, लेकिन बाजार के विशेषज्ञों का मानना है कि पेप्सी पहले भी राज्य में थम्स अप के बाजार को तोड़ने में नाकाम रही है।

राज्य में थम्स अप के मजबूत बाजार को तोड़ने के लिए पेप्सी ने चिरंजीवी के परिवार के एक सदस्य को पेश किया है। चिरंजीवी पहले थम्स अप के ब्रांड अम्बेसडर हुआ करते थे। बाद में उनकी जगह पर 2007 में अभिनेता महेश बाबू को पेश किया गया था। सबसे मजेदार बात यह है कि पेप्सी पहले भी कई बार थम्स अप के बाजार में सेंध मारने के लिए चिरंजीवी के पारिवारिक सदस्यों को जोड़ती रही है। कुछ साल पहले पेप्सी ने चिरंजीवी के भाई पवन कल्याण और उनके भतीजे को लॉन्च किया था। लेकिन कंपनी को इसका कोई खास फायदा नहीं मिला। थम्स अप का काम देखने वाली एजेंसी लियो बर्नेट के एनसीडी, के वी श्रीधर ने बताया, 'लोगों ने तेजा को पेप्सी के विज्ञापन में स्वीकार तो कर लिया, लेकिन चिरंजीवी के थम्स अप के साथ जुड़ाव के आस-पास भी वह नहीं टिक पा रहे हैं। राज्य में थम्स अप का कद चिरंजीवी के जैसा ही है।'

गौरतलब है कि कोका-कोला इंडिया के पोर्टफोलियो में ही यह पहले नंबर पर नहीं है बल्कि थम्स अप देश में सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड है। श्रीधर का कहना है, 'यह 30 फीसदी बाजार में ही बिकता है, लेकिन यह देश में नंबर वन है।' एसी नील्सन के आंकड़ों के मुताबिक थम्स अप देश का नंबर वन डार्क कोला ब्रांड है। इसकी बाजार हिस्सेदारी 16.4 फीसदी है। वहीं स्प्राइट 15.6 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर, तो पेप्सी 13 फीसदी के साथ तीसरे नंबर पर है। भारत का सॉफ्ट ड्रिंक बाजार करीब 7500 करोड़ रुपए का है। इसमें कोला के पास 38 फीसदी बाजार हिस्सेदारी है, वहीं क्लियर लाइम सेगमेंट में स्प्राइट और 7अप की हिस्सेदारी 21 फीसदी है।

IPL मैचों की तारीख में बदलाव होगा, नया शेड्यूल जल्द
IPL कमिश्नर ललित मोदी ने बीसीसीआई के साथ मीटिंग के बाद शुक्रवार दोपहर ऐलान किया कि आईपीएल मैच भारत में ही खेले जाएंगे। सुरक्षा




को लेकर सरकार की चिंता के मद्देनजर आईपीएल के लिए नया शेड्यूल बनेगा |

मीटिंग के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए मोदी ने कहा कि आईपीएल मैचों को अप्रैल-मई के दौरान ही कराया जाएगा लेकिन चुनाव के दौरान आईपीएल मैच नहीं होंगे | उन्होंने कहा कि वोटों की गिनती के दिन पूरी तरह से ब्लैकआउट रखेंगे और 16 मई के दिन भी आईपीएल का कोई मैच नहीं होगा | जिस शहर में जिस दिन गिनती होगी, उस दिन वहां कोई मैच नहीं खेला जाएगा।

नए शेड्यूल के बारे में उन्होंने कहा कि जल्द ही इसे तैयार कर लिया जाएगा और इसकी जानकारी दी जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि 8 नए शहरों को मैचों की मेजबानी दी जाएगी | फिलहाल 16 शहरों को आईपीएल की मेजबानी दी गई थी।

 

खासा हाईटेक होगा इस बार चुनाव प्रचार अभियान
6 Mar 2009, 0015 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स

अभिजीत देव/एन. शिवप्रिया





मुंबई : नवंबर 2008 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बराक ओबामा की ऐतिहासिक विजय के पीछे जन-जन तक पहुंचने के लिए तकनीकी के इस्तेमाल से चलाए गए एक जमीनी अभियान की भी अच्छी भूमिका रही है। आम जनता तक अपने संदेश पहुंचाने के लिए ओबामा के पास 1.3 करोड़ ई-मेल एड्रेस थे और उनके सोशल नेटवर्किंग साइट से 20 लाख लोग जुड़े हुए थे। अब हमारे देश के नेता भी लोकसभा चुनाव में ओबामा के अभियान से कुछ सबक लेना चाहते हैं और मतदाताओं तक पहुंचने के लिए इस बार चुनावों में तकनीक का व्यापक इस्तेमाल देखा जा सकता है।

कांग्रेस, भाजपा जैसी कई प्रमुख पार्टियां चुनाव अभियान में तकनीक के इस्तेमाल के लिए विशेषज्ञ सलाहकारों की भी राय ले रही हैं और अपने अभियान में मदद के लिए वेबसाइट का भी सहारा ले रही हैं। इमेजिंडिया इंस्टिट्यूट के प्रेसिडेंट रॉबिंदर एन सचदेव कई राजनीतिक दलों के चुनाव अभियान प्रबंधकों से चर्चा कर रहे हैं। इमेजिंडिया वही थिंकटैंक है जिसने अमेरिकी चुनावों में भारतीय मूल के लोगों को एक लॉबी ग्रुप के रूप में इकट्ठा होने में मदद की थी।

सचदेव की योजना भारतीय चुनाव अभियान में मतदाताओं के इस्तेमाल के लिए मोबाइल के इस्तेमाल करने पर जोर देने की है क्योंकि यहां इंटरनेट की जगह मोबाइल की पहुंच ज्यादा लोगों तक है। रॉबिंदर ने बताया, 'हर चुनावी जनसभा के बाद हम जनता से आह्वान करेंगे कि वह हमारे नंबर पर एसएमएस कर बताए कि उनके लिए तीन सबसे बड़े मुद्दे क्या हैं? मान लें किसी जनसभा में 1,000 लोग शामिल होते हैं और उनमें से 10 से 15 फीसदी भी एसएमएस करते हैं तो हमें बड़ी संख्या में जनता की प्रतिक्रिया हासिल हो जाएगी। इस तरह से उम्मीदवारों को यह पता चल जाएगा कि उनके क्षेत्र की अधिकांश जनता की तीन प्रमुख समस्याएं क्या हैं।

इस आधार पर उम्मीदवार अपने अभियान को इन तीनों मुद्दों के इर्दगिर्द ही रख सकते हैं। ओबामा ने संभवत: अब तक का सबसे महत्वपूर्ण ई-मेल एड्रेस और डाक पते का डेटाबेस तैयार किया था। भारतीय नेता मोबाइल नंबर का डेटाबेस तैयार कर लाभ उठा सकते हैं। ' प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस एवं भाजपा ऑनलाइन, ई-मेल और मोबाइल प्रचार पर इस बार 1 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने वाली हैं। पिछले चुनाव में खर्च नगण्य ही था।

इंटरनेट और पेमेंट गेटवे के कम पहुंच होने की वजह से आम मतदाता से चंदा लेना संभव नहीं हो पा रहा है, लेकिन बीजेपी का कहना है कि वह हर दिन 5 लाख लोगों को ई-मेल कर रही है। बीजेपी के आईटी सेल के संयोजक प्रद्युत बोरा ने बताया, 'इंटरनेट का प्रसार देश में अभी बहुत कम है। लेकिन 60 फीसदी इंटरनेट यूजर देश के आठ शहरों तक सीमित हैं जिनका प्रभाव 50 लोकसभा सीटों तक हो सकता है। इस हिसाब से इंटरनेट माध्यम का इस्तेमाल बहुत उपयोगी है।'

भाजपा ने अपनी वेबसाइट को बहुत से वेबपोर्टल के साथ लिंक किया है और गूगल सर्च इंजन पर भी इसे अच्छी तरह से प्रमोट किया जा रहा है। पार्टी की योजना फेसबुक और ऑरकुट का इस्तेमाल करने की भी है। बहुजन समाज पार्टी ने भी वेबसाइट शुरू करने के लिए दिल्ली की एक फर्म से संपर्क किया है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती का ब्लॉग भी जल्दी शुरू हो सकता है। कांग्रेस भी अपने वेबसाइट को नया लुक दे रही है ताकि ऑनलाइन माध्यम का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा सके।

कांग्रेस के कंप्यूटर विभाग के चेयरमैन विश्वजीत पृथ्वी सिंह ने ईटी को बताया, 'हम अपने पांच साल पुराने वेबसाइट को साफ-सुथरी छवि देने में लगे हैं।'ऑनलाइन फर्म जक्स्टकंसल्ट डॉट कॉम के सह संस्थापक मृत्युंजय मिश्रा ने कहा कि ऑनलाइन अभियान में बहुत कम खर्च आने की वजह से भी इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। मिश्रा ने बताया, 'ऑनलाइन माध्यम में 3 से 4 लाख रुपए खर्च कर कोई भी 40 लाख इम्प्रेशन हासिल कर सकता है जो टीवी, प्रिंट या आउटडोर विज्ञापन की तुलना में बहुत सस्ता है।'

हालांकि माकपा जैसी कुछ पार्टियां ऑनलाइन माध्यम को लेकर कुछ शंका में हैं। सीपीएम के रिसर्च यूनिट के संयोजक प्रसन्नजीत बोस ने कहा, 'भारत जैसे गरीब देश में मतदाताओं के साथ आमने-सामने की बात हमेशा प्रमुख रहेगी। ऑनलाइन अभियान अमेरिका के लिए सफल हो सकता है क्योंकि वहां इंटरनेट की पहुंच 100 फीसदी लोगों तक है। भारतीय राजनीति के ओबामीकरण से बहुत से मतदाताओं को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि वे वास्तव में जाति, संप्रदाय और 2 रुपए किलो चावल के नारे से प्रभावित होकर वोट डालते हैं। कुछ भी हो, यह अभी एक शुरुआत है और 2014 के चुनावों तक ऑनलाइन माध्यम का परिणाम दिखना शुरू होगा।'



लोकसभा चुनाव के बहाने बहेगी नकदी की गंगा
5 Mar 2009, 2221 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स
गायत्री नायक / गौरव पई






बई: जिस तरह अल निनो प्रभाव हर कुछ साल के बाद महासागरों की धाराओं में भारी उथल-पुथल मचाता है, उसी तरह आम चुनावों के आने पर भारतीय अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह की ताकत और दिशा में साफ तौर से भारी बदलाव देखा जा सकता है।

दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद शुरू हो गई है और इसमें राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों द्वारा हजारों करोड़ रुपए खर्च होने की संभावना है। सभी राजनीतिक दलों द्वारा भारी-भरकम खर्च का नतीजा यह होगा कि अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह तेजी से बढ़ेगा। विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में सक्रिय कई ट्रेडर्स का मानना है कि राजनीतिक दल विदेशों से भी चंदा जुटाने की कोशिश में हैं जिससे चुनाव के पहले रेमिटेंस (विदेश से धन आने) में भी तेज बढ़त हो सकती है।

एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने कहा, 'चुनावों के समय रेमिटेंस और धन का हस्तांतरण आम बात है। हालांकि इसके लिए कोई एक वजह बताना कठिन है, लेकिन यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रवासी भारतीयों द्वारा चुनावों में सहयोग करने की वजह से ऐसा होता होगा।' कई अर्थशास्त्री तो यह आशंका जता रहे हैं कि देश से बाहर जमा काला धन बैंकिंग प्रणाली में ठूंसने का प्रयास किया जा रहा है। सरकारी खर्च बढ़ने, राजनीतिक दलों द्वारा जनसभाओं और अन्य खर्चों की वजह से अगले महीनों में व्यवस्था में नकदी का प्रवाह बहुत अच्छा रह सकता है। हालांकि यह नकदी बैंकों तक जाने में थोड़ा समय लग सकता है।

इस साल वैसे भी नकदी का प्रवाह पिछले साल के मुकाबले काफी तेजी से बढ़ा है। रिजर्व बैंक के अनुसार पिछले 12 माह में व्यवस्था में नकदी प्रवाह में 85,828 करोड़ रुपए की बढ़त हुई है, जबकि एक साल पहले नकदी में बढ़त सिर्फ 70,607 करोड़ रुपए हुई थी। इस प्रकार नकदी प्रवाह में सालाना बढ़त 17.7 फीसदी की हुई है, जबकि इसके पिछले साल नकदी प्रवाह में बढ़त 15.4 फीसदी हुई है। इस कारोबारी साल में अब तक नकदी प्रवाह में जितनी बढ़त हो चुकी है वह साल 2007-08 से भी ज्यादा हो गई है।

सीटों के बंटवारे पर उलझे तीसरा मोर्चा के खिलाड़ी
6 Mar 2009, 0156 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स



नई दिल्ली : टुमकुर में तीसरे मोर्चे की पहली रैली होने में अब महज एक हफ्ते का वक्त बचा है लेकिन इस गठबंधन में शामिल दल अलग-अलग राज्यों में सीटों के बंटवारे का मसला अब भी सुलझा नहीं सके हैं। असम में तीसरे मोर्चे का फलसफा तो नाकाम हो ही चुका है, अब आंध्र प्रदेश में तेलगुदेशम पार्टी और वाम मोर्चे के बीच सीटों के बंटवारे पर बातचीत विवाद में फंस गई है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(सीपीएम)और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(सीपीआई)आंध्र प्रदेश में तीन-तीन सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती हैं जबकि टीडीपी उन्हें दो-दो सीट ही देना चाहती है। विधानसभा सीटों की बात करें तो टीडीपी दोनों दलों को 16-16 सीटें देने पर अड़ी है जबकि वे 20-20 सीटें चाहती हैं।

टीडीपी और तेलंगाना क्षेत्र का मुद्दा उठाने वाली टीआरएस भी सीटों के बंटवारे को लेकर आमने-सामने हैं। टीडीपी ने 42 लोकसभा सीटों में से 29 और 294 विधानसभा सीटों में से 220 अपने लिए चुन ली हैं लेकिन टीआरएस अपने लिए कम से कम नौ लोकसभा सीटें और 45 विधानसभा सीटें चाहती है। प्रदेश में चुनाव होने में अब केवल एक महीने का वक्त बचा है और चार दलों के इस गठबंधन को अपनी बातचीत को जल्द से जल्द अंजाम तक पहुंचाना होगा। यह मामला सुलझाने के लिए वाम मोर्चा का केंदीय नेतृत्व टीडीपी नेताओं से संपर्क बनाए हुए है।

तमिलनाडु में वाम मोर्चा ने अन्नाद्रमुक से समझौता किया है और वहां सीटों के बंटवारे पर बातचीत कल से शुरू हो रही है। बातचीत का पहला दौर 7 और 8 मार्च को यहां सीपीएम की केंद्रीय समिति की बैठक से पहले अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता और सीपीएम के प्रदेशस्तरीय नेताओं के बीच होना है।

वाम दलों से जुड़े सूत्रों को विश्वास है कि तीसरा मोर्चा के खिलाड़ी इन राज्यों में लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे लेकिन असम में एयूडीएफ-एनसीपी-वाम मोर्चा बिखर गया है और सीपीएम वहां तीसरे मोर्चे से बाहर हो गई है। चारों दलों ने प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी-एजीपी गठबंधन से मुकाबले के लिए हाथ मिलाया था।

सीपीएम ने सिलचर और बारपेटा सीटें मांगी थीं लेकिन असम युनाइटेड डेमोक्रेटिक फंट (एयूडीएफ)इनमें से एक सीट ही छोड़ने को तैयार थी। बदरुद्दीन अजमल के सिलचर से अपनी उम्मीदवारी का एलान करने के बाद परेशान सीपीएम ने प्रदेश में कम से कम तीन सीट पर एयूडीएफ के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला किया। हालांकि एनसीपी और सीपीआई जैसी सहयोगियों के साथ उसकी चुनाव संबंधी सहमति जारी रहेगी। मणिपुर में भी वाम मोर्चा और एनसीपी के बीच सीटों का समझौता नहीं हो सका।

चुनाव पूर्व अनुमान: यूपीए को 201, एनडीए को 195
6 Mar 2009, 2227 hrs IST, टाइम्स ऑफ इंडिया


नई दिल्ली ।। यूपीए लोकसभा चुनाव 2009 में 201 सीटें जीत सकता है। एनडीए को मिल सकती हैं 195 सीटें। थर्ड
फ्रंट के हिस्से आएंगी 82 सीटें और 62 सीटें







यहां क्लिक करके देखें सीटों का अनुमान
बाकियों के लिए होंगी। यह कोई सर्वे नहीं है। ना ही लोगों से वोट के आधार पर इस नतीजे तक पहुंचा गया है। यह टाइम्स ऑफ इंडिया की पूरे देश में फैली टीमों के बीच तीखी बहस, तगड़े विश्लेषण और एक-एक सीट पर मारामारी के बाद निकले अनुमान हैं।

आप साथ में लगी टेबल को बड़ा करके देखने के लिए उस पर क्लिक करें। इस टेबल में आप हर राज्य का हाल जान सकते हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने फैसला किया कि सर्वे के बजाय देशभर के अपने ही ब्यूरो में मौजूद रिपोर्टर्स और स्टाफर्स को ही इस काम में लगाया जाए। इसके बाद हर राज्य की हर सीट पर बहस हुई और आखिरकार यह अनुमान लगाया गया कि 15वीं लोकसभा के लिए चुनाव में आगे तो यूपीए ही रहेगा, लेकिन थोड़ा सा।

हमारे अनुमान के मुताबिक बीएसपी 35 के आसपास सीटें जीतने में कामयाब होगी और हो सकता है इस बार सत्ता के पत्ते उसके हाथ में रहें।


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हिन्दी समाचार पत्रिका आउटलुक का ताजा अंक बिक्री के लिए उपलब्ध है |इस अंक में ''भाग दौड़ में सेक्स 'नामक ' कवर पेज स्टोरी के रूप में आउट लुक एवं मूड्स का शहरी लोगों के बीच किया गया यौन सर्वेक्षण प्रकाशित किया गया है |आम तौर पर समाज के एलीट क्लास और ड्राइंग रूम व ट्रेन के रिज़र्वेशन कम्पार्टमेंट्स में पढ़ी जाने वाली इंडिया टुडे एवं आउट लुक सरीखी पत्रिकाओं के लिए ये सर्वक्षण नया नही है ,पिछले एक दशक से इन पत्रिकाओं ने अलग अलग तरह से लगभग ३ सर्वे कराये है |आउट लुक के इस सर्वे में ख़बर कितनी है इसका अंदाजा तो आप पत्रिका को पढने के बाद ही लगा सकेंगे ,लेकिन बात पुरी तरह से साफ़ है की अस्तित्व के संकट से जूझ रही ये पत्रिकाएं अब कुछ भी परोसने में गुरेज नही करेंगी |एक ऐसे देश में जहाँ पबों में नवयोवनाओं के प्रवेश को लेकर राष्ट्रीय बहस शुरू हो जाती है ,एक ऐसे देश में जहाँ आज भी बेटा बाप और आस पड़ोस के लोगों से छुपकर सिगरेट पिता है ,एक ऐसे देश में जहाँ तमाम कोशिशों के बावजूद एक व्यस्क कंडोम खरीदने में संकोच करता है ,एक ऐसे देश जहाँ घर की वधु अपने पति के कमरे में जाने से पहले सब बड़ों के सोने का इन्तजार करती है ,सेक्स को विषयवस्तु बनाकर उत्तेजक ढंग से प्रस्तुत करना खुले बाजार में ब्लू फ़िल्म बेचने जैसा है |ये उन यौन वर्जनाओं को तोड़ने की शर्मनाक कोशिश है जिन वर्जनाओं से हमारी संस्कृति और संस्कार जीवित हैं |सेक्स को निजी बातचीत में शामिल किया जा सकता है उसकी शिक्षा हर हाल में जरुरी है ,लेकीन क्या किसी व्यक्ति या समाज की सेक्स जरूरतों ,उसके तरीकों का खुलेआम विश्लेषण किया जाना चाहिए ?शायद नही | अपने ब्लॉग पर उक्त सर्वक्षण की विषय वस्तु का जिक्र करना मेरे लिए सम्भव नही होगा ,यकीन मानिये आप भी इसे अपने घर में अपनीटेबल पर खुलेआम रखना पसंद नही करेंगे |
छोटे परदे की ब्रेकिंग न्यूज़ एवं समाचार पत्रों के नए तेवरों के बीच मंदी और पठनीयता के संकट से से जूझ रही लेकिन संख्या में फ़ैल रही पत्रिकाओं की अपनी अनोखी दुनिया है ,हाल के दिनों में जो विषय वस्तु टेलीविजन और अखबारों में वर्जित मानी जाती थी ,पत्रिकाओं ने उन्हें प्रमुखता से प्रकाशित किया ,इंडिया टुडे और आउटलुक की शुरु से ही अपनी शैली रही है,इन पत्रिकाओं ने आम आदमी को विषय वस्तु बनने से हमेशा गुरेज किया ,चाहे वो खबरे हों चाहे फीचर्स ,कभी देश के २० टॉप धनवान कवर स्टोरी बने ,तो कभी डिस्को में नशे में झूमती युवा पीढी की कहानी छापी गई |आउटलुक का ताजा अंक भी उसी परम्परा का हिस्सा तो है ही आम आदमी की अभिव्यक्ति को खामोश कर उस पर वैचारिक उपभोग से अर्जित की गई बौद्धिक राजशाही को थोपने की शर्मनाक कोशिश भी है |कहने का मतलब ये की हम तुम्हे वही पढायेंगे जो तुम पढ़ना चाहते हो ,अगर तुम नही पढ़ते हो तो इसका मतलब तुम भी उन्ही लोगों के बीच के हो ,जिनके लिए कोई कुछ भी नही कहेगा |ऐसा नही है कि इन सबके लिए सम्पादन जिम्मेदार है ,इस तरह कि कहानियाँ मुख्य रूप से धन कमाने कि नीयत से की जाती है ,और सब कुछ प्रबंधन ही निर्धारित करता है |भास्कर ग्रुप ने इस कवर स्टोरी के लिए कंडोम बनने वाली मूड कंपनी से बतौर विज्ञापन निश्चित तौर पर लाखों रुपए कमाए होंगे |
अब आपको एक और मजेदार बात बताएं आउटलुक ने साहित्यिक सन्दर्भों में सेक्स के वर्णन को लेकर भी इसी अंक में मृदुला गर्ग का एक साक्षात्कार प्रकाशित किया गया है जिसका जिक्र करना यहाँ आवश्यक है वो कहती हैं की' हमारी लोक कथाओं और लोक गीतों में उन्मुक्त यौन् संबंधों का भरपूर वर्णन मिलता है ,लेकिन ब्रितानी शासन में नैतिकता बोध की वजह से सेक्स के प्रति जो निषेध भाव था,वह हम पर हावी हो गया'| अब आप ही निर्णय करिए की अंग्रजियत की वजह से निषेध पैदा हुआ या ख़त्म हुआ ?,मृदुला ख़ुद कहती हैं कि आज हिन्दी साहित्य में सेक्स को नैतिकता से अलग करके देखा जा रहा है | जबकि सच्चाई ये है कि हिन्दी ,साहित्य में सेक्स को हर जगह से परिमार्जित और ,परिष्कृत बना कर प्रस्तुत किया गया ,ये कुछ ऐसा था की इस पर कभी चर्चा करने की जरुरत नही महसूस की गई |लेकिन ये जरुर है की मृदुला गर्ग के छपने के बाद इस विषय पर साहित्यकारों की महफिलों में हड़कंप जरुर मच गया है |मेरे एक मित्र कहते हैं कि आउटलुक ने मृदुला गर्ग के मध्यम से अपने पूरे परिशिष्ट के लिए अनापति प्रमाणपत्र लेने कि कोशिश की है | इस विशेषांक में छपी एक और रिपोर्ट का जिक्र करना जरुरी है ,'नपुंसकों कि राजधानी है भारत '!जी हाँ यही शीर्षक है ENDROLOGY SPECIALIST डॉ सुधाकर कृष्णमूर्ति के साक्षात्कार पर आधारित इस रिपोर्ट का |इस रिपोर्ट में प्रकाशित तथ्यों का वैज्ञानिक आधार क्या है ?फिलहाल इसका कोई जिक्र नही है |
कुल मिलकर ये कहा जा सकता है कि अगर इंडिया टुडे ने बढे हुए दामों में एक के साथ ३ पत्रिकाएं देकर पाठकों को पकड़ना चाहा ,तो आउटलुक ने सेक्स को अस्त्र की तरह इस्तेमाल कर बाजार में अपनी बादशाहत साबित करने की कोशिश की है | किसी भी प्रकाशन समूह का अपना चरित्र होता है वो वही पढ़ते हैं ,वही छापते है जो उनकी मनमर्जी के अनुरूप हो,|इसी पत्रिका के अंग्रेजी संस्करण में 'कर्नाटक का तालिबानीकरण' शीर्षक से कवर पेज स्टोरी छपी गई है ,सारी भडास मंगलोर की घटना को लेकर | मंगलौर में पबों से निकल रही लड़कियों को सरेआम पीटा जाना पुरी तरह से अनुचित था ,लेकिन क्या ये सच नही है कि इन पबों और डिस्को कि वजह से पैदा हो रही अपसंस्कृति ,और स्वक्षन्द्ता ही शहरों मैं बढ़ रहे अपराध कि मूल वजह है ,लेकिन इस अपसंस्कृति का विरोध करना सम्भव कैसे होगा ?जब आपको उन्ही कि कहानी छापनी है उन्ही को विषयवस्तु बनाना है,उन्ही को पढाना है |यौन् रुझानों पर इस तरह के सर्वेक्षण किए जाने के मूल में भी यही है |ये सर्वेक्षण भी उन्ही लोगों के लिए है ,जिनके लिए सेक्स भी केवल मनोरंजन है ,और उस पर बात करना एवं उसको बाजार की चीज बना देना ख़ुद को प्रगतिशील साबित करने का सिम्बल |

दुनिया भर में मंदी का सेक्स बाजार पर असर नहीं
16 Oct 2008, 1318 hrs IST,एएफपी  


सिडनी : दुनिया भर के बैंक भले ही दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए हों लेकिन दुनिया के सबसे पु






राने व्यवसाय सेक्स बाजार पर वित्तीय उथल-पुथल का कोई असर नहीं पड़ा है। यह कहना है ऑस्ट्रेलियाई उद्योग जगत के सदस्यों का।

ऑस्ट्रेलिया के कुछ चकलाघरों का कहना है कि सेक्स बाजार का व्यवसाय पहले की तरह चल रहा है क्योंकि सेक्स तंबाकू की भांति ही उपभोक्ता की जरूरत है। आर्थिक मंदी के बावजूद इसकी जबर्दस्त मांग बनी हुई है। सिडनी में वेश्या बाजार की एक महिला ने कहा, 'इस पर कोई प्रभाव नहीं देख रहे हैं और उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा।' अपना नाम कैथरीन बताने वाली इस महिला ने कहा, 'आर्थिक मंदी के समय भी आप पाएंगे कि शराब, तंबाकू, जुआ और सेक्स बाजार ब्लू चिप इंडस्ट्री जैसा होता है। कारण यह है कि आदमी शराब, सेक्स, जुआ और धूम्रपान की लत छोड़ना नहीं चाहता।'

कैथरीन ने कहा कि दक्षिणी हैंपशर की गर्मी और अगले महीने ऑस्ट्रेलिया द्वारा रग्बी लीग विश्व कप के आयोजन के कारण व्यवसाय में और भी तेजी आएगी।

 



















कांग्रेस 'बेचेगी' राहुल को और बीजेपी आडवाणी को
6 Mar 2009, 1454 hrs IST,भाषा  


नई दिल्ली ।। चुनाव का बाजार एक बार फिर सज गया है और इस बार फिर सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल






बीजेपी ने अपने-अपने नाम को बेचने की जिम्मेदारी ऐड एजंसियों को सौंप दी है। देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां ही चुनावी विज्ञापनों पर अरबों रूपया खर्च करने जा रही हैं।

कांग्रेस ने जहां अपने ऐड्स में राहुल गांधी को केन्द्र में रखने को कहा है, वहीं बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पीछे करते हुए इस बार पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी को फादर फिगर के रूप में पेश करने के निर्देश दिए हैं।

ऐड एजंसी सूत्रों के अनुमानों पर यकीन करें तो इस बार कांग्रेस और बीजेपी समेत विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा ऐड-वॉर पर छह सौ करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जाने की संभावना है।



कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2009 में अपनी जीत सुनिश्चित कराने का ठेका 150 करोड़ रूपये में मशहूर ऐड कंपनी जेडब्ल्यूटी और केयान ऐडवर्टाइजिंग को सौंपा है। पार्टी ने करीब 30 बड़ी ऐड कंपनियों को अपनी अपनी दावेदारी पेश करने के लिए बुलाया था।

एजेंसी सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस ने जहां ऐड एजंसी को आम आदमी के अपने पुराने नारे पर जोर देने के निर्देश दिए हैं वहीं महिला और युवा वर्ग, सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्वच्छ प्रशासन और मुंबई हमलों के मद्देनजर सरकार में जनता का भरोसा बहाल करने की तीन अन्य रणनीतियों को भी प्रमुखता से पेश करने को कहा है।

बीजेपी भी पीछे नहीं है। उसने एक या दो नहीं बल्कि कई एजंसियों को अपने चुनाव प्रचार का ठेका दिया है। इनमें में द लाइव, गरूड़, राष्ट्रीय, एवरेस्ट व इथियोपिया शामिल हैं। पार्टी का चुनावी विज्ञापन बजट भी करीब 150 करोड़ रूपये का है।

करीब दो माह पहले बीजेपी ने 16 ऐड एजंसियों को बुलाया था जिनमें से 10 को अंतिम सूची में शामिल किया गया। मैक्केन एरिक्सन के सू़त्रों ने बीजेपी की ब्रीफ के बारे में बताया कि पार्टी ने ऐड एजंसियों को इस तरह से रणनीति तैयार करने को कहा जिसमें को आडवाणी को राष्ट्र के लिए पिता तुल्य (फादर फिगर)पेश किया जाए।





















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होम लोन पर इंटरेस्ट रेट में की गई कटौती का फायदा सिर्फ नए ग्राहकों को ही मिल पाएगा। यानी बैंक होम लोन ले चुके ग्राहकों को रेट कट का फायदा नहीं दे रहा है...

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कैसे उठाएं टैक्स छूट का फायदा

8 Jan 2009, 1017 hrs IST


लोन लेने से पहले किस्त का अनुमान

2 Mar 2009, 1456 hrs IST
होम लोन लेने पर हर महीने इसकी किस्त भी चुकानी होगी, यानी अपनी इनकम में से एक रकम हर महीने सेव करनी पड़ेगी। लोन लेने से पहले इस बचत की आदत डाल लें...

निजी बैंकों के होम लोन कस्टमर्स चले सरकारी बैंक

8 Feb 2009, 2245 hrs IST
प्राइवेट बैंकों के मुकाबले सरकारी बैंकों की ब्याज दरें काफी कम होना कारण है।










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IPO बाजार को मिलेगा PSU की अगवानी का मौका








IPO बाजार को मिलेगा PSU की अगवानी का मौका
24 Jul 2008, 1317 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स


मुंबईः बाजार का मानना है कि लेफ्ट की छाया बाजार से खत्म होने के साथ आर्थिक सुधार का रास्ता साफ हो गया है। जानकारों के मुताबिक, सरकारी कंपनियों के शेयरों की बिक्री करने का यह सही वक्त है। बाजार में तेजी आ गई है और विनिवेश का विरोध करने वाले वाम दल भी अब सरकार के साथ नहीं हैं। इससे अब ऐसा लगने लगा है कि सरकार अब सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ कंपनियों को बेचने की हिम्मत जुटा पाएगी।

कोटक इनवेस्टमेंट बैंकिंग के सीओओ एस रमेश के मुताबिक, 'मौजूदा हालात शेयर बाजार के लिए कुछ सकारात्मक नजर आ रहे हैं। अगर सब ठीक-ठाक रहा तो अगले पांच छह महीने में कुछ सरकारी कंपनियों के इश्यू बाजार में आ सकते हैं। रेलवे, पावर और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की कुछ कंपनियों के इश्यू आने से बाजार के सेंटीमेंट में काफी सुधार आ सकता है।'

पिछले तीन महीने से आईपीओ बाजार में किसी बड़े खिलाड़ी के उतरने की खबर आनी बंद हो गई है। इसकी वजह शेयर बाजार में जनवरी मध्य के बाद से शुरू मंदी का दौर है। जिन कंपनियों ने पब्लिक इश्यू के जरिए पूंजी जुटाने की योजना बनाई थी वे कुछ समय के लिए रुक गई हैं। उनमें से कुछ कंपनियों को अब बाजार में उतरने का अवसर नजर आने लगा है। एस रमेश कहते हैं, 'वाम दल की चिंता खत्म हो गई। अब सरकारी कंपनियों के विनिवेश मामले में कुछ हलचल होने की उम्मीद की जा सकती है।'

एडलवाइज की आईपीओ समीक्षा के मुताबिक, लगभग 75 सरकारी कंपनियों और बैंकों ने पब्लिक इश्यू में दिलचस्पी दिखाई है। आने वाले समय में बाजार कुछ सरकारी कंपनियों के पब्लिक इश्यू का गवाह बन सकता है। इनमें एनटीपीसी (6,000 करोड़), एचपीसीएल (5,000 करोड़), कोल इंडिया (4,000 करोड़) और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन शामिल हैं। प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक पृथ्वी हल्दिया के मुताबिक, पहले बैच में एनएचपीसी, राइट्स, ऑयल इंडिया, आईआरसीटीसी और इरकॉन इंटरनेशनल बाजार में उतर सकती है।

अमेरिका की एक इनवेस्टमेंट कंपनी के विश्लेषकों के मुताबिक, 'विनिवेश से सरकार को राजकोषीय घाटे की गंभीर होती समस्या से कुछ हद तक निपटने में मदद मिलेगी। अगर सरकार विनिवेश को गंभीरता से लेती है तो उसे बाजार से कर्ज जुटाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे बाजार में नकदी की उपलब्धता घटाने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।'

एक दिग्गज घरेलू मर्चेन्ट बैंक के आईपीओ प्रमुख के मुताबिक, 'यूं तो पीएसयू में हिस्सेदारी घटाने का फैसला सरकार लेगी, लेकिन कई ऐसे सेक्टर हैं जिनसे वह निकलना या निजी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहती है। जिन पीएसयू को नकदी की जरूरत है वे विनिवेश की सूची में सबसे ऊपर होंगी।'



 

 


पीएसई अनुभाग


पीएसई अनुभाग निम्नलिखित विषयों के संबंध में कार्य करता है -




  1. भारत सरकार के विनिवेश कार्यक्रम में नीति वार्ता



  2. केन्द्रीय सरकारी क्षेत्र के उपक्रम तथा म्यूनिसीपल निकायों द्वारा कर-मुक्त बांडों का निर्गम।


सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों का विनिवेश नीति


यह अनुभाग भारत सरकार के विनिवेश कार्यक्रम के लिए नीतिगत दिशानिर्देश तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभाता है तथा विशिष्ट प्रस्तावों पर अंतर-मंत्रालयीन विचार-विमर्शों में वित्त मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करता है। अधिक विशिष्ट रुप से, अनुभाग के कार्य में निम्नलिखित शामिल हैं -




  1. विनिवेश संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीडी) के लिए टिप्पणियों को प्रक्रियान्वित करना।



  2. विनिवेश संबंधी सचिवों के केन्द्रीय दल (सीजीडी) के विचारार्थ टिप्पणियों को प्रक्रियान्वित करना।



  3. सभी अंतर मंत्रालयीय समूह बैठकों में सहभागिता।


जब कभी भी कोई मामला सीसीडी के समक्ष प्रस्तुत किया जाना होता है, अनुभाग राजस्व विभाग, व्यय विभाग तथा आर्थिक कार्य विभाग के अन्य प्रभागों के बीच समन्वयन करता है ताकि समग्र रुप से वित्त मंत्रालय का साझा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जा सके। इस अनुभाग को विनिवेश मंत्रालय, भारी उद्योग विभाग तथा लोक उद्यम विभाग का क्षेत्रक प्रभार भी सौंपा गया है।


केन्द्रीय सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों तथा म्युनिसीपल निकायों द्वारा कर-मुक्त बांडों का निर्गम


पीएसयू द्वारा कर मुक्त बांडों के निर्गम के लिए यह अनुभाग वार्षिक योजनाओं के लिए अपने संसाधन जुटाने हेतु पीएसयू द्वारा जारी किए जाने वाले कर मुक्त बांडों के लिए उच्चतम सीमा निर्धारित करता है तथा योजना आयोग की सिफारिश पर उसे विभिन्न पीएसयू में आवंटित करता है। चालू वित्तीय वर्ष 2003-04 के दौरान 300 करोड़ रुपए की उच्चतम सीमा निर्धारित की गई तथा उसे विभिन्न केन्द्रीय पीएसयू को आवंटित किया गया ताकि वे कर मुक्त बांड जारी करके अपनी वार्षिक योजनाओं के वित्तपोषण हेतु संसाधन जुटा सके। यह निर्णय किया गया है कि अंतर्हित राजस्व हानि के मद्देनज़र कर मुक्त बांडों को चरणबद्ध रुप से समाप्त करने के लिए भारत सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार तथा साथ ही क्रमिक रुप से इन बांडों को चरणबद्ध रुप से समाप्त करने हेतु सरकार द्वारा दिए गए आश्वासन के संदर्भ में अगले वित्तीय वर्ष अर्थात वर्ष 2004-05 से कोई उच्चतम सीमा नियत नहीं की जाएगी।


कर मुक्त म्युनिसीपल बांडों के लिए यह अनुभाग म्युनिसीपल निकायों द्वारा जारी किए जाने वाले कर मुक्त म्युनिसीपल बांडों के निर्गम हेतु उच्चतम सीमा नियत करता है ताकि वे शहरी अवसंरचना में पूंजी निवेश के लिए अपने संसाधन जुटा सकें। इस प्रयोजनार्थ नोडल अभिकरण होने के नाते शहरी विकास तथा गरीबी उन्मूलन मंत्रालय म्युनिसीपल निकायों से प्रस्ताव प्राप्त करता है तथा उन्हें शहरी विकास तथा उन्मूलन मंत्रालय में गठित समिति की सिफारिशों के साथ इस अनुभाग को भेजता है। यह अनुभाग वित्त मंत्री के अनुमोदन से सरकारी राजपत्र में विनिर्दिष्ट बांडों को अधिसूचित करता है। चालू वित्तीय वर्ष के दौरान म्युनिसीपल निकायों को आवंटन हेतु 200 करोड़ रुपए की उच्चतम सीमा भी निर्धारित की गई है।


प्रभागाध्यक्ष का नाम तथा सम्पर्क पता


श्री के.पी.कृष्णन


संयुक्त सचिव (सीएम)


आर्थिक कार्य विभाग


कमरा नं0 67 बी, नार्थ ब्लॉक,


नई दिल्ली-110001


दूरभाष सं0 23092154 (कार्यालय)


-मेल : kpkrishnan@nic.in



पूंजी बाजार प्रभाग का संगठनात्मक ढांचा और कार्य
संयुक्त सचिव






























प्रतिभूति बाजार


पेंशन सुधार


विदेशी बाजार


यूटीआई


सतर्कता


निदेशक (प्रतिभूति बाजार)


उप-निदेशक (प्राथमिक बाजार)


उप-निदेशक (द्वितीयक बाजार)


निदेशक (पेंशन सुधार)


उप-निदेशक (पेंशन सुधार)


निदेशक (विदेशी बाजार)


उप-निदेशक(विनियामक प्रतिष्ठान)


अवर सचिव (ईसीबी)


उप-सचिव(यूटीआई)


उप-निदेशक (आईजीएंडयूटीआई)


अवर सचिव(ईएम एवं सतर्कता)


अवर सचिव(जेपीसी)


उप-सचिव (सतर्कता)


अवर सचिव (ईएम एवं सतर्कता)


1.प्राथमिक बाजार (पीएम)


प्राथमिक बाजार


संबंधित मध्यवर्ती एवं भागीदार


बोर्ड बैठक


भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम,1956


संबंधित नियम एवं विनियम


2. द्वितीयक बाजार (एसएम)


द्वितीयक बाजार


संबंधित मध्यवर्ती एवं भागीदार


बोर्ड बैठक


प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम,1956


निक्षेपागार अधिनियम,1956


संबंधित नियम और विनियम


प्रतिभूति बाजार संबंधी डाटा बेस


पेंशन सुधार (पीआर)


पेंशन सुधार


अधिवर्षिता निधियों के निवेश संबंधी नीति


सीबीटी-ईपीएफओ


पेंशन और पेंशन भोगी कल्याण विभाग का क्षेत्रक प्रभार




1. विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी)


अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाजार


एफसीसीबी


एफआईआई/एडीआर/जीडीआर


विदेशी क्रेडिट दर निर्धारण


उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, शहरी विकास और गरीबी उन्मूलन मंत्रालय/विभाग का क्षेत्रक प्रभार


पांडिचेरी, कर्नाटक, झारखंड और दादरा एवं नागर हवेली के घरेलू प्रादेशिक प्रभार


लातिन अमरीका,भूटान, कैरीबियन द्वीपसमूह पूर्वी यूरोप के विदेशी प्रादेशिक प्रभार


2. विनियामक प्रतिष्ठान (आरई)


फेरडा प्रतिष्ठान


सेबी प्रतिष्ठान


सैट प्रतिष्ठान


संबंधित नियम और विनियम


वित्तीय बाजार संबंधी उच्च स्तरीय समिति


आरएफसी मुंबई समिति


प्रतिभूति और पेंशन बाजारों में करें और स्टैम्प शुल्कें


कंपनी अधिनियम संबंधी विषय




1. विनिमय प्रबंधन (ईएम)


फेमा और उसके अधीन बनाए गए नियम/ विनियम


मनीलौंडरिंग और आतंकवाद वित्तपोषण का मुकाबला


विदेशी कंपनियों के भारत में संपर्क/शाखा कार्यालय


राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकारों के पदाधिकारियों की विदेश यात्रा


उत्तर प्रदेश, दमन और दीव एवं गोवा का घरेलू प्रादेशिक प्रभार


कोई अन्य जो सौंपा जाए


2. आईजी,यूटीआई एवं जेपीसी


निवेशक शिकायतें


यूटीआई के विशिष्ट उपक्रम


जेपीसी


भारतीय न्यास अधिनियम


निजाम का न्यास


कोई अन्य, जो सौंपा जाए


3. आरटीआई एवं समन्वयन


डीईए में आरटीआई का क्रियान्वयन


सीएम प्रभाग के भीतर समन्वयन


डाक,विदेश, संसदीय कार्य, खान मंत्रालय/विभाग का प्रादेशिक प्रभार


सतर्कता


आर्थिक कार्य विभाग के भीतर सीसीएस(सीसीए) नियमों और सीसीएस(आचरण) नियमों का लागू होना


सीसीएस(आचरण) नियमों और एआईएस(आचरण) नियमों के तहत सूचना


सचिवालय एवं इसके संबद्ध एवं अधीनस्थ दोनों कार्यालयों में सुरक्षा व्यवस्था


वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट का रखरखाव


विभागीय सुरक्षा


संपत्ति लाभ का रिकाडग और अनुरक्षण


कंपनियों/आपूर्तिकर्ताओं को काली सूची में डालना


नार्थ ब्लॉक, गेट नं0 2 से कार्यालय समय के बाद आगन्तुकों पर नियंत्रण


उपस्थिति में समयनिष्ठा अचानक दौरा


सतर्कता सत्यापन यूनिट,टकसालों और मुद्रणालयों के स्टाकों का वास्तविक सत्यापन


केन्द्रीय सतर्कता आयोग का क्षेत्रक कार्य






 







भिलाई इस्पात संयंत्र का विनिवेश भी मुद्दा

 















 


 

 






भिलाई इस्पात संयंत्र
भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारियों को विनिवेश का डर है

देश के नौ रत्नों में से एक भिलाई इस्पात संयंत्र भी भारत सरकार की विनिवेश सूची में है और यही बात इस लोकसभा चुनाव में मुद्दा भी बना है.

कम से कम उन 38 हज़ार कर्मचारियों और उनके परिवारवालों के लिए तो यह एक संवेदनशील मुद्दा है ही.


पिछले तीन सालों में स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (सेल) प्रबंधन ने अपनी कार्रवाइयों से साफ़ कर दिया है कि वह भिलाई इस्पात संयंत्र (बीएसपी) को निजी हाथों में बेचने की तैयारी कर रहा है.


हालांकि सेल प्रबंधन और सरकार की ओर से कभी भी यह स्पष्ट रुप से नहीं कहा गया कि विनिवेश होने वाला है.


लेकिन जिस तरह से भिलाई टाउनशिप के मकान कर्मचारियों को बेच दिए गए उससे कर्मचारियों के मन में कोई संदेह अब नहीं है.


कर्मचारियों के लिए ऐच्छिक सेवानिवृति जैसी योजनाएँ भी इसी का हिस्सा हैं.


राजनीतिक विरोध


बीएसपी के कर्मचारी तो इसका विरोध कर ही रहे हैं राजनीतिक दलों के स्थाई नेता भी कह रहे हैं कि वे निजीकरण के पक्ष में नहीं हैं.


सबसे मुखर विरोध कांग्रेस के विधायक और दुर्ग लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार भूपेश बघेल कर रहे हैं.






भूपेश बघेल
दुर्ग से कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल विनिवेश का मुखर विरोध कर रहे हैं

वे भिलाई टाउनशिप को भी बेचने के ख़िलाफ़ थे.


उन्होंने बीबीसी से हुई बातचीत में कहा, ‘बीएसपी सेल का सबसे कमाऊ पूत है और इसी को बेच देना तो सरासर ग़लत है. यह तो क्षेत्र की जनता को धोखा देने जैसा है.’


वे कहते हैं कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी कहा है कि फ़ायदे वाली इकाइयों का विनिवेश हरगिज़ नहीं होना चाहिए.


भाजपा के नेता बीएसपी के विनिवेश का विरोध तो करते हैं लेकिन वे अपनी सरकार की नीतियों के चलते यह नहीं बता पाते कि किस आधार पर बीएसपी का विनिवेश रुकेगा.


कर्मचारियों का पक्ष


बीएसपी ने इस बार 22 सौ करोड़ रुपयों का लाभ कमाया है और वह स्वाभाविक तौर पर सेल की सबसे अधिक कमाने वाली इकाई है.


लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि कभी सबसे अच्छा वेतन-भत्ता पाने वाले बीएसपी के कर्मचारी अब सबसे ख़राब वेतन-भत्ता पाने वाले कर्मचारी हो गए हैं.


पिछले पच्चीस सालों से वहाँ काम कर रहे एक कर्मचारी ने कहा, ‘हमारे सारे भत्ते बंद कर दिए गए हैं और अब हम सिर्फ़ वेतन और डीए के हक़दार रह गए हैं.’


उनका कहना है कि विनिवेश की आशंका से कर्मचारी इतने परेशान और डरे हुए हैं कि वे न तो भत्तों के बंद होने पर कुछ कहते हैं और न काम के घंटे बढ़ाए जाने पर.


एक दूसरे कर्मचारी का कहना था कि भत्ता आदि बंद करके ही प्रबंधन कोई बारह सौ करोड़ रुपए साल के बचा रहा है और यह निजीकरण से पहले संयंत्र को ज़्यादा लाभ में दिखाने की साजिश है.


यहाँ तक कि ट्रेड यूनियनें भी इस मामले में ख़ामोश ही हैं.


दो दशक पहले और अब के भिलाई को देखकर साफ़ लगता है कि बहुत कुछ बदल गया है और भिलाई टाउनशिप की रौनक और चमक लगातार धुँधली पड़ती जा रही है.


पता नहीं निजीकरण इसकी चमक को कितना लौटा पाएगा.


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